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विद्यालय में अनुशासनहीनता एवं प्रधानाचार्य और शिक्षक की भूमिका

विद्यालय में अनुशासनहीनता एवं प्रधानाचार्य

विद्यालय में अनुशासनहीनता एवं प्रधानाचार्य

विद्यालय में अनुशासनहीनता को दूर करने एवं अनुशासन को बनाये रखने में प्रधानाचार्य एवं शिक्षक की भूमिका लिखिए।

विद्यालय में अनुशासनहीनता निम्न प्रकार से दूर किया जा सकता है। अनुशासनहीनता की समस्या के समाधान के लिए विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न सुझाव दिये हैं। कुछ प्रमुख सुझावों को आगे दिया जा रहा है-

1. शिक्षकों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये जाएँ।

2. शिक्षकों तथा छात्रों के बीच व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करने के लिए उचित व्यवस्था की जाए।

3. शिक्षा पद्धति के दोषों को दूर करने के लिए विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग, माध्यमिक शिक्षा-आयोग तथा कोठारी कमीशन ने बड़े ही महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं। इन सुझावों के अनुसार शिक्षा के ढाँचे को बनाया जाय और शिक्षा के व्यावहारिक पक्ष पर बल दिया जाए।

4. परीक्षा-प्रणाली में सुधार लाया जाए।

5. विद्यालय-अधिकारियों को छात्रों की समस्याओं के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण रखना चाहिए।

6. विद्यालय के वातावरण को नैतिक एवं सौहार्दपूर्ण बनाया जाना चाहिए, जिससे छात्रों में उच्च आदर्शों के लिए निष्ठा एवं उनके अनुसार कार्य करने की भावना का विकास किया जा सके।

7. विद्यालय का घर तथा समाज से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किया जाए। छात्रों के माता-पिता तथा समाज के नेताओं को भी इस समस्या के समाधान के लिए उत्तरदायी बनाया

8. छात्रों को अपनी जीविका कमाने के योग्य बनाने के लिए कार्य-अनुभव, श्रम के महत्व तथा व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया जाए जिससे वे अपने भावी जीवन में नैराश्य एवं असंतोष से बच सकें।

अनुशासन स्थापना में प्रधानाध्यापक और शिक्षक की भूमिका-

प्रधानाध्यापक विद्यालय का केन्द्र बिन्दु है। विद्यालय में श्रेष्ठ पर्यावरण के निर्माण में उसकी भूमिका अहम् होती है। वह नेतृत्व प्रदान करता है और विद्यालयी नीतियों का निर्धारण करता है। विद्यालय में अनुशासन के लिए यह शिक्षक और शिक्षार्थी के सहयोग से नीति का निर्माण करता है, शिक्षकों के साथ सहयोग की भावना से कार्य करके श्रेष्ठ परम्पराओं का निर्वाह करता है, पाठ्य-प्रवृत्तियों और पाठ्य-सहगामी प्रवृत्तियों का नियमित आयोजन करता है। वह विद्यालय के उपलब्ध साधनों को प्रभावी ढंग से नियोजित करके विद्यालय में अनुशासन की स्थापना कर सकता है और किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता की स्थिति को दूर कर सकता है।

विद्यालय के लक्ष्यों और कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने का मूल आधार शिक्षक है। अनुशासन बनाये रखने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। शैक्षिक कारणों से होने वाली अनुशासनहीनता की घटनाओं के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शिक्षक उत्तदायी होता है। इसलिए शिक्षक अच्छी तैयारी करके पढ़ायें और वह विद्यार्थियों की व्यक्तिगत एवं कक्षागत समस्याओं पर जाए। उचित ध्यान देकर समस्याओं को विवेक और कौशल से हल कर सकता है। इसके अतिरिक्त बालक की व्यक्तिगत क्षमताओं के विकास के लिए व्यक्तिगत ध्यान देकर अनुशासन की समस्याओं को बहुत कुछ कम कर सकता है। अनुशासनहीनता दूर करने में अभिभावकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। अधिकांश समय विद्यार्थी घर पर रहता है। बालक अपने अभिभावकों से जो सीखता है, उसी के अनुरूप आचरण करता है, अत: अभिभावकों का बालक के प्रति कैसा व्यवहार -यह तानाशाह अभिभावक है, आलोचक अभिभावक है या प्यार करने वाला अभिभावक है।

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