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अनिदेशात्मक परामर्श का अर्थ, विशेषताएँ, मूलभूत अवधारणाएँ, उद्देश्य, सोपान / चरण / पद, लाभ, सीमाएँ

अनिदेशात्मक परामर्श का अर्थ
अनिदेशात्मक परामर्श का अर्थ

अनिदेशात्मक परामर्श का अर्थ (Meaning of Non-Directive Counselling)

अनिदेशात्मक परामर्श को अन्य नामों, जैसे- प्रार्थी केन्द्रित परामर्श (Client-centred Counselling), अनुमत परामर्श (Permissive Counselling) या निर्देशीय परामर्श आदि से भी जाना जाता है। निदेशात्मक परामर्श के विपरीत यह परामर्श प्रार्थी / सेवार्थी केन्द्रित होता है। अनिदेशात्मक परामर्श के अन्तर्गत सेवार्थी को बिना किसी प्रत्यक्ष निर्देश के आत्म-निर्भरता, आत्मानुभूति (Self – Realisation) एवं आत्मसिद्धि (Self-Actualisation) की ओर अग्रसर किया जाता है।

अनिदेशात्मक परामर्श का मुख्य प्रर्वतक कार्ल आर. रोजर्स (Carl R. Rogers) को माना जाता है। उन्होंने परामर्श के इस प्रारूप का उपयोग शैक्षिक, व्यावसायिक, वैवाहिक जैसी अनेक समस्याओं के समाधान के लिए किया। इस प्रकार के परामर्श का यह विश्वास है कि व्यक्ति के भीतर उसकी स्वयं की समस्या के समाधान हेतु पर्याप्त साधन एवं क्षमता उपस्थित रहती है।

कार्ल रोजर्स ने अनिदेशात्मक परामर्श में तीन तथ्यों को स्वीकार किया है, वे इस प्रकार है-

(1) सेवार्थी /प्रार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता केन्द्रित सम्बन्ध ( Client / Counselee-Centred Relation)- अनिदेशात्मक परामर्श सेवार्थी केन्द्रित होता है। इस परामर्श में परामर्शदाता एवं प्रार्थी के सम्बन्धों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा है कि ऐसे परामर्श में परामर्शदाता सेवार्थी की वैयक्तिक स्वायत्तता (Personal Autonomy) का सम्मान करता है एवं उसे अपनी भावनाओं, विचारों आदि को अभिव्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। परामर्शदाता अपने महत्त्व को अनावश्यक रूप से प्रकट नहीं करता, अधिकतर निष्क्रिय रहता है और न ही सेवार्थी को उसकी समस्या समाधान हेतु विशेष समाधान सुझाता है। समस्या समाधान हेतु सेवार्थी को स्वयं निर्णय लेना पड़ता है। सेवार्थी परामर्शदाता के सुझावों का अनुकरण कर सकता है लेकिन वह अपने लिए स्वयं मार्गदर्शक बनता है।

परामर्शदाता ऐसे वातावरण को निर्मित करता है जिससे सेवार्थी स्वयं समस्या का हल कर लेता है। वह सेवार्थी के लिए स्वयं कोई निर्णय नहीं करता बल्कि सेवार्थी में अन्तः दृष्टि / सूझ (Insight) उत्पन्न करता है। योजना बनाना, उसका अनुकरण करना एवं निर्णय लेना ये सारे कार्य सेवार्थी को स्वयं करना होता है और परामर्श की इस प्रक्रिया में वह यह सब करने में समर्थ हो जाता है। सेवार्थी केन्द्रित परामर्श में बौद्धिक पक्षों की अपेक्षा संवेगात्मक पक्षों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

(2) भावना, संवेग आदि को महत्त्व एवं उनकी अभिव्यक्ति में स्वतन्त्रता (Importance to Feeling and Emotion and Freedom to Express them) – अनिदेशात्मक परामर्श की प्रक्रिया में सेवार्थी को अपनी भावनाओं को स्वतन्त्रतापूर्वक अभिव्यक्त करने का अवसर दिया जाता है। इससे सेवार्थी की भावनाओं एवं अभिरुचियों का उचित ज्ञान प्राप्त होता है। इन सही सूचनाओं की प्राप्ति द्वारा समस्या के हल में सहायता मिलती है। इसमें भावों की अभिव्यक्ति को महत्त्व दिया जाता है एवं बौद्धिक पक्ष को गौण माना जाता है।

