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खिंचाव व मोच का अर्थ, प्रकार, लक्षण एंव बचाव | Meaning, Types, Symptoms and Prevention of Strain and Sprains in Hindi

खिंचाव व मोच का अर्थ,  प्रकार, लक्षण एंव बचाव
खिंचाव व मोच का अर्थ, प्रकार, लक्षण एंव बचाव

खिंचाव व मोच पर टिप्पणियाँ लिखिए।

खिंचाव व मोच का अर्थ- खिंचाव तब होता है जब ऊतकों पर दवाब या अधिक बल लगाया जाए। इससे ऊतकों में किसी प्रकार की विरूपता आ जाती है। इस विरूपता को विकृति कहते हैं। खिंचाव को पेशियों की या अस्थियों से जुड़े कंडरों (tendons) की क्षति भी कहा जाता है। अभ्यास या प्रतियोगिता के समय अनेक स्थितियाँ हो सकती हैं जिनके कारण खिंचाव हो सकता है-

खिंचाव तीन प्रकार का होता है-

(i) हल्की- जब माँसपेशियों में बिना कटाव के मामूली खिंचाव हो और कंडरा में भी कटाव न हो, उसे हल्की विकृति कहते हैं। इसमें शक्ति की कोई कमी नहीं आती।

(ii) सामान्य- जब पेशी या कंडरा में अथवा अस्थि के साथ जोड़ पर कटाव हो जाने के कारण सामान्य खिंचाव होता है। इस स्थिति में अंग की शक्ति घट जाती है।

(iii) गंभीर खिंचाव- जब माँसपेशी या टैंडन फट जाए तो गंभीर खिंचाव की स्थिति होती है, जिसके कारण प्रत्यक्ष चोट या अधिक दबाव होता है। इसके कारण सम्बन्धित अंग की शक्ति बिल्कुल घट जाती है।

लक्षण

  1. खिंचावग्रस्त अंग को हिलाने-डुलाने पर दर्द महसूस होना।
  2. चोट के आस-पास सूजन (swelling) होना
  3. चोटग्रस्त अंग को हाथ से दबाने पर कटक की आवाज या आवाज का आभास होना।।
  4. माँसपेशियों में ऐंठन या तनाव।
  5. टंडन को कवर करने वाली पेशी में सूजन।

खिंचाव का बचाव तथा प्रबन्ध

  1. बचाव के लिए प्रत्येक खिलाड़ी को प्रशिक्षण या प्रतियोगिता पूर्व उचित ढंग से शरीर को गर्माना चाहिए। शरीर के सभी भाग या अंगों के खिंचाव वाले व्यायाम अवश्य करने चाहिए।
  2. जिस जगह चोट लगी हो उसे आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए। यदि अधिक दर्द और सूजन हो तो यह खिंचाव ही होता है।
  3. ठण्डे पानी या बर्फ का प्रयोग तुरन्त ही लगभग 20 से 30 मिनट तक करना चाहिए। बर्फ का प्रयोग सीधे ही नहीं करना चाहिए बल्कि रुई या कपड़े में लपेट कर ही करना चाहिए।
  4. 2 या 3 दिन तक मालिश नहीं करनी चाहिए, यदि इतने समय से पहले मालिश की जाए तो रक्त का बहाव शुरू हो सकता है।
  5. यदि फिर भी दर्द होता है तो चोटग्रस्त एथलीट को कोई दर्दनाशक दिया जा सकता है। इसके लिए पेन-किलर का प्रयोग उचित होता है जो बाजार में उपलब्ध होता है।
  6. चोटग्रस्त अंग को थोड़ा ऊपर की स्थिति में रखना चाहिए तथा पूर्णरूप से आराम करना चाहिए।
  7. यदि दर्द बन्द हो जाए तो कुछ परिवर्तन के बाद आइसोटोनिक व्यायाम करना भी लाभदायक होता है।
  8. ठीक हो जाने के बाद चोटग्रस्त एथलीट को खेलों में तुरन्त ही भाग नहीं लेना चाहिए। बचाव पट्टी के साथ उसे धीरे-धीरे खेलना आरम्भ करना चाहिए।

