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पाठ्यक्रम मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्त्व

पाठ्यक्रम मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्त्व
पाठ्यक्रम मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्त्व

अनुक्रम (Contents)

पाठ्यक्रम मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Curriculum Evaluation)

पाठ्यक्रम मूल्यांकन के प्रमुख प्रयोजन शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना हैं। ये निम्नलिखित है-

1. पाठ्यक्रम की उपयुक्तता (Suitability of Curriculum)

पाठ्यक्रम उपयुक्त होना चाहिए। पाठ्यक्रम मूल्यांकन पाठ्यक्रम की उपयुक्तता निर्धारित करता है। यह निर्धारित करता है कि पाठ्यक्रम जिस उद्देश्य के लिए निर्मित किया गया है, उसकी पूर्ति करता है कि नहीं।

2. निष्क्रिय सामग्री को हटाना और वर्तमान पाठ्यक्रम का अद्यतन (नवीनतम) करना (Deleting Obsolete Outdated Contents and Update Existing  Curriculum)

इसमें यह आवश्यक है कि अव्यवहृत विचारों और प्रक्रियाओं को हटाया जाए और पाठ्यक्रम में प्रचलित समसामायिक परिवर्धन शामिल किए जाएँ। विषयवस्तु एवं प्रक्रियाओं को शामिल करने अथवा विलोपन (Deletion) के बारे में वस्तुनिष्ठ निर्णय लेने के लिए पाठ्यक्रम मूल्यांकन प्रयोग आवश्यक होगा। इसमें अनावश्यक सामग्री को हटाया जाता है।

3. कार्यान्वयन के अन्तर्गत पाठ्यक्रम की समीक्षा अथवा पुनर्निरीक्षण (Reveiwing Curriculum under Implementation)

कार्यान्वयन के लिए पाठ्यक्रम की समीक्षा आवश्यक होती है। नीति योजना आयोजकों और निर्णय करने वाले की पाठ्यक्रम के कार्यान्वयन पर तुरन्त प्रतिपुष्टि की आवश्यकता हो सकती है ताकि यदि आवश्यक हो तो सभी सम्बद्ध उद्देश्यों की प्रभावशाली प्राप्ति के लिए उसमें संशोधन किए जा सकें। इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पाठ्यक्रम मूल्यांकन आवश्यक है।

4. विभिन्न अवयवों का मूल्यांकन (Evaluation of Different Components)

समस्त अवयवों का मूल्यांकन करना आवश्यक होता है। पाठ्यक्रम के विभिन्न अवयवों यथा अदा, प्रदा तथा प्रक्रियाओं (Input Output and processes) को समय-समय पर मूल्यांकन की आवश्यकता होती है। यह पाठ्यक्रम के पुराने, घिसे-पिटे, अनुपयोगी एवं त्रुटिपूर्ण अवयवों को पाठ्यक्रम से निकालने (हटाने) में सहायता करता है।

5. नए पाठ्यक्रम का विकास (Development of New Curriculum)

नये पाठ्यक्रम के विकास हेतु पाठ्यक्रम मूल्यांकन सहयोगी है। यदि आप माध्यमिक स्तर पर एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम के लिए एक नये पाठ्यक्रम का विकास करना चाहते हैं तो एक भिन्न प्रणाली द्वारा वर्तमान पाठ्यक्रम का मूल्यांकन हमारी उभरती आवश्यकता के लिए उपयोगी होगा। सामान्य प्रक्रिया होगी कि वर्तमान पाठ्यक्रम को हमारी नयी आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के लिए उसमें काँट-छाँट की जाए क्योंकि बहुधा योजना प्रक्रम में निर्णय बिल्कुल मनमाने ढंग के होते हैं। इस प्रक्रिया में पाठ्यक्रम के बोझिल होने का भय हो जाता है। नये पाठ्यक्रम के विकास पर वस्तुनिष्ठ निर्णय लेने के लिए वर्तमान पाठ्यक्रम का मूल्यांकन करना आवश्यक है।

6. समाज में परिवर्तन (Changes in Society)