(3) अनुमत / उचित वातावरण (Permissive Atmosphere) – चूँकि अनिदेशात्मक परामर्श सेवार्थी केन्द्रित होता है इस कारण इसमें सेवार्थी को अपने विचारों एवं भावों को अभिव्यक्त करने की स्वतन्त्रता होती है। व्यावहारिक रूप में यह तभी सम्भव है। जब परामर्शदाता इस प्रकार का वातावरण उत्पन्न करने में सहयोग दे जिससे कि सेवार्थी अपनी बुद्धि का विवेकपूर्ण उपयोग कर सही निर्णय ले सकें एवं स्वयं को भली प्रकार जान सकें। इस परामर्श में परामर्शदाता तटस्थ होकर सेवार्थी की बातों को गौर से सुनता है लेकिन वह कोई निर्णायक नहीं होता।

अनिदेशात्मक परामर्श की विशेषताएँ (Characteristics of Non-Directive Counselling)

अनिदेशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) अनिदेशात्मक परामर्श सेवार्थी केन्द्रित परामर्श (Client-centred Counselling) है।

(2) इस परामर्श के अन्तर्गत सेवार्थी को स्वतन्त्र दृष्टिकोण अपनाने का अवसर प्राप्त होता है और उसको उसी रूप में स्वीकार किया जाता है।

(3) इस परामर्श में सेवार्थी अपनी समस्या का समाधान स्वयं प्राप्त करने हेतु प्रेरित किया। जाता है।

(4) इस परामर्श के अन्तर्गत किसी भी प्रकार के निदानात्मक उपकरण (Diagnostic Tools) या परीक्षण (Tests) का उपयोग नहीं किया जाता। विशेष परिस्थितियों में सेवार्थी की सीमाओं को ज्ञात करने के लिए परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है।

(5) इस परामर्श प्रक्रिया में परामर्श प्राप्तकर्त्ता सक्रिय रहता है।

(6) इस परामर्श का प्रमुख उद्देश्य सेवार्थी के विकास तथा समायोजन की प्रक्रिया में सहायता करना है।

(7) इसमें सेवार्थी का व्यवहार भावनात्मक रूप से अधिक परिपक्व माना जाता है।

(8) इस परामर्श में सम्पूर्ण उत्तरदायित्व सेवार्थी पर ही रहता है।

(9) इस परामर्श की विचारधारा निदेशात्मक परामर्श के बिल्कुल विपरीत है।

(10) इस परामर्श में परामर्शदाता एक सच्चे मित्र के रूप में सेवार्थी में रुचि लेता है।

(11) इस परामर्श में स्वाभाविकता, संवेदनशीलता एवं यथार्थता का होना अति आवश्यक है।

(12) इस परामर्श के द्वारा मनोवैज्ञानिक समायोजन में सुधार होता है एवं मनोवैज्ञानिक तनाव में कमी आती है।

अनिदेशात्मक परामर्श की मूलभूत अवधारणाएँ (Basic Assumptions in Non-Directive Counselling)

अनिदेशात्मक परामर्श की कुछ आधारभूत अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं-

अनिदेशात्मक परामर्श की मूलभूत अवधारणाएँ

अनिदेशात्मक परामर्श की मूलभूत अवधारणाएँ

(1) सेवार्थी / प्रार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता की सत्यनिष्ठा एवं वैयक्तिक स्वायत्तता की स्वीकृति एवं आदर (Acceptance and Respect for the Integrity and Personal Autonomy of Client / Counsellee) –अनिदेशात्मक परामर्श में सेवार्थी की सत्यनिष्ठा एवं उसकी वैयक्तिक स्वायत्तता को स्वीकार किया जाता है एवं पर्याप्त आदर प्रदान किया जाता है। परामर्शदाता सदैव समस्या के सन्दर्भ में बिना कोई निर्णय या निर्देशन दिए सेवार्थी की सहायता के लिए तत्पर रहता है। समस्या के हल के सन्दर्भ में अन्तिम निर्णय सेवार्थी को ही लेना होता है। कहा जा सकता है कि अनिदेशात्मक परामर्श सेवार्थी / प्राप्तकर्ता की समायोजन एवं अनुकूलन की क्षमता को स्वीकार करता है एवं उसकी इस क्षमता में विश्वास प्रकट करता है।

