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साक्षात्कार विधि के गुण एंव दोष | MERITS AND DEMERITS OF INTERVIEW METHOD IN HINDI

साक्षात्कार विधि के गुण एंव दोष | MERITS AND DEMERITS OF INTERVIEW METHOD IN HINDI
साक्षात्कार विधि के गुण एंव दोष | MERITS AND DEMERITS OF INTERVIEW METHOD IN HINDI

साक्षात्कार विधि के गुण/दोष का वर्णन कीजिये।

साक्षात्कार विधि के गुण (महत्त्व) (MERITS OF INTERVIEW METHOD)

साक्षात्कार एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा अनुसन्धान विषय से सम्बन्धित मौखिक सूचनाएं प्राप्त की जाती हैं। साक्षात्कार में व्यक्ति को अवलोकन का अवसर भी मिलता है। इसके द्वारा अनेक गुणात्मक एवं प्राथमिक तथ्यों का संकलन किया जाता है। गुडे तथा हाट ने इसके महत्त्व को बताते हुए लिखा है, “आधुनिक अनुसन्धान में साक्षात्कार करना, गुणात्मक साक्षात्कार का फिर से मूल्यांकन करने हेतु अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है।”

साक्षात्कार के महत्त्व अथवा गुणों को हम विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत इस प्रकार प्रकट कर सकते हैं-

(i) मनोवैज्ञानिक महत्त्व (Psychological importance) – साक्षात्कार वह विधि है के उद्वेगों, भावनाओं, धारणाओं, इच्छाओं, आकांक्षाओं, विचारों आदि का आसानी से अध्ययन सम्भव है। साक्षात्कार के दौरान सूचनादाता द्वारा प्रकट किये गये भावों, चेहरे की मुद्राओं आदि के आधार पर सूचनादाता के मनोवैज्ञानिक व्यवहार एवं मानसिक स्थिति का अध्ययन किया जा सकता है। बातचीत के दौरान भी सूचनादाता के कई मानसिक पक्ष उजागर होते हैं। इस प्रकार साक्षात्कार के द्वारा मानव व्यवहार को प्रभावित करने वाले मनोवैज्ञानिक तथ्यों का अवलोकन एवं अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।

(ii) सभी स्तर के लोगों से सूचना प्राप्ति (Securing information from persons of all levels) — साक्षात्कार के द्वारा शिक्षित और अशिक्षित तथा विभिन्न संस्कृतियों से सम्बन्धित सभी प्रकार के लोगों से सम्पर्क कर सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं क्योंकि साक्षात्कारकर्ता प्रश्नों को उनकी बुद्धि एवं स्तर के अनुसार समझाकर वांछित उत्तर प्राप्त प्राप्त कर सकता है।

(iii) भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन (Study of past Events)— साक्ष्य कार के द्वारा भूतकालीन घटनाओं एवं उनके प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है क्योंकि कई घटनाएं ऐसी होती हैं जिनकी पुनरावृत्ति नहीं हो सकती। उनके बारे में जानकारी प्राप्त कर के लिए हमें उन लोगों का साक्षात्कार लेना होगा जिन्होंने उस घटना को देखा है, उससे सम्बन्धित रहे हैं अथवा प्रभावित हुए हैं। उदाहरण के लिए, भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए किन किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा, यह बात हम उन लोगों के साथ साक्षात्कार द्वारा ज्ञात कर सकते हैं जो स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बन्धित रहे हैं।

(iv) आमूर्त घटनाओं का अध्ययन (Study of abstract Phenomena ) — साक्षात्कार के द्वारा हम अमूर्त और अदृश्य घटनाओं का अध्ययन कर सकते हैं। व्यक्ति की मानसिक स्थिति, विचारों, भावनाओं, धारणाओं, संवेगों, आदि का अध्ययन साक्षात्कार के द्वारा आसानी से किया जा सकता है। ये सभी अमूर्त तथ्य मानव व्यवहार को प्रभावित करते हैं, अतः इनका अध्ययन अनुसन्धान की दृष्टि से आवश्यक है।

(v) पारस्परिक प्रेरणा (Inter-stimulation)- साक्षात्कार में कम से कम दो व्यक्ति (साक्षात्कारकर्ता तथा सूचनादाता) आमने-सामने होते हैं, अतः वे परस्पर एक-दूसरे को प्रेरित, प्रोत्साहित एवं प्रभावित करते हैं। इस मित्रतापूर्ण वातावरण में दोनों एक-दूसरे से घनिष्ठता एवं मित्रता स्थापित कर लेते हैं। इसके परिणामस्वरूप सूचनादाता गोपनीय एवं महत्त्वपूर्ण तथ्यों को प्रकट कर देता है।

