अन्तः क्रियात्मक रेडियो (Interactive Radio)
रेडियो अथवा आकाशवाणी का तात्पर्य केवल रेडियो सेट से नहीं लिया जाना चाहिए। रेडियो प्रसारण के अन्तर्गत स्टूडियो में वक्ता अपने विचार व्यक्त करता है और उसकी आवाज से तरंगें उत्पन्न होती हैं। माइक्रोफोन इन तरंगों को विद्युत तरंगों में परिवर्तित कर देता है और ये तरंगें स्टूडियो कक्ष द्वारा ट्रांसमीटर तक पहुँचायी जाती हैं। ट्रांसमीटर से इन तरंगों को आकाश में उछाल दिया जाता है और ये तरंगें वायुमण्डल में फैल जाती हैं और रिसीविंग सेट पर इन्हें कैच कर लिया जाता है और आवाज श्रोताओं तक पहुँचाई जाती हैं।
रेडियो प्रसारण के शैक्षिक उद्देश्य- रेडियो प्रसारण से अनेकानेक शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। शिक्षा का उद्देश्य छात्रों का शारीरिक और मानसिक विकास करना है। रेडियो के माध्यम से शारीरिक शिक्षा और स्वास्थ्य विज्ञान सम्बन्धी अनेक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं जिन्हें सुनकर छात्रों में स्वस्थ आदतों का विकास होता है। रेडियो प्रसारण से व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र, दोनों का निर्माण किया जा सकता है। चरित्र के विकास हेतु अनेक कहानी, घटनाएँ, नाटक आदि प्रसारित किये जाते हैं जिनसे व्यक्ति में ईमानदारी, सद्भावना और सहानुभूति आदि गुणों का विकास होता है। साथ ही देशप्रेम और राष्ट्रीय जागृति भी रेडियो से प्रसारित कार्यक्रमों से उत्पन्न होती है। रेडियों से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों का एक अन्य उद्देश्य जनतंत्र की भावना में विश्वास उत्पन्न करना होता है। सामुदायिक सद्भाव, सामाजिक कुरीतियों का विरोध, सांस्कृतिक एकता आदि के सम्बन्ध में अनेक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं जिनका उद्देश्य भावनात्मक एकता उत्पन्न करना होता है। अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की स्थापना और अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में भी रेडियो से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम योगदान देते हैं।
रेडियो प्रसारण की शैक्षिक उपयोगिता
रेडियो का शिक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान है। दूरदर्शन के प्रचलन के बाद भी शिक्षण के क्षेत्र में रेडियो की उपयोगिता बनी हुई है। विभिन्न सामाजिक घटनाओं को विशाल क्षेत्र में पहुँचाने का कार्य रेडियो के बराबर कोई अन्य माध्यम नहीं कर सकता। विभिन्न वार्ताएँ रेडियो के द्वारा प्रसारित होती हैं। विभिन्न घटनाओं की सूचना तुरन्त प्राप्त हो जाती है। अधिगमकर्त्ता को प्रसारणकर्त्ता के शब्दों पर ध्यान देने की सुविधा प्राप्त होती है। दूरस्थ शिक्षा के प्रसार में रेडियो एक सस्ता और उपयोगी साधन 1 औपचारिकेत्तर शिक्षा के कार्यक्रम रेडियो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं। कृषकों, महिलाओं, प्रौढ़ों को शिक्षित-प्रशिक्षित करने में रेडियो के कार्यक्रम विशेष रूप से योगदान देते हैं। रेडियो द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों से छात्रों को नूतन जानकारी प्राप्त होती है और उनके ज्ञान में वृद्धि होती है। पत्राचार पाठ्यक्रमों का प्रसारण भी रेडियो द्वारा होता है जिससे शिक्षार्थियों को उनके स्थान पर ही जानकारी उपलब्ध हो जाती है। रेडियो की शैक्षणिक उपयोगिता के सम्बन्ध में निम्न बातें उल्लेखनीय हैं-
(1) रेडियो प्रसारण के द्वारा न्यूनतम सूचनाएँ तथा समाचार विद्यार्थियों को प्राप्त होते हैं। इन समाचारों और सूचनाओं को कक्षा में उपलब्ध कराना सम्भव नहीं होता।
