गैने के सीखने के सिद्धान्त या गैने के संस्तरणात्मक अधिगम (Gagne’s Hierarchy of Learning)
गैने (Gagne) शैक्षिक उद्देश्यों को स्पष्ट शब्दावली में परिभाषित करने पर बल देता है। गैने का वर्गीकरण अधिगम के प्रकारों (Types of learning) से सम्बन्धित हैं, जबकि ब्लूम (Bloom) का वर्गीकरण अधिगम के सिद्धान्तों पर आधारित है। गैने ने अपनी पुस्तक ‘The Conditions of Learning’ में सीखने के क्रम में आठ प्रकार बताए हैं-
आठ अधिगम प्रकारों को एक-दूसरे की नितान्त आवश्यकता है अर्थात् यदि अधिगम के दूसरे प्रकार की जानकारी प्राप्त करनी है, तो पहले प्रकार का ज्ञान अपेक्षित है अस्तु इसका क्रम इस प्रकार रखना श्रेयस्कर है-
रॉबर्ट गेने के अनुसार अधिगम के 8 प्रकार
सीखना (Learning)
1. संकेत अधिगम (Signal learning )
2. उद्दीपक अनुक्रिया अधिगम (Stimulus response learning )
3. शृंखला अधिगम (Chain learning )
4. शाब्दिक साहचर्य अधिगम (Verbal association learning)
5. विभेदात्मक अधिगम (Discrimination learning )
6. अवधारणा अधिगम (Concept learning )
7. सिद्धान्त अधिगम (Principle learning)
8. समस्या समाधान अधिगम (Problem Solving learning)
1. संकेत अधिगम (Signal learning )
इस स्तर पर व्यक्ति किसी सामान्य संकेत के प्रति अनुक्रिया करता है। संकेत अधिगम के विशिष्ट उद्दीपकों के लिए विशिष्ट अनुक्रिया की जाती हैं, जिसे उद्दीपन-अनुक्रिया अधिगम (Stimulus-response learning) भी कहते हैं। इसके लिए पूर्व परिस्थितियाँ अज्ञात हैं। इसमें छात्र उद्दीपन तथा अनुक्रिया को किसी एक व्यवस्था एवं परिस्थिति में बार-बार दोहराते हैं, जिससे उस उद्दीपन तथा अनुक्रिया में स्थापित सम्बद्ध सुदृढ़ हो जाएँ। उदाहरणार्थ- अध्यापक देखकर छात्र मौन हो जाते हैं। विज्ञान या व्याकरण की परिभाषाओं को सीखना, सड़क पर लाल बत्ती देखकर रुक जाना, छात्र का अध्यापक की किसी आवाज की नकल करना ।
इस अधिगम प्रक्रिया में अध्यापक सर्वप्रथम छात्रों के सामने उद्दीपन प्रस्तुत करता है और उन्हें अनुक्रिया करने के लिए बाध्य करता है। यदि छात्र की अनुक्रिया गलत होती है तो अध्यापक उस अनुक्रिया की अवहेलना करता है। सही अनुक्रिया करने पर अध्यापक छात्र को पुनर्बलन प्रदान करता है। याद रहे कि तत्काल प्रतिपुष्टि (Feedback), पुनर्बलन (Reinforcement) के लिए उत्तम स्रोत (माध्यम / सहारा) होती है। अध्यापक पुनर्बलन के सहारे सही अनुक्रिया का अभ्यास करते हुए छात्र को दक्षता और मास्टरी (Mastery) की ओर ले जाते हैं। अतः इस अधिगम प्रक्रिया में अध्यापक को निम्नांकित शिक्षण युक्तियों का प्रयोग करना चाहिए-
(i) उद्दीपन-अनुक्रिया में सामीप्य की स्थापना ।
(ii) सही अनुक्रिया पर पुनर्बलन प्रदान करना।
(iii) निरन्तर अभ्यास और समुचित पुनर्बलन का प्रयोग करना ।
2. उद्दीपक अनुक्रिया अधिगम (Stimulus response learning)
