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चिन्तन स्तर शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ, गुण, दोष, शिक्षण के लिए सुझाव

चिन्तन स्तर शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा
चिन्तन स्तर शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा

चिन्तन स्तर शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Reflective Level Teaching)

मॉरिस एल. विग्गी के अनुसार, चिंतन स्तर के शिक्षण में, कक्षा में ऐसा वातावरण उत्पन्न किया जाता है, जो अधिक सजीव, उत्तेजित करने वाला, आलोचनात्मक एवं संवेदनशील हो। यह छात्रों के सम्मुख नवीन व मौलिक चिंतन का स्वतन्त्र वातावरण प्रस्तुत करता है। इस प्रकार का शिक्षण बोध स्तर के शिक्षण की अपेक्षा अधिक कार्य उत्पादन को बढ़ावा देता है।”

According to Morris L. Wiggie, “Reflective teaching leads to the development of a classroom atmosphere which is more alive exciting, more critical penetrating, open to fresh and original thinking. Furthermore, the type of enquiry pursued by a reflective class tends to be more rigorous and work providing than pursued in and understanding level learning situation.”

चिन्तन – स्तर के शिक्षण में स्मृति तथा बोध स्तर का शिक्षण सम्मिलित होता है। शिक्षण का सर्वोच्च स्तर चिंतन स्तर होता है। चिंतन स्तर का शिक्षण समस्या केंद्रित होता है। इसमें छात्र को मौलिक चिंतन करना पड़ता है। छात्र को विषय वस्तु के सम्बंध में आलोचनात्मक दृष्टिकोण, सामान्यीकरण व नवीन तथ्यों की खोज करनी होती है।

चिन्तन-स्तर का शिक्षण शिक्षक की योग्यता, अनुभव व कुशलता पर निर्भर करता है। इस प्रकार का शिक्षण छात्रों को स्वतन्त्र रूप से ज्ञान प्रदान करने में सहायक है। इस प्रकार के शिक्षण में छात्रों के समक्ष समस्या प्रस्तुत की जाती है। वे उसके समाधान का प्रयत्न व हल खोजते है। छात्र परम्परागत ढंग से न सोचकर कल्पनात्मक एवं सृजनात्मक ढंग से चिन्तन करता है। इस प्रकार विद्यार्थी गहन तथा गम्भीर चिन्तन द्वारा अपना मौलिक दृष्टिकोण बनाना सीख जाता है तथा इस योग्य बन जाता है कि अपने भावी जीवन में आने वाली प्रत्येक समस्या को कल्पना, चिन्तन एवं तर्क द्वारा सफलतापूर्वक हल कर सकता है।

चिंतन स्तर शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Reflective Level Teaching)

चिंतन स्तर शिक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) यह शिक्षण अधिक विचारयुक्त होता है।

(2) चिंतन स्तर का शिक्षण समस्या-केन्द्रित होता है।

(3) इसमें पाठ्यवस्तु को गहनता व गंभीरता से अध्ययन किया जाता है।

(4) यह छात्रों को अग्रसारित करने व स्वतन्त्र रूप से ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होता है।

(5) छात्रों द्वारा मौलिक चिंतन पर बल दिया जाता है।

(6) सृजनात्मकता सम्बन्धी कार्यों में सहायक होता है।

(7) कार्य-उत्पादन (work-production) को बढ़ावा मिलता है।

(8) चिंतन प्रक्रिया में छात्र तथ्यों के आधार पर सामान्यीकरण करते हैं व नये तथ्यों की खोज करते हैं।

(9) छात्रों को उत्प्रेरित करना शिक्षक का प्रमुख कार्य है।

(10) छात्रों में आत्मविश्वास, निर्भीकता एवं क्रियाशीलता का विकास होता है।

(11) चिन्तन स्तर का शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है।

(12) चिन्तन स्तर का शिक्षण केवल पाठ्यक्रम तथा पाठ्य पुस्तक तक ही सीमित नहीं किया जा सकता।

(13) इस स्तर के शिक्षण में विद्यार्थी में आलोचनात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न किया जाता है।

चिन्तन स्तर हेतु शिक्षण (Teaching for Reflective Level)

चिन्तन स्तर का शिक्षण स्मृति एवं बोध दोनों ही स्तर के शिक्षण से अधिक महत्वपूर्ण है। इस स्तर पर शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है जिसकी दो प्रमुख विशेषताएँ होती हैं पहली है समस्या का उत्पन्न होना तथा दूसरी है उस समस्या का समाधान खोजना। यह समस्या इस प्रकार की होती है जिसे बालक स्वयं खोजता है या अनुभव करता है तथा फिर वह अपने ही चिन्तन तर्क द्वारा उस अनुभूत समस्या का समाधान खोजता है। परावर्तन स्तर का शिक्षण सफल होने पर छात्र में अन्तर्दृष्टि का विकास होता है जिससे बालक मे समस्या समाधान की क्षमता का विकास होता है।

