राजनीति विज्ञान / Political Science

केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त, उत्तरदायी तत्व, गुण तथा दोष

केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त
केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त

केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त

केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण का सिद्धान्त सत्ता के उपयोग से सम्बद्ध है अर्थात यह सिद्धान्त स्पष्ट करता है कि सत्ता किस सीमा तक केन्द्रित होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के अपने अलग-अलग मत हैं। इस समस्या के सम्बन्ध में चार्ल्सवर्थ ने कहा है, ‘पूर्ण प्रशासकीय नियन्त्रण, निश्चयात्मक एवं एकरूपता स्थापित करने की स्वाभाविक इच्छा तथा प्रशासकीय प्रशासन को स्थानीय सार्वजनिक (जनता की) भावनाओं को ध्यान में रखकर शासन करने की व्यक्तियों (जनता) की माँग में समन्वय स्थापित करना संगठन की एक महत्वपूर्ण समस्या है।’

संक्षेप में केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के अर्थ को इस प्रकार समझा जा सकता है कि यदि प्रत्येक निर्णय केन्द्रयी कार्यालय द्वारा किया जाय तो वह केन्द्रीकरण कहा जायेगा। दूसरी ओर सत्ता क्षेत्रीय अधिकारियों को सौंप दी जाय तो उसे विकेन्द्रीकरण कहा जायेगा। सत्ता के केन्द्रीकरण में प्रशासकीय सत्ता एक स्थान पर केन्द्रीभूत कर दी जाती है। ऐसी व्यवस्था में इकाइयों का कोई अस्तित्व नहीं रहता है। प्रशासन पर पूर्ण अधिकार केन्द्रीय शक्ति का रहता है। शासन सत्ता एक स्थान पर केन्द्रित न होकर पृथक-पृथक इकाइयों में निहित रहती है तो ऐसी व्यवस्था को विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था कहा जायेगा। ये छोटी-छोटी इकाइयाँ शासन का कार्य करती हैं तथा अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायी होती है। आजकल विश्व के सभी देशों में इसी रीति का प्रचलन है क्योंकि प्रशासन का कार्य दिन-प्रति दिन जटिल जा रहा है।

केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के सम्बन्ध में इस बात का उल्लेख कर देना भी आवश्यक है कि इनके मध्य कोई स्पष्ट रेखा नहीं खींचीं जा सकती है। कोई भी शासन पूरी तरह से न तो केन्द्रित हो सकता है और न विकेन्द्रित। यह भेद मुख्यतया मात्रा का ही है। यदि केन्द्रीय कार्यालय में सत्ता का अधिकांश निहित है तो वह व्यवस्था केन्द्रीकरण की है और यदि इसके विपरीत क्षेत्रीय कार्यालय को अपेक्षाकृत अधिक अधिकार प्रदान किए गये हैं तो वह व्यवस्था विकेन्द्रीकरण की होगी।

केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के हेतु उत्तरदायी तत्व

यहाँ यह प्रश्न बरबस उठता है कि वे कौन-से तत्व होते हैं जो प्रशासन को केन्द्रित या विकेन्द्रित बनाते हैं। जेम्स डब्ल्यू० फेसलर ने केन्द्रीकरण औं विकेन्द्रीकरण को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित तत्त्वों का उल्लेख किया है।

( 1 ) उत्तरदायित्व का तत्व- उत्तरदायित्व का तत्व केन्द्रीय को प्रोत्साहित करता है क्योंकि जब विभाग को कोई जिम्मेदारी ओढ़नी हो तो वह साधारणतया निर्णय की शक्ति भी अपने हाथ में रखेगा। निर्णय की शक्ति को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को देकर जिम्मेदारी खुद ओढ़े रहने का अर्थ अपने को खतरे में डालना होगा। यही कारण है कि जहाँ उत्तरदायित्व की भावना अधिक होती है वहाँ केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है।

( 2 ) प्रशासकीय तत्व- प्रशासकीय दृष्टि से विकेन्द्रीकरण को प्रोत्साहन मिलता है। प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने में विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था लाभदायक सिद्ध होती है। ऐसे अभिकरणों को अपनी सत्ता विकेन्द्रित करने में सुगमता रहती है जिनकी नीतियों एवं तकनीकियों में स्थायित्व न आया हो।

( 3 ) कार्यपरक तत्व- अभिकरण द्वारा की जाने वाली सेवा की प्रकृति भी केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण को प्रभावित करती है। एक ऐसा विभाग जिसके कार्यों का प्रकार बहुत प्रकार का है, सत्ता को विकेन्द्रित कर सकता है परन्तु जो विभाग एक ही प्रकृति के कार्य को सम्पन्न करता है, उसे विकेन्द्रीकरण की कोई आवश्यकता नहीं रहती।