गैने ने अधिगम के इस प्रकार का सम्बन्ध स्किनर द्वारा प्रतिपादित उद्दीपक अनुक्रिया अनुबन्ध सिद्धान्त से है, जिसमें अनुक्रिया निरन्तर या सम्भावित होती है। उस समय सक्रियता की शक्ति बढ़ जाती है, जब उसे पुनर्बलन मिलता है। हम कह सकते हैं कि किसी उद्दीपक की उपस्थिति से जब किसी अनुक्रिया का होना सम्भव हो तो वहाँ हम उद्दीपक अनुक्रिया अधिगम की परिस्थिति कहेंगे। स्किनर के सक्रिय अनुबंध के सिद्धान्त में अनुक्रिया की पुष्टि पुनर्बलन का काम करती है। इसमें पॉवलव (Pavlov) के अनुसार, उद्दीपक तथा अनुक्रिया में पूर्व निर्धारित सम्बन्ध नहीं रहता. बल्कि अनुक्रिया का सम्बन्ध वातावरण एवं जीव की सक्रियता से होता है तथा इसमें प्राणी सही अनुक्रिया से नवीन सीखता है और साथ ही उसे अग्रिम क्रिया के लिए भी पुनर्बलन मिलता हैं।
3. शृंखला अधिगम (Chain learning)
व्यक्ति जब संकेत अधिगम एवं उद्दीपक-अनुक्रिया अधिगम से परिचित हो जाता है तभी शृंखला अधिगम की प्रक्रिया प्रारम्भ कर सकता है। स्किनर ने भी इस प्रकार के अधिगम की व्याख्या की है। इसमें उद्दीपक अनुक्रिया को निरन्तर एक क्रम से उपस्थित किया जाता है जिससे शृंखला अधिगम की स्थिति उत्पन्न होती है (Chaining is the connection of a set of individual motivation i.e. S-R sequence) |
व्यक्ति श्रृंखला अधिगम में दो या दो से अधिक उत्तेजक अनुक्रिया के सम्बन्धों से सीखता है। वह एक क्रमबद्ध विधि से विचार (ज्ञान) पिरोना सीख लेता है। अनुक्रिया को व्यक्ति के सीखने के क्रम में एक साथ जोड़ना या सम्बन्धित करना शृंखला अधिगम होता है। गैने ने दो प्रकार के शृंखला अधिगम की व्याख्या की है- 1. शाब्दिक शृंखला अधिगम (Verbal chain learning), 2. अशाब्दिक शृंखला अधिगम (Non verbal chain learning)। शिक्षा के क्षेत्र में बहुत से शिक्षण प्रतिमानों में शाब्दिक श्रृंखला अधिगम की ही परिस्थिति उत्पन्न की जाती है। जैसे अभिक्रमित अनुदेशन में शाब्दिक शृंखला की परिस्थिति उत्पन्न कर सीमाओं को तार्किक क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। अशाब्दिक शृंखला अधिगम हेतु चित्रों व अन्य दृश्य साधनों का प्रयोग किया जाता है।
4. शाब्दिक साहचर्य अधिगम (Verbal association learning)
सरल शृंखला सीखने के पश्चात् ज्ञान को शाब्दिक रूप प्रदान कर किसी भी वस्तु से सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य शाब्दिक साहचर्य सीखने के अन्तर्गत आता है, जिससे सीखी हुई वस्तु को स्थायित्व मिले। व्यक्ति श्रृंखला अधिगम के शाब्दिक अधिगम द्वारा विचारों को क्रम में पिरोना सीख लेता है तथा अशाब्दिक अधिगम भी कौशल अधिगम द्वारा सीख लेता है, परन्तु जब तक उस ज्ञान को शाब्दिक साहचर्य से सम्बन्धित न करवाया जाए, तब तक व्यक्ति का अधिगम अपूर्ण रहता है। जैसे कविता पाठ, अक्षरों व शब्दों को क्रमानुसार सीखना, गीत गाना। शृंखला अधिगम होने के कारण इसके अन्तर्गत शाब्दिक तथा शारीरिक अनुक्रियाओं का निश्चित क्रम सम्मिलित होता है। इसके लिए संकेत अधिगम, पूर्व परिस्थिति अथवा स्वरूप आवश्यक होता है।
5. विभेदात्मक अधिगम (Discrimination learning)
