B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

महात्मा गाँधी का सर्वोदय दर्शन, शिक्षा दर्शन, शैक्षिक उद्देश्य, पाठ्यचर्या, अनुशासन

महात्मा गाँधी का सर्वोदय दर्शन
महात्मा गाँधी का सर्वोदय दर्शन

अनुक्रम (Contents)

महात्मा गाँधी (MAHATMA GANDHI)

जीवन-वृत्त (Life Sketch)- महात्मा गाँधी एक धार्मिक एवं अहिंसा प्रिय व्यक्ति थे। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। महात्मा गाँधी के पिता का नाम करमचन्द गाँधी था जो राजकोट मे दीवान थे। प्रारम्भ में गाँधी जी ने साधारण शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात् मैट्रीकुलेशन की शिक्षा प्राप्त की। गाँधी जी ने 10 जून सन् 1891 ई. में इंग्लैण्ड से वकालत की परीक्षा पास की। अप्रैल 1893 ई. को गाँधी जी एक मुकदमें के सम्बन्ध में दक्षिण अफ्रीका गए। अफ्रीका से वापस आने पर गाँधी जी ने विदेशी शासन का विरोध करते हुए स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। यद्यपि गाँधी जी वहाँ सिर्फ एक वर्ष के लिए गए थे, परन्तु वहाँ आकर अपने देशवासियों की स्थिति एवं उनसे किए जाने वाले दुर्व्यवहार को देखकर अंग्रेजों के विरूद्ध आवाज उठायी तथा 20 वर्ष तक वहाँ रहे।

सन् 1942 ई. में स्वतन्त्रता के लिए गाँधी जी ने करो या मरो का नारा दिया जिसके परिणामस्वरुप गाँधी जी को जेल जाना पड़ा। इससे स्वतन्त्रता की आग और भड़क गयी जिससे विवश होकर अंग्रेजों ने 15 अगस्त 1947 ई. को भारत छोड़ दिया। भारत को आजादी तो मिल गयी, परन्तु इसके साथ ही देश का विभाजन भी हो गया और चारों तरफ साम्प्रदायिक झगड़े आरम्भ हो गएं।

गाँधी जी ने इन झगड़ों को शान्त करने का प्रयास किया। उनकी इस नीति से खिन्न होकर 31 जनवरी, सन् 1948 ई. को नाथूराम गोडसे नामक नौजवान ने गाँधी की गोली मारकर हत्या कर दी।

महात्मा गाँधी के अनुसार, सच्ची शिक्षा वह है जो बालकों की आत्मिक, बौद्धिक और शारीरिक क्षमताओं को उनके अन्दर से बाहर प्रकट एवं उत्तेजित करती है।”

According to Mahatama Gandhi, “The true education is that which draws out and stimulus the spiritual, intellectual and physical facilities of the children.”

गाँधी का सर्वोदय दर्शन (Sarvodaya Philosophy of Gandhi)

गाँधी जी ने अपने जीवन दर्शन में सर्वोदय दर्शन को विशेष महत्व दिया है। सर्वोदय एक आध्यात्मिक संकल्पना है जिसे प्राप्त करना कठिन था परन्तु उन्होंने इसके लिए प्रयत्न किया तथा वे पूँजीवादी तथा राजसत्ता के बल पर समाज में समता स्थापित करना चाहते थे।

(1) सर्वोदय दर्शन की तत्व मीमांसा- गाँधी जी तत्व ज्ञान का सर्वोत्तम ग्रन्थ गीता को मानते थे। भगवद्गीता के अनुसार मूल तत्वों को दो भागों में विभाजित किया गया है; पुरुष एवं प्रकृति यहाँ पर पुरुष से तात्पर्य है ‘ईश्वर’ एवं प्रकृति से तात्पर्य है ‘पदार्थ’। इनमें से ईश्वर को श्रेष्ठतम माना गया है। गाँधी जी ने गीता की दो बातों पर अत्यधिक ध्यान केन्द्रित किया है। पहली बात यह कि प्रकृति के कण-कण में ईश्वर व्याप्त है लेकिन प्रकृति ईश्वर में व्याप्त नहीं है। दूसरी बात यह है कि ईश्वर ने इस सम्पूर्ण जगत का निर्माण किया है। गाँधी जी ने गीता के इन तथ्यों को उजागर किया कि ईश्वर ही इस जगत का कर्ता है एवं प्रकृति इसकी उपादान कारण है।

(2) सर्वोदय दर्शन की ज्ञान मीमांसा – गाँधी जी ज्ञान को जीवन का आधार मानते थे। इन्होंने ज्ञान को भौतिक तथा आध्यात्मिक रूप में विभाजित किया है। गाँधी जी की विचार दृष्टि व्यक्ति को भौतिक (सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक ) तथा आध्यात्मिक (ईश्वर तथा धर्म से सम्बन्धित) दोनों प्रकार का ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य है। इन दोनों ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् ही वह ईश्वर तथा मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। गाँधी जी ने आध्यात्मिक ज्ञान के लिए गीता को सर्वश्रेष्ठ बताया है। इसमें अध्यात्म एवं स्वानुभूति की शिक्षा एवं कर्म प्रधान श्लोक व्यक्ति को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। गीता के अध्ययन द्वारा व्यक्ति आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

(3) सर्वोदय दर्शन की मूल्य मीमांसा- गाँधी जी का मानना था कि मनुष्य शरीर, मन एवं आत्मा का योग है। उनका यह भी मानना था कि मनुष्य जीवन का अन्तिम लक्ष्य सत्य की प्राप्ति अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति है। गाँधी जी इसी को मुक्ति कहते थे। गाँधी जी ने मनुष्य को सर्वप्रथम अपने भौतिक अभावों से मुक्ति प्राप्त करने पर बल दिया है। गाँधी जी ने भौतिक जीवन की सुख समृद्धि के लिए श्रम, नैतिकता एवं चरित्र के महत्व को स्वीकार किया है। गाँधी जी ने भौतिक एवं आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति के लिए एकादश व्रत (सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्वाद, अस्तेय, अपरिग्रह, अभय, अस्पृश्यता निवारण, कायिक, श्रम, सर्वधर्म सम्भाव और विनम्रता) के पालन को भी आवश्यक समझते हैं।

