राजनीति विज्ञान / Political Science

तिलक और गोखले के राजनीतिक विचारों की तुलना कीजिए।

तिलक और गोखले के राजनीतिक विचारों की तुलना
तिलक और गोखले के राजनीतिक विचारों की तुलना

तिलक और गोखले के राजनीतिक विचारों की तुलना

गोखले और तिलक के विचारों की तुलना- राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान महाराष्ट्र ने भारत को दो बेजोड़ नेता प्रदान किये। दोनों महान् देश भक्त थे। दोनों में भारत के उज्जवल भविष्य की तरफ थी। दोनों ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश सेवा में अर्पित कर दिया। दोनों महान नेता थे और उच्च कोटि के विचारक थे। डॉ. नागपाल के शब्दों में—“गोखले और तिलक राष्ट्रीय आन्दोलन की दो अलग-अलग, परन्तु मुख्य धाराओं के प्रतिनिधि होते हुए भी दोनों में अद्भुत समानता थी। इसलिए दोनों के प्रति भारत की जनता में बहुत प्यार था। गांधीजी गोखले को अपना गुरू मानते थे तो तिलक भी उनके अनन्य प्रशंसक थे।”

गोपालकृष्ण गोखले और बालगंगाधर तिलक के विचारों में निम्नलिखित समानताएँ और असमानताएँ हैं। मुख्य इस प्रकार हैं-

गोखले और तिलक के विचारों में असमानताएँ

गोखले और तिलक के राजनीतिक विचारों में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

1. गोखले का उद्देश्य स्वशासन और तिलक का उद्देश्य स्वराज्य- भारत के र ष्ट्रीय आन्दोलन के सम्बन्ध में गोखले और तिलक के उद्देश्यों में बहुत अन्तर था। गोखले चाहते थे कि धीरे-धीरे क्रमिक सुधारों के द्वारा भारत को स्वशासन प्रदान किया जाना है। इसके एकदम विपरीत तिलक मानते थे कि भारत को पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करना चाहिये । तिलक ने कहा भी था – “स्वराज्य में मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और उसे मैं लेकर रहूँगा।”

2. गोखले संयत साधनों में विश्वास करते थे, तिलक उग्र साधनों में- गोखले और तिलक के चिन्तन में एक महत्वपूर्ण अन्तर यह भी था कि गोखले उदारवादी साधनों में विश्वास करते थे। गोखले चाहते थे कि अंग्रेजों से मांगे की जाएँ प्रतिवेदन किये जाएं, प्रतिनिधिमण्डल भेंजे। सारा आन्दोलन शिष्ट और शालीन हो । पूर्णतः संवैधानिक हो! इसके विपरीत तिलक उग्रवादी साधनों में विश्वास करते थे। उनका कहना था कि याचना करने और भीख मांगने से स्वराज्य नहीं मिल सकता। स्वराज्य प्राप्ति के लिये संघर्ष करना होगा। जन आन्दोलन करना होगा। तिलक ने कहा था- “प्रार्थनाओं और विरोध के दिन बीत गए।” तथा प्रार्थनाओं को शासक कदापि नहीं सुनेगा, क्योंकि उनके पीछे दृढ़ संकल्प का अभाव है।”

3. गोखले ब्रिटिश शासन के समर्थन, तिलक ब्रिटिश शासन के विरोधी- भारत में ब्रिटिश शासन के प्रति गोखले और तिलक के दृष्टिकोण में अन्तर था। गोखले भारत में ब्रिटिश शासन के समर्थक थे। वह भारत के लिये तमाम सुविधाएँ ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत ही चाहते थे। तिलक इसके सर्वथा विपरीत थे। उनकी ब्रिटिश शासन के प्रति कोई श्रद्धा नहीं थी। वह मानते थे कि हर देश पर केवल उसी के नागरिकों का शासन होना चाहिये।

4. गोखले जनशक्ति के प्रति उदासीन, तिलक जन-जागरण के नायक- गोखले का जनशक्ति में विश्वास नहीं था। वह सम्भ्रान्त वर्ग तक ही अपने विचारों और कार्यों को सीमित रखते थे। इसके विपरीत तिलक मानते थे कि जनता में प्रबल शक्ति होती है। उसी के माध्यम से अंग्रेजों के विरुद्ध सशक्त आन्दोलन चलाया जा सकता है। इसीलिये लोकमान्य तिलक ने शिवाजी महोत्सव तथा गणेश उत्सव के माध्यम से जनता को जागृत करने का प्रयास किया। लोकमान्य तिलक की जीवनी के लेखक केलकर के अनुसार, “लोकमान्य तिलक का राजनीतिक नेतृत्व दो राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित था, पहला यह कि जनता को उसके अधिकारों के प्रति सचेत कर उनमें नैतिक प्रतिकार की शक्ति जागृत की जाए और दूसरा यह कि जनता की छोटी-छोटी शिकायतों को लेकर उसमें अंग्रेजों की सत्ता के विरुद्ध असन्तोष निर्माण किया जाये।”