अधिगमकर्ता एक ही प्रकार के अथवा समान दो पदों से अधिक उद्दीपनों को सही-सही पहचान कर उनमें भेद कर सकता है। शिक्षण के विभेदात्मक अधिगम में संकेत तथा शृंखला (शाब्दिक या कौशल अधिगम) की परिस्थितियाँ सम्मिलित हैं। इस अधिगम में एक तथ्य को दूसरे से अन्तर पूर्व में सीखा हुआ ज्ञान करने पर बल दिया जाता है। इसके अन्तर्गत उद्दीपन तथा अनुक्रिया का सम्बन्ध भ्रांतिपूर्ण होता है। उदाहरणार्थ अक्षांश के शिक्षण के लिए देशान्तर के लिए कुछ सोपानों का अनुसरण किया जाता है, तब छात्र स्वाभाविक रूप में भेद को समझ लेता है। घनत्व और भार में अन्तर समझना । ‘लाल’ व ‘गुलाबी’ रंग को पहचान लेना या हिन्दी के ‘ब’ और ‘व’ में, म और म में, घ और ध आदि में भेद समझ लेना। इसके लिये यह आवश्यक है कि अध्यापक प्रत्येक उद्दीपन तथा अनुक्रिया को स्पष्ट करे और जिन-जिन वस्तुओं व तथ्यों में भेद करना है, उन्हें एक साथ प्रस्तुत करे। इसमें विभिन्न वर्गों के तथ्यों या घटनाओं को अलग कर पहचानने का कार्य किया जाता है।
6. अवधारणा अधिगम (Concept learning)
इस अधिगम परिस्थिति के लिए विभेदात्मक अधिगम (Discrimination learning) का ज्ञान आवश्यक है। कैण्डलर 1964 मे सर्वप्रथम अवधारणा अधिगम का उल्लेख किया। गैने ने इसको आगे बढ़ाया और अवधारणा अधिगम को इस प्रकार परिभाषित किया है, “जो अधिगम व्यक्ति में किसी वस्तु या घटना को एक वर्ग के रूप में अनुक्रिया करना सम्भव बनाते हैं, उन्हें हम अवधारणा अधिगम कहते हैं।”
(“The learning, which makes it possible for the individual to respond to things or events as a class, is called concept learning.” )
अवधारणा (सम्प्रत्यय) उद्दीपनों का एक ऐसा समूह है जिसमें कुछ विशेषताएँ होती हैं। उद्दीपन वस्तु, घटना या व्यक्ति के रूप में होते हैं। सामान्यतः हम किसी भी अवधारणा को एक नाम देते हैं, जैसे पेंसिल, पुस्तक, घड़ी, छात्र, अध्यापक आदि। ये सभी अवधारणा उद्दीपनों के वर्ग या समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं। अवधारणा की विशिष्ट विशेषताएँ ही एक अवधारणा के स्वरूप को दूसरी अवधारणा से विशिष्ट गुणों के आधार पर अलग करती हैं। उदाहरणार्थ- ‘रंग’ गुण के आधार पर काला, लाल, हरा, पीला, नीला, बैंगनी आदि अलग-अलग रंगों के रूप में पहचाने जाते हैं। इसी प्रकार ‘आकार’ अवधारणा के आधार पर ‘तालाब’, ‘झील’ और ‘समुद्र’ विभिन्नता लिए हुए हैं, क्योंकि तालाब झील से भी झील समुद्र से ‘आकार’ में छोटी होती है। व्यक्ति किसी सम्प्रत्यय (अवधारणा) का अनुभव तथा अधिगम क्रिया-प्रक्रिया से करता है। इस तथ्य का स्पष्टीकरण करना आवश्यक है। इस प्रकार के अवधारणा विकास की यह प्रक्रिया चार स्तरों से गुजरती है। दूसरे शब्दों में अवधारणा अधिगम या विकास के निम्नलिखित स्तर हैं-
(i) मूर्त स्तर ( Concrete level)- जब बच्चा प्रत्यक्ष देखे गए पदार्थों या वस्तुओं की उपस्थिति पर उन्हें पहचानने में सक्षम हो जाता है, तो इसे अवधारणा अधिगम का मूर्त स्तर कहते हैं।
(ii) परिचयात्मक स्तर (Identity level)- जब बच्चा भिन्न परिवर्तित दशाओं में पदार्थ के विभिन्न गुणों के सामान्यीकरण करने की योग्यता प्राप्त कर ले, तो यह कहा जा सकता है कि उसने अवधारणा अधिगम के परिचयात्मक स्तर को प्राप्त कर लिया है।
(iii) वर्गीकरण स्तर (Classification level)- जब बच्चा कम से कम एक ही वर्ग में दो दृष्टांतों या उदाहरणों को एक तरह की समझने की क्षमता विकसित कर ले, तब अवधारणा अधिगम के इस स्तर की उपलब्धि मानी जा सकती है।
