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मध्याह्न भोजन की आवश्यकता तथा निष्पादन पर इसके प्रभाव

मध्याह्न भोजन की आवश्यकता तथा निष्पादन पर इसके प्रभाव
मध्याह्न भोजन की आवश्यकता तथा निष्पादन पर इसके प्रभाव
मध्याह्न भोजन की आवश्यकता बताइए तथा निष्पादन पर इसके प्रभाव का वर्णन कीजिए।

मध्याह्न भोजन योजना देश के 2408 ब्लाकों में एक केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना के रूप में 15 अगस्त 1995 ई. को आरम्भ की गई थी। वर्ष 1997-98 तक यह योजना देश के सभी ब्लाकों में आरम्भ कर दी गई थी। वर्ष 2003 में इसका विस्तार नवाचारी शिक्षा के केन्द्रों में पढ़ने वाले बच्चों तक कर दिया गया है।

अक्टूबर 2007 से देश के शैक्षणिक रूप से पिछड़े 3479 ब्लाकों कक्षा 6 से 8 तक पढ़ने वाले बच्चों तक विस्तार किया गया। 2008-09 से इसका देश के सभी क्षेत्रों में उच्च प्राथमिक स्तर पर पढ़ने वाले बच्चों के लिए किया जा चुका है। 2010 में राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना में विद्यालयों को भी प्रारम्भिक स्तर पर मध्याह्न भोजन योजना के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है।

मध्याह्न भोजन योजना की आवश्यकता एवं उद्देश्य :-

भारत जैसे विशाल देश जहाँ विभिन्नताओं की बहुतायत है। यहाँ गरीब-अमीर और मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं। जहाँ अमीर लोग अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए अच्छे विद्यालयों में प्रवेश करा लेते हैं वहीं मध्यम वर्ग भी इसी प्रयास में जूझता रहता है किन्तु निम्न वर्ग के लिए परिषदीय विद्यालय ही अन्तिम एवं प्राथमिक विकल्प होते हैं क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं होती कि वह भी अमीरों के विद्यालयों में अपने बालकों का प्रवेश करा सके तथा उसका शैक्षिक व्यय का भार वहन कर सके। उनके आर्थिक, सामाजिक तथा शैक्षिक स्तर अत्यन्त निम्न होने के कारण न तो उनके रहन-सहन तथा पोषण युक्त भोजन की व्यवस्था उनके परिजन कर पाते हैं और न ही उनमें इस बात की इतनी समझ एवं जागरुकता होती है कि ऐसा करना उनके बाल्यों के लिए अति आवश्यक है।

सरकार शासन स्तर पर विभिन्न माध्यमों से प्राप्त सूचनाओं एवं आकड़ों के आधार पर केन्द्र ने मध्याह्न भोजन योजना को लागू किए जाने का निर्णय इन्हीं निर्धन वर्ग के बालकों से उचित एवं पौष्टिक भोजन / पोषाहार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लिया। इसके अतिरिक्त प्राथमिक विद्यालयों में छात्र उपस्थिति एक गम्भीर समस्या बनी हुई थी जिसे सुधारने के उद्देश्य से भी सरकार ने इस योजना को लागू किया। पब्लिक स्कूलों की अपेक्षा परिषदीय विद्यालयों में प्रवेश की घटती संख्या को देखते हुए भी यह योजना लागू हुई है।

मध्याह्न भोजन योजना लागू किए जाने की आवश्यकता को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –

1. विद्यालयों में बच्चों की भागेदारी बढ़ाना- एम.डी.एम. योजना लागू किए जाने को इसलिए आवश्यक माना गया कि इससे जहाँ एक ओर परिषदीय विद्यालयों में छात्र संख्या में वृद्धि होगी वहीं दूसरी ओर इन प्रदेशित छात्रों की उपस्थिति में भी सुधार होगा।

2. गरीब परिवारों के भोजन में सहयोग- गरीब परिवारों के बच्चे प्रायः बिना कुछ खाये-पिये ही विद्यालय आ जाते हैं ऐसे बच्चे दोपहर तक भोजन के लिए व्याकुल हो जाते हैं जिससे अध्ययन में उनका मन नहीं लगता ऐसे बालकों की सहायता के लिए यह योजना आवश्यक है।

