वायु प्रदूषण किसे कहते हैं?
वायु के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवांछित परिवर्तन जिसके द्वारा स्वयं मनुष्य के जीवन या अन्य जीवों, जीवन परिस्थितियों तथा हमारी सांस्कृतिक सम्पत्ति को हानि पहुँचे या हमारी प्राकृतिक सम्पदा नष्ट हो, वायु प्रदूषण कहलाता है।
कारखानों व बिजलीघर की चिमनियों से निकली SO2, श्वसन पथ की एपिथीलियम में क्षोभ व खराश उत्पन्न करती है। यह फेफड़ों के ऊतक को भी क्षति पहुँचाती है। चिमनियों से निकली धूल फेफड़ों में एकत्रित होती रहती है जिससे टी.वी. व कैन्सर नामक घातक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। वायु में इसकी 0.8-1 पीपीएम (प्रति 10 लाख भाग में) मात्रा बहुत अधिक हानिकारक सिद्ध होती है। मोटर गाड़ियों व चिमनियों से निकली CO2, भी स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। कभी-कभी तो यह मृत्यु का भी कारण होती है।
वायुमण्डल में ऑक्सीजन के अतिरिक्त अन्य किसी गैस की वृद्धि जीवन के लिए घातक है। कल-कारखानों, ताप बिजलीघरों, वायुयान व मोटर गाड़ियों की बढ़ती हुई संख्या से भारी मात्रा में कार्बन, सल्फर व नाइट्रोजन के ऑक्साइड, धुआँ व ठोस पदार्थों के सूक्ष्म कण तथा विषैले कार्बनिक पदार्थ वायुमण्डल में मिलकर तेजी से वायु का प्रदूषण कर रहे हैं। ये पदार्थ केवल मनुष्य को ही नहीं अपितु समस्त जीव-जन्तुओं व पेड़-पौधों को प्रभावित करते हैं। प्रायः देखा गया है कि कारखानों आदि के आस-पास पेड़-पौधे व वृक्ष पनप नहीं पाते हैं और शीघ्र मर जाते हैं।
भारत के मुम्बई शहर में डीजल पेट्रोल से चलने वाली 6 लाख तथा दिल्ली शहर में 10 लाख से भी अधिक बसें, मोटर कारें व ट्रक आदि हैं। प्रत्येक गैलन पेट्रोल के जलने पर 3 पौण्ड CO2 15 पौण्ड NO2 व अन्य विषैली गैसें, लैड (lead) अदग्ध हाइड्रोकार्बन उत्पन्न होते हैं। आप स्वयं ही अनुमान लगा सकते हैं कि 10 लाख गाड़ियों से उत्पन्न गैसों का वायुमण्डल पर कितना घातक प्रभाव पड़ेगा। ये पदार्थ केवल मनुष्य को ही नहीं अपितु समस्त जीव-जन्तुओं व पेड़-पौधों को प्रभावित करते हैं। प्रायः देखा गया है कि कारखानों आदि के आस-पास पेड़-पौधे व वृक्ष पनपने नहीं पाते और शीघ्र ही मर जाते हैं।
3 दिसम्बर, 1984 यूनियन कार्बाइड की भोपाल स्थित फैक्ट्री से मिथाइल आइसो सायनेट के हवा में रिसने से 2500 नागरिकों की मृत्यु हो गयी तथा हजारों अन्य नागरिकों के स्वास्थ्य पर दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इस गैस से आँखों में जलन होती है तथा मनुष्य अन्धा हो जाता है। फेफड़ों में प्रवेश करने पर श्वसन सम्बन्धी विकारों के फलस्वरूप मृत्यु हो जाती है।
वायु प्रदूषण का केवल जीवित प्राणियों पर ही नहीं अपितु पत्थरों से बनी इमारतों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मथुरा तेल शोधक कारखाने से ताजमहल और भरतपुर के पक्षी विहार को प्रदूषण का खतरा बना हुआ है। कारखाने से गैस के निकलने पर ताज के संगमरमर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता। इससे SO2 संगमरमर का क्षरण होने पर यह इमारत कमजोर होकर गिर जाती है। इसे तेल शोधक कारखाने की चिमनियों पर ऐसे फिल्टर लगाकर बचाया जा सकता है जो अम्लीय गैसों को वातावरण में जाने से रोक सकें।
वायु प्रदूषण के कारण
वायु प्रदूषण के विभिन्न कारण एवं उनके प्रभाव निम्नलिखित प्रकार से हैं-
1. कृषि कार्य- आजकल फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों तथा पेस्ट का नाश करने के लिए अनेक प्रकार के विषैले कीटनाशक तथा पेस्टनाशी दवाइयों के छिड़काव का बहुत अधिक प्रचलन है। पौधों के संक्रामक रोगों और टिड्डी तथा दूसरे कीटों के आक्रमण के समय इन दवाइयों के कण विस्तृत क्षेत्र में व्याप्त हो जाते हैं तथा गम्भीर वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। इसका एक उदाहरण डी डी टी है। सूक्ष्म कणों तथा वाष्प रूप में वायु में व्याप्त इन रसायनों से आँखों तथा श्वसन अंगों को हानि की सम्भावना रहती है। अतः इनका छिड़काव करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए।
