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सामुदायिक स्त्रोतो का प्रयोग | Use of Community Resources in Hindi

सामुदायिक स्त्रोतो का प्रयोग
सामुदायिक स्त्रोतो का प्रयोग

सामुदायिक स्त्रोतो का प्रयोग (Use of Community Resources)

सामुदायिक स्त्रोतो का प्रयोग ( Use of Community Resources )- व्यक्ति और समाज का परस्पर गहरा तथा अनिवार्य संबंध है। दोनो को अलग-अलग करना असंभव है। मनुष्य को सामाजिक जीव इसलिए कहा जाता है क्योंकि समाज में इसका जन्म होता है, समाज में उसका विकास होता है और समाज में स्वस्थ्य समायोजन स्थापित करना ही उस के जीवन का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य होता है। अतः स्वस्थ्य जीवन यापन के लिए मनुष्य का सामाजीकरण अत्यंत आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति अर्थात् मनुष्य के सामाजीकरण के लिए समाज की स्थापना करता है। स्कूल ऐसी सामाजिक संस्था है जो व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक शक्तियों का विकास कर के उसे सामाजिक विकास में स्वस्थ एंव उपयोगी योगदान प्रदान करने के योग्य बनाती है। शिक्षा शास्त्री जहाँ इस बात पर जोर देते आ रहे है वहाँ इस बात पर भी बल देते है कि शिक्षा-समुदाय या समाज केन्द्रित होनी चाहिए। शिक्षा का समाज केन्द्रित होना दो बातों की ओर लक्ष्य करता है। एक यह कि बच्चों के स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के योग्य बनाया जाये। उनमें वे तमाम अभिवृतियाँ तथा योग्यताएँ विकसित की जाये जो उन्हें समाज में स्वस्थ समायोजन स्थापित करने के योग्य बनाती हो और उन्हें सामाजिक विकास की और प्रेरित कर सकती हो। दूसरा यह कि बच्चों की शिक्षा सामजिक अनुभूतियों पर आश्रित होनी चाहिए। बच्चा जब स्कूल में दाखिल होता है तो उस प्रकार की अनुभूतियाँ होती है। उनकी शिक्षा इन्हें अनुभूतियों पर आधाति होनी चाहिए। यह तभी संभव हो सकता है जब स्कूल और समुदाय में अलग-थलग रखकर उस के द्वारा न तो व्यक्ति का उचित सामाजीकरण किया जा सकता है और न ही शिक्षण को प्रभावशाली, उपयोगी तथा मनोवैज्ञानिक बनाया जा सकता है। स्कूल और समुदाय के परस्पर संबंध के महत्व के दर्शाते हुए श्री के. जी. साईदायन ने कहा है, ‘समुदाय का स्कूल स्पष्टतय समुदाय की आवश्यकताओं तथा समस्याओं पर आधारित होना चाहिए। उस का शिक्षा क्रम सामुदायिक जीवन का संक्षिप्त रूप होना चाहिए। उस में वह सभी महत्वपूर्ण एंव विशिष्ट बातें प्राकृतिक रूप से प्रतिबिम्बित होनी चाहिए जो सामुदायिक जीवन में विद्यमान है। “

