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दूर सम्मेलन या टेलीकॉन्फ्रेसिंग- प्रकार, महत्त्व, लाभ तथा प्रयोग

दूर सम्मेलन या टेलीकॉन्फ्रेसिंग
दूर सम्मेलन या टेलीकॉन्फ्रेसिंग

दूर सम्मेलन या टेलीकॉन्फ्रेसिंग क्या हैं?

दूरवर्ती-शिक्षा के लिए शैक्षिक टेलीकान्फ्रेंसिंग एक सशक्त माध्यम के रूप प्रयुक्त किया जा सकता है। इसमें कई प्रकार के माध्यमों का प्रयोग किया जाता है और पारस्परिक समूह द्वारा दो-पक्षीय प्रसारण सम्प्रेषण की सुविधा होती है। टैलीकान्फ्रेंसिंग के तीन मुख्य रूप होते हैं-

(i) श्रव्य टेलीकान्फ्रेंसिंग,

(ii) दृश्य टेलीकान्फ्रेंसिंग,

(iii) कम्प्यूटर टेलीकान्फ्रेंसिंग कम्प्यूटर टेलीकान्फ्रेंसिंग की तकनीकी दूरवर्ती-शिक्षा के लिए बहुत ही उपयुक्त प्रकार की तकनीकी मानी जाती है।

यह दूरवर्ती शिक्षा संस्थाओं द्वारा प्रतिदिन इनका प्रयोग किया जाने लगा है लेकिन इसके प्रयोग द्वारा यह पाया गया है कि इसमें लागत की कमी आई है तथा शिक्षार्थी की सेवा में गुणात्मक सुधार हुआ है। सुगमता एवं कम लागत की पूँजी के द्वारा यह दूरवर्ती शिक्षा संस्थानों एवं शिक्षार्थियों के द्वारा यह आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बन गया। इस माध्यम का शैक्षिक संस्थाओं में अधिक विकास हुआ है।

टेलीकान्फ्रेंसिंग एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम है जो तीन या चार व्यक्तियों के मध्य दो या अधिक स्थानों से विषय-वस्तु के वार्तालाप में भाग ले सके हैं लेकिन टेलीकान्फ्रेंसिंग एक उच्च गुणात्मक प्रकार की श्रव्य विधि है जो तुरन्त भाग लेने वालों के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान करती है।

श्रव्य टेलीकान्फ्रेंसिंग में कई टेलीफोनों की लाइनों की आवश्यकता होती है या पारस्परिक सम्बन्धित युक्तियों की आवश्यकता पड़ती है। प्रत्येक युक्तियों को प्रत्येक सम्पर्क द्वारा जोड़ना सामान्य अभ्यास माना जाता है। सम्पर्क के साथ प्रयोग में लाये गये श्रव्य उपकरण साधारण प्रकार के होते हैं, जैसे-हाथ के सेट, शीर्ष सेट, स्पीकर फोन, रेडियो टेलीफोन आदि होते हैं।

श्रव्य टेलीकान्फ्रेंसिंग सदैव स्थानीय कम्पनी के टेलीफोनों को प्रयोग में लाती है। इसमें घरेलू लाइन के द्वारा भी कार्यक्रम को सम्पादित कर सकते हैं। टेलीकान्फ्रेंसिंग के द्वारा वातावरण से प्रभावी सम्बन्ध बनाया जा सकता है। सामान्यतः प्रयोग करने के लिए स्थानीय टेलीफोन कम्पनी के इस प्रकार उपकरणों को खरीदा जाता है। यदि स्थानीय टेलीफोन कम्पनी के द्वारा अधोलिखित प्रकार की सुविधा है किसी विद्यालय या कॉलेज को व्यक्तिगत टेलीकान्फ्रेंसिंग प्रणाली को शुरू करने में कम खर्च आता है—

(i) तात्कालिक अधिगम की दृष्टि परिस्थिति उत्पन्न की जाये,

(ii) स्थानीय एवं दूरवर्ती शिक्षण के लिए उपयुक्त दरें हों, तथा

(iii) अपेक्षाकृत ढंग से लाइन की व्यवस्था की जाए।

टेलीकान्फ्रेंसिंग के प्रकार (Types of Teleconferencing)