3. पोषण के लिए – स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है। इस उद्देश्य को दृष्टिगत रखते निम्नवर्ग परिवारों में जहाँ शैक्षिक, सामाजिक तथा आर्थिक पिछड़ेपन के कारण पोषित आहार के प्रति उदासीनता रहती है। इसकी भरपायी के लिए सरकार ने इस योजना को आवश्यक माना है।

4. शैक्षिक मूल्यों के लिए आवश्यक- इस योजना को यदि सही ढंग से तथा सुनियोजित तरीके से लागू किया जाए तो छात्रों में कई अच्छी आदतों का निर्माण कर उनको शैक्षिक मूल्यों से अवगत कराया जा सकता है। जैसे सबके साथ मिलकर भोजन करना, भोजन करने के पहले तथा बाद में हाथ धोना, अपने बर्तन उठाकर रखना, पानी की बचत करना इत्यादि।

5. सामाजिक मूल्यों की शिक्षा- एम. डी. एम. योजना के सहारे सामाजिक समानता के मूल्यों को बढ़ावा दिया जा सकता है। विद्यालय में अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि के बालक बालिकाएँ आते हैं। बिना किसी जाति, धर्म का भेद किए एक साथ एक पंक्ति में बैठकर भोजन करना सामाजिक समानता का भाव उत्पन्न करना है। किन्तु यह एक संवेदनशील विषय है इसमें किसी कुत्सित मानसिकता का समावेश न किया जाए।

6. लैंगिक समानता को बढ़ावा – प्रायः परिषदीय स्कूल ग्रामीण परिवेश में ही पाये जाते हैं जहाँ विद्यालयों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या तथा सहभागिता अत्यन्त न्यून होती है। एम. डी. एम. योजना के लागू होने से इस अन्तर को काफी मात्रा में कम किया जा सका है। इस योजना से लड़कियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।

7. मनोवैज्ञानिक आवश्यकता – मनोवैज्ञानिक रूप से भी एम.डी.एम. योजना आवश्यक है। शारीरिक रूप से कमजोर होने पर बच्चे के मन में लगातार चिन्ता व तनाव बना रहता है। इसका दुष्प्रभाव बालक के संज्ञानात्मक, भावात्मक और सामाजिक विकास पर पड़ता है। इस योजना के लागू होने से बालकों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया जाता है उनके शरीर का पोषण करता है तथा मानसिक स्वास्थ्य को सही करता है। उनका अभिवृद्धि एवं विकास संतुलित तरीके से होता है।

मध्याह्न भोजन योजना के निष्पादन का प्रभाव –

भोजन मानव जीवन की प्राथमिक आवश्यकता है। भोजन का एकमात्र उद्देश्य भूख से निवृत्ति ही नहीं है, बल्कि भोजन का सम्बन्ध जीवन विकास के विभिन्न पहलुओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा, शैक्षिक एवं – सामाजिक मूल्य, शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक विकास से जुड़ा है। आहार सुरक्षा एवं शिक्षा के अधिकार के व्यापक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए देश के प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों के पोषाहार स्तर में सुधार एवं गुणवत्तापरक शिक्षा हेतु उसके नामांकन एवं उपस्थिति में वृद्धि करने के उद्देश्य से केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से फ्लैगशिप कार्यक्रम के रूप में मध्याह्न भोजन योजना को आवश्यक समझते हुए संचालित की जा रही है। मध्याह्न भोजन योजना बच्चों के पूरक पोषण के स्रोत और उनके स्वास्थ्य विकास के रूप में कार्य करता है। यह योजना छात्रों के ज्ञानात्मक, भावात्मक व सामाजिक विकास में सहायक है। किसी भी योजना की सफलता हेतु लोगों की सहभागिता हो, इसके लिए कार्यक्रम के प्रति उनके दृष्टिकोण के अनुकूल होने की अपेक्षा की जाती है। एक शोध के द्वारा पाया गया कि उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के विकास खण्ड अमौली के सरकारी प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के 35 अध्यापकों के मध्याह्न भोजन योजना के प्रति दृष्टिकोण एवं इस योजना के लागू किए जाने से इनके समक्ष उत्पन्न समस्याओं से सम्बन्धित है। प्राप्त परिणाम के अनुसार-