(2) कक्षा शिक्षण में अपने शिक्षण की रोचकता बनाये रखने के लिए शिक्षकों को रेडियो के द्वारा विशेष विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत जानकारी उपलब्ध होती है। रेडियो के द्वारा छात्रों को न्यूनतम शब्दों की जानकारी प्राप्त होती है और उन्हें उच्चारण सीखने में रेडियो उपयोगी सिद्ध होता है। रेडियो के प्रयोग से शिक्षण में रोचकता आती है और छात्रों की अधिगम शक्ति में वृद्धि होती है।
(3) यह दूरस्थ शिक्षा का एक सरलतम और सस्ता माध्यम है और इसके द्वारा उन छात्रों में भी शिक्षा का प्रसार किया जा सकता है जहाँ विद्यालय और शिक्षकों की व्यवस्था नहीं है।
(4) रेडियो, संगीत, नाटक, कहानी, वार्ता आदि संवाद के उत्कृष्ट कार्यक्रम प्रसारित करता है जो छात्रों के ज्ञान में वृद्धि करते हैं।
(5) रेडियो प्रसारण के फलस्वरूप छात्रों और शिक्षा से जुड़े लोगों को नवीनतम शैक्षिक तकनीकी, विज्ञान, वैज्ञानिक खोजों और नवीनतम शैक्षिक अनुसंधानों की जानकारी प्राप्त होती है। इनके द्वारा यह भी जानकारी प्राप्त होती है कि शिक्षा के प्रसार के लिए सरकार और अन्य संस्थाएँ क्या कार्यक्रम चला रही हैं।
(6) यह शिक्षा का एक कम खर्चीला और द्रुतगामी साधन है और इसके द्वारा शिक्षा प्रसार में समय और शक्ति की बचत होती है।
(7) शिक्षण में रेडियो का उपयोग छात्रों की कल्पनाशक्ति और सृजनशक्ति के विकास में योगदान देता है। उन्हें अपनी छिपी हुई प्रतिभा को प्रतिस्थापित करने की प्रेरणा प्राप्त होती है और उनके विचार-शक्ति एवं बोधशक्ति का विकास होता है।
(8) भारत जैसे गरीब देश में सभी के लिए विद्यालयों की व्यवस्था करना एक अत्यन्त कठिन कार्य है। इस कार्य में रेडियो के द्वारा बहुत अधिक सहायता प्राप्त हुई है।
भारतीय लोकतन्त्र की रक्षा के लिए अधिकतम नागरिकों का शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है। रेडियो के द्वारा सभी के हेतु शैक्षिक अवसर उपलब्ध होते हैं और इस तरह अनौपचारिकेत्तर शिक्षा में रेडियो का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
अन्तः क्रियात्मक रेडियो द्वारा प्रसारित पाठ और उनका संगठन (Lesson and its Organization Broadcasting by the Interactive Radio)
ज्ञानमूलक पाठों के प्रसारण से विषय-वस्तु की सम्यक् जानकारी प्राप्त नहीं होती, परन्तु उपकरणों के पृष्ठभूमि की जानकारी अवश्य प्राप्त हो जाती है। उदाहरण के लिए किसी वार्ता से कश्मीर के भूगोल के पाठ को नहीं पढ़ाया जा सकता किन्तु भूगोल के शिक्षण में भी उपयोगी सिद्ध होता है। आकाशवाणी द्वारा अनेक ऐसे कार्यक्रम भी प्रसारित किये जाते जिनकी शिक्षण संस्था की पाठ्यचर्या से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत किये गये ये कार्यक्रम शैक्षिक दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी होते हैं और इस प्रकार के प्रसारण से शिक्षक एवं छात्र दोनों ही लाभान्वित होते हैं।
रेडियो से प्रसारित होने वाले पाठों का संगठन उनकी उपयोगिता को प्रदर्शित करते हैं। रेडियो द्वारा प्रसारित पाठों का चयन अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। इसके द्वारा प्रसारित पाठ की पूर्व तैयारी अत्यन्त आवश्यक है। प्रस्तुतकर्ता को विषयवस्तु की सम्यक् जानकारी होनी चाहिए। प्रस्तुतीकरण भी इस प्रकार किया जाना चाहिए कि छात्रों को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो । शैक्षिक प्रसारण के समय शिक्षक और छात्रों को सतर्क रहना चाहिए। रेडियो प्रसारण के साथ छात्रों के हेतु अनुवर्ती कार्यक्रम आयोजित करना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है जिससे कि छात्र अपनी आशंकाओं का समाधान कर सकें। प्रसारित कार्यक्रमों के अन्त में मूल्यांकन रिपोर्ट बनाई जानी चाहिए जिससे छात्रों को अधिक से अधिक में लाभ हो सके।
