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अलगाववाद एवं इसके दुष्परिणाम | Serveransicm and Its Bad Effects

अलगाववाद एवं इसके दुष्परिणाम
अलगाववाद एवं इसके दुष्परिणाम

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अलगाववाद एवं इसके दुष्परिणाम
Serveransicm and Its Bad Effects

 
‘लगाव’ शब्द स्पष्ट करता है कि हमें किसी वस्तु से प्रेम है, जबकि अलगाव इसके नकारात्मक या विरोधी भाव का द्योतक है । कहना होगा कि हमें किसी वस्तु या अमुक व्यक्ति से लगाव नहीं है । भारत एक सम्प्रभुता सम्पन्न, विभिन्न बहु-जातीय, भाषा-भाषी एवं विविध प्रकार की परम्पराओं का देश है । ऐसी स्थिति में हमारा लगाव राष्ट्र के सम्पूर्ण अस्तित्व के लिये इसकी रक्षार्थ होना चाहिये परन्तु ऐसा नहीं है । बस यही अलगाववाद का व्यापक स्वरूप तथा सम्प्रत्यय है। सर्वत्र जाति, धर्म, सम्प्रदाय, आर्थिक शोषण, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, गुण्डागर्दी तथा परिग्रह वृत्ति अर्थात् ‘सभी प्रकार के सभी साधन मेरे पास हों तथा सभी प्राणी मेरे अधीन हों कि विचारधारा ने राष्ट्र के एकाकार स्वरूप को आघात पहुँचाया है । प्रायः समाचार-पत्रों तथा संचार माध्यमों से अनेक समाज तथा राष्ट्र विरोधी कृत्यों का खुलासा हो रहा है । राजनैतिक दल जाति विशेष के गुट द्वारा बनाये जा रहे हैं। जाति विशेष के अधिकारी तथा कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है । धर्म सम्प्रदाय के स्वरूप को आघात तब लगता है, जबकि विशेष पद तथा स्थान के लिये संज्ञान रखकर धर्म विशेष या जाति विशेष के कर्मी को ही प्रतिष्ठित किया जाता है । धार्मिक कट्टरता तथा उन्माद ने देश की रीढ़ पर चोट की है। नि:सन्देह रूप से ऐसी विचारधारा के कारण भारत माता के गणतन्त्र स्वरूप को बड़ी पीड़ा से गुजरना पड़ता है। अमुक शासन में तथा प्रधानमन्त्री का व्यक्तिगत हित में गुटीय परिवर्तन, लोक एवं सार्वनिक हितों तथा सरंक्षण की अवहेलना और शासन बदलते ही अपने हिसाव से गोटियाँ बिछाना सर्वजनीन परम्पराओं का स्पष्ट उल्लंघन है। अलगाववाद की सीमाओं ने राष्ट्र की आन्तरिक स्थिति को झकझोर दिया है । सर्वत्र आन्दोलन हो रहे हैं -रेल रोकी जा रही हैं, लाइनें उखाड़ी जा रही हैं । मार्ग अवरुद्ध हैं,बस तथा परिवहन के साधन जलाये या नष्ट किये जा रहे हैं पुलिस-प्रशासन करे तो क्या करे? जनहित की दुहाई देकर राजनैतिक हस्तक्षेप निरन्तर चल रहे हैं। इससे और अधिक क्या होगा? राजनैतिक गुण्डे, डकैत तथा अपहरणकर्ता आन्दोलन के नाम पर सामाजिक न्याय की दुहाई देकर हथियार थामे हुए मैदान में कूद पड़े हैं। राजस्थान का गूर्जर आन्दोलन, मई एवं जून सन् 2008 और हरियाणा का जाट आन्दोलन इसका ज्वलन्त उदाहरण है। शिक्षा का कहना है “समरसता के आँगन में खेलने का सभी को अधिकार है । लाठी और डण्डों के सहारे आन्दोलन नहीं चलाये जाते। हाँ, उपद्रवियों की फौज तो उत्पन्न की जा सकती है । समाज तो तोड़ा जा सकता है जिसके परिणाम राष्ट्र की भावी पीढ़ी को भुगतने पड़ते हैं। यह हमारे राष्ट्र का दुर्भाग्य है । ऐसा अलगाव राष्ट्र को जीर्ण-शीर्ण करता है । शिक्षा एक ऐसा सार्वभौमिक तत्त्व है जो अलगाववाद वृत्ति का शोधन करता है।”
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