टेलीकान्फ्रेन्सिंग के निम्न प्रकार हैं-

(1) कम्प्यूटर कांफ्रेंसिंग – कम्प्यूटर कांफ्रेंसिंग में भाग लेने वालों को विषय-वस्तु (Text) तथा ग्राफिक्स (Graphics) का सम्प्रेषण किया जाता है जो टाइपराइटर टर्मिनल के द्वारा नियन्त्रक कम्प्यूटर से जुड़े रहते हैं।

(2) आडियो कांफ्रेंसिंग – आडियो कांफ्रेंसिंग तो वास्तव में व्यक्ति से व्यक्ति तक टेलीफोन का स्वाभाविक प्रसार है, जिसमें दो से अधिक लोगों द्वारा चर्चा की जाती है।

(3) वीडियो कांफ्रेंसिंग – वीडियो कांफ्रेंसिंग में टेलीविजन तथा श्रव्य साधनों का प्रयोग करके आमने-सामने बात की जाती है।

आधुनिक शिक्षा में टेलीकान्फ्रेंसिंग का महत्त्व (Importance of Teleconferencing in Modern Education)

इसके द्वारा अधिगमकर्ता के अधिगम प्रभाव को देखने का प्रयोग किया गया है। श्रव्य टेलीकान्फ्रेंसिंग की प्रभावशीलता को देखने के लिए कुछ अनुसन्धान कार्य भी किए गए हैं। इसमें पाया गया है कि जिस प्रकार शिक्षण की क्रिया आमने-सामने की प्रक्रिया के रूप में प्रभावी है, उसी प्रकार से टेलीफोन की सुविधा भी प्रभावशाली है।

(i) इस प्रणाली को जल्दी से छोटे-बड़े समूहों के रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है। यह अधिक लचीली प्रणाली है।

(ii) अनुदेशन सामग्री के स्तर को सुधारा जा सकता है या स्थिर रखा जा सकता है।

(iii) टेलीकान्फ्रेंसिंग प्रणाली के द्वारा छात्रों को तुरन्त पृष्ठ-पोषण प्रदान किया जा सकता है।

(iv) इससे पारस्परिक ढंग से न उपलब्ध होने वाले छात्रों के लिए भी समय-सारणी व्यवस्थित की जा सकती है।

(v) यह छात्र एवं शिक्षण को दूरदर्शन के प्रयोग की तरह कम लागत पर अधिक प्रकार से सुविधा प्रदान करती हैं। पूर्व की अवस्था में यह पाया गया कि इसके द्वारा नौ विभिन्न प्रकार के समूहों को जो कि आपस में सैकड़ों मील की दूरी पर फैले हुए हैं, एक साथ शिक्षा प्रदान की जाती है तथा उनके मध्य चित्रों को प्रदर्शित किया जाता है एवं उनके पास तक ध्वनियाँ भी पहुँचाई जाती हैं।

(vi) टेलीकान्फ्रेंसिंग का उपयोग उस समय और अधिक बढ़ जाता है, जब इसमें छात्र विभिन्न समुदायों के रूप में दूर-दूर फैले हुए हों। इसमें विभिन्न समुदायों के मध्य विभिन्न केन्द्रों पर फैले हुए व्यक्तियों के मध्य इस प्रकार के विषय या कार्यक्रम दिये गये हों।

(vii) अनुदेशन या कार्यक्रम के आयाम को विभिन्न केन्द्रों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है।

(viii) दूरवर्ती अधिगम कर्त्ताओं के लिए अन्य विधियों से यह विधि कम खर्चीली होती है।

(ix) अनुदेशन की यह विधि अन्य विधियों के समान ही है। जैसा कि विभिन्न समूहों के मध्य विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों द्वारा आपस में विचार-विमर्श किया जाता है।

टेलीकान्फ्रेंसिंग के लाभ (Importance of Teleconferencing)