सत्य, गाँधी जी के लिए साहस एवं साधन दोनों है। साहस रूप में सत्य वह है जिसका अस्तित्व है जिनका कभी अन्त नहीं होता है, अर्थात् ईश्वर और साधन रूप में सत्य से गाँधी जी का तात्पर्य सत्य विचार, सत्य आचरण और सत्य भाषण से है। अहिंसा से इसका अर्थ समस्त जीवधारियों के प्रति कुविचार के अभाव से हैं। इनके विचार से अहिंसा के अभाव में न सत्य का पालन हो सकता है और न ही सत्य की प्राप्ति हो सकती है।

गाँधी जी का शिक्षा दर्शन (Gandhiji’s Philosophy of Education)

महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन के अध्ययन के उपरान्त यह ज्ञात होता है, कि वह राजनैतिक ज्ञान के साथ एक अच्छे समाज सुधारक एवं धार्मिक प्रवृत्ति के भी थे। गाँधी जी प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित करना चाहते थे, उन्होंने पुस्तकीय ज्ञान एवं परीक्षा प्रधान शिक्षा का विरोध करते हुए अनेक सुझाव भी दिया। गाँधी जी के अनुसार साक्षरता का अभिप्राय न तो शिक्षा का आरम्भ है और न अन्त। गाँधी जी का मानना है कि यदि मनुष्य पढ़ लिख कर भी अनैतिक व्यवहार करता है तो वह व्यक्ति शिक्षित नहीं माना जाएगा चाहे उसे कितनी ही बड़ी डिग्री क्यों न मिल गई हो। इससे साफ पता चलता है कि गाँधी जी का झुकाव नैतिकता पर भी था।

गाँधी जी के अनुसार, “साक्षरता न तो शिक्षा का आरम्भ है और न अन्त। यह विभिन्न साधनों में से एक साधन है जिसके द्वारा पुरुषों और स्त्रियों को शिक्षित किया जा सकता है।”

According to Mahatma Gandhi, “Literacy is neither the begining nor the end of education. It is only one of the means where by men and women can be educated.”

इस प्रकार ये शिक्षा द्वारा मनुष्य को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे इसके लिए इन्होंने हस्तकौशलों की शिक्षा पर विशेष बल दिया जिससे मनुष्य रोजी-रोटी कमाने के योग्य बन सके। इसके साथ-साथ गाँधी जी मनुष्य की आत्मिक उन्नति भी कराना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने मनुष्य को शिक्षा द्वारा एकादश वत्र (सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्वाद, अस्तेय, अपरिगृह अभय, अस्पृश्यता निवारण, कायिक श्रम, सर्वधर्म सम्भाव और विनम्रता ) के पर भी बल दिया।

शिक्षा का सम्प्रत्यय (Concept of Education)

गाँधी जी का मत है कि साक्षरता न तो शिक्षा का अन्त है और न प्रारम्भ। यह केवल एक साधन है जिसके द्वारा पुरूष और स्त्रियों को शिक्षित किया जा सकता है।

इस प्रकार गाँधी जी केवल साक्षरता को ही शिक्षा नही मानते। गाँधी जी शिक्षा द्वारा बालक का सर्वागीण विकास चाहते थे। सर्वांगीण विकास का तात्पर्य बालक के शारीरिक, मानसिक आध्यात्मिक, सामाजिक आदि विभिन्न पहलुओं का विकास। शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए उन्होंने लिखा है- “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक तथा प्रौढ़ के शरीर, मन और आत्मा में अन्तर्निहित सर्वोत्तम शक्तियों के सर्वांगीण प्रगटीकरण से है। इनके अपने शब्दों में, “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक और मनुष्य के मन, शरीर और आत्मा के उच्चतम विकास से हैं।” (By education I mean an all-round drawing out of the best, in child and man – body, mind and spirit).

इस प्रकार गाँधी जी मनुष्य के शरीर, मन, हृदय, और आत्मा का विकास करना चाहते थे इसके लिए उन्होंने 3Rs (Reading, Writing and Airthinetic) को 3H (Hand, Head and Heart) में परिवर्तित करते हुए पढ़ना लिखना और गणित के स्थान पर हाथ, मस्तिष्क और हृदय के विकास पर अत्याधिक बल दिया है।

शिक्षण विधि (Teaching Method)

गाँधी जी प्रचलित शिक्षण-पद्धतियों तथा विधियों को दोषपूर्ण बतलाते हुए, शिक्षण विधियों मे महत्वपूर्ण परिवर्तन चाहते थे। प्रचलित शिक्षण विधि में बालक निष्क्रिय अवस्था में रहता है, और अध्यापक व्याख्यान देकर चला जाता है, इस प्रकार की दोषपूर्ण शिक्षण पद्धति का विरोध करते हुए गाँधी जी ऐसी शिक्षण पद्धति लाना चाहते थे जिसमें बालक निष्क्रिय श्रोता न रहकर सक्रिय कार्यकर्ता, निरीक्षणकर्ता और प्रयोगकर्ता के रूप में शिक्षा प्राप्त करें।

शिक्षण के क्षेत्र में सबसे अधिक बल क्राफ्ट केन्द्रित शिक्षण विधि पर देते थे जिसके अनुसार क्रिया एवं अनुभव के आधार पर सीखने को बल देते थे इसके साथ-साथ गाँधी जी कथन, व्याख्यान और प्रश्नोत्तर विधि के महत्व को भी स्वीकार करते हैं, साथ ही उपनिषद् एवं वेदान्त द्वारा प्रतिपादित श्रवण, मनन, निदिध्यासन की विधि में भी इनका विश्वास था। ज्ञान को क्रिया के माध्यम से विकसित करना इनकी शिक्षण विधि का मुख्य आधार था। इसे सहसम्बन्ध विधि भी कहते हैं।

