मिथ्या बंदीकरण या मिथ्या कारावास की परिभाषा दीजिये। मिथ्या बंदीकरण के आवश्यक तत्व क्या है?
मिथ्या बंदीकरण या मिथ्या कारावास– किसी व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर बिना किसी औचित्य के अबधिक रोक लगाना मिथ्या बंदीकरण है। इस सन्दर्भ में क्षतिपूर्ति की कार्यवाही का विशेष महत्व है। यह उल्लेखनीय है कि रतनलाल धीरजलाल के मुकदमे में न्यायालय द्वारा ‘मिथ्या-बन्दीकरण’ की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि “मिथ्या-बन्दीकरण एक ऐसा टाल विषयक कृत्य है जिसके आधार पर किसी स्वतन्त्र व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर पूर्णरूप से रुकावट डाली जाय तथा इस प्रकार की रुकावट को डालने के लिए सम्बन्धित व्यक्ति अथवा प्राधिकारी को कोई विधिक औचित्य न प्राप्त हो। अतः इस आधार पर यह विदित होगा कि मिथ्या बन्दीकरण से सम्बन्धित मूल तत्व यही है कि किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर बलपूर्वक इस प्रकार से पूर्ण रुकावट अथवा बाधा उत्पन्न कर दी जाय जिसके लिये कानून कोई इजाजत न देता हो।’
मिथ्या बन्दीकरण के तत्व
विधि के अन्तर्गत मिथ्या बन्दीकरण के प्रसंग में अनिवार्य रूप से मुख्यतया निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है-
(1) किसी व्यक्ति की स्वतन्त्रता में रुकावट- मिथ्या बन्दीकरण से सम्बन्धित रुकावट वास्तविक भी हो सकती है। उदाहरण-स्वरूप, यदि किसी व्यक्ति के द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति पर हाथ रख दिया गया हो जिससे कि स्वतन्त्रता की रुकावट हो गयी है रुकावट का एक अन्य रूप सृजनात्मक भी हो सकता है। उदाहरणस्वरूप अपने अधिकार का प्रदर्शन करना। विधि के इस सन्दर्भ में ग्रेनर बनाम हिल का वाद प्रसिद्ध है।
(2) स्वतन्त्रता की गैर कानूनी रुकावट- बर्ड बनाम जोन्स नामक प्रसिद्ध मुकदमे में न्यायालय द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि मिथ्या बन्दीकरण का वास्तविक तात्पर्य किसी व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर बिना किसी औचित्य के पूर्ण रूप से रुकावट पैदा करने से होता है, भले ही वह इस प्रकार की रुकावट कितने ही अल्प समय के लिए क्यों न की गयी हो, यह उल्लेखनीय है कि यदि कोई एक व्यक्ति किसी एक अन्य व्यक्ति को किसी राजमार्ग पर एक विशेष दिशा में ही उसकी इच्छा के विरुद्ध यात्रा करने को मजबूर करे तो उसकी यह कार्यवाही उस व्यक्ति के प्रति मिथ्या बन्दीकरण की श्रेणी के अन्तर्गत माना जायेगा। किन्तु यदि कोई एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को केवल एक ओर जाने के ही, उसकी इच्छा के विरुद्ध, रोके तब वह केवल आंशिक बन्दीकरण (partial Imprisonment) कहा जायेगा और यह आंशिक-बन्दीकरण ‘मिथ्या बन्दीकरण’ के अन्तर्गत नहीं माना जायेगा। ऐसा इस कारण है क्योंकि ‘मिथ्या बन्दीकरण’ के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति पर उसकी स्वतन्त्रता पर पूर्ण’ रुकावट डाली गई हो, जैसा कि वर्ड बनाम जोन्स में न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया।
