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सामाजिक विज्ञान शिक्षक पर लेख | आदर्श अध्यापक की प्रमुख विशेषताएँ

सामाजिक विज्ञान शिक्षक पर लेख
सामाजिक विज्ञान शिक्षक पर लेख

सामाजिक विज्ञान शिक्षक पर लेख

शिक्षक पर लेख- शिक्षण प्रक्रिया तीन सूत्रों पर आधारित है, अध्यापक, बालक तथा विषय सामग्री अतः अध्यापक को न केवल विषय-वस्तु बल्कि बालक की प्रकृति से भी परिचित होना चाहिए, क्योंकि शिक्षण प्रक्रिया अत्यधिक बाल केन्द्रित होती जा रही है। अध्यापक के कार्य उसकी योग्यता, कुशलता, ज्ञान एवं चरित्र – शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावित करते है। इसीलिए वह एक मित्र, एक दार्शनिक तथा एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। एक साधारण अध्यापक प्रेरित करता है।

वर्तमान युग में आधुनिक शिक्षा अध्यापकों का यह विचार है कि विज्ञान और तकनीकी के आविष्कारों ने तो अध्यापक के दायित्व और कार्य को और भी विस्तृत बना दिया है।

जे.एफ.ब्राउन ने शिक्षक के बारे में लिखा है, “शिक्षक माध्यमिक शिक्षा का सबसे अधिक प्रभावशाल अंग है। पाठ्यक्रम, शाला संगठन, सामग्री आदि शिक्षा के महत्वपूर्ण अंग है, किन्तु वे तब तक निश्चेतन है जब तक कि शिक्षक के सजीव व्यक्तित्व द्वारा उनमें चेतन प्राण नही फूँका जाता।”

इसी प्रकार कौलग्रेव चौन्से के मतानुसार, “आज के सहस्त्रों बालक जो हमारे विद्यालयों में पढ़ते है यदि किसी प्रेरणादायक सहानुभूतिपूर्ण एंव योग्य शिक्षक के सुसम्पर्क में आते है तो उनमें अपने साथियों को प्रभावित करने की शक्ति आ जाती है। किन्तु बिना इस सम्पर्क के उनकी शक्तियाँ गुप्त रहेंगी, सीखने का उचित समय निकल जायेगा, उनके मस्तिष्क क्रम प्रगतिशील हो पायेंगे एवं वे एक निम्न बौद्धिक स्तर पर रहने के लिए बाध्य होंगे जबकि वे प्रत्येक समय इस बात से सचेत रहेंगे कि उनका जीवन कितना भिन्न होता। शिक्षक का यह परम कर्तव्य है कि वह बालक को अपने आपको खोज निकालने में सहायता प्रदान करे अन्यथा अपने ही जीवनकाल में ग्रे की एलजी की दुःखद घटना को दुहरायेगा।”

सी. वी. गुडस की डिक्शनरी के अनुसार, “शिक्षक शिक्षा समस्त औपचारिक व अनौपचारिक क्रियाओं व अनुभवों का वह रूप है जो व्यक्ति को शैक्षिक व्यवसाय के योग्य व जिम्मेदार सदस्य बनाने में सहायता देती है या उसे अपनी जिम्मेदारियों को अधिक प्रभावात्मक रूप में निभाने के योग्यता बनाती है।”

“Teacher Education has been difined as all formal and informal activities and Experiences that help to quality a person to assume the responsi bilities as a member of the Education profession or to discharge his responsi bilities more Effectively.”

हुमायुँ, कबीर के अनुसार, “शिक्षा प्रणाली की सफलता अध्यापकों की योग्यता पर निर्भर करती है। उत्तम शिक्षकों के अभाव में सर्वोत्तम शिक्षा प्रणाली भी निश्चित रूप से असफल होती है। इसके विपरीत उत्तम शिक्षकों द्वारा शिक्षा प्रणाली के अधिकतर दोषों को दूर किया जा सकता है।”

आदर्श अध्यापक की प्रमुख विशेषताएँ

आदर्श अध्यापक की प्रमुख विशेषतायें निम्न प्रकार हैं।

(1) व्यक्ति के रूप में

अच्छा अध्यापक सर्वप्रथम अच्छा व्यक्ति होता है। आदर्श अध्यापक में या एक आदर्श व्यक्ति के रूप में या मानवीय गुण होने चाहिये।