(1) गाँधी जी के अनुसार बालक की स्वभाविक प्रवृत्ति है कि वे प्रारम्भ से ही अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहनों और शिक्षकों का अनुकरण करते हुए सीखते हैं। अतः प्रारम्भ में उन्हें इसी विधि को सिखाना चाहिए। माता-पिता और शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चों के साथ सदैव प्रेमपूर्ण व्यवहार करें उनके सामने सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्वाद, अस्तेय, अपरिगृह, अभय, अस्पृश्यता कायिक श्रम, सर्वधर्म समभाव और विनम्रतापूर्ण आचरण करना चाहिए जिससे कि बालक ऐसे ही आचरण करें।

(2) गाँधी जी के अनुसार बालक प्रारम्भ से ही कुछ न कुछ करता रहता है। अतः किसी भी विषय की शिक्षा की प्राथमिकता क्रिया द्वारा पहले देना चाहिए, आज की खेल विधि और प्रयोग विधि अपने में क्रिया विधि है। इस प्रकार गाँधी जी स्वयं करके सीखने पर बल देते थे व इसके साथ-साथ संगीत, कला और हस्तकौशल की शिक्षा पर भी बल देते थे।

(3) गाँधी जी के अनुसार बच्चे जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं, उन्हें शुरू से चीजों को जानने की इच्छा (desire to know) बनी रहती है। अतः उनकी इन इच्छाओं का समाधान करने हेतु सावधानी रखते हुए सक्रिय भूमिका में रखते हुए उनके समक्ष समस्याओं का समाधान करना चाहिए। गाँधी जी मौखिक विधियों में व्याख्यान, प्रश्नोत्तर, वाद-विवाद आदि विधियों के प्रयोग को सहयोगी विधि के रूप में मानते हैं।

(4) गाँधीजी के अनुसार सहसम्बन्ध विधि में बच्चे अपने वास्तविक जीवन की वास्तविक क्रियाओं में भाग लेते हैं और इस प्रकार सीखने में उनकी शारीरिक, मानसिक क्रियाओं को ध्यान में रखते हुए, उनके समक्ष वास्तविक परिस्थितियाँ बनानी चाहिए। इसके लिए इन्होनें पाठ्यचर्या के समरूप विषयों को एक-दूसरे से सम्बन्ध करके पढ़ाने की विधि जिसे सहसम्बन्ध विधि कहते हैं, पर बल दिया।

(5) गाँधीजी उपनिषद और वेदान्त द्वारा प्रतिवादित श्रवन, मनन, निदिध्यासन के विधि पर भी विश्वास रखते थे। इनके अनुसार श्रवन, मनन, निदिध्यासन विधि में सर्वप्रथम शिक्षार्थी, गुरु द्वारा दिए गए उपदेश को सुनते थे, फिर उस पर चिन्तन करते थे, और अन्त में उसका अभ्यास करते थे। गाँधीजी ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि इस विधि का प्रयोग बालक तभी कर सकता है जब वह चिन्तन के उच्च स्तर पर हों।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी केवल राजनीतिक नेता ही नहीं थें अपितु एक बहुत बड़े धर्म मर्मज्ञ एवं समाज सुधारक भी थे। उन्होने अपने समय की पुस्तकीय, सैद्धान्तिक, संकुचित और परीक्षा-प्रधान शिक्षा में सुधार के लिए भी अनेक सुझाव दिए थे। शिक्षा जगत में ये शिक्षाशास्त्री के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

महात्मा गाँधी अपनी शिक्षा प्रणाली में इन तीनों दर्शन को पृथक-पृथक न करके वरन् एक रूप करके संगठित करते हैं क्योंकि सिर्फ आदर्श, स्वतन्त्रता व रुचियों से काम न चलेगा. बालक के. सर्वांगीण विकास के लिए आदर्शवादी उद्देश्य, प्रकृतिवादी शिक्षण-विधियाँ व प्रयोजनवादी पाठ्यक्रम की आवश्यकता है।

महात्मा गाँधी के अनुसार शैक्षिक उद्देश्य (Educational Objectives According to Mahatma Gandhi)

महात्मा गाँधी ने शिक्षा के उद्देश्य को दो भागों में विभाजित किया है-

(1) तात्कालिक उददेश्य

(2) शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य

(1) तात्कालिक उद्देश्य – महात्मा गाँधी के अनुसार प्रमुख तात्कालिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) जीविकोपार्जन का उद्देश्य- जीविकोपार्जन के उद्देश्य से महात्मा गाँधी का तात्पर्य बालक को स्वावलम्बी बनाने से है ताकि वह भविष्य में किसी पर आश्रित न रहे। प्रत्येक व्यक्ति या बालक अपनी जीविका चलाने के लिए धनोपार्जन कर सके।

(ii) सांस्कृतिक उद्देश्य – इस उद्देश्य से तात्पर्य बालकों को अपने व्यवहार में अपनी संस्कृति को व्यक्त करने के योग्य बनाने से है। वे भारतीय संस्कृति को परिष्कृत करना चाहते थे। महात्मा गाँधी के अनुसार, मैं शिक्षा के सांस्कृतिक पक्ष को उसके साहित्यिक पक्ष से अधिक महत्वपूर्ण समझता हूँ। संस्कृति शिक्षा का विशेषांक है। अतः मानव के व्यवहार पर संस्कृति की छाप होनी चाहिए।

(iii) चरित्र निर्माण का उद्देश्य – महात्मा गाँधी बालक को पवित्र जीवन यापन के लिए उनके नैतिक व चारित्रिक विकास पर बल देते हैं।

