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च्यवन ऋषि का जीवन परिचय | Biography of Chyavan Rishi in Hindi

च्यवन ऋषि का जीवन परिचय
च्यवन ऋषि का जीवन परिचय

च्यवन ऋषि का जीवन परिचय (Biography of Chyavan Rishi in Hindi)- च्यवन प्राचीनकाल के ऋषि रहे हैं, इनका वर्णन ऋग्वेद में भी किया गया है। इन्हें वृद्ध व्यक्ति दर्शाया गया है। वैदिक ग्रंथों में इन्हें ‘दधीची’ कहा गया है। ये कई ग्रंथों के रचयिता थे। अश्विनी कुमारों से इनकी घनिष्ठता थी और उन्हीं की वजह से इन्हें युवाकाल की फिर से प्राप्ति हुई।

महाभारत में वर्णनानुसार च्यवन भृगु ऋषि व पुलोमा के पुत्र थे। जब ये मां के गर्भ में थे, एक दैत्य ने पुलोमा (माता) का हरण कर लिया था। भयाक्रांत पुलोमा का गर्भ मार्ग में ही गिर गया। इस कारण शिशु का नाम च्यवन (गिरा हुआ) हुआ। माना जाता है कि उसके तेज से वह दैत्य वहीं पर जलकर मर गया था।

युवा होने पर च्यवन वेद-वेदांग में दक्ष हो गए और वन में जाकर इनके द्वारा कड़ी तपस्या की गई। समाधि लेने के दौरान इनके शरीर को दीमकों की बांबी ने ढंक लिया था, महज नेत्र भर दिखाई देते थे। इस दौरान जब राजा शर्याति अपने परिवार के साथ आखेट के लिए वहां गए तो इनकी पुत्री सुकन्या ने जिज्ञासावश बिना समझे ही चमकदार नेत्रों में कांटे चुभो दिए। ऋषि के नेत्र फूट गए और इन्होंने श्राप देकर सेना सहित राजा का मल-मूत्र रोक दिया। इस पर राजा शर्याति ऋषि के आगे समर्पित हुए और अपनी बेटी सुकन्या का उनसे पाणिग्रहण कर दिया।

पति-पत्नी की आयु में भारी फासला था। एक बार अश्विनी कुमारों ने सुकन्या का इम्तहान लिया, किंतु वह अपने पतिव्रत धर्म पर दृढ़ रही तो अश्विनी कुमारों ने बूढ़े च्यवन को फिर से युवा बना दिया। मान्यता है कि च्यवन ऋषि को, जो औषधि प्रदान की गई थी, वही अब आयुर्वेद का ‘च्यवनप्राश’ है। इसके पश्चात् ही च्यवन ऋषि ने अश्विनी कुमारों को यज्ञ भाग का हकदार बनाया था। च्यवन की गणना सप्तर्षियों में भी की जाती रही है। च्यवन का नाम आज आयुर्वेद के पर्यायवाची शब्द की गूंज का आभास कराता है।

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