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अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्यक्रम |Development Program for Scheduled Tribes in Hindi

अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्यक्रम

अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्यक्रम

अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्यक्रम

अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्यक्रम का वर्णन करें।

अनुसूचित जनजातियों के विकास पर अधिकाधिक ध्यान केन्द्रित करने के उद्देश्य से अक्टूबर, 1999 में एक अलग जनजातीय कार्य मंत्रालय का गठन किया गया। इसे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से अलग किया गया, यह मंत्रालय अनुसूचित जनजातियों के बारे में नीति निर्धारित करने, योजनाएँ बनाने और उनके विकास के लिए कार्यक्रमों और योजनाओं में समन्वय स्थापित करने वाला शीर्ष मंत्रालय है। केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं विकास के लिए चलाए जा रहे प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-

1. परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण (कोचिंग) –

इस योजना के अन्तर्गत राज्य सरकारें और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों की नौकरियों में प्रवेश के लिए उनकी क्षमता सुधारने की दृष्टि से अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को भर्ती प्रशिक्षण केन्द्रों में परीक्षा-पूर्व कोचिंग उपलब्ध कराने के राज्य सरकारों/केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासनों को आधी-आधी सहायता के आधार पर 50% केन्द्रीय सहायता दी जा सकती है। विश्वविद्यालयों और प्राइवेट संस्थाओं की विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के इच्छुक अनुसूचित उम्मीदवारों के वास्ते परीक्षा-पूर्व प्रशिक्षण केन्द्र चलाने के लिए शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता दी जाती है। इस कार्य के लिए संशोधित योजना सितम्बर 2001 से लागू हुई और इन पर ऐसी निजी तथा सार्वजनिक संस्थाएँ अमल कर रही हैं जिनका कई वर्षों से कोचिंग कोर्स चलाने में नाम रहा है। गैर-सरकारी संगठनों, विश्वविद्यालयों और कोचिंग पाठ्यक्रम चलाने वाले संस्थानों को पाठ्यक्रम पर आने वाले खर्च का केवल 10% वहन करना होगा।

2. मैट्रिक से पूर्व छात्रवृत्तियाँ –

यह योजना 1977-78 में लागू की गई। इस योजना में 1 नवम्बर, 1991 से सुधार किया गया और यह व्यवस्था की गई कि पहली कक्षा से पाँचवीं कक्षा तक के बच्चों को 50 रु. मासिक की छात्रवृत्ति दी जाएगी। छात्रावास में रहकर पढ़ने वाले बच्चों के लिए तीसरी और आठवीं कक्षा में 200 रु. और नौवीं-दसवीं कक्षा में 250 रु. प्रति माह छात्रवृत्ति दी जाती है। प्रत्येक छात्र को, चाहे वह छात्रावास में रहे या घर से पढ़ने आए, रु. की वार्षिक तदर्थ सहायता भी मिलती है।

3. मैट्रिक के बाद छात्रवृत्तियाँ –

मैट्रिक के बाद अध्ययन कर रहे अनुसूचित जातियों/ जनजातियों के छात्रों को छात्रवृत्ति देने की योजना 1944 में शुरु की गई। इसका उद्देश्य मान्यताप्राप्त पाठ्यक्रमों सहित व्यावसायिक, तकनीकी, गैर-व्यावसायिक और गैर-तकनीकी पाठ्यक्रमों में अध्ययन के लिए उन्हें वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना था। यह कार्यक्रम राज्य सरकारों और केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासनों द्वारा लागू किया जाता है। उन्हें इसके लिए वचनबद्ध दायित्व के अतिरिक्त शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

4. अनु. जनजाति के बालक/बालिकाओं हेतु छात्रावास –

बालिकाओं के लिए छात्रावास कार्यक्रम तीसरी पंचवर्षीय योजना में शुरु किया गया। इसका उद्देश्य शिक्षा प्राप्त कर रही जनजातीय बालिकाओं को आवास सुविधा उपलब्ध कराना था। इसके अन्तर्गत राज्यों को छात्रावासों की निर्माण लागत का 50% और केन्द्रशासित प्रदेशों को शत-प्रतिशत राशि केन्द्रीय सहायता के रुप में उपलब्ध कराई जाती है। लड़कियों के लिए छात्रावासों की योजना की ही तरह लड़कों के लिए भी वर्ष 1989-90 में योजना शुरु की गई।