(iv) व्यक्तित्व का सामंजस्यपूर्ण विकास – महात्मा गाँधी बालक का सर्वांगीण विकास करना शिक्षा का उद्देश्य मानते थे। महात्मा गाँधी के अनुसार, सच्ची शिक्षा वह है, जिसके द्वारा बालक के शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहन मिले।”

(v) मुक्ति का उद्देश्य – महात्मा गाँधी ने मुक्ति शब्द के दो अर्थ लिए। पहले अर्थ में मुक्ति का तात्पर्य- “वर्तमान जीवन की सभी प्रकार की आर्थिक, राजनीतिक तथा मानसिक दासता से मुक्ति तथा दूसरे अर्थ में मुक्ति से तात्पर्य- “आत्मा की सांसारिक बंधनों से छुट्टी।” इस प्रकार महात्मा गाँधी मानसिक, राजनीतिक दासता के साथ सांसारिक मोह से मुक्ति दिलवाना चाहते थे।

(vi) शिक्षा के सर्वोच्च उद्देश्य – महात्मा गाँधी के अनुसार यह शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य है, जिससे इनका तात्पर्य है- सत्य या ईश्वर की प्राप्ति। यह वही उद्देश्य है जिसमें भारतीय संस्कृति की आत्मा का वास है। महात्मा गाँधी के अनुसार, “अन्तिम वास्तविकता का अनुभव, ईश्वर और आत्मानुभूति का ज्ञान।

(2) शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य- गाँधी जी के अन्तिम या वास्तविक उद्देश्य को शिक्षा द्वारा वास्तविकता का ज्ञान एवं आत्मानुभूति को माना है। शिक्षा का यह परम उद्देश्य होना चाहिए कि वह व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करके उसके चरित्र का निर्माण करे, क्योंकि चरित्र के निर्माण द्वारा उत्तम राष्ट्र का निर्माण सम्भव होगा।

महात्मा गाँधी के अनुसार पाठ्यचर्या (Curriculum According to Mahatma Gandhi)

महात्मा गाँधी ने एक नवीन शिक्षा प्रणाली का सूत्रपात किया जिसे बेसिक शिक्षा प्रणाली या बुनियादी शिक्षा के नाम से जाना जाता है। इस शिक्षा का पाठ्यचर्या क्रिया-प्रधान है तथा इसका उद्देश्य बालक को कार्य, प्रयोग तथा खोज के द्वारा उसकी शारीरिक मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करना है जिससे वह आत्मनिर्भर होकर समाज का आवश्यक अंग बन जाए। महात्मा गाँधी के अनुसार, पाठ्यचर्या में हस्त शिल्प को केन्द्रीय स्थान दिया जाना चाहिए ताकि प्रचलित शिक्षा के दोषों को दूर किया जा सके। इसके लिए उन्होंने आधारभूत शिल्प जैसे कृषि, कताई, बुनाई, गत्ते का काम, लकड़ी का काम, चमड़े का काम, मत्स्य पालन आदि को महत्व दिया।

(1) मातृभाषा – महात्मा गाँधी ने पाठ्यचर्या में मातृभाषा को प्रमुख स्थान दिया।

(2) गणित

(3) सामान्य विज्ञान

(i) जीव विज्ञान

(ii) वनस्पति विज्ञान

(iii) शरीर विज्ञान

(vi) प्रकृति अध्ययन

(iv) स्वास्थ्य विज्ञान

(v) रसायन शास्त्र

(vii) भौतिक-संस्कृति

(viii) नक्षत्र – ज्ञान

(4) कला – ड्राइंग व संगीत

(5) सामाजिक अध्ययन इतिहास, भूगोल व नागरिक शास्त्र

(6) हिन्दी (जहाँ पर मातृभाषा न हो)

(7) शारीरिक शिक्षा खेलकूद और व्यायाम

महात्मा गाँधी ने प्राथमिक व निम्न माध्यमिक स्तर तक के बालकों के लिए पाठ्यचर्या का निर्धारण किया।

महात्मा गाँधी के अनुसार अनुशासन (Discipline According to Mahatma Gandhi)

गाँधी जी ने अनुशासन को व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है परन्तु उन्होंने छात्रों को स्वतन्त्र एवं आत्मानुशासन अर्थात् स्वयं अनुशासित रहने पर बल दिया है-

(1) प्रभावात्मक अनुशासन – प्रभावात्मक अनुशासन से गाँधी जी का तात्पर्य, ऐसे अनुशासन से है जिससे बालक आत्मानुशासित होकर कार्य करे। इसके लिए उन्होंने शिक्षकों को अनुशासन में रहने का सुझाव दिया, उनका मानना था कि अगर शिक्षक अनुशासित रहेंगे उनसे प्रेरित होकर बालक भी अनुशासन में रहेंगे।

(2) दण्डरहित अनुशासन – गाँधी जी कठोर दंड के पक्ष में नहीं थे किन्तु उनका मानना था कि बालकों को पूर्ण स्वतन्त्रता भी नहीं देनी चाहिए। गाँधी जी के अनुसार दण्ड व्यवस्था आवश्यक है परन्तु दण्ड ऐसा होना चाहिए जिससे बालकों को यह अनुभव हो कि उन्हें दण्ड उनकी भलाई के लिए दिया जा रहा है न कि किसी द्वेषवश।

(3) स्नेहयुक्त व विश्वासयुक्त अनुशासन- गाँधी जी ने अपना जीवन अनुशासित रूप में व्यतीत किया था। इसलिए वे छात्रों को भी अनुशासन सिखाना चाहते थे किन्तु वे दमनात्मक अनुशासन के कठोर आलोचक थे. उनका मानना था कि बालकों को स्नेह पूर्वक बात को समझाना चाहिए। गाँधी जी के अनुसार अनुशासन बालकों को सही मार्ग दिखाने व उनका बौद्धिक व सामाजिक विकास करने के लिए होना चाहिए।

