जापान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक की व्याख्या कीजिए।
जापान की जलवायु इसकी समशीतोष्ण स्थिति के बावजूद मानसूनी प्रभाव कारण एक अनूठा रूप प्रकट करती है। यहाँ ग्रीष्म एवं शीतकाल में विविध वायु राशियों का प्रभाव महत्वपूर्ण नियंत्रक बन जाता है जिसके फलस्वरूप यहाँ की जलवायु विशिष्ट रूप ग्रहण कर लेती है। जापान की जलवायु को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
1. जापान का विखण्डित द्वीपीय आकार- जापान की जलवायु पर जापान के द्वीपीय स्वभाव का प्रभाव अधिक पड़ता है। ये द्वीप न तो शीतऋतु से अधिक शीतल और न ग्रीष्मऋतु से अधिक उष्ण होते हैं। यद्यपि जापान सागर का विस्तार कम है फिर भी यह जापान की जलवायु को प्रभावित करता है।
2. धाराओं का प्रभाव- जापान की जलवायु पर क्यूरोशियो की गर्म तथा ओयाशियो की शीतल समुद्री धाराओं का गहरा प्रभाव पड़ता है। क्यूरोशियो धारा दक्षिण के गर्म जल को बहाकर प्रशान्त तट के सहारे ले जाती है। इस धारा का जल प्रवाह जिन-जिन स्थानों से होता है। वहाँ का तापक्रम बढ़ जाता है। जापान सागरीय तल इस धारा से कम प्रभावित होता है क्योंकि जापान सागर की ओर क्यूरोशियो की धारा अत्यन्त क्षीण होती है। इसके अतिरिक्त औयाशियों की ठण्डी धारा उत्तर से दक्षिण प्रवाहित होती है जो होकैडो और टोहोकू के पूर्वी तटों को अत्यन्त शीतल बना देती है। जिस स्थान पर ये दोनों धारायें एक-दूसरे से मिलती हैं वहाँ घना कुहरा पड़ता है।
3. उच्चावच का प्रभाव- जापान में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की उच्चावच की आकृति जापान सागर तटीय प्रदेश को महाद्वीपीय प्रभाव से वंचित रखती है। ग्रीष्मऋतु में जापान सागर का तटीय प्रदेश प्रशान्त तटीय प्रदेशों की तुलना में शुष्क रहता है। क्योंकि जापान सागर का तटीय प्रदेश दक्षिणी-पूर्वी हवाओं के वृष्टि छाया प्रदेश में पड़ता है। होकैडो में उच्च पर्वतीय अवरोध न होने के कारण समुद्री प्रभाव नगण्य होता है। प्रशान्त तटीय भाग दक्षिणी-पूर्वी हवाओं द्वारा ग्रीष्मऋतु में अपेक्षाकृत उष्ण एवं नम तथा शीतऋतु में उत्तरी-पश्चिमी हवाओं की वृष्टि छाया प्रदेश में पड़ता है। फरवरी में 6° से.ग्रे. की समताप रेखा क्यूशू से टोकियो तक प्रशान्त तट से होकर गुजरती है।
4. अक्षांशीय प्रभाव- जापान का देशांतरीय विस्तार कम और अक्षांशीय वि अधिक है। अतः दक्षिण से ज्यों-जयों उत्तर जाते हैं त्यों-त्यों तापमान गिरता जाता है। दक्षिणी भाग में स्थित कागोशिम का शीतकालीन तापमान 7° से.ग्रे. पाया जाता हैं जबकि उत्तर में होकैडो के सत्पोरो का तापमान 6° से.ग्रे. पाया जाता है। इसी भँति कागोशिमा का ग्रीष्मकालीन (अगस्त माह) तापमान 27° से.ग्रे. और सत्पोरो का तापमान 21° से.ग्रे. पाया जाता है।
5. समुद्री प्रवाह- जापान चारों ओर समुद्र से घिरा है। पश्चिम में जापान सागर और पूर्व में प्रशान्त महासागर के कारण जापान की जलवायु अत्यधिक प्रभावित होती है। शीतकालीन उत्तरी पश्चिमी साइबेरियाई हवायें यद्यपि शीतल होती है। परन्तु जब ये जापान सागर को पार करती हैं तो जापान की मध्यवर्ती पर्वतमाला से टकराकर पश्चिमी तट पर वर्षा करती हैं। इसी भति दक्षिणी पूर्वी हवाओं के द्वारा प्रशान्त तअ पर वर्षा होती है।
6. टाइफून (Typhoons)- ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात है जो प्रायः ग्रीष्मऋतु में चल हैं। ये मौसम में एकाएक परिवर्तन लाते हैं। इनकी संख्या जुलाई से नवम्बर के मध्य औसतन 20 होती है। एक वर्ष 1958 में 31 और 1960 में 15 टाइफून आये थे। अतः यह स्पष्ट है कि प्रत्येक वर्ष इनकी संख्या में परिवर्तन होता रहता है। सितम्बर 1964 का विल्डा (Wilda) टाइफून प्रसिद्ध है जिसके मध्य में वायुदाब 970 मिलीबार तक पहुँच गया था। इस टाइफून प्रसिद्ध में चलने वाली हवायें 170 नाट से अधिक तीव्र थीं। ये जापान की जलवायु को बहुत अधिक प्रभावित करते है।
ऐसे टाइफूनों की उत्पत्ति मार्शल, मोरियाना और कौरोलिन द्वीपों के निकट जापान के दक्षिण-पूर्व में होती है। जहाँ पर समुद्र के तल का तापमान 28′ से0ग्रे0 से अधिक पाया जाता है। यहाँ पर विषुवत रेखीय उष्ण हवायें, उष्ण कटिबंधीय समुद्री (Tm) तथा ध्रुवीय महाद्वीपीय (Pc ) हवाओं से मिलती है। इस प्रकार यहाँ त्रिकोणात्मक वाताग्र बनता है। अन्तर उष्ण कटिबन्धीय ताताग्र मध्य भारत से फिलीपीन द्वीप समूह के पास मिलकर मध्य जापान होते हुए कोरिया के दक्षिण तक विस्तृत होता है। ये टाइफून सर्वप्रथम पूर्व से पश्चिम दिशा में बाद में उत्तर-पूर्व में जापान की ओर मुड़ जाते है। इनकी गति तीव्र होने तथा ज्वारीय लहरों एवं तीव्र वर्षा के कारण दक्षिणी-पश्चिमी जापान में अपार क्षति होती हैं इस समय धान की फसल को प्रत्येक वर्ष नुकसान होता है। क्योंकि यह उसके पकने का समय होता है। संक्षेप में जापान में वर्षा, सूखा तुषार और बाढ़ की सम्मिलित क्षति से भी अधिक क्षति टाइफूनों द्वारा होती है।
26 सितम्बर 1959 में नगोया का जार्जिया नाम टाइफून विनाशलीला के लिए सर्वाधिक चर्चित है। इसका व्यापक प्रभाव आइस खाड़ी से तासान होते हुए जापान सागर तट तक पड़ा था जिसके प्रभाव से आइस खाड़ी में ज्वारीय लहरों की अधिक ऊँचाई के कारण नोवी मैदान की किसी नदी में भयंकर बाढ़ आ गई थी। लहरों की वापसी के पश्चात् तटवर्ती भाग में लोगों और अधिवासों का सर्वनाश हुआ थां इस विनाश लीला में 35,000 मकान बह गये और 5,000 व्यक्ति काल कवलित हो गये थे। जल प्लावित स्थानों से जले को उतरने में 6 सप्ताह लग गये थे।