शिक्षा में नवीनतम झुकाव यह है कि शिक्षा समुदाय केन्द्रित हो। यह समुदाय की, समुदाय द्वारा तथा समुदाय के लिए हो इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए स्कूल तथा समुदाय को एक दूसरे के निकट लाया जाना चाहिए। बच्चों को यदि शिक्षा द्वारा जीवन के लिए तैयार किया जाना है अथवा शिक्षा को ही जीवन बनाना है तो शिक्षा को बच्चे के लिए सजीव अनुभव बनाया जाना चाहिए। शिक्षा केवल स्कूलों में ही नहीं अपितु समुदाय में भी विस्तृत पैमाने पर दी जानी चाहिए। हम यह जानते है कि बच्चा अपने समय का अधिकांश भाग स्कूल में नही समुदाय में व्यतीत करता है। तब क्यों न समुदाय को स्कूल की प्रयोगशाला बना दिया जाए जहाँ बच्चों ने सजीव अनुभव प्राप्त करने है। यह पुनरूत्थान ही राष्ट्र को शक्तिशाली बनाकर इसे स्वयं को बनाए रखने के लिए ही नही अपितु दूसरों को बनाए रखने के लिए भी जीवन और शक्ति देगा। यह पुनरूत्थान तभी हो सकता है यदि स्कूल अपनी विलगता अथवा तटस्थता ही को छोड़ दे और एक नई भूमिका समुदाय स्कूलों की भूमिका को अपनाए। इस भूमिका का अभिप्राय: एक और स्कूल तथा समुदाय और दूसरी ओर समुदाय था स्कूल के मध्य स्थित दीवारों को तोड़ना अथवा उन्हें दूर करना है। आवश्यकता इस बात की है कि स्कूल तथा समुदाय दोनो संस्थाओं के निरंतर प्रवाह को बनाए रखने के लिए नियमित व्यवस्था हो। इस विचारधारा के अनुसार ये दोनों संस्थान एक दूसरे से अलग तथा तटस्थ नही होने चाहिए अपितु वह एक दूसरे का अविभाज्य रूप से मिल जाएँ। इनमें से प्रत्येक दूसरे को सीखने का महत्वपूर्ण समुदाय माने और उसे रहने के लिए बेहतर समृद्ध तथा प्रसन्नतापूर्वक स्थान बनाएँ।

समुदाय अपने विभिन्न स्त्रोतो के द्वारा सामाजिक अध्ययन के ज्ञान में वृद्धि करता है। इन स्त्रोतो का प्रयोग करने में प्रशासन, अध्यापक, स्थानीय नागरिक, अभिभावक तथा छात्र सभी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। एक सुनियोजित कार्यक्रम स्कूल तथा समुदाय को एक दूसरे के बहुत समीप ला सकता है। इस प्रयास के द्वारा स्कूल-कार्यक्रम समुदाय के जीवन का अंग बन सकता है। छात्रों द्वारा समुदाय के अनुभवों में प्राप्त किए प्रथम स्तर का ज्ञान विवेकशील नागरिकता का निर्माण करता है। स्थानीय समुदाय का संबंध अतीत से और समस्त संसार से है। इसमें वे सभी आशाएँ शामिल है जो मनुष्यो को प्रत्येक स्थान पर प्रेरित करती है। इसकी अपनी श्रेष्ठता तथा इसका अपना अर्थ है। एक अध्यापक जो कि उस समुदाय का उपयोग तथा उसकी प्रशांसा नही करता जहाँ उसका स्कूल स्थित है छात्रो को शिक्षित बनाने के महत्वपूर्ण स्त्रोत को दृष्टि विगत कर रहा है।

इसका अभिप्राय: यह है कि स्कूल समुदाय के समीप जाए तथा उसे प्रयोगशाला समझे। उसके स्त्रोतो की खोज करे, उसकी संस्कृति को समझे, उसकी समस्याओं के समाधानों पर सुझाव दे। इससे छात्रों को न केवल भौतिक व्यवस्था अपितु मानव व्यवस्था का भी अन्वेषण करने के अवसर उपलब्ध होगे। भौतिक व्यवस्था में आकार, जलवायु, स्थान, वर्णन, भूमि, खनिज तथा अन्य ऐसी ही समस्याएँ शामिल है जिनके परिणामस्वरूप श्रेणियाँ तथा जातियाँ बनती है। इस अध्ययन के लिए समुदाय की सम्पूर्ण जाँच तथा इसके स्त्रोतो की शैक्षिक उद्देश्यो है के लिए पूर्ण उपयोगिता अवश्यक है।

महत्वपूर्ण स्त्रोत ( Important Sources ) 

