फ्रेडरिक टेलर का वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत
वैज्ञानिक प्रबन्ध उपागमः फ्रेडरिक टेलर संगठन के अध्ययन सम्बन्धी शास्त्रीय उपागमों की दृष्टि से दो प्रतिमानों-वैज्ञानिक प्रबन्ध उपागम तथा नौकरशाही उपागम का विश्लेषण अति महत्वपूर्ण है।
19वीं एवं 20वीं शताब्दी की महान क्रान्तियों में ‘प्रबन्ध क्रान्ति’ एक है। इस प्रबन्ध क्रान्ति का समारम्भ संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ और उसे निर्णायक फ्रेडरिक टेलर ने दिया। यह एक विशिष्ट प्रगतिशील आन्दोलन रहा है जिसने लोक प्रशासन को अनेक प्रविधियां तथा एक दर्शन प्रदान किया। इसने प्रत्यक्षवादी भावना के अनुसार वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य एवं पद्धतियों को औद्योगिक प्रबन्ध एवं लोक प्रशासन के क्षेत्रों तक विस्तृत किया। काम्ट के समान ही टेलरवाद प्रबन्ध एवं उत्पादन के क्षेत्रों में कल्पना, रूढ़िवाद और परम्पराओं के स्थान पर मापन, विधि का शासन, अधिकतम उत्पादन, आदि को संस्थापित करके प्रत्यक्षवाद को आगे बढ़ाता है।
18वीं एवं 19वीं शताब्दियों में मशीनों द्वारा मानव श्रम एवं हस्तशिल्प को हटाए जाने की प्रक्रिया को औद्योगीकरण कहा जाता है, किन्तु औद्योगिक प्रबन्ध के क्षेत्र में टेलर ने स्वयं मानव श्रम को कार्यकुशलता एवं शक्ति की चरम सीमा तक पहुंचाकर युगान्तर उपस्थित कर दिया।
औद्योगिक इन्जीनियरी जिसका कारखाना प्रबन्ध एक भाग है, का लक्ष्य एक निर्दिष्ट वस्तु को बनाने के साथ-साथ उसे वांछित स्तर एवं विशेषताओं से युक्त करके निम्नतम मूल्यों पर उसका उत्पादन करना होता है। इस विषय में टेलर का सर्वप्रथम योगदान ‘कारखाना प्रबन्ध’ पर था। उसका दूसरा प्रायोगिक योगदान ‘धातु काटने की कला’ पर लिखा गया निबन्ध था जिसको उसने सन् 1906 में अमरीकन सोसाइटी ऑफ मैकेनिकल इन्जीनियर्स की सभा में अध्यक्षीय भाषण के रूप में पढ़ा। उसमें सृष्टि के आदिमकाल से चली आ रही कला को कार्यकुशलता एवं वैज्ञानिकता की चरम सीमा तक पहुंचा दिया गया था। इस निबन्ध में डॉ. टेलर ने औद्योगिक प्रबन्ध के नवीन विज्ञान की नींव डाली। उसमें टेलर ने, जिस प्रकार उस इन्जीनियर को, जो सर्वोत्तम कार्य न्यूनतम कीमत पर करता है, सर्वश्रेष्ठ माना है, उसी प्रकार उसकी मान्यता है कि औद्योगिक परिचालन में वह प्रबन्ध सर्वोत्तम है जो अपने नियन्त्रण के साधनों को इस तरह संगठित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति सर्वोत्तम कार्यकुशलता के साथ कार्य करेगा और उसे उसी के अनुसार वेतन दिया जाएगा। इसके लिए टेलर ने सुझाया है कि कार्य के नियोजन को उसके कार्यान्वयन से पृथक रखना आवश्यक है। नियोजन कार्य के लिए मानसिक क्षमताओं से युक्त प्रशिक्षित विशेषज्ञों तथा कार्यान्वयन के लिए शारीरिक दृष्टि से सशक्त व्यक्तियों तथा समुचित मार्ग-निदेशकों की आवश्यकता होती है।
टेलर ने प्रबन्ध विज्ञान को 30 वर्षों लम्बी अवधि में विकसित किया था। वैज्ञानिक प्रबन्ध में सर्वप्रथम, पुराने प्रबन्ध में पाए जाने वाले सभी प्रविधियों, उपकरणों, आदि का अन्वेषण किया जाता है। यदि उपयोगी हुआ तो स्वयं श्रमिकों के परामर्श एवं सहयोग से उन्हें सुधार एवं विकसित किया जाता है। बाद में उनकी समय गति का अध्ययन किया जाता है और देखा जाता है कि किन बिन्दुओं पर श्रमिक का कार्य सरल बनाया तथा उसकी गति को तेज किया जा सकता है। इस प्रकार विभिन्न श्रमिकों द्वारा विविध प्रकार के प्रयोग किए जाने पर उस प्रविधि का समय, गति, उपयोग, उत्पादन, उत्पादन, आदि मानकीकृत कर दिया जाता है और उसे समान रूप से लागू कर दिया जाता है। वास्तव में कार्य प्रबन्ध में ‘कार्यकुशलता’ को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। संक्षेप में, टेलरवादी प्रबन्ध विज्ञान के निम्न आधार स्तम्भ है-
1. एक सच्चे प्रबन्ध (मैनेजमेण्ट) एवं कार्य (टास्क) विज्ञान का विकास, 2. कार्यकर्ता का वैज्ञानिक आधार पर चयन; 3. उसका वैज्ञानिक शिक्षण; 4. प्रबन्ध एवं श्रमिक के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग ।