(4) बाह्य तत्व- कुछ बाह्य तत्व भी सत्ता के केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण को प्रोत्साहित करते हैं। यदि शासन में जनता का अधिक भाग लिया जाना निश्चित है तो विकेन्द्रीकरण ही उचित है। इस प्रकार राजनैतिक दलों का क्षेत्र विशेष में प्रभाव बढ़ने पर विकेन्द्रीकरण की मांग बढ़ जाती है।

केन्द्रीकरण के गुण

जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि केन्द्रीकरण के अन्तर्गत सत्ता का केन्द्रीकरण एक स्थान पर कर दिया जाता है तथा इकाइयों का कोई महत्व नहीं होता है। प्राचीन काल में शक्ति के केन्द्रीकरण का बोलबाला था। केन्द्रीकरण के मुख्य निम्नलिखित गुण है।

(1) यह व्यवस्था अत्यन्त सुगम है। शक्ति का केन्द्रीकरण एक स्थान पर होता है तथा केन्द्रीय सत्ता का प्रशासन में एकाधिकार रहता है।

(2) इसके अन्तर्गत प्रशासन में एकरूपता बनी रहती है। समस्त शासन केन्द्र से होता है।

(3) यदि केन्द्रीय सत्ता आदर्श मात्र हो तो समस्त प्रशासन सुचारु रूप से चलता है और भ्रष्टाचार की सम्भावना नहीं रहती है।

(4) समस्त निर्देश केन्द्र से दिये जाते हैं। इससे कार्य में देरी नहीं होती है।

(5) कार्यों में परस्पर संघर्ष नहीं हो सकता है, क्योंकि कार्यों का निर्धारण करने वाली केवल एक ही सत्ता होती है।

(6) केन्द्रीकरण की व्यवस्था में अनुशासन बना रहता है। केन्द्रीय सत्ता का आदेश सबको मानना पड़ता है।

(7) सरकार को निर्णय लेने में सुगमता रहती है अतः निर्णय शीघ्र ले लिये जाते हैं। निर्णयकारी सत्ता एक ही होती है। उसे किसी का मुँह नहीं देखना पड़ता है।

(8) केन्द्रीयकरण की व्यवस्था में केन्द्रीय सत्ता अपने उत्तरदायित्वों को ठीक से समझती है और उसका निर्वाह करती है। वह भली-भाँति जानती है कि यदि उसका उत्तरदायित्व ठीक प्रकार से पूर्ण न हुआ तो प्रजा में असन्तोष की भावना जागृत हो जायेगी।

(9) इस व्यवस्था में धन व्यय कम होता है।

प्रोफेसर एम० पी० शर्मा ने केन्द्रीकरण के पक्ष में कुछ तर्क उपस्थित किये है जो निम्न प्रकार है-

(1) केन्द्रीकरण की सम्भावना आज सुगम संचार-साधनों के द्वारा सम्भव हो गई है।

(2) केन्द्रीय निरीक्षण, नियमन एवं नियंत्रण से कार्यकुशलता एवं मितव्ययिता में वृद्धि होती है।

(3) आधुनिक प्रतिरक्षा और आर्थिक योजनाओं की आवश्यकताओं में भी वृद्धि होती है।

(4) केन्द्रीकरण का अर्थ है नागरिक का ध्यानाकर्षण।

केन्द्रीकरण का अर्थ है नागरिक का ध्यानाकर्षण

हमने सत्ता के केन्द्रीकरण के गुणों का उपर्युक्त पंक्तियों में विवेचन किया है परन्तु आज के युग में केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति का महत्व घट गया है और विश्व के सभी प्रगतिशील देशों में शक्ति के विकेन्द्रीकरण पर बल दिया जा रहा है क्योंकि शक्ति के केन्द्रीकरण से अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। शक्ति के केन्द्रीकरण से निम्नलिखित दोष पैदा होते हैं।

विकेन्द्रीकरण के गुण

आजकल के युग में शक्ति के विकेन्द्रीकरण के अभाव में प्रशासन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। आज प्रशासन का क्षेत्र काफी विस्तृत हो चला है। अतः शक्तियों क इकाइयों में निहित होना परम आवश्यक हो गया है। एक केन्द्र बिन्दु से समस्त देश का शासन नहीं हो सकता, अतः आज सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो गया है। विकेन्द्रीकरण वास्तविक रूप में प्रशासन का वह स्वरूप है जिसमें क्षेत्रीय शक्ति को किसी भी विषय में स्वतंत्रतापूर्वक निर्णय लेने का अधिकार होता है। उसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह केन्द्रीय सत्ता से किसी विषय में आज्ञा न मांगे। इसके अन्तर्गत क्षेत्रीय इकाइयों अपने कार्य में स्वतन्त्र होती है।