प्रत्येक समुदाय अपने विभिन्न स्त्रोतो के उपयोग के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करता है। एक साधन संपन्न अध्यापक को इन सब स्त्रोतो का पूर्ण उपयोग करना चाहिए। उसे अपने छात्रों को उपलब्ध स्त्रोतो का अध्ययन प्रारम्भ कराने से पहले इनकी सूची तैयार करने में सहायता देनी चाहिए। इस सूची में उन सभी स्थानो के विषय में जानकारी अथवा सूचनाएँ शामिल होनी चाहिए जो सामाजिक अध्ययन की शिक्षा को समृद्ध बना सकते है। प्रत्येक रूचिकर स्थान को इस सची में अलग स्थान मिल और उस के विषय में विशेष जानकारी दी जाए। इस जानकारी में ये बातें शामिल होनी चाहिए।

(i) स्थान का नाम

(ii) इसकी स्थिति।

(iii) संपर्क स्थापित किए जाने वाले व्यक्ति अथवा दल का नाम।

(iv) उस स्थान के सर्वेक्षण के लिए निर्देश।

(v) भेंट के लिए अत्यन्त उपयुक्त समय ।

(vi) अध्ययन तथा उपयोग के लिए स्त्रोत तथा सामग्री।

(vii) नियम भेंट के लिए जाने वाले समूह के छात्रों की अनुमानित संख्या

(viii) भेंट के लिए अपेक्षित समय की अवधि ।

(ix) खर्च यदि कोई हो तो।

(x) यातायात की उपलब्ध सुविधाएँ ।

सूची अथवा वर्णन सूची ( Descriptive List)- यह निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत तैयार की जा सकती है-

(1) ऐतिहासिक रूचि के स्थान (Historical Sources )- मंदिर, गुरुद्वारे, मस्जिदें तथा गिरजाघर इत्यादि।

(2) भौगोलिक रूचि के स्थान (Geographical Sources )- इनमें कारखाने, मिले, रेलवे स्टेशन, सिनेमा, समुद्री बंदरगाहे, हवाई अड्डे, खानें, टेलीफोन एक्सचेंज, अपनी विभिन्न अवस्थाओं में कृषि, निर्माण, यातायात तथा संचार केन्द्र इत्यादि स्थान सम्मिलित है।

(3) सामाजिक तथा सांस्कृतिक रूचि के स्थान (Social and Cultural Sources ) – इनमें क्लब, पार्क, संग्रहालय, चिड़ियाघर, कला, दीर्घाए, पुस्तकालय, सिनेमाघर, रेडियों स्टेशन, विश्वविद्यालय, फिल्म स्टूडियो, स्काऊट तथा गर्ल गाइड संगठन, परिवार, दल, संघ, टीमे, स्कूल तथा कॉलेज इत्यादि।

(4) आर्थिक रूचि के स्थान ( Economic Sources )- इनमें बाजार, बैंक, ईंटो के भट्टे, डेरियाँ, व्यापारिक केन्द्र इत्यादि स्थान सम्मिलित है।

(5) सरकारी भवन ( Government Buildings)- इनमें पंयाचत घर, नगर पालिकाएँ भवन, जिला बोर्ड, पुलिस स्टेशन, वाटर सप्लाई संस्थान, अस्पताल, न्यायाल, जन कल्याण संस्थान सम्मिलित है।

( 6 ) परम्पराएँ (Customs)- परम्पराएँ, रीति-रिवाज, धार्मिक रीतियाँ, समारोह, विश्वास तथा दृष्टिकोण।

समुदाय स्कूल के आदर्श को कार्यरूप देने के लिए स्कूल की गतिविधियों तथा समुदाय की गतिविधियों का ठीक समन्वय करना वांछित ही नही अपितु पूर्णत: अनिवार्य भी है। यह आदर्श संगठनकर्त्ताओं से यह माँग करते है कि वे स्कूल तथा समुदाय के मध्य की खाई को नापे, उनमें आदान-प्रदान की व्यवस्था को तथा एक से दूसरे तक सेवाओं, साधनो व गतिविधियों के नियमित प्रवाह की मांग करे।

