प्रहार से आप क्या समझते हैं? प्रहार के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
प्रहार (Battery)– बल पूर्वक किसी व्यक्ति का स्पर्श करना इच्छा के विरुद्ध आघात पहुँचाना बदले की भावना आबद्ध ढंग से शरीर को ढूना भले ही उससे उस व्यक्ति को हानि पहुँची हो अथवा नहीं प्रहार है। इस बात का कोई महत्त्व नहीं है कि बल सीधा अथवा अन्य प्रकार से प्रयुक्त किया गया है। उसका प्रयोग हाथ से हुआ है या हथियार से। यदि प्रतिवादी द्वारा वादी के शरीर का स्पर्श किसी अन्य वस्तु के माध्यम से भी किया जाता है तो उस कृत्य को मार-पीट या प्रहार ही कहा जायेगा। किसी के ऊपर कंकड़ उछालना आक्रमण है और यदि वह कंकड़ उसके शरीर पर नियतपूर्वक फेंकने से गिरता है तो उसे प्रहार या मार-पीट का रूप माना जायेगा। किसी के हाथ से कागज छीनना, नियतपूर्वक पानी फेंकना और असावधानीपूर्वक बन्दूक चलाते समय किसी को चोट पहुंचाना हर क्रियायें प्रहार के अन्तर्गत आयेंगी।
प्रहार की परिभाषा
विनफील्ड के अनुसार-“किसी व्यक्ति के शरीर के प्रति साशय बल प्रयोग करना प्रहार कहा जाता है।”
सामण्ड के अनुसार–“बिना विधिक औचित्य के किसी व्यक्ति के शरीर के प्रति साशय या जान बूझकर कर बल प्रयोग करना प्रहार कहलाता है।”
इस प्रकार जब कोई व्यक्ति बिना किसी विधिक औचित्य के साशय दूसरे व्यक्ति पर बल का प्रयोग करता है तो उसे ‘संप्रहार’ कहते है।
संप्रहार के लिये निम्नलिखित दो तत्वों का होना आवश्यक है-
(1) किसी के प्रति बल प्रयोग किया गया हो, और
(2) बल प्रयोग जान बूझ कर बिना विधिक औचित्य के किया गया हो-
(1) बल का प्रयोग होना-
बल का प्रयोग चाहे कम हआ हो या ज्यादा वह प्रहार ही कहा जाता है। प्रहार में बल प्रयोग से शारीरिक क्षति का होना भी आवश्यक नहीं होता है। उदाहरणा क्रोध में व्यक्ति को थोड़ा भी स्पर्श करना प्रहार ही कहा जाता है।
प्रहार में शरीर का स्पर्श होना आवश्यक है। ऐसा शरीर का स्पर्श किसी वस्तु के माध्यम से या सीधे स्पर्श करके ही हो सकता है। किसी व्यक्ति को चांटा मारना या धक्का मारना शरीर को छूकर तथा किसी व्यक्ति पर पानी फेंकना या पत्थर फेंकना वस्तु के माध्यम से स्पर्श के उदाहरण है।
(2) बल प्रयोग जान बूझ कर बिना विधिक औचित्य के किया गया हो-
बिना विधिक औचित्य के प्रहार के लिये यह आवश्यक है कि बल प्रयोग बिना विधिक औचित्य के या जान बूझ कर या साशय किया गया हो। पी. कादर v. के.ए, अल्गार स्वामी के वाद में एक विचाराधीन अभियुक्त को पुलिस द्वारा हथकड़ी लगाकर जंगली जानवर की तरह जंजीर से कसकर बांधकर खींचा गया तथा अस्पताल में जब वह दवाई करा रहा था तो उसे खिड़की से बाहर खींचा गया।
अभिनिर्धारित हुआ कि पुलिस का कार्य प्रहार की श्रेणी में आता था इसलिए पुलिस प्रहार के अपकृत्य के लिये दायी था।
प्रहार भारतीय दण्ड संहिता की धारा 350 द्वारा दण्डनीय अपराध है।
(2) हमला (Assault)-
हमला प्रतिवादी का ऐसा कृत्य है जिसमें वादी के मन में ऐसी युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न हो जाती है कि प्रतिवादी उस पर प्रहार करेगा। हमला सामान्य संप्रहार से पूर्व की स्थिति है। मुक्के का प्रदर्शन हमला है, परन्तु जैसे ही मुक्के से वास्तविक चोट किसी को लगती है, व संप्रहार हो जाता है।
प्रो. विनफील्ड प्रतिवादी के उस कार्य को हमला मानते हैं जो वादी के मन में ऐसी युक्तियुक्त आशंका पैदा कर देता है कि प्रतिवादी उस पर प्रहार करेगा।
हमला के अपकृत्य के लिये यह आवश्यक है कि ऐसा युक्तियुक्त रूप से प्रतीत हो कि क्षति कारित करने की क्षमता अपकृत्यकर्ता में उपस्थित है, यदि कोई व्यक्ति दूर से मुक्का दिखाता है जो वादी की पहुँच तक नहीं है तो इसे हमला नहीं समझा जायेगा। परन्तु यदि उसके हाथ में एक पत्थर है और यदि वह पत्थर फेंकना दिखाता है तो इस बात की युक्तियुक्त आशंका है कि वह व्यक्ति पत्थर उस दूरी से फेंककर मार सकता है, यह परिस्थिति हमला मान ली जाएगी।