मोच- यह लिगामैंट की चोट होती है। मोच एक या अधिक स्नायुओं के अधिक खिंच जाने या कट जाने से आती है। व्यायाम के दौरान स्नायु कई बार तनावग्रस्त तथा क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। चोट कुहनी, घुटने या टखने के जोड़ के निकट लगती हैं मोच अक्सर भारोत्तोलन, टेनिस और मैदान तथा ट्रैक के खेलों में आती है। कभी-कभी मोच के साथ-साथ अस्थिभंग भी हो जाता है तथा सूजन बहुत अधिक हो जाती है। इसके अतिरिक्त दर्द भी होता है। कई बाद लिगामेंट ढीला भी हो जाता है।

मोच भी खिंचाव की तरह तीन प्रकार की होती है-

1. हल्की मोच- जब एक या अधिक स्नायु में मामूली खिंचाव या कटाव हो जाता है। तो उसे हल्की मोच कहते हैं, इससे योग्यता में कमी आ जाती है। जब टखने पर किसी तरफ से दबाव पड़ता है तो एड़ी की हड्डी टखने के जोड़ से हिल जाती है और जो लिगामैन्ट जोड़ को जकड़े रहते हैं उनमें ऐंडन या खिंचाव आ जाता है। कभी-कभी फट भी जाते हैं।

2. सामान्य मोच- जब टखने या सम्बन्धित अंग के स्नायु फट जाए और उस अंग के कार्य में कुछ कमी आ जाए तो सामान्य मोच कहलाती है। इसमें स्नायु फटने की संख्या एक से अधिक होती है।

3. गंभीर मोच- गंभीर मोच में एक से अधिक सभी स्नायु पूरी तरह फट जाएँ और सम्बन्धित अंग की हरकत में बहुत बाधा महसूस हो उसे गंभीर मोच कहते हैं। कभी-कभी अस्थि विस्थापन भी हो जाता है। आस-पास की रक्तवाहिकाएँ अंशतः या पूर्णतः फट जाती हैं और बहुधा संधि के बाहर या कभी-कभी अन्दर रक्तस्त्राव होने लगता है। जोड़ वाले भाग में सूजन और पीड़ा होती है। जोड़ों की हरकत कष्टपूर्ण तथा सीमित होती है।

लक्षण

  1. चोट के समय सम्बन्धित भाग में तेज दर्द का होना।
  2. चोटग्रस्त भाग के फटने या चटखने का अनुभव होती है, कभी-कभी अस्थि विस्थापन का आभास होता है।
  3. चोटग्रस्त स्थान पर कोमलता का अनुभव होता है।
  4. चोटग्रस्त अंग की हरकत समाप्त हो जाती है।
  5. यदि दर्द की तरफ पैर या चोटग्रस्त अंग पर दबाव डाला जाता है तो जोड़ में ढीलापन महसूस होगा और जोड़ अपनी स्थिरता नहीं रख पायेगा।

मोच का बचाव व प्रबन्ध

  1. मोच से बचाव के लिए पूर्णरूप से शरीर को गर्माना चाहिए।
  2. चोटग्रस्त अंग को आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए।
  3. ठण्डे पानी या बर्फ का प्रयोग तुरन्त ही 20 से 30 मिनट तक करना चाहिए। बर्फ या ठण्डे पानी का प्रयोग प्रतिदिन 6 से 8 बार अवश्य करना चाहिए।
  4. चोटग्रस्त अंग या हिस्से को थोड़ा ऊँचा रखना चाहिए।
  5. मालिश नहीं करनी चाहिए।
  6. दर्द हो तो दर्दनाशक छिड़काव का प्रयोग करें।
  7. चलते हुए दर्द होता है तो सहारा लेकर धीरे-धीरे चलना चाहिए। शरीर का अधिक भार न डाला जाए।
  8. घायल जोड़ को सुविधाजनक स्थिति तक ऊपर उठा दिया जाए और कोई हरकत न होने दी जाए।
  9. घायल अंग पर क्रेप की पट्टी बांध दी जाए।
  10. डॉक्टर से मोच की जांच करवा कर एक्से-रे करवाना चाहिए।

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