टेलीकान्फ्रेंसिंग के निम्नलिखित लाभ हैं—

(1) दूरवर्ती अधिगम के लिए प्रभावी- टेलीकान्फ्रेंसिंग का उपयोग उस समय और अधिक बढ़ जाता है, जब इसमें छात्र विभिन्न समुदायों के रूप में दूर-दूर फैले हों। इसमें विभिन्न समुदायों के मध्य विभिन्न केन्द्रों पर इस प्रकार के विषय या कार्यक्रम दिये गये हों।

(2) मूल्य की प्रभावशीलता- दूरवर्ती अधिगम कर्त्ताओं के लिए कम खर्चीली होती है।

(3) लचीली प्रणाली- इस प्रकार की प्रणाली को जल्दी या बड़े समूहों के रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है। यह अधिक लचीली प्रणाली है।

(4) सुपरिचित अनुदेशनात्मक प्रणाली- अनुदेशन की यह विधि अन्य विधियों के समान है। जैसा कि विभिन्न समूहों के मध्य विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों द्वारा आपस में विचार विमर्श किया जाता है।

(5) समय-सारणी को व्यवस्थित करने में सुगमता- इससे पारम्परिक ढंग से न उपलब्ध होने वाले छात्रों के लिए समय-सारणी व्यवस्थित की जा सकती है।

(6) बहु-स्थानीय नियन्त्रित अधिगम- अनुदेशन या कार्यक्रम के उपागम को विभिन्न केन्द्रों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है।

(7) उच्चकोटि का अनुदेशन – अनुदेशन सामग्री के स्तर को सुधारा जा सकता है या स्थिर रखा जा सकता है।

(8) तात्कालिक पृष्ठ-पोषण- टेलीकान्फ्रेंसिंग प्रणाली के द्वारा छात्रों को तुरन्त पृष्ठ-पोषण प्रदान किया जा सकता है।

भारत में टेलीकॉन्फ्रेंसिंग के प्रयोग (Experiments of Teleconferencing in the Indian)

विश्व में पहला प्रसिद्ध मुक्त विश्वविद्यालय, ब्रिटिश मुक्त विश्वविद्यालय में ‘Cyclops’ के नाम से दूर-सम्मेलन प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के द्वारा अन्तः क्रियात्मक दृश्य-श्रव्य सहायक सामग्री के रूप में विद्यार्थियों तथा अध्यापक दोनों को लाभ पहुँच रहा है।

भारत में भी दूर-सम्मेलन (Teleconferencing) प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है। कुछ शैक्षणिक संस्थाएँ अथवा विश्वविद्यालयों द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इस क्षेत्र में कुछ सफल प्रयोग किये गये हैं। भारत में किये गये दूर-सम्मेलन के कुछ प्रयोग इस प्रकार है-

1. अन्तरिक्ष प्रयोग केन्द्र (Space Application Centre)- अन्तरिक्ष प्रयोग केन्द्र, अहमदाबाद द्वारा दूर-सम्मेलन के अनेक प्रयोग किये गये हैं। इनके अन्तर्गत उपग्रह तथा भूतलीय सर्किट, एकतलीय वीडियो तथा द्विपक्षीय ऑडियो उपकरणों का प्रयोग शिक्षा तथा प्रेस सम्बन्धी उद्देश्यों के लिए किया गया है।

2. केन्द्रीय शिक्षा तकनीकी संस्थान तथा राष्ट्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के संयुक्त सहयोग द्वारा कक्षा 2000 + (Classroom, 2000 +) नाम की एक परियोजना पर काम किया जा रहा है।

3. इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय तथा भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा किया जा रहा है। इग्नू के यांत्रिक मीडिया प्रोडक्शन केन्द्र इसरो (ISRO) के सहयोग द्वारा एकपक्षीय वीडियो, द्विपक्षीय ऑडियो, उपग्रह आधारित दूर सम्मेलन (Teleconferencing) की व्यवस्था की जाती है। इस केन्द्र द्वारा सरकारी विभागों, शिक्षा संस्थाओं तथा अन्य व्यावसायिक संस्थाओं को निर्धारित फीस पर दूर-सम्मेलन की सुविधा प्रधान की जाती है। इग्नू अपने शिक्षार्थियों की सुविधा के लिए इस तकनीकी का प्रयोग नियमित रूप से कर रहा है।

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