प्रमुख गुण निम्न प्रकार है-

(i) शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य

(ii) अच्छा स्वभाव एवं चरित्र- अध्यापक का नैतिक चरित्र श्रेष्ठ होना चाहिये।

(iii) प्रभावशाली व्यक्तित्व- उसका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली हो कि जो भी उसके सम्पर्क में आये, विशेष रूप से, विद्यार्थी उससे गहन रूप से प्रभावित हो जाये।

(iv) कर्त्तव्यनिष्ठ- कर्त्तव्यनिष्ठ अध्यापक ही विद्यार्थियों को कर्त्तव्य-परायणता का पाठ सीखा सकता है।

(v) सौहार्दपूर्ण एंव सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- उसका व्यवहार कठोर न हो।

(vi) अध्ययनशील- उसे न केवल अपने विषय, वरन् अन्य विषयों का भी अध्ययन करते रहना चाहिये।

(vii) अनुशासनप्रियता एवं नेतृत्व क्षमता- स्वयं अनुशासित होने पर ही वह विद्यार्थियों को अनुशासित रख सकता है।

(2) समाज के सदस्य के रूप में

समाज का मार्गदर्शन करने का कार्य अध्यापक के कंधों पर ही है। वह समाज को आगे बढ़ाने में काफी उपयोगी भूमिका निभाने की क्षमता रखता है। इस कार्य हेतु अध्यापक में निम्न प्रकार से गुणो एंव विशेषताओं का होना वांछनीय है-

(i) समाज तथा समुदाय की समस्याओं का ज्ञान- इस ज्ञान के आधार पर ही वह अपना योगदान कर सकता है।

(ii) समुदाय तथा समाज के विकास एंव कल्याण कार्यों में योगदान की योग्यता- वह समाज की समस्याओं के प्रति तटस्थ न रहे।

(iii) समाज-सेवा करने की भावना- सामाजिक समस्याओं का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है। समस्याओं के निराकरण हेतु समाज की सेवा भी करनी चाहिये।

(iv) दूसरो का उचित सम्मान करने की भावना- अध्यापक सम्मानित व्यक्ति होता है। पर सम्मान उसी समय प्राप्त होता है, जब सम्मानजनक कार्य किये जाये तथा दूसरों को सम्मान दिया जाये।

(v) सामाजिक नियमों का पालन- समाज की उन्नत्ति की और अग्रसर करने हेतु तथा उसे बुराईयों से बचाने हेतु कतिपय नियमों का पालन करना तथा कराना चाहिये।

(vi) सामाजिक बुराईयों के निराकरण में योगदान- वर्तमान भौतिकवादी युग में समाज में अनेक बुराईयाँ पनप गयी है। अध्यापक अपने प्रभाव व प्रयासों से इनका निराकरण कर सकता है।

(vii) सामाजिक आपदाओं के समय समाज की सहायता- अध्यापक का अस्तित्व इस प्रकार का है कि अन्य व्यक्तियों को यह आश्वासन हो कि किसी संकटकालीन अवस्था में उन्हें उससे यथासम्भव सहायता प्राप्त होगी।

( 3 ) समायोजनशीलता

वहीं अध्यापक अपने उत्तरदायित्व का सफल निर्वहन कर सकता है, जो अपने विभिन्न गुणों के कारण अपने आपसे तथा अपने वातावरण (पारिवारिक, सामाजिक तथा व्यावसायिक) से भली-भाँति समायोजित हो। इसके लिये आवश्यक है कि अध्यापक अपने पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिस्थितियों, संसाधनो तथा व्यक्ति विशेष से उचित तालमेल रखे, उस स्थिति में ही वह अपने शिक्षक योग्यताओं और क्षमताओं का समुचित उपयोग कर पायेगा, अन्यथा नही। कुसमायोजित अध्यापक स्वंय ही इतना अव्यवस्थित रहता है कि उसका व्यवहार असामाजिक हो जाता है। वह विद्यार्थियों तथा समाज का अहित करता है। उसका अनुमान लगाने के लिये हमे उसके समायोजन के निम्न क्षेत्रों का अध्ययन करना होता है

(i) शारीरिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी समायोजन- स्वस्थ अवस्था में ही वह अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कर सकता है।

(ii) मानसिक योग्यता सम्बन्धी समायोजन- उसे अपनी मानसिक योग्यता को निरन्तर उन्नत करना है।