टेलर के अनुसार, सार रूप में वैज्ञानिक प्रबन्धवाद ‘एक पूर्ण मानसिक क्रान्ति’ है जिसमें श्रमिक अपने कार्य, अपने सहयोगियों तथा अपने नियोजकों के प्रति तत्परतापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। इसी तरह प्रबन्धक–फोरमैन, अधीक्षक, मालिक, निर्देशक मण्डल, आदि-अपने सहयोगियों तथा अपने नियोजकों के प्रति अपने दायित्वों को सम्पूर्ण क्षमता के साथ वहन करते हैं।
टेलर ने कहा कि प्रबन्ध को जानना जरूरी है। प्रबन्ध एक विज्ञान है जो निश्चित कानूनों, नियमों व सिद्धान्तों पर आधारित है। उन्होंने तर्क दिया कि प्रबन्ध में ऐसे अनेक सिद्धान्त शामिल हैं जो निजी तथा सरकारी दोनों संगठनों पर लागू होते हैं। उनके अनुसार प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य नियुक्तिकर्ता की अधिकतम् समृद्धि के साथ-साथ प्रत्येक कामगार को भी अधिकतम धन प्राप्त कराता है। उनके वैज्ञानिक प्रबन्ध का दर्शन यह है कि नियुक्तिकर्ता, कामगारों तथा उपभोक्ताओं के हितों में कोई अन्तर्निहित टकराव नहीं हो।
टेलर ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि वैज्ञानिक प्रबन्ध के दर्शन को उसकी प्रविधियों का पर्याय नहीं समझा जाना चाहिए। स्पष्टता के लिए इन कतिपय प्रविधियों का विवरण सांकेतिक रूप से दिया जा रहा है।
समय अध्ययन, कार्यात्मक फोरमैनवाद, उपकरणों, साधनों तथा क्रियाओं का मानवीकरण, नियोजन कक्ष या विभाग की आवश्यकता, समय बचत करने वाले उपकरणों का उपयोग, ‘कार्य दशक’ इकाई का ‘बोनस’ सहित विचार, वर्गीकृत तैयार माल योजना, आधुनिक लागत प्रणाली, आदि।
वह उसे व्यापक औद्योगिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन दर्शन के रूप में देखता है, • जिसका उद्देश्य अधिकतम उत्पादन, न्यूनतम व्यय, अधिक वेतन, अधिकतम सहयोग एवं सामंजस्वपूर्ण सम्बन्धों की प्राप्ति है।
टेलरवाद वैज्ञानिक प्रबन्ध को लोक प्रशासन के निकट लाने में भी सफल सिद्ध हुआ है। इससे ‘संगठन के विशुद्ध सिद्धान्त’ को विकसित करने की प्रेरणा मिली। टेलरवाद के परिणामस्वरूप शासन एवं उसकी प्रक्रियाओं के प्रति सर्वत्र नया दृष्टिकोण अपनाया गया। शोध, तथ्य और मापन उसका अमूल्य योगदान है। उसके ‘समय और गति’ सम्बन्धी अध्ययन वैज्ञानिक प्रबन्ध की मुख्य आधारशिला बन गए। सभी दृष्टिकोणों से ठेलर को कार्यरत मानव के अध्ययन में अग्रणी माना जाना चाहिए। वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने अच्छे कार्य निष्पादन की खोज की शुरूआत की। औद्योगिक प्रबन्ध के अध्ययन में परिणामवाचक तकनीकों का प्रयोग करने वाले भी वे प्रथम व्यक्ति थे। आधुनिक वैज्ञानिक प्रबन्ध, अनुसन्धान पद्धति अध्ययन, समय अध्ययन, प्रणाली या व्यवस्था विश्लेण, आदि सभी टेलर की विरासत का हिस्सा है। टेलर के साथियों हेनरी एल, गैण्ट तथा फ्रैंक गिल्थ ने उसके कार्यों को आगे बढ़ाया। गैण्ट ने टेलर की प्रेरणात्मक पद्धति में सुधार किया और ‘कार्य एवं बोनस योजना’ (Task and Bonus Plan) का विकास किया। फ्रैंक गिल्ब्रैथ ने गति अध्ययन में रुचि ली। उन्होंने कार्य पर 18 गतियों (On the Job motions) की पहचान की जिसे वे ‘The Rbligs’ की संज्ञा देते हैं। टेलर ने मूल औद्योगिक क्षेत्र में काम किया था, किन्तु शीघ्र ही उनके विचारों का प्रभाव अन्य क्षेत्रों, सरकारी तथा सैनिक संगठनों तक पहुंचने लगा।
वैज्ञानिक प्रबन्ध दृष्टिकोण की आलोचना की जाती है—प्रथम, वैज्ञानिक प्रबन्ध का सम्बन्ध प्रधानतः यान्त्रिक अर्थों में प्रबन्ध की संगठनात्मक क्षमता से था। इसमें मनुष्य को मशीन का एक भाग माना जाता है, चूंकि मनुष्य मशीन नहीं है। अतः वह एक आपत्तिजनक दृष्टिकोण हैं। द्वितीय, टेलरवाद के द्वारा यह तर्क दिया गया है कि उच्च मजदूरी श्रमिक को कार्य की प्रेरणा देती है। वस्तुतः यह मानव प्रेरणा को गलत समझना है; श्रमिक को क्रियाशील बनाने का अति सरलीकरण कर दिया गया है।
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