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राष्ट्रीय एकता के विकास में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका | राष्ट्रीय एकता के विकास में शिक्षकों की भूमिका

राष्ट्रीय एकता के विकास में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका
राष्ट्रीय एकता के विकास में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका

राष्ट्रीय एकता के विकास में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका (Role of Educational Institutions in National Integration)

राष्ट्रीय एकता के विकास में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका- विद्यालय अथवा शैक्षिक संस्थान समाज के सूक्ष्म रूप होते हैं। शैक्षिक संस्थान व्यक्ति के घर, परिवार तथा समाज में सीखे गए व्यवहारों एवं आदतों को अपने तक सीमित न उसका प्रसार समाज एवं राष्ट्रहित के लिए करता है। इसलिए विद्यालय अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता को विकसित करने के लिए अपने वातावरण एवं क्रियाओं द्वारा सहयोग प्रदान करता है।

राष्ट्रीय एकता के विकास में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका निम्न प्रकार से है-

(1) शिक्षण संस्थानों में सार्वजनिक प्रवेश की स्वतंत्रता – शिक्षण संस्थान अपना वातावरण इस प्रकार बनाकर रखते हैं कि उससे छात्रों में समानता तथा स्वतंत्रता की भावना का विकास हो। विद्यालय में छात्रों का प्रवेश सार्वभौमिक रूप से हो, उनसे किसी जाति, धर्म तथा क्षेत्रीयता के रूप में भेद-भाव न किया जाए। इस प्रकार विद्यालय विभिन्न आधारों पर एकता स्थापित कर उनमें राष्ट्रीय एकीकरण का विकास करते हैं।

(2) पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन- शैक्षिक संस्थान विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन कर विद्यार्थियों को एक दूसरे के करीब लाते हैं। विद्यार्थी आपसी भेद-भाव मिटाकर एक दूसरे की भावनाओं का आदर करते हैं। पाठ्य सहगामी क्रियाओं के द्वारा विभिन्न क्षेत्र, धर्म एवं भाषा से सम्बन्धित विद्यार्थी एक मंच पर एकत्रित होते हैं। धर्म, जाति एवं क्षेत्रीयता की भावना मिटाकर राष्ट्रीय एकीकरण की भावना का विकास होता है।

(3) सर्वधर्म योग्य एवं निपुण शिक्षकों की नियुक्ति – शैक्षिक संस्थान शिक्षकों की नियुक्ति मात्र उनकी उपलब्धियों के आधार पर ही न करके, उनकी सामाजिक, संवेगात्मक वृद्धि को भी स्थान देता है। इससे शिक्षक राष्ट्रीय एकीकरण के महत्व को समझते हैं और उसकी भावना का विकास विद्यार्थियों में करने के लिए तत्पर रहते हैं। सर्वधर्म के शिक्षकों की नियुक्ति से संस्थान में विभिन्न धर्मों एवं जाति में एकरूपता लाकर विद्यार्थियों में एकता की भावना का विकास होता है। यही विद्यार्थी राष्ट्र के विभिन्न भागों में जाकर राष्ट्रीय एकता का विकास करते हैं।

(4) शिक्षकों एवं विद्यार्थियों का स्थानान्तरण करना- शैक्षिक संस्थानों में शिक्षक के स्थानान्तरण की व्यवस्था होती है। शिक्षक एक क्षेत्र विशेष से स्थानान्तरित होकर दूसरे क्षेत्र अथवा राज्य में अपनी संस्कृति एवं सभ्यता का आदान-प्रदान करता है। केन्द्रीय विद्यालयों एवं नवोदय विद्यालय में छात्रों के स्थानान्तरण की भी व्यवस्था होती है। विद्यार्थी एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं विचारों का प्रसार करते हैं। इस प्रकार शैक्षिक संस्थानों की स्थानान्तरण व्यवस्था राष्ट्रीय एकता के निर्माण में सहयोग प्रदान करती है।

इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों का अवलोकन कर कहा जा सकता है कि शैक्षिक संस्थानों का राष्ट्रीय एकीकरण के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है।

राष्ट्रीय एकता के विकास में शिक्षकों की भूमिका (Role of Teachers in the Development of National Integration)

विद्यार्थी अपने शिक्षक को आदर्श मानकर उनकी आदतों, व्यवहारों एवं कार्यशैली का अनुकरण करते हैं। यही विद्यार्थी बहुत सी आदतों व्यवहारों एवं गुण-दोषों का ज्ञान प्राप्त कर परिवार, समाज, प्रान्त एवं देश का अंग बनकर राष्ट्रीय एकीकरण स्थापित करनें में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं, परन्तु इन विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के पीछे एक शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) विद्यार्थियों में सहयोग की भावना का विकास करना- देश में राष्ट्रीय एकता की स्थापना के लिए देश के नागरिकों में राष्ट्रीय और भावनात्मक एकता का समावेश होना आवश्यक है। नागरिकों में राष्ट्रीय एकता का विकास एक शिक्षक द्वारा ही किया जा सकता है। शिक्षक अपने विद्यार्थियों के स्थान, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर भेद न करके उनमें सहयोग की भावना का विकास करता है। इससे वे विद्यालय परिसर के बाहर निकलकर समाज एवं राष्ट्रीय एकीकरण में सहयोग देते हैं।

(2) विद्यार्थियों को उत्तम नागरिक बनाकर – एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों में उत्तम नागरिकता का विकास करता है। शिक्षक अपने विद्यार्थियों को राष्ट्रीय पर्वों की जानकारी, उनका महत्व आदि बताता है। वह राष्ट्र ध्वज एवं राष्ट्र के प्रति सम्मान की भावना का विकास कर विद्यार्थियों को उत्तम नागरिक बनाता है। यही नागरिक आगे चलकर राष्ट्र के निर्माण एवं उसके एकीकरण को स्थापित कर अपने ज्ञान एवं गुणों का प्रवाह अपनी भावी पीढ़ियों को करते हैं।

(3) राष्ट्रीय भाषा, संस्कृतियों एवं धर्मों के प्रति उदारता की भावना का विकास- प्रत्येक राष्ट्र की अपनी एक पहचान होती है। उसका अपना एक राष्ट्रगान, राष्ट्रीय चिन्ह, राष्ट्रीय भाषा एवं संस्कृति होती है। ये सभी राष्ट्र की विभिन्नताओं में एकता स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षक स्वयं इनका सम्मान कर विद्यार्थियों को अनुकरण करना सिखाता है। वह उनके गुण एवं महत्व को बताकर विद्यार्थी में राष्ट्र के प्रति सम्मान एवं एकता की भावना का विकास करता है। क्षेत्रीय भाषाओं के स्थान पर राष्ट्रीय भाषाओं का प्रयोग राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देती है।

(4) विद्यार्थियों में जाति, धर्म, लिंग तथा क्षेत्रीयता की भावना को समाप्त करना – वर्तमान समय में जाति, धर्म, लिंग तथा क्षेत्रीयता की भावना राष्ट्रीय एकीकरण में प्रमुख रूप से बाधक है। शिक्षक विद्यार्थियों के मध्य जाति एवं धर्म की ऊँच-नीच की भावना को मिटाकर उन्हें एक सूत्र में बाँधने का कार्य करता है। लिंग के आधार पर भेद-भाव दूर करने का प्रयास करके बालक एवं बालिकाओं के अन्तर को समाप्त करता है। लिंग आधारित भेद-भाव मिटाकर सामाजिक एकता एवं सौहार्द स्थापित करता है। क्षेत्रीयता की भावना को समाप्त कर वह समाज को एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है। शिक्षक के इन सभी प्रयासों के द्वारा राष्ट्रीय एकता का विकास होता है।

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि एक शिक्षक देश के भावी पीढ़ी को दिशा प्रदान करता है तथा वह देश विकास एवं उसकी एकता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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