5. जनजातीय क्षेत्रों में आश्रम विद्यालय –

केन्द्र द्वारा प्रायोजित यह कार्यक्रम वर्ष 1990-91 में शुरु किया गया। इसके अन्तर्गत आश्रम पद्धति के विद्यालय खोलने के लिए राज्यों को 50% तथा केन्द्रशासित प्रदेशों को शत-प्रतिशत सहायता दी जाती है।

6. जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण –

केन्द्रीय क्षेत्र की यह योजना वर्ष को 500 कम महिला साक्षरता वाले आठ राज्यों में 48चुने हुए जनजातीय जिलों में जनजातीय बालिकाओं 1992-93 में शुरु की गई। इसका उद्देश्य बेरोजगार युवाओं की कुशलता बढ़ाकर उन्हें रोजगार/स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है। इसके तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाते हैं।

7. कम साक्षरता वाले क्षेत्रों में जनजातीय बालिकाओं की शिक्षा –

2% से के शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए वर्ष 1993-94 में यह कार्यक्रम शुरु किया गया। जुलाई, 1998 में इसमें संशोधन किए गए। अब 14 राज्यों में अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के 10% से कम साक्षरता वाले 136 जिलों में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अन्तर्गत पांचवीं कक्षा तक की बालिकाओं के लिए आवासीय विद्यालयों की स्थापना की जाती है। यह कार्यक्रम स्वयंसेवी संगठनों, राज्यों केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारों द्वारा लागू किया जा रहा है।

8. जनजातीय शोध संस्थान –

आन्ध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 15 जनजाति शोध संस्थान स्थापित किए गए हैं। मंत्रालय ने 2002- 03 में पोर्ट ब्लेयर में जनजातीय शोध संस्थान खोलने के लिये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को अनुदान उपलब्ध कराया है। ये शोध संस्थान राज्य सरकारों को योजना बनाने की जरुरी जानकारी उपलब्ध कराने, शोध तथा आकलन संबंधी अध्ययन कराने, आंकड़े जमा कराने, पारम्परिक कानूनों की सूची बनाने और प्रशिक्षण, गोष्ठियां तथा कार्यशालाएं आयोजित करने में लगे हुए हैं। इनमें से कुछ संस्थानों में संग्रहालय भी हैं, जहाँ जनजातीय वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं।

9. ग्रामीण अनाज बैंक योजना –

केन्द्रीय क्षेत्र की जनजातीय ग्रामीण अनाज बैंक योजना वर्ष 1996-97 में शुरु की गई। इस योजना को कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में प्रयोग के तौर पर प्रारम्भ किया गया। दूरदराज और पिछड़े जनजातीय इलाकों में शिशुओं की मृत्यु को रोकने के उपायों के वास्ते इन क्षेत्रों की पहचान कर ली गई थी और इन दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों में पोषण के स्तर को गिरने से बचाने के लिए इन अनाज बैंकों का प्रावधान किया गया था।

10. विशेष केन्द्रीय सहायता –

जनजातीय मंत्रालय 21 राज्य सरकारों तथा 2 केन्द्रशासित प्रदेश प्रशासनों की जनजातीय उपयोजनाओं को विशेष केन्द्रीय सहायता देता है। इनमें असम, मणिपुर और त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्य शामिल हैं। जनजातीय उपयोजना के लिए विशेष केन्द्रीय सहायता के विस्तार का अन्तिम उद्देश्य मांग पर आधारित आय उत्पादन कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देना है। इससे कृषि, बागवानी, भूमि सुधार, जलविभाजनक क्षेत्रों का विकास, भूमि एवं नमी का संहरक्षण, पुशुपालन, पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी, वन-ग्राम तथा वन विकास, उद्यमशीलता का विकास, लघु उद्योगों तथा जनजातीय महिलाओं का विकास आदि क्षेत्रों में जनजातीय लोगों का आर्थिक तथा सामाजिक उत्तर ऊँचा उठेगा।

11. जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (ट्राइफेड) –

जनजातीय लोगों को व्यापारियों और बिचौलियों के शोषण से बचाने और उन्हें छिटपुट वन-उत्पादों तथा अपनी जरुरत से अधिक कृषि उपज के लाभप्रद मूल्य दिलाने के लिए सरकार ने 1987 में भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (ट्राइफेड) का गठन किया था। यह परिसंघ राष्ट्रीय स्तर की एक शीर्ष सहकारी संस्था है जोजनजातीय लोगों को एक ओर तो व्यापारियों और बिचौलिया के चंगुल से बचाती है और दूसरी ओर उन्हें उनके उत्पादों के लाभकारी मूल्य भी दिलाती है।

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