आवश्यक तत्व-
आक्रमण या हमला को प्रमाणित करने के लिए निम्नलिखित प्रमाणों की आवश्यकता होती है-
(i) प्रतिवादी की तैयारी या भाव-भंगिमा से भय का संकेत मिलता था।
(ii) प्रतिवादी की तैयारी या भाव-भंगिमा इस प्रकार की थी जिससे वादी के मन में प्रतिवादी द्वारा बल-प्रयोग का भय उत्पन्न हो गया था।
(iii) प्रतिवादी वादी पर तुरन्त आक्रमण करने की स्थिति में था।
(iv) आक्रमण साशय होना चाहिये। जहाँ भाव भंगिमा या तैयारी से आशय नहीं झलकता हो,तो उसे आक्रमण नहीं कहा जा सकता।
(1) बल प्रयोग की धमकी या प्रयत्न-
हमला तभी माना जा सकता है जब प्रतिवादी ने वादी को कोई धमकी दी हो और चोट पहुँचाने का प्रयत्न किया हो क्योंकि जब तक प्रतिवादी द्वारा कोई चोट पहुँचाने का प्रयत्न नहीं किया जाता उसे हमला नहीं कहा जायेगा।
(ii) वादी के मन में प्रहार की आशंका उत्पन्न होना-
प्रतिवादी का कोई कार्य तभी हमले की कोटि में आ सकता है जब वह कार्य वादी के मन में ऐसी युक्तियुक्त आशका पैदा कर दे कि प्रतिवादी उस पर प्रहार करेगा। उदाहरणार्थ ‘अ’ यदि ‘ब’ पर भरी बन्दुक से निशाना लगाता है तो ‘अ’ का वह कार्य हमला कहा जायेगा, क्योंकि ‘अ’ के कार्य से ‘ब’ के मन में प्रहार, की आशंका पैदा हो सकती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सामान्यतया हमला पूर्व प्रहार की पूर्व स्थिति होता है।
(ii) प्रतिवादी का तुरन्त बल प्रयोग की स्थिति में होना-
प्रतिवादी का कोई कार्य तभी हमला माना जा सकता है जब प्रतिवादी बल प्रयोग या चोट पहुँचाने की तत्काल स्थिति में हो। उदाहरण ‘क’ चलती रेलगाड़ी पर प्लेटफार्म पर खड़े ‘ख’ पर यदि मुक्का ताने तो इसे हमला नहीं कहा जा सकता क्योंकि ‘क’ तत्काल बल प्रयोग करने की स्थिति में नहीं था।
(iv) बल प्रयोग साशय किया गया हो-
कोई बल प्रयोग तभी हमला कहा जाता है जब वह साशय या जानबूझकर किया गया हो। उदाहरण यदि ‘क’ की भरी बन्दूक की नाल ‘ख’ की ओर धोखे से मुड़ जाय तो इसे हमला नहीं कहा जायेगा। परन्तु यदि प्रतिवादी ने हमला करने का प्रयास किया है तो भले ही किसी अन्य व्यक्ति द्वारा हमला करने से रोक लिया गया हो तो भी उसका कार्य हमला माना जायेगा।
उदाहरणार्थ-स्टीफेन v. मायर्स के वाद में वादी जो एक चर्च सभा का सभापति था, प्रतिवादी की हरकतों से तंग आकर उसे सभा से निकालने के लिए एक प्रस्ताव पेश कराया। प्रतिवादी ने कहा कि यदि वह सभा से निकाला गया तो सभापति को कुर्सी से खींचकर पटक देगा और यह कहकर सभापति की ओर मुक्का तानकर लपका परन्तु सभापति के बगल में बैठे चर्च वार्डेन द्वारा रोक लिया गया। प्रतिवादी हमले के अपकृत्य के लिये दायी ठहराया गया।
यदि हमला व संप्रहार का तुलनात्मक अध्यन किया जाय तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हमला संप्रहार से पहले की स्थिति है। यदि कोई व्यक्ति मुक्के का प्रदर्शन करता हुआ किसी व्यक्ति
को क्षति कारित कर देता है तो मुक्के का प्रदर्शन हमला कहा जाएगा एवं मुक्के से वास्तविक रूप से कारित की गयी क्षति को संप्रहार की श्रेणी में रखा जायेगा। हमले को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 351 द्वारा दण्डनीय बनाया गया है। इसलिये हमले के खिलाफ दीवानी और आपराधिक दोनों प्रकार की कार्यवाही की जा सकती है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि वादी दीवानी कार्यवाही कर चुका है तो आपराधिक कार्यवाही नहीं कर सकता।
हमला और प्रहार में अन्तर difference between assault and battery in hindi
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