इस स्तर के शिक्षण के तीन प्रमुख तत्व हैं-

(1) चिन्तन (Thinking)

(2) तर्क (Reasoning)

(3) अन्तदृष्टि ( Insight)

किसी समस्या के अनुभव होने पर हम उसके बारे में सोचते हैं अर्थात् चिन्तन करते हैं चिन्तन के द्वारा वह उसके समाधान के लिए अनेक विकल्पों पर विचार करता है इसे तर्क कहते हैं। वह मानसिक क्रिया जिसमें हमें अचानक सूझ द्वारा उसका कोई उत्तम समाधान स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है तो उसे अन्तर्दृष्टि कहते हैं। इन तीनों अन्तर्दृष्टि स्तरों पर ही चिन्तन स्तर का शिक्षण पूर्ण होता है। इस स्तर के शिक्षण के लिए शिक्षण कक्षा में सजीव, उत्तेजक, प्रेरणादायी एवं आलोचनात्मक वातावरण को जन्म देता है जो मौलिक चिन्तन एवं नूतन चिन्तन को प्रोत्साहित करता है। मानव जीवन में हर प्रतिदिन नई-नई परिस्थितियाँ एवं समस्याएँ आती हैं इन समस्याओं को सुलझाने में चिन्तन या विचार ही सहायक होते हैं। शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक में चिन्तन एवं तर्क क्षमता का विकास करना है जिससे वह जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान सरलता पूर्वक कर सके।

चिंतन स्तर पर हंट का शिक्षण प्रतिमान (Hunt’s Model of Teaching at Reflective Level)

मॉरिस पी. हण्ट को चिंतन स्तर के शिक्षण प्रतिमान का जन्मदाता माना जाता है। इस प्रतिमान के निम्न 4 सोपान हैं-:

(1) उद्देश्य (Focus)

(2) संरचना (Syntax)

(3) सामाजिक प्रणाली (Social system)

(4) मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation system)

उपरोक्त सोपानों को निम्न प्रकार समझाया जा सकता है-

(1) उद्देश्य (Focus)- समस्या, समाधान की क्षमता, स्वतन्त्र मौलिक चिंतन, आलोचनात्मक व सृजनात्मक चिंतन का विकास होता है।

(2) संरचना (Syntax) – चिंतन स्तर के शिक्षण की संरचना का स्वरूप समस्या की प्रकृति पर निर्भर करता है। समस्या दो प्रकार की होती हैं-

(i) व्यक्तिगत (ii) सामाजिक

व्यक्तिगत समस्या के लिए दो प्रमुख उपागमों का अनुसरण किया जाता है-

(i) डीवी की समस्यात्मक परिस्थिति (Dewey’s Problematic Situation)

(ii) कुर्ट लीविन की समस्यात्मक परिस्थिति (Kurt Lewin’s Problematic Situation)

(i) डीवी की समस्यात्मक परिस्थिति- डीवी ने व्यक्तिगत समस्या के दो रूप बताए है-

(a) पथ रहित परिस्थिति (No Path Situation)

उद्देश्य प्राप्त करने के मार्ग में बाधा आ जाने से व्यक्ति के मस्तिष्क में तनाव पैदा हो जाता है और उन बाधाओं पर विजय पाने के लिए चिंतन द्वारा समाधान खोजता है।

(b) दो नोंक वाली परिस्थिति (Forked Path Situation)- इस परिस्थिति के दो रूप बताए गए हैं-

परिस्थिति A में दो समान आकर्षित करने वाले लक्ष्य व्यक्ति को तनाव की स्थिति में डालते हैं कि वह उनमें से किस लक्ष्य की ओर आकर्षित हो। कभी-कभी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है कि एक ही लक्ष्य को दो मार्गों से प्राप्त किया जा सकता है। दोनों ही पथ सरल होते हैं। व्यक्ति यह सोचता है कि वह दोनों में से किस पथ का अनुसरण करे।

इस प्रकार तनाव की परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है और समस्यात्मक परिस्थिति उत्पन्न होकर चिंतन को जन्म देती है। चिंतन के द्वारा व्यक्ति किसी एक सरल मार्ग का अनुसरण कर समस्या का समाधान करता है।

(ii) कर्ट लेविन समस्यात्मक परिस्थिति- लेविन के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति का कोई न कोई लक्ष्य अवश्य होता है। उसी से उसका व्यवहार नियंत्रित होता है। व्यक्ति व लक्ष्य की स्थिति तनाव उत्पन्न करती है।