(iii) संवेगात्मक समायोजन- उसे संवेगो पर नियंत्रण रखना है।

(iv) नैतिक एवं धार्मिक समायोजन- उसका व्यवहार नैतिकता से परिपूर्ण हो उसे ईश्वर में आस्था हो।

(v) वित्तीय समायोजन- वह अपनी आवश्यकताओं को इस प्रकार सीमित रखे तथा मितव्ययता व्यवहृत करे ताकि उसे वित्तीय संकट का सामना न करना पडे।

(vi) विद्यालय के वातावरण में समायोजन- उसे विद्यालय कारागर प्रतीत न हो, वरन् उसे वह कर्मभूमि लगे।

(vii) विद्यालय पाठ्यक्रम सम्बन्धी समायोजन- वह इस प्रकार अध्यापन करे कि समय से पूर्व उसका ‘कोर्स’ रिवाइज भी हो जाये।

(viii) विद्यालय प्राचार्य के साथ समायोजन- वह प्राचार्य के साथ समायोजन अपनी निपुणता, कर्त्तव्य परायणता तथा प्रतिभा के आधार पर करे, न कि व्यर्थ की चापलूसी के आधार पर।

(ix) अध्यापकों के साथ समायोजन- वह स्मरण रखे कि विद्यालय एक परिवार है। वहाँ परिवार सरीखा ही वातावरण बनाये रखा जाये।

( x ) विद्यार्थियों के साथ समायोजन- उसका व्यवहार विद्यार्थियों के साथ उसी प्रकार का हो, जैसा कि योग्य पिता अपनी सन्तान के साथ करता है।

(4) विद्यार्थी शिक्षण और अभिभावकों के प्रति दृष्टिकोण

 आदर्श अध्यापक में निम्न बातों का विद्यमान होना आवश्यक है-

(i) विद्यार्थियों की योग्यताओं तथा कार्यक्षमताओं में आस्था- आदर्श अध्यापक कभी भी अपने विद्यार्थियों को नकारा या अयोग्य नही कहता।

(ii) विद्यार्थियों से निराश नहीं होता- चाहे विद्यार्थियों का कार्य सम्पादन कितना ही निम्नस्तरीय क्यों न हो, वह निराश नही होता तथा उन्नत करने के प्रयासरत में रहता है।

(iii) उपयुक्त दृष्टिकोण- वह विद्यार्थियों के प्रति सहानुभूति व सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण रखता है।

(iv) सकारात्मक व संरचनात्मक दृष्टिकोण- उसे इस बात का पूर्ण विश्वास रहता है कि शिक्षण से बालकों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन करना सम्भव है।

( 5 ) उपलब्ध परिस्थितियों तथा शैक्षणिक आयोजन के प्रति सकारात्मक व संरचनात्मक दृष्टिकोण

इस सम्बन्ध में आदर्श अध्यापक की भूमिका निम्न प्रकार होती है-

(i) उपलब्ध वस्तुओं का सर्वोत्तम उपयोग- वह आवश्यक वस्तुओं की कमी का विलाप न कर उपलब्ध सुविधाओं का श्रेष्ठतम उपयोग करने का प्रयास करता है।

(ii) अनुकूलन- वह विपरीत व जटिलतम परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करता है।

(iii) सकारात्मक व संरचनात्मक दृष्टिकोण- वह पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, परीक्षा पद्धति आदि के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है तथा उनमें उपयुक्त सुधार के लिए प्रयत्नशील रहता है।

(6) व्यवसाय के प्रति सम्मानपूर्ण दृष्टिकोण

 उसे अपने व्यवसाय में पर्याप्त रूचि तथा उसके प्रति सकारात्मक एवं सम्मानजनक दृष्टिकोण होता है। वह अपने शिक्षण व्यवसाय को महत्व देता है, पूरी रूचि तथा लगन से साथ अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करता है। इस सम्बन्ध में उसके विचार व दृष्टिकोण निम्न प्रकार होते है-

(i) सम्मानजनक- उसके शिक्षण में व्यवसाय के प्रति सम्मान का भाव होता है। में उसकी मान्यता होती है कि अध्यापक का व्यवसाय प्रतिष्ठित तथा उपयोगी है।

