B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

फ्रॉबेल की शिक्षण पद्धति से आप क्या समझते हैं ?

फ्रॉबेल की शिक्षण पद्धति से आप क्या समझते हैं ?
फ्रॉबेल की शिक्षण पद्धति से आप क्या समझते हैं ?

फ्रॉबेल की शिक्षण पद्धति से आप क्या समझते हैं ?

फ्रॉबेल की शिक्षण पद्धति बालक के विकास प्रक्रिया से सम्बद्ध है। शिक्षक को तो मात्र बालक (अधिगमकर्ता) को उत्तेजित करना है, उस पर दृष्टि रखनी है, उसका निरीक्षण करना है। छात्र स्वयं उत्तेजित होकर स्व-क्रिया करने लगेगा। उसके अनुसार बालक प्रकृति प्रेमी होते हैं, आत्म-प्रेरित होते हैं तथा विकासशील होते हैं। अत: उन्हें उत्तेजित करने की आवश्यकता है। शिक्षण पद्धति के रूप में फ्रॉबेल ने तीन प्रकार की क्रियाओं का उल्लेख किया है-

1. आवृत्ति आत्मक क्रियाएँ (Rhythanic activities) – यह क्रियाएँ बालक के अवयवों का विकास करती हैं। ध्वनिपूर्ण क्रियाएँ बालकों की श्रवणेन्द्रियों का विकास करती हैं। फ्रॉबेल शरीर की सभी इन्द्रियों के विकास के पक्षधर हैं।

2. वस्तुओं के प्रयोग द्वारा शिक्षण प्रक्रिया- फ्रॉबेल बालकों को वस्तुओं के प्रयोग द्वारा शिक्षण का समर्थक है। फ्रॉबेल के उपहार (Gifts) बालकों को शिक्षण हेतु तीव्रतर स्थिति में ले जाते हैं। उपहारों का उपयोग ठीक समय तथा उपयुक्त परिस्थिति में होना चाहिये। फ्रॉबेल के शिक्षण के उपहार तीन प्रकार के हैं-(1) गोला (Sphere), (2) घन (Cube), (3) बेलनाकार (Cylender) | फ्रॉबेल इन तीनों आकारों को सृष्टि का सृजन मानता है। गोले के रूप में फ्रॉबेल गेंद का प्रयोग करते हैं। वे गेंद को शिक्षण के लिये सर्वाधिक उत्तम मानते हैं। गेंद को रस्सी में लटकाकर, रंगकर, ऊन तथा मखमल चढ़ाकर विभिन्न प्रकार से गेंद को उपयोगी तथा आकर्षक बनाया जा सकता है। गेंद से विभिन्न उदाहरण देकर शिक्षण कार्य कुशलता से हो सकता है। इसी प्रकार ठोस गोलों, घनों, बेलनों आदि से भी विभिन्न प्रकार के गणित, बीजगणित तथा रेखागणित का शिक्षण बालकों को दिया जा सकता है।

3. बालकों के प्रिय व्यापार तथा कार्य द्वारा शिक्षण- फ्रॉबेल के अनुसार, बालकों के रुचिपूर्ण व्यापार मिट्टी के मॉडल बनाना, कागज काटना, चित्र रंगना, बालू के घरोंदे बनाना, ड्राइंग बनाना, सिलाई, कढ़ाई, कताई-बुनाई तथा हाथ के रोचक कार्य हैं। बालकों के यह प्रिय *व्यापार तथा कार्य कहलाते हैं। इनसे बालक शीघ्र सीखते हैं।

4. खेल क्रिया द्वारा शिक्षण- फ्रॉबेल सभी खेलों को बालकों के शिक्षण हेतु सर्वाधिक प्रमुख मानता है। उसके अनुसार खेल एक आत्म-प्रेरित क्रिया है। वह खेलों को विकास की दृष्टि से तीन काल में बाँटता है— (1) शैशवावस्था की खेल क्रियाओं में- मातृ- खेल, शिशु – गीत, श्रवण क्रियाएँ, दृष्टिपूर्ण क्रियाएँ आदि । (2) बाल्यावस्था की क्रियाओं में-संगीत तथा बाल व्यापार (उपहारों से युक्त) क्रियाएँ आती हैं। (3) किशोरावस्था की क्रियाओं में-संकल्प दृढ़ता की क्रियाएँ, सामाजिक क्रियाएँ, सामूहिक क्रियाएँ (खेलकूद), कहानी तथा कथाएँ सुनना-सुनाना, प्रकृति के अध्ययन हेतु देशाटन तथा गणित, ज्यामिति, ड्राइंग आदि की क्रियाएँ सम्मिलित हैं।

Important Links…

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment