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समाजिक विज्ञान शिक्षक की शिक्षण दक्षता | दक्षता आधारित अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता | वर्तमान में दक्षतागत अध्यापक शिक्षा का महत्व

समाजिक विज्ञान शिक्षक की शिक्षण दक्षता
समाजिक विज्ञान शिक्षक की शिक्षण दक्षता

समाजिक विज्ञान शिक्षक की शिक्षण दक्षता

शिक्षण दक्षता- जब भी किसी ऐसे व्यवसाय या कार्य के बारे में जिक्र होता है जिसमें किसी व्यक्ति को दक्षता पर्याप्त व्यावसायिक कुशलताओं, ज्ञान, शैक्षिक योग्यता और क्षमता आदि विशेषताओं का जिक्र होता है तो वहाँ दक्षता शब्द का बहुधा प्रयोग किया जाता है और यही दक्षता है।

शिक्षण दक्षता से अभिप्राय विशेष योग्यता के व्यवहार से है जो एक शिक्षक को व्यावसायिक पाठ्यक्रम में अर्जित करना चाहिए। दक्षता अध्यापक के व्यवहार व उसकी कार्य करने की से सम्बन्धित है। इस प्रकार अध्यापक शिक्षा मात्र एक कार्यक्रम ही नहीं बल्कि एक ऐसा मिशन या आयोजन है जिसके माध्यम से राष्ट्रीय सन्दर्भ में आधुनिक एंव परिवर्तित अध्यापकीय भूमिका के निर्वहन के लिए दक्षता तथा कुशलता प्राप्ति हेतु व्यक्तियों को शिक्षित किया जा सके।

दक्षतागत अध्यापक शिक्षा

अध्यापक को अपने विषय में पूर्व ज्ञान और समझ होनी चाहिए। अपने छात्रों के प्रति उसका दृष्टिकोण स्नेहमय होना चाहिए। व्यक्तित्व के इन गुणो के बिना ज्ञान का सम्प्रेषण प्रभावशाली नही हो सकता इसके अलावा भी निम्नलिखित गुण ऐसे होते है जो अध्यापन को प्रभावशाली बनाते है, जैसे- निष्पक्षता एवं कर्त्तव्य भावना छात्रों के प्रति प्रेम, संयम, निष्ठा एवं नियमितता तथा खुशमिजाजी, पर ये सब गुण छात्र के व्यवहार में वांछनीय परिवर्तन नहीं ला सकते, अगर अध्यापक में सम्प्रेषणी नहीं।

अध्यापक को अध्यापन की प्रक्रिया के दौरान उसे उन शब्दों और क्रियाकलापो के प्रति भी सचेत रहना होगा जो छात्रों की विभिन्न प्रवृत्तियों से आभासित होते है। यानि अध्यापक और छात्रों के मध्य आपसी सम्प्रेषण का रिश्ता होना चाहिए इस तरह अध्यापकीय क्षमता के दो भाग होते है। एक-अध्यापक का ज्ञान और उसके व्यक्तित्व की विलक्षणतायें और दूसरी संप्रेक्षण दक्षता दोनों मिलकर ही अध्यापकीय क्षमता बनती है।

दक्षता आधारित अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता

किसी भी उद्यमगत नैपुण्य की प्राप्ति के लिए दक्षता की प्राप्ति, प्रतिबद्धता का उन्मेषण एवं श्रेष्ठ प्रदर्शन हेतु इच्छा का होना आवश्यक संकल्पनात्मक, विषयगत संदर्भ-निर्भर सम्प्रेषणात्मक एंव मूल्यांकन प्रबन्धन तथा सहयोगात्मक दक्षता की प्राप्ति के साथ ही प्रतिबद्धता को विकसित करना अध्यापक शिक्षा का ही दायित्व हो जाता है। ताकि सफल अध्यापकीय तैयारी सम्भव हो सके। अधिगमकर्त्ता समाज, , शिक्षण- उद्यम, मूल्य और श्रेष्ठतार्जन के प्रति प्रतिबद्धता की अपेक्षा एक अध्यापक से अवश्य ही की जा सकती है। कक्षागत प्रदर्शन विद्यालयगत प्रदर्शन, विद्यालयेत्तर शैक्षिक क्रयाकलापों में प्रदर्शन आदि के साथ ही अभिभावक सम्बन्धित एंव समुदाय सन्दर्भित प्रदर्शन अध्यापक के लिए जरूरी माना जाता है। अतः इन तीनो ही निपुर्णताओं की सम्प्राप्ति के लिए उपयुक्त अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता को अस्वीकृत करना सम्भव नही है।