(ii) रूचि- उसे शिक्षण कार्यों और उत्तरदायित्वों के निर्वाह में गहन रूचि होती है।

(iii) बेहतरी का भाव- उसका यही प्रयास रहता है कि शिक्षण व्यवसाय से सम्बन्धित कार्यो और उत्तरदायित्वों को अपेक्षाकृत अधिकाधिक अच्छे तरीके से सम्पादित किया जाये।

( 7 ) उपयुक्त शिक्षण पद्धति

 अच्छे अध्यापक में निम्नलिखित व्यवहारजन्य गुण होते हैं-

( i ) उपयुक्तता – वह पूरी तैयारी के साथ शिक्षण करता है।

(ii) उपयुक्त विधि- वह शिक्षण कार्य में समुचित शिक्षण विधियों को उपयोग में लाता है।

(iii) सकारात्मक उपाय- वह नकारात्मक उपायो; जैसे विद्यार्थियों को डांटने फटकारने तथा समझाने देने का अनुसरण न करके सकारात्मक उपायो जैस समझाने, अच्छा कार्य करने पर उनकी प्रशंसा करने, प्रोत्साहन देने आदि का प्रयोग करता है।

(8) विद्यार्थियों की समस्याओं का समाधान करने हेतु तत्परता

 अपने विद्यार्थियों का सच्चा हितैषी एंव शुभचिन्तक होने के कारण आदर्श अध्यापक अपने विद्यार्थियों तथा उनकी समस्याओं को जानने का प्रयास करता है तथा उनका समाधान करने में बालकों तथा उनके माता-पिता की सहायता करता है। प्राय: ये समस्याएँ निम्न प्रकार की होती है।

(i) शिक्षात्मक समस्यायें- इसके अन्तर्गत निम्नलिखित समस्याएँ आती है- जैसे (1) विद्यार्थी का पढ़ने में मन नहीं लगता। (2) पढ़ाई में पिछड़ जाना। (3) पाठ समझ में नही आना। (4) गृहकार्य भली प्रकार से नही करना। (5) लिखाई में अशुद्धि तथा लेख ठीक नही होना। (7) वाचन की अशुद्धि । (8) दोषयुक्त अभिव्यक्ति।

(ii) व्यवहारात्मक समस्यायें- इसके अन्तर्गत निम्न समस्यायें आती हैं- जैसे (1) क्रोधी, शंकालु, लज्जालु तथा डरपोक स्वभाव का होना। (2) झगड़ा करना। (3) अनुशासन भंग करना। (4) कक्षा में भाग जाना या अनुपस्थित रहना। (5) अध्यापक और माता-पिता का सम्मान न करना। (6) अपराधी प्रवृति का होना। आदर्श अध्यापक इन समस्याओं के मूल कारणों का गहनतापूर्वक, अध्ययन करके उनके समाधान हेतु प्रयास करता है।

( 9 ) विद्यार्थियों की समस्या समाधान हेतु प्रयत्नशील

आदर्श अध्यापक अपने विद्यार्थियों की शैक्षणिक जिज्ञासा को संतुष्ट करने का प्रयास करता है। उनकी किसी भी प्रकार की समस्या के समाधान में सहायक होता है तथा समस्याओं के समाधान से सम्बन्धित आवश्यक दृष्टिकोण तथा योग्यताओं को विकसित करता है। वह विद्यालय को कर्मभूमि मानता है। वह किस प्रकार विद्यालय के समय को पूरा करने का प्रयास नही करता। उसके प्रमुख गुण निम्न प्रकार होते है-

(i) वह समस्याओं का साहस एवं धैर्य के साथ सामना करने का यथाशक्ति प्रयास करता है। (ii) समस्याओं के सही विश्लेषण तथा उचित समाधान का प्रयास करता है। (iii) विद्यार्थियों को बिना सोचे-समझे, न रटवाकर विषय को सरल व सुबोध बनाकर समझाने का प्रयास करता है।

( 10 ) सृजनात्मक या संरचनात्मक दृष्टिकोण

इस सम्बन्ध में अध्यापक के प्रमुख गुण निम्न प्रकार के होते है-

(i) वे परम्परावादी व पुरातनपन्थी न होकर प्रगतिशील विचारधारा रखते है। (ii) वे मौलिक चिन्तन, मनन तथा समस्या समाधान पर बल देते है। (iii) वे अभिव्यक्ति के नये ढंग, समस्याओं के समाधान के नवीन तरीको पर बल देते है। (iv) विद्यालय की विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति हेतु मौलिक तथा संरचनात्मक योगदान करते है।

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