2. विलायकों का प्रयोग- स्प्रे-पेन्ट तथा फर्नीचर की पॉलिश बनाने में तरह-तरह के विलायकों का प्रयोग किया जाता है। अधिकांश विलायक उड़नशील हाइड्रोकार्बन पदार्थ होते हैं। स्प्रे तथा पेन्टिंग करते समय पदार्थ सूक्ष्म कणों तथा वाष्प के रूप में वायु में मिलकर प्रदूषण फैलाते हैं।
3. धूल- लौह अयस्क तथा कोयले की खानों की धूल वहाँ काम करने वाले खनिकों में कई प्रकार के रोग उत्पन्न करती है। जेट विमानों तथा रेफ्रीजरेटर इत्यादि से ऐरोसोल का विसर्जन होता है। ये क्लोरोकार्बन यौगिक हैं जो हानिकारक होते हैं।
4. स्वचालित वाहन एवं मशीनें- स्वचालित गाड़ियों जैसे मोटर, ट्रक, बस इत्यादि विमानों व ट्रैक्टर आदि तथा अन्य प्रकार की अनेक मशीनों में डीजल, पेट्रोल, मिट्टी का तेल आदि के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स, अदग्ध हाइड्रोजन, सीसा व अन्य विषैली गैसें वायु में मिलकर उसे प्रदूषित करती हैं।. खड़े हुए अथवा तेज गति से चलते हुए वाहनों से निकलने वाली गैसें सामान्य गति से चलने वाली गाड़ियों की अपेक्षा अधिक हानिकारक होती हैं।
5. धुआँ एवं ग्रिट- ताप बिजलीघरों, कारखानों की चिमनियों एवं घरेलू ईंधन को जलाने से धुआँ निकलता है। धुएँ में अदग्ध कार्बन के सूक्ष्म कण, विषैली गैसें तथा हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स इत्यादि होते हैं। अदग्ध हाइड्रोकार्बन में 3, 4 बेन्जपायरीन भी होते हैं। कोयले में कुछ मात्रा में गन्धक भी होती है जिसके जलने पर SO2 व SO3 बनते हैं।
6. कल-कारखाने– कारखानों की चिमनियों से निकले धुएँ में सीसा, पारा, जिंक, कॉपर, कैडमियम, आर्सेनिक आदि के सूक्ष्म कण होते हैं। इनके अतिरिक्त कारखानों की चिमनियों से कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन फ्लोराइड व नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स आदि गैसें होती हैं।
अत्यधिक औद्योगीकरण, बढ़ती हुई जनसंख्या एवं स्वचालित गाड़ियों में तेजी से वृद्धि के कारण बड़े शहरों की वायु में इन प्रदूषक पदार्थों की तेजी से वृद्धि हो रही है। विभिन्न गैसें एवं धातुओं के कण पेड़-पौधों, जन्तुओं व मानव के लिए अत्यधिक घातक सिद्ध हो रहे हैं।
वायु प्रदूषण के प्रकार
वायु प्रदूषण आधुनिक सभ्यता की देन है। अधिक जनसंख्या, असन्तुलित औद्योगीकरण, महानगरों में बढ़ते हुए वाहन इसके मुख्य कारण हैं। यह प्रदूषण प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम पदार्थों, कोयला, लकड़ी आदि के जलने से भी होता है। इस प्रदूषण से वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है जिससे जीवों, पेड़-पौधों व जन्तुओं, भवनों तथा अन्य वस्तुओं पर इसका प्रत्यक्ष व हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
(1) गैसीय प्रदूषक- वायु में मिश्रित वे में प्रदूषक जो सामान्य ताप तथा दाब पर गैसीय अवस्था में मिलते हैं, गैसीय प्रदूषक कहलाते हैं। यह प्रदूषक कार्बनिक तथा अकार्बनिक गैसों के रूप में हो सकते हैं जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, क्लोरीन हाइड्रोकार्बन इत्यादि
(2) कणिकीय प्रदूषक – वायु में मिश्रितर वह प्रदूषक जो द्रव या ठोस रूप में मिलते हैं, जैसे धूल, धुआँ, धुन्ध, धूम, एरोसोल ।
वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
वायु प्रदूषण की समस्या सारे विश्व के लिए एक महत्त्वपूर्ण समस्या बन गई है। बढ़ती जनसंख्या, आवश्यकताएँ व फलस्वरूप औद्योगीकरण, वन-विनाश इत्यादि के कारण यह समस्या दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही है। अतः शीघ्रातिशीघ्र हमें समस्या की ओर ध्यान देकर वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करना होगा। सर्वप्रथम नये उद्योगों को स्थापित करने से पूर्व जाँच-पड़ताल व योजना बनाई जानी चाहिए जिससे उन उद्योगों से उत्पादन तो लिया जाये, साथ ही वातावरण को हानि न हो उपयोग में लाये जाने वाले यन्त्र उत्तम संरचना व क्षमता वाले हों। साथ ही वायु प्रदूषण नियन्त्रण उपकरण का प्रयोग करना चाहिए।