रेडियो पाठ प्रसारण के सम्बन्ध में कुछ बातों की जानकारी आवश्यक है। रेडियो पाठ लेखक और प्रवाचक को यह जान लेना चाहिए कि प्रसारित कार्यक्रम किस आयु वर्ग के छात्रों के लिए है। पाठ्यक्रम लेखक को छात्रों के मनोविज्ञान और उनकी रुचियों का भी ज्ञान होना चाहिए। प्रसारण के विषय का चुनाव अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। विषय प्रसारण की पद्धति अत्यन्त स्पष्ट होनी चाहिए। छात्रों के पूर्व-ज्ञान पर आधारित सूचनाएँ प्रसारित करना अधिक उपयोगी होता है। समस्यात्मक बातों से प्रसंग प्रारम्भ करके उसे विस्तारपूर्वक इस प्रकार व्यक्त किया जाना चाहिए कि विद्यार्थी उसे स्वतः समझ लें। शिक्षण प्रक्रिया में उदाहरण और उद्धरणों का भी प्रयोग किया जाना चाहिए, साथ ही छात्रों को अनवरत ज्ञान के सम्बन्ध में भी जानकारी होनी चाहिए।
शैक्षिक प्रसारण की सीमाएँ
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि रेडियो प्रसारण की शैक्षिक उपयोगिता बहुत अधिक है परन्तु इसके शैक्षिक प्रसारण की कुछ अपनी सीमाएँ हैं। रेडियो द्वारा प्रसारित पाठ के विकास प्रक्रिया पर विद्यालय के शिक्षक का कोई नियन्त्रण नहीं होता अतएव विद्यार्थी उस पर अधिक ध्यान नहीं देते। रेडियो पाठों को सुनते समय छात्रों को अपना ध्यान प्रसारण पर ही केन्द्रित रखना होता है और यदि किंचित् मात्र भी उसका ध्यान इधर-उधर चला जाता है तो वह पाठ नहीं समझ पाता। पाठ को दोहराने की कोई व्यवस्था नहीं होती। पाठ प्रस्तुत करने वाले से छात्र का प्रत्यक्ष सम्पर्क नहीं हो पाता और इस कारण पूरी तरह से लाभान्वित नहीं हो पाते। रेडियो एक दृश्यहीन प्रसारण है और इस कारण छात्र आवाज सुनते-सुनते ऊबने लगते हैं और उनके अधिगम की मात्रा कम होने लगती है। किसी प्रसंग को सुनकर उसे सीखना आसान नहीं है जबकि कोई बात देखकर उसे आसानी से समझा जा सकता है।
रेडियो का शैक्षिक प्रसारण और कक्षा-शिक्षण- उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि रेडियो प्रसारण की शैक्षणिक उपयोगिता तो है किन्तु रेडियो प्रसारण कक्षा-शिक्षण का स्थान नहीं ले सकता। भारत जैसे देश में, जहाँ जनसंख्या बहुत अधिक है और जहाँ के संसाधन सीमित हैं, रेडियो को शिक्षा का माध्यम तो बनाया जा सकता है परन्तु कक्षा-शिक्षण भी आवश्यक हो जाता है। विशाल जनसंख्या वाले देश में रेडियो प्रसारण के माध्यम से शिक्षा प्रदान तो की जा सकती है, परन्तु इसके लिए कक्षा शिक्षण के सहपूरक के रूप में ही व्यवस्था की जा सकती है। भारत में रेडियो के शैक्षिक कार्यक्रमों से छात्रों को लाभान्वित कराने के लिए निम्न बातें अत्यन्त आवश्यक हैं-
(1) रेडियो द्वारा प्रसारित शैक्षिक पाठों का लाभ उठाने के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक विद्यालय में एक रेडियो सेट अवश्य हो ।
(2) रेडियो सेट के रख-रखाव की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
(3) विद्यालय के टाइम-टेबुल (समय-सारणी) में प्रसारण सुनने का चक्र निर्धारित किया जाना चाहिए और इसे सुनाने का दायित्व किसी एक शिक्षक के सुपुर्द किया जाना चाहिए।
(4) रेडियो द्वारा प्रसारित कार्यक्रम की पूर्व सूचना प्रत्येक विद्यालय को लिखित रूप में प्रदान की जानी चाहिए।
(5) इस बात का प्रयास किया जाना चाहिए कि रेडियो द्वारा प्रसारित आलेख का विषय पाठ्यक्रम से मेल खाता हो ।
(6) छात्रों को रेडियो में आवाज सुनने तथा विषयवस्तु को समझने की आदत डालनी चाहिए।
(7) रेडियो के शैक्षिक कार्यक्रम इस प्रकार होने चाहिए कि उनमें छात्रों को मनोरंजन भी प्राप्त हो।
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