समाज तीव्रता से परिवर्तित होने के दौर में है। समाज में लगभग हरेक वस्तु तेजी से परिवर्तित हो रही है। इसी के अनुसार लोगों की आवश्यकताएँ, आकांक्षाएँ तथा माँगे भी परिवर्तित हो रही हैं। शैक्षिक लक्ष्य छात्रों की आवश्यकताओं, आकांक्षाओं तथा माँगों से सम्बन्धित होते हैं। अतः पाठ्यक्रम का मूल्यांकन आवश्यक एवं अनिवार्य है

7. पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता मालूम करना (Finding out Effectiveness of Curriculum ) 

शीघ्र तथा दीर्घकालीन उद्देश्यों की प्राप्ति के सम्बन्ध में पाठ्यक्रम के मूल्यांकन का प्रयोग आवश्यक है। यह मूल्यांकन प्रमाणीकरण के प्रयोजनों के लिए विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम के मूल्यांकन से अलग है। इसमें अन्तर यह है कि पाठ्यक्रम के विभिन्न अंगों की उपयुक्तता के सम्बन्ध में निर्मित भावनाएँ भी सम्मिलित की जाती हैं।

8. बेहतर बनाने के लिए परिवर्तन (Changes for Betterment)

अच्छे पाठ्यक्रम की विषय-सामग्री की बुनियादी, कम मूल्य, अर्थपूर्ण एवं वास्तविक रूप से कुशल होने की आवश्यकता होती है। अतः यह कारक पाठ्यक्रम के मूल्यांकन की आवश्यकता पैदा करता है।

9. ज्ञान का विस्फोट (Explosion of Knowledge)

प्रत्येक विषय की विषयवस्तु ज्ञान के विस्फोट के कारण परिवर्तित हो रही है। प्रत्येक अध्ययन सामग्री में नये विषय-सामग्री शामिल करने की आवश्यकता है। समय-समय पर पाठ्यक्रम के मूल्यांकन से विषय-वस्तु को नवीनतम किया जा सकता है। इसलिए पाठ्यक्रम मूल्यांकन की आवश्यकता है।

10. गुणवत्ता नियन्त्रण का साधन (Means of Quality Control)

पाठ्यक्रम के मूल्यांकन से विषयवस्तु की गुणवत्ता का नियंत्रण होता है। पाठ्यक्रम मूल्यांकन इस दृष्टिकोण से भी आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण है। पाठ्यक्रम मूल्यांकन पूरे कोर्स के उद्देश्यों का कथन करने की क्रिया से शुरू होता है। इसके पश्चात् इन उद्देश्यों की व्यावहारिक शब्दावली में परिभाषा की जाती है। अगली अवस्था में मदों ( Items) का विकास किया जाता है जिसका उद्देश्य यह जानना होता है कि किस सीमा तक नयी सामग्रियाँ विकसित तथा व्यवहार जो पाठ्यक्रम कर्ताओं के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की पूर्ति करेंगे।

अतः उपरोक्त द्वारा स्पष्ट किया गया है कि पाठ्यक्रम मूल्यांकन, अध्यापकों और  निर्णयकर्त्ताओं की पाठ्यक्रम तथा इसके विकास और कार्यान्वयन पर वस्तुनिष्ठ निर्णय लेने में सहायक कर सकता है। निःसन्हेद यह किसी पाठ्यक्रम मूल्यांकन कार्य का प्रमुख प्रयोजन है। मूल्यांकन के परिणामों का प्रयोग भावी शैक्षिक प्रयास को उन्नत करने में किया जा सकता है। अन्यथा पाठ्यक्रम मूल्यांकन के किसी प्रयोग का कोई अर्थ नहीं है। प्रशासकों, नीति निर्माताओं, अध्यापकों, माता-पिता तथा विद्यार्थी भी उन ढंगों से सम्बन्धित हैं जिनके द्वारा किसी स्कूल पाठ्यक्रम को कार्यान्वित (लागू) किया जा रहा है। उनके पास इसे उत्तरदायी बनाने के पर्याप्त कारण हैं। इसलिए इन कारणों से पाठ्यक्रम मूल्यांकन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण बन जाती है।

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