वायु प्रदूषण के नियन्त्रण के कुछ सामान्य उपाय निम्नानुसार हैं—
1. सड़क के किनारे घरों की बाड़ में कारखानों के निकट तथा खाली स्थानों पर पेड़ लगाने चाहिए।
2. परमाणु बमों के परीक्षण बन्द कर देने चाहिए एवं परमाणु बिजली घरों में रेडियोधर्मी विकिरणों को बाहर जाने से रोकने के उपाय किये जाने चाहिए।
3. सड़ी-गली वस्तुओं और मृत पशुओं को भलीभाँति शीघ्र ही ठिकाने लगा देना चाहिए।
4. सौर आधारित ऊर्जा का उपयोग किया जाना चाहिए। जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम किया जाना चाहिए।
5. विद्युत शवदाह गृहों का उपयोग किया जाना चाहिए।
6. रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का सन्तुलित उपयोग होना चाहिए।
7. नये परिवहन नेटवर्क एवं नगरों को नवीन योजना द्वारा बसाना।
8. कल-कारखानों की चिमनियों की ऊँचाई समुचित होनी चाहिए जिससे प्रदूषक-गैसों से आसपास के स्थानों में कम से कम प्रदूषण हो ।
9. चिमनियों में स्थिर विद्युत अन्वेषण के प्रयोगों द्वारा गैसों से प्रदूषक पदार्थों को जाना चाहिए। पृथक् किया
10. उद्योगों में चक्रवात निस्यंदक तथा अपमार्जकों इत्यादि प्रदूषक नियन्त्रण उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
11. उद्योगों में कम प्रदूषणकारी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए।
12. उद्योगों में कच्चे माल की क्रियाविधियों एवं सिस्टम कन्ट्रोल में समुचित परिवर्तन कर वायुमण्डल में फैलने वाले प्रदूषकों के उत्सर्जन में कमी लायी जा सकती है।
13. प्रदूषण फैलाने वाले मुख्य स्रोत का पता लगाना चाहिए।
14. कोई भी कारखाना स्थापित करने से पूर्व उसका डिजाइन इस तरीके से तैयार करना चाहिए कि कारखाने से उत्पन्न होने वाले हानिकारक उपजातों को वायुमण्डल में छोड़ने से पहले उपचारित किया जा सके। इस सम्बन्ध में कठोर कानून बनाए जाने चाहिए।
15. वाहनों के अतिरिक्त दहन इंजनों की संरचना में निर्माताओं को कुछ ऐसे सुधार करने चाहिए जिससे ईंधन का सम्पूर्ण दहन हो तथा प्रदूषक कम मात्रा में उत्पन्न हो ।
16. स्वचालित वाहनों से उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषक पदार्थों की मात्रा उनकी कार्यहीनता, त्वरण, मंदन इत्यादि पर निर्भर करती है। अतः इन सबके समुचित रख-रखाव पर ध्यान देना तथा पुराने वाहनों का उपयोग सीमित किया जाना चाहिए। वाहनों में लेड रहित पेट्रोल का उपयोग किया जाना चाहिए। नियन्त्रण द्वारा वांछित उद्देश्य प्राप्त किये जा सकते हैं।
17. अत्यधिक वायु प्रदूषणकारी पुराने वाहनों के मुख्य मार्गों पर चलने वाली पाबन्दी तथा अन्य वाहनों से उत्पन्न धुएँ को निश्चित स्तर से अधिक होने देने से सम्बन्धित कानूनी नियम बनाना उपयोगी होगा।
18. कोयले से चालित इंजनों के स्थान पर विद्युत इंजनों का रेल यातायात में प्रयोग किया जाना चाहिए।
19. घरों में धुआँ रहित ईंधनों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। लकड़ी, कोयला इत्यादि पारम्परिक ईंधनों के स्थान पर विद्युत-हीटर, कुकिंग गैस, कुकिंग-रेंज इत्यादि का प्रयोग निश्चित ही घरेलू स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण के नियन्त्रण में सहायक हो सकता है।
20. स्वचालित वाहनों से उत्पन्न धुएँ को निर्वात नाल पर छनना तथा पश्चज्वलक इत्यादि लगाकर कम किया जा सकता है।
21. डीजल ईंधन में संयोजी पदार्थों को मिलाकर तथा पेट्रोल से लेड तथा सल्फर को निकालकर इनके कारण होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
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