लेविन ने तनाव पथ परिस्थिति (conflicting path-situation) के निम्न रूप बताए हैं-

(3) सामाजिक प्रणाली (Social System) – चिंतन स्तर के शिक्षण में छात्र अधिक क्रियाशील रहता है। कक्षा का वातावरण खुला व स्वतन्त्र रहता है। शिक्षक का स्थान गौण छात्र का स्थान मुख्य रहता है। छात्रों के स्वतः प्रेरणा (self- motivation) का अधिक महत्व होता है।

शिक्षक का कार्य बालक के आकांक्षा स्तर को उठाना है। जिसके लिए शिक्षक निम्न कार्य करता है- विद्यार्थियों के समक्ष समस्या उत्पन्न करता है। शिक्षण के समय वाद-विवाद, सेमिनार एवं संगोष्ठी आदि की व्यवस्था करता है। समस्या का समाधान करने के लिए सभी विद्यार्थी सक्रिय हो जाते हैं।

(4) मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation System) – चिंतन स्तर के लिए निबन्धात्मक परीक्षाएँ अधिक उपयोगी होती हैं। इस स्तर की परीक्षाएँ लेते समय छात्रों की अभिवृत्तियों, अधिगम क्रियाओं में छात्रों की तल्लीनता, आलोचनात्मक व सृजनात्मक क्षमताओं के विकास का मूल्यांकन करना चाहिए।

चिंतन स्तर शिक्षण के गुण (Merits of Reflective Level of Teaching)

चिंतन स्तर शिक्षण के गुण निम्नलिखित हैं-

(1) चिन्तन स्तर नियोजन तथा आयोजन की दृष्टि से भी काफी लचीला और गतिशील होता हैं।

(2) चिन्तन स्तर का शिक्षण सभी विषयों तथा प्रकरणों के शिक्षण अधिगम के लिए प्रस्तुत किया जाता हैं।

(3) चिन्तन स्तर में ज्ञान के भंडार में वृद्धि होती है।

(4) चिन्तन स्तर के अन्तर्गत समस्यात्मक स्थिति में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। अतः समाधान किस प्रकार से करना है, का ज्ञान होता है।

(5) मानव जीवन समस्याओं से भरा हुआ हैं। अतः उन समस्याओं को भलीभाँति निपटाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता हैं।

चिन्तन स्तर के शिक्षण के दोष (Demerits of Reflective Level of Teaching)

चिन्तन स्तर के शिक्षण के दोष निम्नलिखित हैं-

(1) यह केवल उच्च कक्षा के छात्रों के लिए उपयुक्त है।

(2) इस शिक्षण के द्वारा छात्र समस्या समाधान व मौलिक चिंतन ही कर सकेंगें।

(3) इसमें केवल सामूहिक वाद-विवाद की व्यूह रचना को प्रभावशाली माना जाता है।

(4) स्मृति तथा बोध स्तर के शिक्षण की भाँति चिंतन स्तर में किसी निश्चित कार्यक्रम का अनुसरण नहीं किया जाता।

(5) इसे केवल पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु व पाठ्यपुस्तकों तक ही सीमित नहीं किया जा सकता।

(6) छात्र व शिक्षक के निकट संबंध होने के कारण वह अपने शिक्षक की खुलकर आलोचना कर सकते हैं।

चिंतन स्तर के शिक्षण के लिए सुझाव (Suggestions for Reflective Level of Teaching)

हण्ट महोदय ने चिंतन स्तर के शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न सुझाव दिए-

(1) चिंतन स्तर का शिक्षण तभी प्रारम्भ किया जाए, जब छात्र स्मृति व बोध स्तर की परीक्षाओं में सफल हो गए हों।

(2) इस स्तर के शिक्षण में इसके विभिन्न सोपानों का सतर्कता से अनुसरण किया जाए।

(3) शिक्षक को छात्रों का आकांक्षा स्तर ऊँचा उठाने का प्रयास करना चाहिए।

(4) शिक्षक को छात्रों के समक्ष समस्या इस प्रकार प्रस्तुत करनी चाहिए कि वह इसकी अनुभूति कर आवश्यक परिकल्पनाएँ बना सकें।

(5) शिक्षक को छात्रों के सामने एक स्वतन्त्र व खुला वातावरण प्रस्तुत करना चाहिए जिससे वे वाद-विवाद में सक्रिय सहयोग दे सकें।

(6) ऐसी समस्यात्मक परिस्थितियाँ छात्रों के सम्मुख उत्पन्न की जाएँ जिससे उनमें मौलिक व सृजनात्मक चिंतन का विकास हो सकें।

(7) चिन्तन स्तर के शिक्षण में छात्र को स्वयं करने के अधिकाधिक अवसर प्रदान किए जाए।

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