गोखले और तिलक के विचारों में इन मतभेदों को देखते हुये सरलता से कहा जा सकता है गोखले उदारवाद के मसीहा थे, तिलक उग्रवाद के। तिलक और गोखले की तुलना करते हुए महात्मा गाँधी ने कहा था- “लोकमान्य तिलक महासागर की तरह थे, जिसमें कोई आसानी से उत्तर नहीं सकता था। पर गोखले गंगा के समान थे, जो सब को अपने पास बुलाते हैं।”

इसी प्रकार, डॉ. पट्टाभिसीतारम्मैया ने तिलक और गोखले की तुलना कहते हुए कहा है “गोखले नरम थे और तिलक गरम गोखले वर्तमान में सुधार चाहते थे जबकि तिलक उसके पुनर्निर्माण के पक्ष में थे। गोखले को नौकरशाही के साथ काम करना पड़ता था, तो तिलक की नौकरशाही से भिड़त रहती थी। गोखले अंग्रेजों के साथ सहयोग चाहते थे, तिलक का झुकाव अड़ंगा नीति की तरफ अधिक था। गोखले का उद्देश्य था, स्वशासन, किन्तु तिलक का उद्देश्य था, स्वराज्य।’

गोखले और तिलक के विचार में समानताएँ अन्तर

एक और जहाँ गोखले और तिलक के विचारों में अन्तर था, वहाँ दूसरी और उनके विचारों में पर्याप्त समानता भी थी। गोखले और तिलक वास्तव में एक-दूसरे के विरोधी न होकर परिपूरक ही थे। गोखले और तिलक के विचारों में मुख्य समानताएँ इस प्रकार थीं-

1. गोखले और तिलक दोनों देश प्रेमी- यद्यपि गोखले और तिलक के दृष्टिकोणों में बहुत अन्तर था तथापि यह एक सत्य है कि गोखले और तिलक दोनों ही इस देश को बहुत प्यार करते थे एवं दोनों ही इस देश की जनता की भलाई चाहते थे। समय-समय पर दोनों ने ऐसे विचार व्यक्त किये, जिनमें इस देश की गरीब जनता के उत्थान की हड़प थी। दोनों का समस्त जीवन अपनी-अपनी शैली में इस देश की जनता के उत्थान में बीता।

2. गोखले और तिलक, दोनों का राष्ट्रीय एकता में विश्वास- गोखले और तिलक दोनों ही यद्यपि धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों के थे, तथापि दोनों ने कभी धर्म को संकुचित रूप में नहीं लिया। दोनों राष्ट्रीय एकता में विश्वास करते थे। दोनों यह मानते थे कि भारत की समस्त जनता को अपने भेद-भाव भुलाकर राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेना चाहिये।

3. गोखले और तिलक, दोनों का शिक्षा पर महत्व- गोखले और तिलक दोनों ही शिक्षा को समान रूप से महत्वपूर्ण मानते थे। दोनों मानते थे कि जब तक भारत की जनता सुशिक्षित नहीं होगी, तब तक वह रूढ़ियों की जंजीरों से मुक्त नहीं होगी। गोखले और तिलक दोनों ही शिक्षा के राष्ट्रीय पक्ष को महत्वपूर्ण मानते थे।

4. गोखले और तिलक, दोनों भारत के आर्थिक शोषण के विरुद्ध – गोखले और तिलक, दोनों यह मानते थे कि भारत का आर्थिक शोषण किया जा रहा है। भारत के आर्थिक स्रोतों का दोहन कर तथा भारत से कच्चा माल ब्रिटेन में ले जाकर भारत को लूटा जा रहा है। गोखले और तिलक दोनों यह मानते थे कि यह शोषण ही भारत की दरिद्रता का मूल कारण है। यह बन्द होना चाहिये।

5. गोखले और तिलक, दोनों की लोकतन्त्र में आस्था- डॉ. नागपाल के अनुसार– “तिलक और गोखले दोनों ही लोकतान्त्रिक शासन पद्धति को अन्य किसी भी शासन पद्धति की अपेक्षा श्रेष्ठ मानते थे। दोनों मानते थे कि भारत में निर्वाचित प्रतिनिधियों की संसद नी चाहिये, जो भारत के लिये कानून बनाये।” भारत के लिये वे किसी निरंकुश या नौकरशाही व्यवस्था के विरुद्ध थे।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि गोखले और तिलक दोनों के सामाजिक और राजनीतिक चिन्तन में समानताएँ भी थीं और विषमताएँ भी। वास्तव में दोनों भारत में प्रवाहित होने वाली धाराओं उदारवाद और उग्रवाद का नेतृत्व करते हुए भी, एक ही मुख्यधारा राष्ट्रवाद के अभिन्नअंग थे। इसलिये दोनों एक-दूसरे के परिपूरक थे।

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