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रूसो का सामाजिक समझौता सिद्धांत | सामान्य इच्छा का सिद्धांत

रूसो का सामाजिक समझौता सिद्धांत
रूसो का सामाजिक समझौता सिद्धांत

रूसो का सामाजिक समझौता सिद्धान्त

रूसो ने सामाजिक समझौता सिद्धान्त का प्रतिपादन अपनी श्रेष्ठतम पुस्तक ‘सोशल कॉन्ट्रेक्ट’ (Social Contract) में किया है। यद्यपि रूसो से पहले भी हॉब्स तथा लॉक इस सिद्धान्त का प्रतिपादन कर चुके थे, किन्तु रूसो ने इसकी व्याख्या नये ढंग से की है। रूसो का मत है कि मनुष्य प्रारम्भ में शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करता रहा किन्तु धीरे-धीरे समाज में अव्यवस्था फैलने लगी थी। तब मनुष्य ने पुनः व्यवस्था स्थापित करने के लिए आपस में एक समझौता किया, जिससे राज्य की उत्पत्ति हुई।

रूसो का सामाजिक समझौता सम्बन्धी विचार- रूसो मानता है कि जब प्राकृतिक अवस्था का स्वर्णिम युग समाप्त हो गया और चारों ओर मत्स्य न्याय की स्थिति बन गई थी, अराजकता की इस स्थिति में मनुष्य आपस में झगड़ने लगे थे। तब मनुष्य ने इस असहनीय स्थिति से बचने के लिये एक समझौता करने की सोची। मनुष्यों ने आपस में एक ऐसे समाज की स्थापना करने पर विचार किया, जिसमें उनका जीवन तथा सम्पत्ति पूर्ण सुरक्षित रहे और वे स्वतन्त्रतापूर्वक जीवनयापन कर सके। इसके लिए उन्होंने सामाजिक समझौता किया। किन्तु रूसो द्वारा प्रतिपादित सामाजिक समझौते की प्रकृति हॉब्स तथा लॉक द्वारा प्रतिपादित समझौते से भिन्न हैं।

रूसो ने एक ही सामाजिक समझौता करवाया था जिसकी शर्तें विभिन्न काल में बदलती नहीं थी और भिन्न नहीं हो सकती थी। रूसो के अनुसार इस समझौते को प्रत्येक व्यक्ति ने इन शब्दों के साथ सम्बन्ध किया—“इसमें से प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर तथा अपनी सम्पूर्ण शक्ति को सबके साथ सामान्य रूप से सामान्य इच्छा के निदर्शन में रखते हैं और अपने सामूहिक स्वरूप में हम प्रत्येक सदस्य को सम्पूर्ण के एक अविभाज्य अंग के रूप में स्वीकार करते हैं।” दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि मनुष्य में इस समझौते के द्वारा उस समय के प्रत्येक व्यक्ति ने अपने व्यक्तित्व और सम्पूर्ण शक्तियों को एक ही राशि में समर्पित कर दिया और इस प्रकार स्वयं सम्पूर्ण का अविभाज्य अंश बन गया।

इस समझौत को बीजगणित द्वारा इस प्रकार समझाया जा सकता है। यह समझौता इस प्रकार होना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति समाज को अपने सारे अधिकार सौंप दे। इसका तात्पर्य हुआ कि क, ख, ग, घ अपना सब कुछ एक संस्था को सौंप दें और वह संस्था क ख ग घ को मिलाकर बनी हो, इस प्रकार ‘क’ अपना सर्वस्व क ख ग घ के योग को सौंप कर उसकी इकाई ‘क’ के रूप में अपने पास वापस रख लेता है। इस तरह ‘क’ जो कुछ भी व्यक्ति के रूप में खोता है, उसे समाज का अंग होने के कारण वापस प्राप्त कर लेता है। केवल इतना ही नहीं इस प्रकार के एक समाज के निर्माण से ‘क’ को अपनी व्यक्तित्व सुरक्षा के लिये चिन्तित नहीं होना पड़ता है। इसके लिये तो समाज उत्तरदायी हो जाता है। इस तरह ‘क’ का समाज के साथ योगदान उसकी स्वतन्त्रता को जीवित रखता है। इस तरह व्यक्ति पुनः सुखी हो जाता है। इस तरह सामाजिक समझौते से निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-