(4) आत्मानुशासन- गाँधी जी ने आत्मानुशासन को प्रमुख स्थान दिया हैं। उनके अनुसार, बालक में जब तक स्वयं अनुशासन की भावना नहीं जागृत होगी, तब तक वह अनुशासित नहीं हो सकता है।

गाँधी जी की शिक्षा के अन्य पक्ष (Other Aspects of Education of Gandhiji)

गाँधी जी की शिक्षा के अन्य पक्ष निम्नलिखित हैं-

(1) जन शिक्षा- उस समय साक्षरता का प्रतिशत काफी कम था। लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं थी। अतः गाँधी जी ने जन शिक्षा के सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत किए तथा प्रौढ़ शिक्षा, जन शिक्षा पर बल दिया।

(2) स्त्री शिक्षा – गाँधी जी ने स्त्री शिक्षा के पक्ष में भी विचार प्रस्तुत किए हैं उन्होंने स्त्री को विभिन्न उत्तरादयित्वों के निर्वाह के लिए शिक्षित होना आवश्यक माना है, अतः उन्होंने अपनी शिक्षा में स्त्री शिक्षा को महत्व दिया है।

(3) व्यवसायिक शिक्षा- गाँधी जी व्यक्ति का विकास उसके कर्म को मानते थे। उन्होंने कहा, “मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हस्तकौशल का प्रयोग करना चाहिए।” जिसके लिए उन्होंने कृषि एवं कुटीर उद्योग, बागवानी एवं हस्त कौशलों की शिक्षा को प्रोत्साहन दिया।

(4) धार्मिक शिक्षा- गाँधी जी ने शिक्षा में धार्मिक शिक्षा के लिए शिक्षा में पूजा, प्रार्थना, भजन एवं गीता पाठ को दैनिक कार्यों में सम्मिलित किया।

बेसिक शिक्षा (Basic Education )

गाँधी जी ने स्वतन्त्रता की लड़ाई के साथ-साथ तत्कालीन शिक्षा में भी अनेक महत्वपूर्ण सुधार किए। सन् 1921 ई० में अपने साथियों के समक्ष शिक्षा’ का प्रस्ताव रखा परन्तु तब इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। सन् 1937 ई० में भारत के सभी प्रान्तों में सरकार का गठन हुआ और 11 में से 7 प्रान्तों में कांग्रेस मंत्रिमण्डल बने। अक्टूबर सन् 1937 में वर्धा में राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें गाँधी जी ने राष्ट्रीय शिक्षा की रूपरेखा प्रस्तुत की जिसे बेसिक शिक्षा कहते हैं।

बेसिक शिक्षा का अर्थ है- बालकों का उनके वास्तविक जीवन से जोड़ते हुए आधारभूत ज्ञान और कौशलों को प्रदान करना जिससे वह अपने आपको वास्तविक जीवन के लिए तैयार कर सकें।

बेसिक शिक्षा की रूपरेखा (Outline of Basic Education)

प्रारम्भ में बेसिक शिक्षा की रूपरेखा इस प्रकार थी-

(1) 7 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था।

(2) शिक्षा का माध्यम-मातृभाषा सम्पूर्ण शिक्षा शिल्प अथवा उद्योग पर आधारित।

(3) शिल्प का चुनाव बच्चों की योग्यता एवं क्षेत्रीय आवश्यकता पर आधारित।

(4) बच्चों द्वारा निर्मित वस्तु का उपयोग करते हुए उनके द्वारा किए गए आर्थिक लाभ से स्कूली व्यय पूरी की जाए।

(5) शिल्पों की शिक्षा बच्चों के जीविकोपार्जन के अनुसार हो।

(6) शिल्पों की शिक्षा में आर्थिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक एवं वैज्ञानिक महत्व को भी स्थान।

बेसिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Basic Education)

बेसिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) शारीरिक एवं मानसिक विकास- गाँधी जी ने जो बेसिक शिक्षा की अवधारणा प्रस्तुत की उसमें उन्होंने व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक विकास दोनों पर बल दिया। उनका मानना था कि, यदि बालक शारीरिक रूप से स्वस्थ्य रहेगा तभी वह मानसिक रूप से स्वस्थ्य एवं सक्रिय रह कर विकास कर सकता है। गाँधी जी ने इस प्रकार की पाठ्यचर्चा के निर्माण पर बल दिया जिससे बालक के मानसिक विकास के साथ-साथ उसका शारीरिक विकास भी हो सके।

(2) सर्वोदय समाज की स्थापना- गाँधी जी ने शिक्षा के माध्यम से एक ऐसे समाज के निर्माण का स्वप्न देखा था, जिस समाज में सभी वर्गों को एक साथ लेकर चलने या सभी वर्गों का विकास हो सके। ऐसा समाज जिसमें सभी वर्गो का उदय (तरक्की) हो ऐसे समाज को सर्वोदय समाज कहते हैं। गाँधी जी का सपना था कि सर्वोदय समाज में सभी नागरिक एक-दूसरे के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सकेंगे।

(3) सांस्कृतिक विकास- गाँधी जी ने बेसिक शिक्षा में जो पाठ्यक्रम निर्धारित किया उसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं उसके संवर्द्धन पर विशेष बल दिया। गाँधी जी का मानना था कि हमारी संस्कृति हमारे जीवन का मूल आधार है। इस प्रकार बेसिक शिक्षा के अन्तर्गत गाँधी जी ने सांस्कृतिक उद्देश्य की पूर्ति को बहुत ही आवश्यक माना है।

(4) चारित्रिक एवं नैतिक विकास- बेसिक शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य बालकों में चारित्रिक एवं का विकास भी था। गाँधी जी ने माना कि समाज तभी तरक्की कर सकता है जब उसके नागरिक नैतिक एवं चारित्रिक रूप से धनवान होंगे।