विकेन्द्रीकरण के निम्नलिखित गुण है-

(1) इससे प्रशासकीय शीर्ष पर पक्षाघात एवं सिरों (extremities) रक्ताकल्पता की आशंका समाप्त हो जाती है। सत्ता-कार्यों तथा उत्तरदायित्वों को वितरित करने के भार से दमों हुई केन्द्रीय सत्ता को राहत मिलने के साथ-साथ इसके क्षेत्रीय एजेन्सियों तथा जनता से सम्पर्क रखने वाली इकाइयाँ मजबूत बनती है।

(2) जो व्यक्ति प्रशासकीय कार्यक्रमों एवं कार्यों से प्रत्यक्षतः प्रभावित होते हैं उन्हें प्रशासन से घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित होने पर अनुकूलन तथा व्यवस्थित होने का अवसर मिलता है।

(3) सत्ता के विपरीत तुरन्त कार्यवाही को प्रोत्साहन मिलता है तथा विलम्ब एवं लालफीताशाही कम हो जाती है।

(4) अधीनस्थ प्रशासकों को अपने साधन तथा आत्मविश्वास को बढ़ाने का अवसर प्राप्त होता है और इस स्थिति में उन्हें अपने स्वयं के निर्णय लेने होते हैं एवं उत्तरदायित्व वहन करने पड़ते हैं।

(5) विकेन्द्रित व्यवस्था में सम्पर्क संगठन एक ही कार्यप्रणाली का अनुमोदन करने के लिए बाध्य नहीं है। संगठन की विभिन्न इकाइयों को अपने प्रयोग की सुविधा होती है। (6) चार्ल्सवर्थ के शब्दों में, ‘विकेन्द्रीकरण में, मात्र प्रशासकीय कुशलता के अतिरिक्त कुछ लाभ भी है। नागरिक के व्यक्तिगत औचित्य की भावना के विकास के पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। अतः इसमें कुछ आत्मिक गुण भी होते हैं।’

विकेन्द्रीकरण के दोष

यद्यपि आधुनिक युग प्रजातंत्र का युग है और शक्ति-विभाजन के सिद्धान्त पर इस युग में बहुत बल दिया जाता है किन्तु इसके कुछ दोष भी है जिनका उल्लेख हम आगे करते है।

(1) प्रशासन का कार्य तमाम प्रशासकीय इकाइयों के हाथों में केन्द्रीभूत होने के कारण प्रशासन में विषमता एवं दुरूहता आ जाती है। प्रशासन कार्य तमाम इकाइयों में विभक्त रहता है, इसे केन्द्र, प्रान्त, ग्राम आदि इससे अनुशासन की एकरूपता जाती रहती है।

(2) विक्रेन्द्रीकरण के फलस्वरूप क्षेत्रीय प्रशासकीय कर्मचारी मनमानी कर सकते हैं क्योंकि उन्हें केन्द्र से आज्ञा नहीं लेनी पड़ती है।

(3) शासन की एकरूपता एक और तरह से नष्ट हो जाती है-पृथक-पृथक क्षेत्रों में प्रशासन का स्वरूप पृथक-पृथक होता है।

(4) केन्द्रीकरण के अन्तर्गत केन्द्रीय शक्ति के हेतु यह आवश्यक हो जाता है कि वह स्थानीय इकाइयों का निरीक्षण करे। उदाहरण के लिये अमेरिका में सैनिक विभाग के कुछ निरीक्षक है उनकी स्वयं इस विषय से सम्बन्धित निरीक्षण कार्य करते हैं। इन निरीक्षकों के कार्यों की तीव्र आलोचना की गई है। उन पर यह आरोप लगाया गया है कि ये लोग केवल कागजी रिकार्ड का निरीक्षण करते है।

(5) इस व्यवस्था में खर्च अधिक होता है। विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था उसी देश में सफलतापूर्वक कार्यान्वित हो सकती है जहाँ शिक्षा का अधिक प्रसार हो चुका हो तथा लोग अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों को भली प्रकार समझते हो और उनके प्रति जागरूक हो। इतना होने पर भी पूर्ण विकेन्द्रीकरण कहीं भी सम्भव नहीं है। केन्द्रीकरण किसी न किसी रूप में अवश्य विद्यमान रहता है। उदाहरण के लिए भारतवर्ष में लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण को अपनाया गया है। प्रशासन के लिए अनेक इकाइयों का निर्माण किया गया है परन्तु संविधान में इस बात की व्यवस्था कर दी गई है कि संकटकालीन परिस्थिति में प्रशासन केन्द्र के हाथों में चला जायेगा। ऐसी दशा में समस्त राज्य की नीति का निर्धारण स्वयं केन्द्रीय सत्ता करती है।

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