(vi) सूचनाओं का सत्यापन (Verification of Informations) – साक्षात्कार में सूचनादाता द्वारा दी गई सूचनाओं की विश्वसनीयता एवं सत्यता साक्षात्कार के दौरान ही ज्ञात की जा सकती है। साक्षात्कार के दौरान खोजपूर्ण प्रश्न एवं प्रतिप्रश्नों के द्वारा सूचनाओं की सत्यता ज्ञात की जा सकती है। साक्षात्कार के दौरान खोजपूर्ण प्रश्न एवं प्रतिप्रश्नों के द्वारा सूचनाओं की सत्यता ज्ञात की जा सकती है। अपनी उपस्थिति के कारण साक्षात्कारकर्ता सन्देहास्पद और अस्पष्ट बातों को भी सूचनादाता के समक्ष स्पष्ट कर देता है।

(vii) घटनाओं का अवलोकन (Observation of Events) – साक्षात्कार के दौरान साक्षात्कारकर्ता को घटनाओं के बारे में न केवल प्रश्न पूछने की सुविधा होती है वरन् वह कई घटनाओं का अपनी आँखों से अवलोकन भी कर सकता है, तथा इस आधार पर संग्रहीत सामग्री की सत्यता को भी ज्ञात कर सकता है।

(viii) विविध सूचनाओं की प्राप्ति (Securing various informations) – साक्षात्कार के द्वारा विभिन्न प्रकार के सूचनादाताओं से कई प्रकार की सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं। विभिन्न वर्ग, जाति, धर्म, व्यवसाय, सूचनाओं का संकलन किया जा सकता है।

(ix) लचीली विधि (Flexible Method)- साक्षात्कार विधि विषयवस्तु एवं संचालन दोनों ही दृष्टियों से एक लचीली विधि है जिसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के तथ्यों का संकलन करने के लिए किया जाता है।

साक्षात्कार विधि के दोष (सीमाएं) (DEMERITS OR LIMITATIONS OF INTERVIEW METHOD)

साक्षात्कार विधि के अनेक गुण होते हुए भी इसकी कुछ सीमाएं हैं। इस विधि का प्रयोग हम सभी प्रकार के अनुसन्धानों में नहीं कर सकते, फिर प्रत्येक साक्षात्कारकर्त्ता से भी साक्षात्कार के सफल संचालन की अपेक्षा नहीं की जा सकती। श्रीमती यंग ने लिखा है, “साक्षात्कारकर्ता समझदार होने पर भी दोषपूर्ण अन्तर्दृष्टि, दोषपूर्ण स्मृति, सूक्ष्म दृष्टि की कमी तथा स्पष्ट अभिव्यक्ति की अयोग्यता से ग्रसित हो सकते हैं।”

हाइमन ने भी लिखा है, “साक्षात्कारकर्ता प्रायः अपने सूचनादाताओं के पास एक निश्चित प्रकार की आशा लेकर जाते हैं कि वे किस रूप में विशेष प्रश्नों का उत्तर देंगे। कभी कभी तो साक्षात्कार के दौरान ही शीघ्रतापूर्वक अथवा अपूर्ण उत्तरों के आधार पर ही यह आशा कर लेते हैं।” इन कथनों से साक्षात्कार की कुछ सीमाएं प्रकट होती हैं। हम यहां साक्षात्कार के प्रमुख • दोषों अथवा सीमाओं का उल्लेख करेंगे-

(1) दोषपूर्ण स्मरणशक्ति (Faulty Memory)- साक्षात्कार में सूचनाओं को साक्षात्कार के दौरान नहीं लिखा जाता, अतः साक्षात्कारकर्ता की स्मरण-शक्ति पर भरोसा करना पड़ता है। प्रत्येक साक्षात्कारकर्ता से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह सभी बातों को याद रख पायेगा, अतः कुछ तथ्यों के भूल जाने या गलत नोट कर लिये जाने की सम्भावना रहती है। सूचनाद्यता से भी यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि उसे भूतकाल की सभी घटनाओं का सारा वृत्तान्त याद रहे। ऐसी स्थिति में संकलित तथ्य अपूर्ण एवं दोषयुक्त होते हैं।

(2) अभिनति की सम्भावना (possibility of Bias)— साक्षात्कार में व्यक्तिगत पक्षपात आने की सम्भावना रहती है, क्योंकि सूचनादाता और साक्षात्कारकर्ता के विचारों, मूल्यों और संस्कृति में भिन्नता होने पर एक ही घटना, प्रश्न और शब्दों का वे भिन्न-भिन्न अर्थ लगाते हैं। सूचनादाता तो अपने विचार प्रकट करते समय अपने व्यक्तिगत भावों एवं पक्षपात को जोड़ता ही है, स्वयं साक्षात्कारकर्ता भी उन्हें ग्रहण करने में पक्षपात से बच नहीं सकता। इसीलिए संकलित सामग्री की विश्वसनीयता संदिग्ध बनी रहती है।

(3) हीनता की भावना (Inferiority Complex)- साक्षात्कार के लिए साक्षात्कारकर्ता को सूचनादाता के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं, उसकी चापलूसी तक करनी पड़ती है। साक्षात्कार हेतु उसे अनेक प्रकार के लोगों के पास जाना पड़ता है जो उसके साथ अच्छा और बुरा सभी तरह का व्यवहार करते हैं, फलस्वरूप उसमें हीनता की भावना है, उसके आत्म-सम्मान को ठेस लगती है। अतः कई बार वह महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का संकलन विवशतावश नहीं कर पाता।