संसाधनो का उपयोग (Use of Resources )

इन साधनों का उपयोग स्कूल को समुदाय तक लाने व समुदाय को स्कूल तक ले जाने से किया जा सकता है।

(1) स्कूल को समुदाय तक ले जाना (Bringing School to the Community ):- जिस वातावरण में छात्र रहते है उसमें वास्तविक पर्यवेक्षण का कोई स्थानापन्न नहीं है। वे भूगोल को क्रियात्मक रूप में और इतिहास को निर्माणाधीन देखते है। वे लोगों व उनके पेशो के संबंध में जानते और उस व्यापार व उद्योग के संबंध में ज्ञान प्राप्त करते है जो समुदाय को बनाते है। वे समुदाय की गतिविधियो तथा कार्य का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते है। यह बात निम्नलिखित ढंग से संभव है

(i) भ्रमण यात्राऐं (Field Trips ) :- भ्रमण सीखने के आयोजित अनुभवों के रूप में होने चाहिए। ऐसे भ्रमणों के लिए विद्यार्थी सदैव तैयार होते है। छात्र जब इसके बारे में क्लास में पढ़ चुके होते तो वे ऐसे अनुभव के लिए तैयार होते है। उस विषय अथवा समाज के संबंध में उनकी सूझ को प्रत्यक्ष पर्यवेक्षण द्वारा और बढ़ाया जा सकता है। देहाती क्षेत्रों में समुदाय व प्रकृति से काफी घुले मिले होते है। ऐसे भ्रमणों से छात्र फूलों, पौधों, वृक्षों, पक्षियों व ऐसी अन्य वस्तुओं को पहचानने के योग्य हो जाते है। वे सिंचाई सुविधाओं, सड़को, पगडंडियों, परिवहन के साधनों, भूमि की उपज, कुटीर उद्योग, व्यापार, लोगों के आर्थिक जीवन को भी देखेंगे। इस प्रकार वे ग्राम्य जीवन के असंख्य तथ्यों से अवगत हो जाऐंगें। ग्राम्य-स्कूलों के छात्रों को कस्बों तथा नगरों में भी ले जाया जाना चाहिए। जहाँ वे फैक्टरियाँ, मिलें, वर्कशॉप, बिजली घर, बैंक, दमकलें, रेलवे जंक्शन, हवाई अड्डे, सिनेमाघर, रेडियों स्टेशन, ऐतिहासिक शिलालेख, भवन, स्कूल, कॉलेज, संग्रहालय व अन्य कई ऐसी चीजें देख सकते है जो उन्हें अपने क्षेत्र में देखने को नही मिलती। परन्तु बाहा भ्रमण व यात्राओं का आयोजन ध्यान से किया जाना चाहिए। सभी आवश्यक जानकारी पहले ही प्राप्त कर लेनी चाहिए और सारे विवरण पर अच्छी प्रकार विचार कर लेना चाहिए। इसके बाद जब यात्रा खत्म हो तो बाद का कार्यक्रम बहुत आवश्यक है। यह रिपोर्ट अथवा भ्रमण किए गए स्थानों का वर्णन लिखने, स्क्रेप पुस्तकें तैयार करने लिए गए चित्रों व फोटोग्राफों को सजाने, अथवा पेनल-विचार विमर्श के रूप में हो सकता है।