(3) पूर्ण स्वतन्त्रता की रुकावट से सम्बन्धित प्रमाण- मिथ्या बन्दीकरण के किसी भी वाद में, ‘वादी’ को यह स्वय सिद्ध करना आवश्यक होगा कि प्रतिवादी द्वारा उसकी स्वतन्त्रता पर पूर्ण रूप से अवरोध लगाया गया है। यदि वादी यह सिद्ध करने में असफल रहता है कि उसकी स्वतन्त्रता पर पूर्ण रुकावट डाला गया था तो बन्दीकरण आंशिक रूप से माना जायेगा जिसके लिए कोई मामला अभियोज्य नहीं होगा। यह उल्लेखनीय है कि स्वतन्त्रता पर पूर्णरूपेण रुकावट पैदा करने का वास्तविक तात्पर्य यह है कि व्यक्ति चारों दिशाओं से दीवारों से घिरा है जिससे कि वह बाहर न जा सके। अन्य शब्दों में यदि प्रतिवादी द्वारा वादी को केवल किसी खास दिशा में जाने से रोक दिया जाता है तो यह बन्दीकरण की परिभाषा के अन्तर्गत नहीं माना जायेगा।
(4) शारीरिक रुकावट का प्रमाण- मिथ्या-बन्दीकरण के प्रसंग में वादी को यह सिद्ध करना आवश्यक होता है कि प्रतिवादी द्वारा वास्तविक रूप से शारीरिक रुकावट डाली गयी। कुछ मामले ऐसे हो सकते हैं कि जबकि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अनधिकृत रूप से केवल गिरफ्तार करने की धमकी देता है अथवा यह घोषणा करता है कि वह उसे गिरफ्तार कर लेगा। चूँकि यह अपने अधिकार का प्रदर्शन करना मात्र है, जिसके फलस्वरूप दूसरा व्यक्ति झुक जाता है, यह मिथ्या बन्दीकरण का मामला नहीं समझा जा सकता है, इस सम्बन्ध में मिरिंग बनाम ग्राहम व्याइट एवियेशन कम्पनी लिमिटेड का मुकदमा सन्दर्भ योग्य है। उक्त मुकदमे में एक कम्पनी के दो अधिकारियों द्वारा वादी को चोरी के शक में कम्पनी के आफिस में चलने के लिए कहा गया, जहाँ उसे अनधिकृत बन्दीकरण में रखा गया। न्यायालय द्वारा यह निर्णय लिया गया कि चूँकि वादी के प्रति प्रतिवादी कम्पनी का चोरी का शक बेबुनियाद था, वादी को बलपूर्वक कम्पनी के आफिस में रात भर बन्दी रखना मिथ्या बन्दीकरण समझा जायेगा जिसके लिये कम्पनी उत्तरदायी है।
(5) न्यायालय के भ्रमपूर्ण आदेशानुसार बन्दीकरण- यदि किसी क्षेत्राधिकार प्राप्त न्यायालय द्वारा भ्रमपूर्ण रूप से किसी व्यक्ति को मिथ्या बन्दीकरण का आदेश अथवा निर्णय अपने विधिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए दे दिया जाता है तो उसके विरुद्ध वादी द्वारा मिथ्या बन्दीकरण का मामला नहीं चलाया जा सकता, भले ही उसका निर्णय अनियमित, भ्रमपूर्ण अथवा क्षेत्राधिकार के बाहर ही क्यों न हो? ऐसा इस कारण है कि क्योंकि न्याय के मान्य सिद्धान्त के अनुसार कोई भी न्यायालय किसी के एजेन्ट अथवा ठेकेदार के रूप में कार्यवाही नहीं करता है अपितु वह अपने न्यायिक अधिकार के अन्तर्गत ही केवल कार्य करता है।