(4) साक्षात्कारदाता पर निर्भरता (Dependence on Interviewee)- साक्षात्कार में सूचना का संकलन पूर्णतः साक्षात्कारदाता पर निर्भर करता है। कई बार वह अपनी इस स्थिति का दुरुपयोग भी करता है और साक्षात्कारकर्ता को अपने घर के कई चक्कर लगाने तक को मजबूर कर देता है। वह बहाने बनाकर उसे टालने का प्रयास भी करता है। इस प्रकार विधि पूर्णतः साक्षात्कारदाता की दया पर निर्भर है।

(5) अशुद्ध रिपोर्ट (Inaccurate Report)- साक्षात्कारकर्ता द्वारा लिखित प्रतिवेदन में उसके व्यक्तिगत पक्षपात, विचारों एवं भावनाओं का समावेश होने के कारण रिपोर्ट में अशुद्धता आने की सम्भावना रहती है जो वैज्ञानिक अध्ययन की दृष्टि से ठीक नहीं है।

(6) कुशल साक्षात्कारकर्ता की समस्या (Problem of expert Interviewer)- साक्षात्कार की सफलता साक्षात्कारकर्ता की योग्यता, कुशलता, प्रशिक्षण, बुद्धि, वाक्पटुता एवं बौद्धिक ईमानदारी पर निर्भर है। सभी साक्षात्कारकर्ताओं से इन गुणों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। ऐसी स्थिति में या तो वे साक्षात्कार का संचालन सफलतापूर्वक नहीं कर पाते या उनके द्वारा संकलित तथ्य अप्रामाणिक एवं अविश्वसनीय होते हैं।

(7) खर्चीली प्रणाली (Costly Method)– साक्षात्कार समय एवं कार्यकर्ताओं की दृष्टि से एक खचींली प्रणाली है। कई साक्षात्कारदाताओं से सम्पर्क करने के लिए कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं जिसमें अधिक समय चाहिए तथा कार्यकर्ता भी अधिक चाहिए। कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण, वेतन एवं यात्रा व्यय आदि के लिए धन भी अधिक चाहिए। इस प्रकार यह विधि एक महँगी विधि है।

(8) पृष्ठभूमि की भिन्नता (Different Background) – साक्षात्कारकर्ता एवं साक्षात्कारदाता की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में भिन्नता होती है। उनके सामाजिक पर्यावरण, मूल्यों, आदर्शों, भाषा आदि में पर्याप्त अन्तर पाये जाते हैं जो कि उनके बीच एक दीवार बन जाते हैं। अतः वे साक्षात्कार में कठिनाई अनुभव करते हैं तथा शब्दों एवं घटनाओं का भिन्न-भिन्न अर्थ लगाते हैं जिसका अध्ययन के उद्देश्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(9) अविश्वसनीय एवं अप्रामाणिक सूचनाएं (Unreliable and Invalid Informations)— साक्षात्कार द्वारा प्राप्त सूचनाओं में विश्वासनीयता एवं प्रामाणिकता का अभाव पाया जाता है। ऐसी कोई विधि नहीं है जो साक्षात्कार में आने वाले पक्षपात एवं कृत्रिमता को रोक सके। अतः साक्षात्कारकर्ता एवं सूचनादाता दोनों के पक्षपात के प्रवेश की पूरी सम्भावना रहती है।

(10) झूठी प्रतिष्ठा का भाव (Notion of False Prestige)- साक्षात्कारदाता कई बार अपनी झूठी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए सही सूचनाएं नहीं देता है। उदाहरण के लिए, कोई भी राजनेता जातिवाद, बाल-विवाह, शराबवृत्ति आदि के पक्ष में अपनी राय नहीं देना चाहेगा। क्योंकि उसे इस बात का डर रहता है कि ऐसा करना समाज में प्रचलित मूल्यों एवं विश्वासों के विपरीत होगा तथा लोग उसकी आलोचना कर सकते हैं तथा उसकी नागरिक छवि बिगड़ सकती है।

(11) अपूर्ण सूचनाएं (Incomplete Informations)— कई बार सूचनादाता कुछ सूचनाओं को महत्वहीन समझकर छोड़ देता है अथवा उसे घटना के बारे में अपर्याप्त जानकारी हो सकती है या वह अपने विचारों को बताने में असमर्थ हो सकता है। ऐसी स्थिति में साक्षात्कार द्वारा संकलित सूचनाएं अधिक उपयोगी नहीं हो पातीं।

(12) प्रशिक्षण का अभाव (Lack of Training)- साक्षात्कार के लिए ऐसे कुशल एवं प्रशिक्षित साक्षात्कारकर्ताओं की आवश्यकता होती है जिन्हें मनोविज्ञान एवं मानव व्यवहार का ज्ञान हो, साक्षात्कार संचालन का अनुभव हो। किन्तु सदैव ही ऐसे दक्ष एवं प्रशिक्षित साक्षात्कारकर्ता उपलब्ध नहीं होते। अतः कई बार सूचनादाताओं से वास्तविक सूचनाएं संकलित नहीं की जा सकतीं।

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