दक्ष एवं प्रतिबद्ध अध्यापकीय विशेषताएँ एक कुशल और प्रतिबद्ध अध्यापक में निम्न विशेषताएँ पायी जाती है-

(i) अपने विद्यार्थियों में प्रिय हो, उनके सहयोगी के रूप में कार्य कर सकें और साथ समुदाय के द्वारा प्रशंसित और सम्मानित किया जाता हो। (ii) अनुकूल प्रिय व्यवहार ही (Modest Behaviour) का प्रदर्शन करने वाला हो तथा राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अपना अशंदान के प्रति आवश्यक आत्म अवधारणा (Self-Image) के ही आत्म विश्वास (Self Confidence) उसमें विद्यमान हो। (iii) ज्ञान तथा जनसंख्या के क्षेत्र में विस्फोट एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि के प्रति वह जागरूक हो। (iv) उपयुक्त स्त्रोंतो के माध्यम से अद्यतन सूचना संग्रह और अध्यापन, अधिगम व्यूह रचनाओं के अनुसार उन्हें संसाधित करने में अनभिज्ञ हो। (v) बदलते हुए समय के साथ अपनी शिक्षण उपागम तथा दृष्टिकोण, प्रविधि एवं तकनीकी स्थान के नवीनीकरण के प्रति आग्रही हो। (vi) विशेषता स्वनिर्देशित अधिगम के माध्यक से आजीविकागत स्तरोन्नयन प्राप्ति हेतु आग्रही, कुशल सक्षम एंव दृढ़ विश्वासी हो। (vii) अधिगमकर्त्ताओं के सम्मुख अपनी प्रतिमान भूमिका (Role model) तथा समुदाय के लिए नवीन विकासात्मक सूचनाओं के सम्प्रेषण के महत्व का अनुभव करने में सक्षम हो।

अध्यापक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिक्षको में व्यवहारिक दक्षता पर विकास करता है। अध्यापकों की सामान्य शिक्षण दक्षता को अग्रलिखित आयामों के अन्तर्गत अध्ययन किया गया है-

(1) व्यक्तिगत शिक्षण दक्षता- अध्यापक के लिए शिक्षा अध्ययन तथा अधिगम से परिचित होना एक ओर जहाँ आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर उन पर पड़ने वाले विविध सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक कारकों के प्रभाव के बारे में जानकारी रखना अपेक्षित माना जाता है। शारीरिक, मानसिक और सांस्कृतिक विकास के लिए अधिगमकर्त्ताओं की आवश्यकताएँ क्या है और उनके विकासात्मक वैशिष्ट्य क्या है, यह जानने के बाद ही प्रभावकारी ढंग से पाठ्यक्रम का प्रस्तुतीकरण करना या प्रयोगिक कार्य को संचालित कर पाना सम्भव हो सकता है। केवल पाठ्यक्रमागत क्रियाकलापों के बारे में दक्षता की प्राप्ति ही प्रर्याप्त नहीं है बल्कि साथ ही शिक्षण विधिगत क्रियाकलापों से भी दक्ष अध्यापक को परिचित होना जरूरी हो जाता है। जैसे, अध्यापक निर्देशित अधिगम, समूह अधिगम, स्वप्रेरित वैयक्तिक अधिगम आदि अनेक ऐसी शिक्षण विधिगत संकल्पनाएँ है। किसी पाठ्य सहगामी या पाठ्यक्रम सम्बन्ध क्रियाकलाप के संचालन के लिए जरूरी हो जाती है।