(ii) सामुदायिक सर्वेक्षण ( Community Survey ):- स्कूल के वरिष्ठ छात्रों को एक विशिष्ट प्रकर का सामुदायिक सर्वेक्षण का कार्य हाथ में लेना चाहिए। इस सर्वेक्षण के अन्तर्गत वे समुदाय के अतीत के इतिहास, इसकी वर्तमान स्थिति, आर्थिक परिस्थितियों, सामाजिक संस्थाओं, परम्पराओं, रिवाजों, समारोहों, लोकगीतो, लोकनृत्यों, लोक कथाओं, आदतों व तरीको के अधिक अध्ययन करेंगे। इनमें समुदाय की समस्याएँ जैसे- आकार, स्वास्थ्य, सफाई, रोजगार सुरक्षा आदि भी शामिल होगी। ये समस्याएँ इतनी आम है कि छात्र इन्हें देख व समझ सकते है। ऐसे सर्वेक्षण कठिन नही है। छात्र सामाजिक कार्य, कक्षाओं, पुराने निवासियों, स्थानीय विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों व आबादी के महत्वपूर्ण व्यक्तियों से मिलकर व उनसे वांछित जानकारी प्राप्त कर सकते है। वे नक्शों, रिकार्ड व दस्तवेजो की सहायता ले सकते हैं, वे विभिन्न स्थानों की यात्रा कर सकते है और अपने पर्यवेक्षण पर निर्भर रह सकते है। समुदाय की मानचित्र परियोजना भौतिक विचारो का सार्थक कर सकती है और दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाले भौतिक वातावरण को चित्रित कर सकती है।

(iii) राहत सेवाओं का संयोजन (Organizing Relief Services):- बाढ़, महामारी, अग्निकांड, भूकम्पों आदि के समय स्टाफ सदस्यों की देख-रेख में स्कूल-छात्र समुदाय के लिए रात सेवाओं का संयोजन कर सकते है। (iv) स्वस्थ दलों व सामाजिक सेवाओं का संयोजन (Organizing Social Services ):- स्कूली छात्र समुदाय अथवा समाज के लिए मेलों, त्यौहारों, समारोहों तथा प्रसिद्ध व्यक्तियों के दौरों के समय सराहनीय सेवाएं कर सकते है। वे गलियों में नालियों, पानी के कुओं तथा आस-पास की सफाई का कार्यक्रम भी अपना सकते है। वे अपने इर्द-गिर्द के स्थान में पौधे तथा फूल लगाकर तथा रास्ता बनाकर उसे सुंदर बनाने में समुदाय की सहायता कर सकते है। वे अस्पताल में उन रोगियों के लिए पत्र लिखकर जो स्वयं लिखना नही जानते है। उनकी सेवा कर सकते है। वे निराश तथा उदास मन को कहानी बनाकर अथवा पत्रिकाओं, पुस्तकों से कहानियाँ सुनाकर या दूसरी वस्तुओं के चित्र दिखाकर प्रसन्न एवं प्रफुल्लित कर सकते है। बड़े-बुढ़ो को पढ़ाने का कार्यक्रम करना भी लाभदायक है। “कैंप फायर” तथा अन्य मनोरंजक गतिविधियाँ भी विभिन्न समारोहों में लाभदायक सिद्ध हो सकती है।

समुदाय को स्कूल में लाना (Bringing Community to School )

यह कार्य निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है-

(1) अभिभावक-शिक्षण एसोसियेशन (Parent Teacher Association ): प्रत्येक स्कूल में इस प्रकार की एसोसियेशन अवश्य होनी चाहिए। अभिभावक जो स्थानीय समुदाय के सदस्य है, अध्यापकों द्वारा अपने बच्चों की योग्यता, रूचि तथा चरित्र के गुणों के विषय में जान जाऐंगे। अध्यापकों तथा अभिभावकों के बीच यह आपसी सहयोग दोनों के लिए लाभदायक रहेगा। इससे अध्यापकों को समुदाय की आम आवश्यकताओं का पता चल जाएगा और अभिभावकों को भी इस बात का अवसर मिलेगा कि वे स्कूल में हो रहे कार्य को पहचान में सकें अथवा उसे मान्यता दे सकें। इस बात का ज्ञान कि उसके कार्य की अभिभावकों द्वारा प्रशंसा की गई है, अध्यापको को शांति तथा प्रसन्नता प्रदान करता है और इसे बेहतर तथा बड़े प्रयत्नों की और उत्साहित करता है।