  1. 57.14% अध्यापकों का दृष्टिकोण इस कार्यक्रम के प्रति अनुकूल है।
  2. 91.42% अध्यापकों का मानना है कि लागत राशि अपर्याप्त है तथा समय भी अपर्याप्त है।
  3. 85.71% की राय है कि ग्राम प्रधानों का हस्तक्षेप अनाधिकृत है।
  4. 57.14% की राय है कि रसद की आपूर्ति सुचारु नहीं है।
  5. 54.28% का मत है कि फल एवं दूध की उपलब्धता समस्यात्मक है।
  6. 51.42% अध्यापकों का मानना है कि विद्यालय में भण्डारण कक्ष का अभाव है तथा रसोइया मानदेय समय से प्राप्त न होने की समस्या है।

इस योजना के प्रति अध्यापकों का दृष्टिकोण सामान्यतः नीरस ही है। अध्यापकों ने इस हेतु अपने प्रभावी उत्तरदायित्वों के निर्वहन हेतु उचित मार्गदर्शन एवं सामाजिक गुणवत्तापरक प्रशिक्षण दिए जाने एवं वित्तीय तथा आधारिक संरचना को सुदृढ़ किए जाने की अनुशंसा की गई है।

इस योजना के प्रभावी तरीके से लागू होने से बच्चों को दोपहर का भोजन प्रदान किया जाता है जिससे बच्चों की भूख की समस्या को हल करने में मदद मिली है वहीं दूसरी ओर इस योजना के लागू होने से बच्चों को एक साथ भोजन करने से उनमें सामाजिक एवं भावात्मक एकता को बढ़ावा मिला है। इस योजना के कारण विद्यालय में पढ़ने वाले बालकों के मध्य जातीय, धार्मिक, लैंगिक संकीर्णता को कम करने में सहायता मिलती है। इसे विभिन्न समूहों, समुदायों, जातियों, सम्प्रदायों के बालकों के मध्य भेदभाव को कम किया जा सका है।

यह योजना रोजगार के अवसर प्रदान करने में भी मददगार सिद्ध हुई है। एम.डी.एम. कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा मध्याह्न भोजन का सामूहिक कार्यक्रम है। 120 मिलियन से अधिक बच्चों को एक साथ भोजन कराने में कई कर्मचारियों की भी आवश्यकता होती है। ‘इसके लिए सरकार ने 2.6 मिलियन लोगों को रसोइया और सहायक के रूप में नियुक्त कर रोजगार प्रदान किए जाने का कार्य किया है। कई समाज सेवी संस्थाए व एन.जी.ओ. भी सरकार के साथ इस योजना को चलाने में सहयोग कर रही है।

राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत निर्धारित दिशा-निर्देशानुसार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनीशिप PPP मॉडल को प्रोत्साहित किए जाने का उद्देश्य रखा है। इस योजना के तहत प्रयुक्त किए जाने खाद्य पदार्थों को स्थानीय बाजार से खरीदे जाने का निश्चय हुआ है। जोकि (PPP) को प्रोत्साहित करता है। मध्याह्न भोजन से छात्रों के शारीरिक एवं मानसिक विकास को गति मिली है तथा उनके कार्य निष्पादन की क्षमता एवं गुणवत्ता में सुधार हुआ है। लाभान्वित वर्ग के बालकों को नियमित रूप से विद्यालय आने और कक्षा के कार्यकलापों पर ध्यान केन्द्रित करने में भी सहायता मिली है। उनमें निरन्तर सुधार देखा जा रहा है।

यद्यपि इस योजना से जुड़े कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं जिनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जैसे भोजन बनाने में लापरवाही बरतना, साफ-सफाई व स्वच्छता का ध्यान न रखना, कई बार लापरवाही के चलते बच्चों के बीमार पड़ने की घटनाएं हुई हैं। इसके अतिरिक्त प्रधानाचार्य ग्राम प्रधान व उच्च विभागीय अधिकारियों की मिली भगत व साँठगाँठ से हेरा-फेरी भी की जाती है। जिससे मानक के अनुसार भोजन नहीं परोसा जाता है। छात्र संख्या अधिक दिखाकर सरकारी खजाने की लूट की जाती है। इसलिए पहली प्राथमिकता है कि छात्रों, शिक्षकों, विभागीय अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों तथा अभिभावकों के नैतिक चरित्र को पोषण प्रदान कर उसे स्वस्थ किया जाए।

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