(2) सेवार्थी / प्रार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता के सम्पूर्ण व्यक्तित्व ध्यान का (Concerned with Total Personality of Client / Consellee) – अनिदेशात्मक परामर्श में सेवार्थी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को ध्यान में रखा जाता है। इसीलिए इस प्रकार के परामर्श का उद्देश्य किसी समस्या विशेष का समाधान प्रस्तुत करना न होकर सेवार्थी की समायोजन एवं अनुकूलन की क्षमता का विकास करना है।

(3) सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता के साथ वैचारिक भिन्नता के प्रति सहिष्णुता एवं स्वीकृति (Tolerance and Acceptance of Difference of Opinion with Client) – ऐसा सम्भव है कि सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता, परामर्शदाता के विचारों से सहमत न हों एवं भिन्न विचार रखता हो। यह बहुत ही स्वाभाविक है। अतः वैचारिक भिन्नता के प्रति सहिष्णु होना और इसे स्वीकार करना अनिदेशात्मक परामर्श की अवधारणा है।

(4) सेवार्थी को स्वयं को एवं अपनी शक्तियों को समझने में सक्षम बनाना (Enabling the Client to Develop Awareness about Himself and His Powers) – अनिदेशात्मक परामर्श का उद्देश्य सेवार्थी को अपनी शक्तियों, क्षमताओं परिस्थितियों का निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे सेवार्थी / परामर्श और सम्भावनाओं को जानने एवं समझने में सहयोग देना है। परामर्श की प्राप्तकर्ता में निर्णय लेने की एवं अनुकूलन स्थापित करने की क्षमता का विकास हो।

(5) सेवार्थी की सक्षमता में विश्वास (Belief in Client / Counsellee) – रोजर्स महोदय व्यक्ति / सेवार्थी की क्षमता में विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि व्यक्ति में समस्या का समाधान प्राप्त करने की क्षमता विद्यमान the Capabilities of होती और वह स्वयं अपनी समस्याओं का हल प्राप्त करने में सक्षम होता है। उपरोक्त मूलभूत अवधारणाओं को हम अनिदेशात्मक परामर्श के सिद्धान्तों के रूप में भी स्वीकार करते हैं।

विलियम स्नाइडर (William Snyder) ने जर्नल ऑफ जनरल साइकोलॉजी (Journal of General Psychology) में लिखे एक लेख ‘An Investigation of the Nature of Non- Directive Psychotherapy’ में अनिदेशात्मक परामर्श की निम्नलिखित अवधारणाओं का उल्लेख किया है-

(1) परामर्श प्राप्तकर्ता / सेवार्थी अपने जीवन उद्देश्य का निर्धारण करने में स्वतन्त्र है, परामर्शदाता की राय चाहे जो कुछ भी हो।

(2) अधिक सन्तोष प्राप्त करने के लिए सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता को उद्देश्यों का स्वयं करना होगा।

(3) सेवार्थी परामर्श प्रक्रिया के द्वारा कुछ समय बाद स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने की क्षमता विकसित कर लेगा।

(4) समायोजन की मुख्य बाधा भावनात्मक संघर्ष (Emotional Conflict) है।

अनिदेशात्मक परामर्श के उद्देश्य (Objectives of Non- Directive Counselling)

अनिदेशात्मक परामर्श के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) व्यक्ति के शैक्षिक व्यावसायिक एवं वैवाहिक समस्याओं के सम्बन्ध में परामर्श देना।

(2) छात्र को समस्याओं के व्यक्त करने हेतु पूर्ण वैयक्तिक स्वतन्त्रता प्रदान करना।

(3) समस्या समाधान हेतु छात्र को स्वयं निर्णय लेने हेतु प्रेरित करना।

(4) छात्र को स्वयं समस्या हल करने के लिए प्रेरित करना।

(5) छात्र की भावनाओं एवं अभिरुचियों का ज्ञान प्राप्त करना।

अनिदेशात्मक परामर्श की प्रक्रिया के सोपान / चरण / पद (Steps of Process of Non-Directive Counselling)

अनिदेशात्मक परामर्श की प्रक्रिया में कुछ निश्चित सामान्य सोपानों का अनुसरण किया जाता है, वे सामान्य सोपान हैं-