(2) प्रसिद्ध व्यक्तियों को स्कूल में आमंत्रित करना (Inviting Famous people in School ):- समुदाय के विभिन्न व्यवसायो तथा कार्यों में रूचि लेने वाले व्यक्तियों को समय-समय पर स्कूल में आमंत्रित किया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों की सूची में साहूकार, डॉक्टर, किसान, सरपंच अथवा नगरपालिका प्रधान, इंजीनियर, संपादक, व्यापारी तथा कलाकार इत्यादि शामिल है। ये व्यक्ति छात्रों को समुदाय में अपनी भूमिका तथा अपने द्वारा समुदाय की विभिन्न दिशाओं में की गई सेवाओं के बारे में बताते है। इसी प्रकार दूसरे नगरों, राज्यों तथा देशों से उस स्थान पर आने वाले प्रसिद्ध व्यक्तियों को अपने शहर, राज्य अथवा देश के लोगों के जीवन तथा व्यवसायों के विषयों संक्षिप्त परिचय देने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।

( 3 ) सामाजिक सेवा गतिविधियाँ ( Social Service Activties ):- स्कूलों में स्कूल के समय के पश्चात् वयस्कों के लाभ के लिए कक्षाएँ प्रारम्भ करनी चाहिए। ज्ञान अभियान भी प्रारम्भ किया जा सकता है। बुलेटिन बोर्ड स्थापित किए जा सकते है। जिनके द्वारा स्थानीय समुदाय के बारे में विशेष रूप से गृह, प्रान्त और देश के बारे में दैनिक समाचार तथा लाभदायक सूचना सामान्य रूप से दी जाएँ। स्कूल के पुस्तकालय का भी वयस्कों द्वारा उपयोग किया जा सकता है। वयस्क समुदाय की शिक्षा तथा मनोरंजन के उद्देश्य से साज-समान, कमरे, आंगन, खेल के मैदान, स्कूल के बड़े कमरे, स्कूल के अखाड़े तथा दृश्य-श्रव्य साधनों को भी स्वतंत्रतापूर्वक दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त समुदाय की सेवा के लिए प्रथम दर्जे की डाक का प्रबंध भी स्कूल में दिया जा सकता है।

(4) त्यौहारों का मनाना ( Celebrating Festivals ):- महत्वपूर्ण त्यौहारों जैसे दिवाली, दशहरा, बैसाखी तथा लोहड़ी, राष्ट्रीय दिवस जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, अन्तर्राष्ट्रीय दिवस जैसे यू.एन.ओ. दिवस, मानव अधिकार दिवस तथा महान् पुरूषों के जन्म दिवस इत्यादि का संयोजन स्कूल के आंगन में किया जाना चाहिए। उस स्थान के निवासियो को भी इन समारोहों अथवा त्यौहारों में भाग लेने के लिए सादर आमंत्रित किया जाना चाहिए। समुदाय के लाभार्थ प्रदर्शनियो का आयोजन भी किया जाना चाहिए। समुदाय के लिए रैडक्रॉस सप्ताह भी मनाए जा सकते है। पुरस्कार वितरण, अभिभावक दिवस, वार्षिक खेल, नाटक का प्रदर्शन, कवि सम्मेलन अथवा गोष्ठी इत्यादि के अवसरो पर आबादी के निवासियो को अवश्य ही आमंत्रित किया जाना चाहिए।