( 2 ) संदर्भित शिक्षण दक्षता- यह एक प्रमुख दक्षता आयाम है जिसमें इस बात पर बल दिया जाता है कि जब तक हम पाठ्य-वस्तु के सन्दर्भ बिन्दुओं के बारे में भली-भांति परिचित नही हो पाते है, उसे ठीक से समझ नही सकते है, जैसे विभिन्न सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किसी घटना या व्यवहार को उचित या अनुचित ठहराया जा सकता है। अतः सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, भाषा सम्बन्धी तथा धार्मिक सन्दर्भ के बारे में अध्यापक / अध्यापिकाओं में स्पष्ट जानकारी या अवबोध का होना अति आवश्यक है। उदाहरणार्थ- जिस समय किसी देश की जनसंख्या में कमी होती है, उस समय परिवार का आकार बड़ा होना घातक नही होता लेकिन देश की वर्तमान जनसंख्या और जन-घनत्व को देखते हुए कभी भी बड़े परिवार को मान्यता प्रदान करना उचित नही हो सकता है।

(3) विषय-वस्तु शिक्षण दक्षता- किसी भी अध्यापक के लिए अपनी विषय वस्तु में पूर्ण अधिकार का होना वैसे ही अपरिहार्य हो जाता है जैसे किसी कर्मकाण्डी ब्राह्मण के लिए मन्त्रों के बारे में जानकारी का होना। उन्हें शिक्षण के पहले पाठ्यक्रम का विश्लेषण करते हुए अवबोध योग्य अनुक्रम में सज्जित करना होता है और उनमें पारस्परिक सह-सम्बन्धों को भी स्पष्ट करने की आवश्यकता होती है ताकि छात्र कार्यकरण सम्बन्धों के बारे में सही जानकारी प्राप्त करने में सक्षम हो सके।

(4) सम्प्रेषण शिक्षण दक्षता- शिक्षण, मात्र विषयगत दक्षता से ही सम्पन्न नही किया जा सकता है क्योंकि अध्यापक / अध्यापिका का मूल कार्य विषयगत ज्ञान का हस्तान्तरण करना होता है। पाठ नियोजन को व्यवहारिक रूप प्रदान करना और उपलब्धि स्तर का आकंलन करना इसमें निहित है। इसलिये सम्प्रेषण के ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है ताकि एक ही डण्डे से सभी अधिगमकर्त्ताओं को हाँकने की आवश्यकता न हो।

वर्तमान में दक्षतागत अध्यापक शिक्षा का महत्व

दक्षतागत अध्यापक शिक्षा के महत्व का स्पष्टीकरण आवश्यकता के सन्दर्भ में किया जाता है। संक्षेपित रूप में कहा जा सकता है। दक्षतागत अध्यापक शिक्षा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से-

(i) अध्यापन कला में दक्षता की प्राप्ति सम्भव हो पाती है। (ii) दक्षतागत अध्यापन शिक्षा के माध्यम से अध्यापन कुशलता की प्राप्ति के लिए क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप से प्रयास करना सम्भव हो पाने के कारण समय, श्रम आदि की बचत होती है। (iii) इसके माध्यम से शिक्षा के ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक क्षेत्र के विविध उद्देश्यों की प्राप्ति को सुनिश्चित करना सम्भव हो पाता है। (iv) अध्यापक का कार्य अधिगमकर्त्ताओं का सर्वांगीण विकास करना होता है। (v) अध्यापक शिक्षा में नवचरित्र और शोधमूलक प्रवृतियों के विकास के साथ ही प्राचीन परम्परागत कठोरता और उप-परिवर्तनशीलता सम्बन्धी विशेषताओं में परिवर्तन हो रहे है। फलतः आधुनिक अध्यापक शिक्षा समाजोपयोगी ही नही बल्कि एक युगोपयोगी कुशल अध्यापक को तैयार करने में सहायक होने के कारण महत्वपूर्ण बन चुकी है। (vi) अध्यापक एक मार्ग-दर्शनकर्त्ता और परामर्शदाता भी होता है। (vii) अध्यापक ही वह व्यक्ति होता है। जिसकी नेतृत्व क्षमता का परीक्षण अनेक अवसरों पर होता रहता है। अध्यापक को समाज के लिए एक उदाहरण बनकर भी कार्य करना होता है।

इस प्रकार विभिन्न सन्दर्भों में यह कहा जा सकता है कि आज आधुनिक दक्ष, कार्य कुशल और प्रतिबद्ध आध्यापक की तैयारी के लिए दक्षतागत अध्यापक शिक्षा को अनिवार्य माना जाना उचित है।

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