(1) इस समझौते में हर एक मनुष्य को अपने अधिकार तथा शक्तियाँ समाज को देनी पड़ती है। इस समझौते में हस्तान्तरण की शर्त सिर्फ समानता है। इस समझौते में सब व्यक्ति समान रूप से अपने अधिकार सौंपते हैं।

(2) रूसो के अनुसार मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में सुखी और आनन्दपूर्ण था। सम्पत्ति और कृषि के मलिन प्रादुर्भाव से प्राकृतिक अवस्था का, स्वच्छन्द निर्द्वन्द्र, निर्मल वातावरण कलुषित हो गया। मनुष्य में मेरे और तेरे की भावना पैदा हो गई इससे स्वतन्त्रता समाप्त हो गई। स्वतन्त्रता के अभाव का महत्त्व प्रकट होने पर उन्होंने एक समझौता किया, जिसे सामाजिक समझौता कहते हैं।

(3) व्यक्ति को समर्पण से लाभ है क्योंकि वह समाज की शक्ति प्राप्त कर लेता है और उससे उसकी धन और जन की रक्षा होती है। इस तरह राज्य की स्थापना से व्यक्ति की स्वतन्त्रता बँधती नहीं बल्कि उसकी सुरक्षा होती है।

(4) मनुष्य इस समझौते के द्वारा अपनी स्वतन्त्रता को समाज को सौंपता है, इस तरह वह समाज का सदस्य बन जाता है।

(5) हॉब्स की भाँति रूसो के समझौते में व्यक्ति अपनी शक्तियाँ किसी निरंकुश और अनुत्तरदायी सम्प्रभु को नहीं सौंपता है, वह तो पूरे समाज को सौंपता है। अतः सम्प्रभु पूरा का पूरा समाज होता है जिसका अविभाज्य अंग सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं होता है।

(6) व्यक्तियों द्वारा सामान्य इच्छा को अधिकार देने से वह सम्प्रभु हो जाती हैं।

(7) रूसो राज्य को सावयव मानता है।

(8) यह समझौता क्रमबद्ध होकर निरन्तर चलने वाला क्रम है।

रूसो के सामाजिक समझौते की आलोचना

1. रूसो का प्राकृतिक अवस्था का चित्रण वास्तविक नहीं- रूसो ने मनुष्यों को प्राकृतिक अवस्था में नैतिक, प्रेमी, सद्भावनापूर्ण और गुणों से सम्पन्न माना है किन्तु ऐसा वास्तव में मनुष्य नहीं होता है, उसमें गुण और दोष दोनों का समन्वय रहता है।

2. रूसो का समझौता अस्पष्ट है- रूसो ने यह कहीं नहीं बताया कि उसका समझौता ऐतिहासिक घटना है अथवा काल्पनिक घटना। वह कहीं इसे ऐतिहासिक घटना और कहीं निरन्तर चलने वाला क्रम कहता है।

3. राज्य का जन्म मानव विकास से हुआ है- रूसो यह मानता था कि राज्य का जन्म मनुष्यों के समझौते से हुआ है। किन्तु राज्य का जन्म मानव विकास से हुआ है।

4. प्राकृतिक अवस्था की कल्पना न ऐतिहासिक है और न तार्किक – रूसो ने सामाजिक समझौते के पहले मनुष्य की जिस प्राकृतिक अवस्था का चित्रण किया है वह न तो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सत्य है और न तार्किक दृष्टि से।

5. रूसो की सामान्य इच्छा द्वारा राज्य निरंकुश है- रूसो मनुष्य को सुखी, प्रेमपूर्ण और आनन्दपूर्वक जीवित रहने के हेतु सामाजिक समझौते का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। किन्तु इस समझौते द्वारा राज्य निरंकुश है। मानव को हर समय उसकी आज्ञा का पालन करना पड़ेगा, वह उचित नहीं है।

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