अनिदेशात्मक परामर्श की प्रक्रिया के सोपान / चरण / पद

अनिदेशात्मक परामर्श की प्रक्रिया के सोपान / चरण / पद

(1) सत्रारम्भ / वार्तालाप (Opening of the Session/Conversation)- यह अनिदेशात्मक परामर्श का प्रथम सोपान है। इस सोपान में परामर्शदाता एवं सेवार्थी परस्पर मिलते हैं और अनेक बैठकों में अनौपचारिक रूप से विभिन्न विषयों पर वार्तालाप या बातचीत करते हैं।

(2) सौहार्द स्थापित करना (To Establish Rapport)- परस्पर बातचीत के द्वारा सौहार्द्र स्थापित करना इस प्रक्रिया का प्रमुख अंग है। सौहार्द्र स्थापित होने पर ही सेवार्थी निःसंकोच अपनी बात परामर्शदाता से साझा करता है। परामर्शदाता द्वारा यही प्रयास किया जाता है कि वह सेवार्थी के साथ एक अच्छे मित्र एवं शुभचिन्तक के रूप में सम्बन्ध स्थापित करे जिससे मित्र चिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया जा सके।

(3) भावों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति (Free Expression of Feelings) – सौहार्द्र स्थापित होने के बाद परामर्शदाता सेवार्थी को इस बात के लिए प्रोत्साहित एवं प्रेरित करता है कि वह अपनी भावनाओं एवं विचारों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करे। इसकी इस स्वतंत्र अभिव्यक्ति को परामर्शदाता ध्यानपूर्वक सुनता है।

(4) सकारात्मक एवं नकारात्मक भावों का वर्गीकरण (Classification of Positive and Negative Feelings) – सेवार्थी द्वारा अभिव्यक्त विचारों एवं भावनाओं का परामर्शदाता गम्भीरतापूर्वक विश्लेषण करता है। विश्लेषण के पश्चात वह सेवार्थी द्वारा अभिव्यक्त विचारों एवं नकारात्मक भावनाओं को पहचान कर इन्हें सकारात्मक एवं नकारात्मक रूप से वर्गीकृत करता है।

(5) अन्तर्दृष्टि का विकास (Development of Insight) – अन्तर्दृष्टि विकसित होने का तात्पर्य है कि सेवार्थी अपनी समस्या के समाधान को प्राप्त करने के स्तर पर पहुँच गया है और अब वह अपनी समझ से अपनी समस्या का हल प्राप्त करने में सक्षम है। परामर्शदाता सेवार्थी को इस प्रकार का वातावरण प्रदान करता है कि उसमें अन्तर्दृष्टि का विकास हो सके एवं वह निर्णय लेने में सक्षम बन सके। समस्या-समाधान हेतु सेवार्थी में सूझ या अन्तर्दृष्टि का विकास होने पर परामर्शदाता सेवार्थी की नवीन भावनाओं एवं विचारों के विषय में चिन्तन करना आरम्भ करता है एवं उनका भी वर्गीकरण करता है।

(6) परामर्श परिस्थिति समाप्त करना (Termination of Counselling Situation) – उपरोक्त सभी सोपानों को पार करने के पश्चात परामर्शदाता उस बिन्दु या परिस्थिति को खोजता है जिस पर पहुँच कर परामर्श प्रक्रिया को समाप्त किया जा सके। जब ऐसा प्रतीत होता है कि समस्या का उपयुक्त हल मिल गया है और परामर्श प्राप्तकर्ता/सेवार्थी/प्रार्थी सन्तुष्ट हो चुका है तब परामर्शदाता या सेवार्थी कोई भी परामर्श की समाप्ति का सुझाव दे सकते हैं।

(7) अनुवर्तन (Follow-Up)- अनिदेशात्मक परामर्श की प्रक्रिया का यह अन्तिम सोपान है। इस सोपान के अन्तर्गत परामर्शदाता समस्या का अनुगमन करता है जिससे कि समस्या पुनः न उत्पन्न हो सके। अनुगमन के द्वारा परामर्शदाता प्रक्रिया की सफलता एवं प्रभावशीलता के विषय में भी जानकारी प्राप्त करता है।

अनिदेशात्मक परामर्श के शैक्षिक निहितार्थ (Educational Implication of Non-Directive Counselling)

अनिदेशात्मक परामर्श के शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित हैं-