(6) एजेन्ट द्वारा मिथ्या बन्दीकरण की कार्यवाही-यदि किसी सरकारी कार्यालय अथवा कम्पनी के किसी कर्मचारी द्वारा केवल किसी सूचना के आधार पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार अथवा मिथ्या बन्दीकरण में रखा जाता है, मानो वह सरकार का अथवा कम्पनी का एजेन्ट हो, तो मिथ्या बन्दीकरण के लिये सरकार अथवा कम्पनी उत्तरदायी न होकर, उक्त कर्मचारी ही उत्तरदायी होगा, किन्तु यदि उक्त कर्मचारी द्वारा इस प्रकार से बन्दीकरण की कार्यवाही अपने स्वामी अथवा उच्च अधिकारी के आदेशानुसार की जाती है तो उस दशा में सरकार अथवा कम्पनी ही मिथ्या बन्दीकरण के लिए उत्तरदायी समझी जायेगी, न कि एजेन्ट के रूप में उक्त कर्मचारी जिसने कि वास्तव में बन्दीकरण की कार्यवाही किया है।
उक्त मामले में विधि के निर्वचन को स्पष्ट करने हेतु आस्टिन बनाम डार्लिंड का महत्त्वपूर्ण वाद सन्दर्भ योग्य होगा। उक्त वाद में प्रतिवादी की पत्नी ने वादी को एक गम्भीर अपराध में पकड़कर पुलिस को दे दिया। प्रतिवादी ने उक्त गम्भीर आरोप भी वादी पर लगाया। तलाशी के बाद मजिस्ट्रेट ने वादी को मुक्त कर दिया। वादी द्वारा प्रतिवादी के विरुद्ध वाद में अपने मिथ्या बन्दीकरण के सम्बन्ध में न्यायालय में दावा दायर किया गया। न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि प्रतिवादी वादी को मजिस्ट्रेट के समक्ष लाने तक के लिये मिथ्या बन्दीकरण का उत्तरदायी था क्योंकि उसने तथ्यात्मक दुर्भावना (Malice in fact) अनुसरण में वादी को अकारण ही बन्दी बनवाते हुए उसकी स्वतन्त्रता पर पूर्ण रोक लगाने की सफल कार्यवाही की थी।
(7) अन्य व्यक्ति की अधिकार सीमा में सहमतिपूर्ण प्रवेश-टार्ट्स विधि के अन्तर्गत जब कोई एक व्यक्ति सहमति-पूर्ण रूप से किसी अन्य व्यक्ति के अधिकार सीमा में जैसे किया जाता मकान आदि में प्रवेश करता है तो वह वहाँ से कतिपय शर्तों के अनुसार बाहर नहीं जा पाता है अथवा विशेष सुविधायें उसे नहीं हो पाती हैं तो ऐसी परिस्थिति में मिथ्या बन्दीकरण का मामला न्यायालय में अभियोज्य नहीं हो सकता है, जैसा कि हड बनाम वियरडेल स्टील कोक एण्ड कोल कम्पनी से विदित होगा। उक्त वाद में वादी सेवायोजन की शर्तों के अन्तर्गत एक खान के अन्दर काम करने गया था। किन्तु उसने नियत समय से पूर्व अपना कार्य बन्द कर दिया तथा वह खान के बाहर जाने की इच्छा प्रकट करने लगा क्योंकि उस समय खान के अन्दर खतरनाक कार्य हो रहा था। प्रतिवादी ने उसको नियत समय के पूर्व बाहर जाने देने से इंकार कर दिया। उसको अपनी इच्छा के प्रतिकूल वहाँ रुकना पड़ा। मिथ्या बन्दीकरण के वाद में प्रतिवादी को उत्तरदायी नहीं माना गया क्योंकि प्रतिवादी द्वारा वादी को निर्धारित समय तक खान के अन्दर रोकने का वैध औचित्य था।
मिथ्या कारावास का औचित्य
विधि के अनुसार कतिपय ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जबकि मिथ्या कारावास को उचित मानना ही पड़ता है। यह परिस्थितियाँ निम्न प्रकार हो सकती हैं-