(5) व्यवसायिक शिक्षा- गाँधी जी चाहते थे कि शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक स्वावलम्बी बन सके। बालकों को ऐसी हस्तकला एवं कौशल सिखाया जाए जिससे वे शिक्षा समाप्ति के बाद आराम से अपना जीविकोपार्जन कर सकें। गाँधी जी बालक को व्यावसायिक दक्ष बना कर उसकी आर्थिक स्थिति को सुधारना चाहते थे

(6) आध्यात्मिकता का विकास- गाँधी जी, शिक्षा का अन्तिम लक्ष्य ईश्वर का ज्ञान और आत्मानुभूति को मानते थे। उनका विश्वास था कि प्राचीन काल के भारतीय ऋषियों की भाँति ही शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा किया जाना चाहिए जिससे मनुष्य को आत्मिक सन्तुष्टि प्राप्त हो सके। वे आध्यात्मिकता को बेसिक शिक्षा के अन्तर्गत बहुत ही महत्वपूर्ण मानते थे।

बेसिक शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त (Fundamental Prinicples of Basic Education)

बेसिक शिक्षा निम्नलिखित आधारभूत सिद्धान्तों पर की गई थी-

(1) शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क बनाने का सिद्धान्त – गाँधी जी शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क बनाना चाहते थे, उनका मानना था, कि शिक्षा बालक का जन्मसिद्ध अधिकार है। अतः गाँधीजी ने 7 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की बात कही।

(2) शिक्षा को आत्मनिर्भर बनाने का सिद्धान्त- गाँधी जी शिक्षा को सार्वभौमिक अनिवार्य एवं निःशुल्क बनाना चाहते थे। अतः इन्होंने स्कूल में अनिवार्य शिक्षा पर बल दिया जिससे शिक्षा को आत्मनिर्भर अर्थात सेल्फ सर्पोटिंग बनाया जा सके।

(3) सत्य अहिंसा और सर्वोदय का सिद्धान्त- उस समय अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त शिक्षित व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों का शोषण करते थे। गाँधी जी के अनुसार शोषण-हिंसा है और वे सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। अतः उन्होंने सत्य, अहिंसा व सर्वोदय का सिद्धान्त दिया।

(4) शिक्षा को जीवन से जोड़ने का सिद्धान्त – उस समय अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों के वास्तविक जीवन से सम्बन्धित नही थी, गाँधी जी शिक्षा को वास्तविक जीवन से जोड़ना चाहते थे। वे शिक्षा को उनके क्षेत्रीय उद्योग-धन्धों, प्राकृतिक, सामाजिक, पर्यावरण से जोड़ने पर बल देते थे।

(5) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा बनाने का सिद्धान्त- गाँधी जी द्वारा दिए गए इस सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है, गांधी जी मानते थे कि मातृभाषा पर बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार होता है और उसी के माध्यम से शिक्षा की व्यवस्था भी करनी चाहिए।

(6) शिक्षा को हस्तकौशलों पर केन्द्रित करने का सिद्धान्त- गाँधी जी शिक्षा को हस्तकौशलों पर केन्द्रित करने के पीछे, गाँधी जी के कई मत थे जैसे- बच्चों के कायिक श्रम का महत्व, बच्चों को स्वावलम्बी बनाना, सबका उदय करना, शिक्षा को वास्तविक जीवन से जोड़ना आदि।

(7) ज्ञान को इकाई के रूप में विकसित करने का सिद्धान्त – मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ज्ञान को एक इकाई के रूप में विकसित करना चाहिए इसी दृष्टि से गाँधी जी ने ज्ञान को पूर्ण इकाई के रूप में विकसित करने पर बल दिया।

बेसिक शिक्षा की पाठ्यचर्या (Curriculum of Basic Education)

बेसिक शिक्षा के इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु निम्न क्रियाप्रधान पाठ्यचर्या का निर्माण किया गया जो इस प्रकार है-

(1) हस्तकौशल एवं उद्योग (कताई, बुनाई, बागवानी, कृषि, काष्ठ, मछली पालन, मिट्टी का काम, चर्म कार्य आदि।)

(2) मातृभाषा

(3) हिन्दुस्तानी (हिन्दी) उनके लिए जिनकी हिन्दी मातृभाषा न हो।

(4) व्यावहारिक गणित (अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित और नाप-तोल)

(5) सामाजिक विषय (इतिहास, भूगोल, सामाजिक अध्ययन और नागरिक शास्त्र)

(6) सामान्य विज्ञान (प्राणी विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, गृह विज्ञान, प्रकृति निरीक्षण और बागवानी।)

(7) संगीत

(8) चित्रकला

(9) स्वास्थ्य विज्ञान (खेलकूद, व्यायाम और सफाई)

(10) आचरण शिक्षा (नैतिक शिक्षा, सामाजिक और राष्ट्रीय उत्सवों को मनाना और समाज सेवा कार्य)

विशेष

(1) बेसिक शिक्षा की सामान्य पाठ्यचर्या में कक्षा 5 तक सबके लिए समान पाठ्यचर्या। कक्षा 6 में छात्राएँ आधारभूत शिल्प में गृह विज्ञान व बाद में कक्षा 7 और 8 में वाणिज्य, संस्कृत और आधुनिक भारतीय शिक्षा की भी व्यवस्था की जाने लगी।

(2) बेसिक शिक्षा में केवल सर्वधर्म समभाव, नैतिक शिक्षा पर ही बल दिया गया, धार्मिक शिक्षा को महत्व नहीं दिया गया है।

(3) बेसिक शिक्षा में सर्वाधिक महत्व हस्तकौशल एवं उद्योंगो को दिया गया था प्रारम्भ से इसका समय 5 घण्टे 30 मिनट तथा बाद में यह समय घटाकर 3 घण्टे 20 मिनट प्रतिदिन का समय निश्चित किया गया।