(1) अनिदेशात्मक परामर्श छात्र अथवा सेवार्थी केन्द्रित होता है। इसमें उसके बौद्धिक पक्षों की संवेगात्मक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता है।

(2) यह छात्रों के मनोवैज्ञानिक समायोजन में सुधार एवं मनोवैज्ञानिक तनाव में कमी करता है।

(3) यह छात्र के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को सुधारने में सहायता करता है।

(4) अनिदेशात्मक परामर्श छात्र को अध्ययन हेतु प्रेरित करता है।

(5) यह छात्र के शैक्षिक समस्याओं को हल करके उसके विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

(6) यह छात्रों के अन्तर्दृष्टि का विकास करता है।

अनिदेशात्मक परामर्श के लाभ (Advantages of Non- Directive Counselling)

अनिदेशात्मक परामर्श के निम्नलिखित लाभ हैं-

(1) चूँकि अनिदेशात्मक परामर्श सेवार्थी केन्द्रित है इसलिए इसमें सेवार्थी क्रियाशील रहता है।

(2) इस परामर्श के द्वारा सेवार्थी में समस्या-समाधान की योग्यता विकसित करने का प्रयास किया जाता है जिससे सेवार्थी स्वयं समस्या का समाधान प्राप्त करने में सक्षम बनता है।

(3) इस परामर्श के अन्तर्गत प्रार्थी को अपने विचारों एवं भावों को अभिव्यक्त करने का स्वतंत्र अवसर मिलता है। इसलिए वह बिना हिचकिचाहट के अपने विचारों को अभिव्यक्त करता है। इस प्रकार उसके विषय में सटीक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।

(4) परामर्शदाता सेवार्थी को मैत्रीयुक्त मधुर साहचर्य हेतु प्रोत्साहित करता है।

(5) यह परामर्श सेवार्थी को अवचेतन स्तर से निकाल कर चेतन मन के स्तर पर लेकर आता है एवं सेवार्थी को तनाव मुक्त करता है।

(6) इस प्रकार का परामर्श सेवार्थी पर दीर्घकालीन प्रभाव डालता है। सेवार्थी परामर्श प्रक्रिया के बाद परिस्थितियों से निपटने सक्षम बनता है।

(7) जब सेवार्थी में परामर्श के फलस्वरूप अन्तर्दृष्टि / सूझ उत्पन्न हो जाती है तब उसमें अपना बुरा-भला सोचने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है। अब वह अपनी रुचि, योग्यता एवं क्षमता के अनुसार विषय / व्यवसाय / रोजगार का चयन कर सकता है तथा अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है।

अनिदेशात्मक परामर्श की सीमाएँ (Limitations of Non- Directive Counselling)

अनिदेशात्मक परामर्श की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-

(1) इस परामर्श में समय अधिक लगता है इसलिए इसका प्रयोग विद्यालयों एवं महाविद्यालयों आदि में नहीं किया जा सकता है।

(2) इसमें परामर्शदाता अधिकतर निष्क्रिय रहता है।

(3) सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान केवल बोलकर मौखिक रूप से सम्भव नहीं होता है।

(4) इस परामर्श में सेवार्थी के निर्णयों, साधनों एवं बुद्धिमत्ता पर निर्भर होना पड़ता है जो कि उचित नहीं है क्योंकि प्रत्येक सेवार्थी से यह आशा करना कि परामर्श के पश्चात सभी पूर्णतः समाधान हेतु सक्षम बन जाएंगे, उचित नहीं है।

(5) इस परामर्श की प्रक्रिया में सेवार्थी/परामर्श प्राप्तकर्ता परामर्शदाता के पास स्वयं आता है।

(6) सेवार्थी केन्द्रित परामर्श की मुख्य कमी यह हैं कि इसमें इस बात की ओर ध्यान नही दिया जाता कि परिवेश एवं उद्दीपक स्थिति की प्रकृति व्यवहार को किस प्रकार प्रभावित करती है।

(7) इस परामर्श में ऐसा माना जाता है कि परामर्श के पश्चात सेवार्थी अपनी आने वाली समस्याओं को सुलझाने में सक्षम होगा लेकिन व्यवहार रूप में ऐसा सम्भव नहीं होता है।

(8) प्रत्येक सेवार्थी में समस्या समाधान हेतु अन्तर्दृष्टि / सूझ उत्पन्न हो जाए ऐसा भी कम सम्भव हो पाता है।

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