(5) राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर वार्ताओं का आयोजन ( Orga nizing Talks on National and International Problems ) :- ऐसी वार्ताएँ इस स्थान के निवासियों के लाभ के लिए कभी भी आयोजित की जा सकती है। अत. स्कूल को घर से संबंधित करना, अभिभावकों का सहयोग प्राप्त करना, समुदाय के विभिन्न वर्गों के नेताओं से संपर्क स्थापित करना, स्कूल की गतिविधियों का क्षेत्र बढ़ाना स्कूल में प्राथमिक सहायता केन्द्र बनाना, प्रदर्शिनियों तथा त्यौहारों एंव राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, रैडक्रॉस दिवसो का आयोजन करना, छात्रों को समुदाय तथा इसकी समस्याओं के निकट संपर्क में लाकर, समुदाय के विशेषज्ञों को स्कूल में निमंत्रित करना और समुदाय के स्त्रोतों का सर्वोतम उपयोग शिक्षा को महत्वपूर्ण तथा जीवन केंन्द्रित बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण अंग है। ये सभी पग अथवा उपाय चलते रहें तो अच्छे तो है किन्तु पर्याप्त नही। इस दिशा में समुदाय के सदस्यों के सम्मिलित प्रयासों द्वारा समुदाय के जीवन में सुधार करने के लिए कुछ क्रियात्मक प्रयत्न करना चाहिए। योजना नालियों के विषय में भी हो सकती है अथवा सफाई, वाटर सप्लाई तथा सम्पर्क सड़को के निर्माण की भी। इसकी पूर्णता से स्कूल के छात्रों तथा समुदाय पर समान रूप से यह प्रभाव होगा कि अपनी सेवा करने का सर्वोत्तम समाज सेवा ही है। उन्हें यह आभास होगा कि समुदाय तभी अच्छा हो सकता है जब इसके बच्चे तथा युवक इसे ऐसा बनाएँ। इन पुनरूत्थान से स्कूल वास्तविक अर्थो में समुदाय स्कूल, समुदाय का स्कूल, समुदाय द्वारा संगठित स्कूल और समुदाय के लिए संगठित स्कूल बन जाएगा।

सामाजिक अध्ययन में समुदाय स्त्रोतों के उपयोग के लाभ (Advantages of using Community sources in Social Studies)

सामाजिक अध्ययन की शिक्षा में उन साधनों का प्रयोग करने के लाभ निम्न है-

(1) स्व-शिक्षा की ओर (Towards Self Education )- समुदाय का अध्ययन स्व-शिक्षा की प्राप्ति के लिए अति उत्तम क्षेत्र है। यह अन्वेषण ज्ञान से अज्ञान और नजदीक से दूर की ओर चलता है। अतः यह विशेषतः युवक छात्रों के लिए उपयुक्त संबंध स्थापित करने की प्राकृतिक प्रक्रिया में सहायक है।

( 2 ) नई रूचियों अथवा हितों के लिए अवसर (Opportunities for New Interests ) – समुदाय की जाँच और इसकी समस्याओं का अध्ययन नई रूचियों की वृद्धि के लिए विभिन्न अवसर उपलब्ध कराता है। ये रूचियाँ प्राकृतिक तथा निर्माणात्मक होती है जो बाहर से ठूसी नही जाती बल्कि भीतर से विकसित होती है।

(3) व्यवसाय के चुनाव के लिए अवसर (Opportunities for selection of occupation ) – समुदाय का अध्ययन स्कूल के बच्चों के व्यवसाय के चुनाव के लिए विस्तृत क्षेत्र प्रदान करता है। वह समुदाय में लोगो के समूहो को समुदाय की भलाई के लिए विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में व्यस्त देखते है। यह निरीक्षण छात्रों के दिल में उनके वयस्क होने पर उद्योग, यातायात, संचार, व्यापार कारोबार और कृषि की खोज की रूचि उत्पन्न कर देता है। कुछ लड़कियाँ होम-नर्सिग, भोजन की तैयारी तथा किरण अध्ययन अथवा धर्म में सुझाव अनुभव कर सकती है। अत: वयस्क जीवन के लिए व्यवसाय का चुनाव सीधा प्राईमरी अथवा सैकेण्डरी स्कूल अवस्था से किया जा सकता है।

(4) अवकाश का सही उपयोग (Proper use of Leisure time )- एक बार स्कूल से बाहर समुदाय के जीवन में रूचि लेने पर छात्र इसके विशेष भाग के अध्ययन में कुछ समय व्यतीत करना पसंद करेगा। वह इस रूचि को स्कूल छोड़ने के बाद भी जारी रख सकता है। इस प्रकार वह अपने अवकाश के समय का सदुपयोग करना सीख जाएगा।

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