बेसिक शिक्षा की शिक्षण विधि (Teaching Methods of Basic Education)

बेसिक शिक्षा की शिक्षण विधि आधुनिक शिक्षण विधि के विपरीत थी इसमें पुस्तक प्रणाली के स्थान पर क्रिया प्रधान शिक्षण विधि पर बल दिया गया। बच्चों को प्रकृति का निरीक्षण करने और सामाजिक कार्यों में भाग लेने के अवसर दिए जाते थे और इस प्रकार बालक स्वयं के अनुभवों से सीखते थे।

बेसिक शिक्षा में समस्त विषयों एवं क्रियाओं को एक-दूसरे से सम्बन्धित करके पढ़ाया जाता था जिसे सहसम्बन्ध विधि भी कहते हैं। बेसिक शिक्षा में बच्चों को जीवन की वास्तविक क्रियाओं के माध्यम से वास्तविक ज्ञान कराया जाता है। बेसिक शिक्षा में मातृभाषा का ज्ञान भी स्वाभाविक रूप से कराया जाता था और इसके साथ-साथ बच्चों की आत्माभिव्यक्ति के स्वतन्त्र अवसर भी प्रदान किए जाते थे।

बेसिक शिक्षा में शिक्षक (Teacher in Basic Education)

बेसिक शिक्षा प्रणाली में शिक्षक का स्थान भी महत्वपूर्ण है। प्रारम्भ में केवल पुरुष शिक्षकों को ही लिया जाता था बाद में महिला शिक्षिकाओं को भी वरीयता दी गयी। शिक्षकों की योग्यता कम से कम मैट्रिक पास या शिक्षण प्रशिक्षण प्राप्त हो, सुनिश्चित की गयी।

बेसिक शिक्षा के गुण (Merits of Basic Education)

गाँधी जी ने मनुष्यों के सर्वांगीण विकास के माध्यम के रूप में बेसिक शिक्षा को आवश्यक माना है। शिक्षा के गुण निम्नलिखित हैं-

(1) मानव के सर्वागीण विकास की प्रधानता- बेसिक शिक्षा का आधार मनुष्य सर्वांगीण विकास की प्रधानता पर आधारित है। मानव के विकास का तात्पर्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, चारित्रिक एव व्यवसायिक उन्नति से है।

(2) मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा- गाँधी जी ने सामाजिक एकता एवं समानता के उद्देश्य को साकार करने के विचार को ध्यान में रखकर मातृभाषा (हिन्दी) को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया। क्योंकि उस समय कुछ प्राथमिक स्कूलों का माध्यम मातृभाषा थी परन्तु अंग्रेजी माध्यम के प्राथमिक स्कूल भी चल रहे थे।

(3) स्व-आश्रित शिक्षा- देश में उन दिनों प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क बनाने हेतु पर्याप्त धन उपलब्ध नही था। अतः हस्तकौशलों पर आधारित बेसिक शिक्षा में निर्मित वस्तुओं को बेंच कर विद्यालयों के लिये धन की व्यवस्था का विचार किया गया परन्तु ये उद्देश्य साकार नही हो सके।

(4) व्यावसायिकता पर बल- इसके अंतर्गत शिक्षा को व्यवसायिकता से जोड़ते हुए इसमें हस्तकौशलों एवं ग्राम्य उद्योगों जैसे- खिलौने, कृषि, पशुपालन, बुनाई एवं कताई आदि की शिक्षा अनिवार्य की गई। इस विचार के साथ कि व्यक्ति शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् अपनी आजीविका चला सके।

(5) छुआछूत एवं वर्गभेद समाप्ति के प्रयास- समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे- छुआछूत एवं वर्गभेद आदि को समाप्त करने हेतु बेसिक शिक्षा में समान शिक्षा एवं समान सेवा कार्य पर बल दिया गया है। इसके द्वारा इन कुरीतियों को कम किया जा सकता है।

(6) वास्तविक जीवन से सम्बन्धित पाठ्यचर्या – इसकी पाठ्यचर्या मनुष्य के वास्तविक जीवन से सम्बन्धित है। इसके अंतर्गत उन सभी विषयों और क्रियाओं को सम्मिलित किया गया है जिससे मनुष्य का सर्वागीण विकास सम्भव हो सके।

(7) क्रिया आधारित शिक्षा – बेसिक शिक्षा क्रिया आधारित होने से बालकों को स्वयं के अनुभवों द्वारा सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस मनोवैज्ञानिक विधि से अर्जित ज्ञान एवं कौशल को स्थायित्व मिलता है।

(8) ज्ञान एवं क्रियाओं में एकरूपता – इसके अन्तर्गत समस्त ज्ञान और क्रियाओं को महत्वपूर्ण मानकर समस्त विषयों और क्रियाओं (हस्तकौशल, उद्योग, सामाजिक पर्यावरण, प्राकृतिक पर्यावरण को एक इकाई माना जाता है) शिक्षण की इस व्यवस्था को समयाव विधि कहते हैं।

(9) विद्यालय एवं समाज में अंतर्सम्बन्ध – बेसिक शिक्षा प्रणाली में विद्यालय एवं समाज अंतः सम्बन्धित है जबकि अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली में विद्यालयों का सामाजिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं था। बेसिक शिक्षा मे समाज से जुड़े विभिन्न पक्षों जैसे- भाषा, हस्तकौशल, उद्योग, उत्सव आदि को विद्यालय से सम्बन्धित किया गया।

बेसिक शिक्षा के दोष (Demerits of Basic Education)

बेसिक शिक्षा की सैद्धांतिक रूप से विवेचना करने पर यह उपयोगी सिद्ध हुई है परन्तु यदि हम इसे व्यावहारिक रूप में समझे तो यह प्रणाली असफल सिद्ध हुई है। इस शिक्षा के दोष निम्नलिखित हैं-