(iv) औपचारिक स्तर (Formal level)- जब बच्चा अवधारणा की विशेषताओं (Attibutes) के आधार पर विशिष्ट वर्ग में होना और उसका आधार स्पष्ट कर सके तो इसका अर्थ है कि उसने अवधारणा अधिगम का औपचारिक स्तर प्राप्त कर लिया है।
इसमें सम्पूर्ण तथ्य से सम्बन्धित सामान्यीकरण की क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं अर्थात् एक ही वर्ग के दो या दो से अधिक विभिन्न उद्दीपनों के प्रति कोई एक सामान्य व्यवहार अन्तर्निहित होता है। इसके लिए बहु-विभेदात्मक अधिगम, पूर्ण-परिस्थिति मानी जाती है। तथ्यों के समूह एक-दूसरे से भिन्न होते हैं, लेकिन उसमें सम्मिलित घटकों / तत्त्वों के लिए छात्र सामान्यीकरण कर सकते हैं। जैसे पौधों एवं पशुओं के वर्गीकरण करना। अनार, संतरा, नींबू तथा अंगूर बाह्य आवरण में बिल्कुल परस्पर भिन्न हैं, परन्तु सभी रसदार फल हैं। इस प्रत्यय की छात्र पहचान कर सकते हैं। इसमें त्रुटि एवं प्रयास तथा सामान्यीकरण के सिद्धान्तों का अनुसरण किया जाता है। इसमें व्यक्ति में तर्क, कल्पना, चिन्तन आदि का विकास होता है।
7. सिद्धान्त अधिगम (Rule or principle learning)
इस स्तर पर अधिगमकर्ता किसी सिद्धान्त को सीखता है और उसे नई परिस्थितियों में प्रयोग कर सकता है। नियम या सिद्धान्त अधिगम में दो या दो से अधिक प्रत्ययों की शृंखला सम्मिलित होती है। जिस प्रकार एक सम्प्रत्यय में अनेक तथ्यों एवं विशेषताओं की शृंखला होती है, उसी प्रकार एक नियम/सिद्धान्त में कई सम्प्रत्ययों की शृंखला सम्मिलित होती है। उदाहरणार्थ, बर्फ का गर्मी पाकर पिघलना। इस सिद्धान्त में तीन सम्प्रत्ययों, ‘बर्फ’, ‘गर्मी’, ‘पिघलना’ का शृंखलन किया गया है और इसमें एक ही सिद्धान्त का बोध होता है। सिद्धान्त अधिगम में छात्र को प्रत्ययों का प्रत्यास्मरण (Recall) करना होता है, जिससे सिद्धान्त का बोध होता है। इसी प्रकार न्यूटन के नियम, थार्नडाइक के नियम, उच्चारण व वर्तनी के नियम तथा गणित के नियम आदि इसके उदाहरण हैं।
8. समस्या समाधान अधिगम (Problem solving learning)
अधिगमकर्त्ता इस स्तर पर सीखे हुए दो या दो से अधिक नियमों का समन्वय करके किसी नई समस्या के समाधान की योग्यता प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार उच्च स्तरीय सिद्धान्त के रूप में सम्बद्ध करना ही समस्या समाधान अधिगम है। अधिगम की प्रक्रिया में तीन प्रमुख चर (Variables) कार्यरत होते हैं- 1. अधिगमकर्त्ता, 2. उद्दीपन-परिस्थिति और 3. अनुक्रिया। समस्या समाधान एक जटिल अधिगम है। इसमें सम्प्रत्यय अधिगम और सिद्धान्त अधिगम दोनों ही सम्मिलित हो जाते हैं। सफल समस्या समाधान का वर्णन अधिगम के धनात्मक स्थानान्तरण (Positive transfer of learning) के रूप में किया जा सकता है। इसलिए इसे जटिल तथा व्यक्तिगत अधिगम की संज्ञा दी गई है। जैसे रेखागणित के किसी प्रमेय को सिद्ध करना । जीवन की समस्याओं का समाधान व्यक्ति अपने पूर्व अनुभवों की सहायता से करता है। पूर्व अनुभव व्यक्ति का अधिगम होता है। अधिगम समस्या समाधान में सहायक होता है।
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