(1) किसी वाद में प्रतिवादी बचाव का यह आधार ले सकता है कि उसने वादी को किसी कानूनी वारन्ट के आधार पर गिरफ्तार किया था। डेनियल बनाम कैफे में वादी को चोरी करते समय पहचान लिया गया था। फलस्वरूप प्राप्त सूचना के आधार पर पुलिस द्वारा उसे बन्दी बना लिया गया। ऐसे मामलों में, वादी को मिथ्या बन्दीकरण का भागी नहीं कहा जा सकता है।
(2) किसी पुलिस अधिकारी द्वारा किसी सन्देहात्मक अपराधी को भी यदि बन्दी बना लिया जाये और बाद में उसे सन्देह की पुष्टि न होने की दशा में छोड़ दिया जाये तो उसका विधिक औचित्य होने के कारण, उसे भी मिथ्या बन्दीकरण नहीं कहा जा सकता।
(3) यदि आत्मरक्षा के लिए अथवा सम्पत्ति की रक्षा के लिये जरूरत भर बल का प्रयोग करते हुए किसी को बन्दी बना लिया गया हो तो सुरक्षा की दृष्टि से की गयी कार्यवाही मिथ्या बन्दीकरण की श्रेणी में सही समझी जायेगी।
(4) यदि किसी व्यक्ति को शान्ति भंग रोकने के लिए कानूनी तौर पर गिरफ्तार कर लिया जाय अथवा दंगे के समय हिरासत में ले लिया जाये तो टिमेथी बनाम सिम्पसन के अनुसार, मिथ्या बन्दीकरण का मामला नहीं समझा जायेगा।
(5) यदि कोई अभियुक्त कानूनी गिरफ्तारी से बचने के लिए प्रयास करते समय किसी भी नागरिक द्वारा कारावास में ले लिया जाता है तो यह मिथ्या बन्दीकरण का मामला नहीं समझा जायेगा।
(6) यदि प्रतिवादी द्वारा शासन के किसी अधिकारी की सहायता के लिये किसी को बन्दी
बना लिया जाता है तो वादी मिथ्या बन्दीकरण का औचित्य के आधार पर वाद न्यायालय में दायर नहीं कर सकता है।
(7) यदि वादी को ऐसी किसी खतरनाक स्थिति में बन्दी बना लिया जाता है जबकि वह अपने लिये अथवा दूसरों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है तो उस दशा में मिथ्या बन्दीकरण का कोई मामला अभियोज्य न होगा।
(8) यदि प्रतिवादी अपने पैतृक अथवा अन्य अधिकरों के अन्तर्गत अतिक्रमण को रोकने के लिए वादी को बन्दी बना लेता है तो वह मिथ्या बन्दीकरण का मामला न होगा।
(9) यदि वालेन्टी नान फिट इन्जूारिया (Volenti Non Fit Injuria) के सिद्धान्त के अनुरूप हिरासत के लिये वादी सहमत हो तो वाद में मिथ्या बन्दीकरण का मामला अभियोज्य
न होगा।
(10) ऐसे किसी मामले में जन अधिकारी अथवा सार्वजनिक अधिकारी होने के फलस्वरूप बन्दीकरण का मामला प्रतिवाद के योग्य होता है। इस श्रेणी में न्याय के अधिकारी भी आते हैं। ऐसे अधिकारी निम्नलिखित परिस्थितियों में भी किसी व्यक्ति को मिथ्या बन्दीकरण का आदेश दे सकते हैं-
(क) अपराधी के भयानक कृत्यों अथवा पागलों से उत्पन्न खतरों के कारण बन्दीकरण।
(ख) युद्ध अथवा विद्रोह के समय बन्दीकरण।
(ग) विदेशियों के निष्कासन अथवा विदेशी अपराधियों के समर्पण से सम्बन्धित बन्दीकरण।
(घ) आपत्तिकालीन परिस्थितियों में अनिवार्य बन्दीकरण।
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