(1) ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित- देश की अधिकांश जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है किन्तु जनसंख्या का एक बड़ा भाग नगरों में निवास करता है। यह शिक्षा नगरीय बच्चों के जीवन से सम्बन्धित न होकर ग्रामीण बच्चों एवं उनकी आवश्यकताओं से सम्बन्धित है। ऐसा प्रतीत होता है कि बेसिक शिक्षा केवल ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ही बनायी गयी है।

(2) केन्द्रीय विषय- हस्तकौशल-बेसिक शिक्षा में हस्तकौशल शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया गया है। इसे पाठ्यक्रम का केन्द्रीय विषय निर्धारित किया गया है। इसे केन्द्र बनाकर अन्य विषयों एवं क्रियाओं को इसी के अनुसार निर्देशित करने पर बल दिया गया। जाकिर हुसैन समिति ने स्कूली समय के 5 घंटे 30 मिनट में से घटाकर 3 घण्टे 20 मिनट इसके लिए निर्धारित किए। शिक्षा में समस्त विषयों एवं क्रियाओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए न कि केवल एक विषय या क्रिया पर ।

(3) अधूरी व्यवस्था – इस योजना में नगरीय बच्चों की उपेक्षा करके मात्र ग्रामीण बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति का ध्यान रखा गया है। इस व्यवस्था में अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की योजना ही मात्र है जबकि इसको राष्ट्रीय शिक्षा योजना कहा जाता है।

(4) प्राथमिक स्तर तक सीमित- बेसिक शिक्षा मुख्यतः ग्रामीण बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर 7 से 14 वर्ष आयु के बच्चों की शिक्षा से सम्बन्धित है। इसकी शिक्षा प्रणाली को उच्च कक्षाओं जैसे— माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा की पाठ्यचर्चा से सम्बन्धित नहीं किया गया है। जबकि बालकों के विकास के लिये शिक्षा का क्रमबद्धीकरण होना आवश्यक है।

(5) निरर्थक शिक्षण विधि- बेसिक शिक्षा में शिक्षण विधि को स्वाभाविक एवं मनोवैज्ञानिक बताया गया है जबकि हस्तकौशल, उद्योग, पर्यावरण, अथवा सामाजिक क्रियाओं को केन्द्रीय विषय मानकर पाठ्यचर्या के अन्य विषयों एवं क्रियाओं के साथ एकीकरण किया जाता है। जिसके फलस्वरूप शिक्षण की स्वाभाविकता और प्रभाविकता दोनों नष्ट हो जाती हैं।

(6) कच्चे माल की बर्बादी- जो कुछ भी बच्चे विद्यालय में बनाते हैं उसे उपयोग नहीं किया जा सकता और न ही उन्हें विक्रय किया जा सकता है। छोटे-छोटे बच्चों से इस तरह की उम्मीद करना बेवकूफी होती है। जिसके परिणाम कच्चे माल की बर्बादी होती है और कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

(7) समय एवं शक्ति का ह्रास- छोटे-छोटे बच्चों को हस्तकौशल में पारंगत करना कठिन है। अतः उनसे किसी प्रकार के उत्पाद को प्राप्त करके विद्यालयों का व्यय निकालना सम्भव नहीं हो सका। इस प्रक्रिया मे कच्चे माल की बर्बादी तो होती ही है साथ ही साथ बच्चों का समय एवं शक्ति का भी ह्रास होता है।

(8) धार्मिक शिक्षा की कमी – भारतीय समाज का आधार धर्म है और बेसिक शिक्षा को आधारभूत शिक्षा कहा जाता है किन्तु इसमें धर्म की शिक्षा को कोई स्थान नहीं दिया गया बल्कि केवल नैतिक शिक्षा को ही मान्य किया गया।

महात्मा गाँधी के शिक्षा दर्शन की उपयुक्तता का मूल्याँकन (Evaluation of Usefulness of Mahatma Gandhi’s Educational Philosophy)

महात्मा गाँधी का शिक्षा दर्शन भारतीय परिस्थितियों के लिए सर्वदा उपयुक्त है। भारतीय आवश्यकता लघु व कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना है ताकि प्रत्येक व्यक्ति आत्मनिर्भर हो सके। यह तभी सम्भव है जब भारतीय नागरिक हृदय में ईश्वर को रखेंगे ताकि सत्य के रास्ते पर चलते हुए सही ढंग से कार्य कर सकें।

अतः यह कहना बिल्कुल सत्य है जो कि डॉ. एम. एस. पटेल ने महात्मा गाँधी के विषय में लिखा है, “महात्मा गाँधी के दर्शन का सावधानी से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उनके शिक्षा दर्शन में प्रकृतिवाद, आदर्शवाद तथा प्रयोजनवाद एक-दूसरे के विरोधी न होकर पूरक हैं।” महात्मा गाँधी के दर्शन को आदर्शवाद आधार प्रदान करता है जबकि प्रकृतिवाद और प्रयोजनवाद इसके सहायक हैं। डॉ. एम.एस. पटेल के अनुसार, “शिक्षा दर्शन अपनी योजना में प्रकृतिवादी अपने उद्देश्य में प्रयोजनवादी हैं।”

शिक्षा दार्शन में महात्मा गाँधी की वास्तविक महानता इस बात में है कि उनके दर्शन में प्रकृतिवाद, आदर्शवाद व प्रयोजनवाद की मुख्य प्रवृत्तियाँ अलग और स्वतन्त्र नहीं है वरन मिलकर एक हो गयी हैं। जिससे ऐसे शिक्षा-दर्शन का जन्म हुआ जो आज की आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त होगा, मानव आत्मा की सर्वोच्च आकांक्षाओं को सन्तुष्ट करेगा।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment