समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definition of Sociology)
समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ है समाज का विज्ञान। इसकी रचना का श्रेय फ्रांस के महान दार्शनिक आगस्त काम्टे (Auguste Comte) को जाता है। समाजशास्त्र से उनका अभिप्राय व्यक्ति व समाज के मध्य सम्बन्धों के अध्ययन में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करना है। उन्होंने सन् 1837 में एक नवीन शास्त्र की रचना की जिसे समाजशास्त्र का नाम दिया गया। काम्टे के बाद सन् 1976 में हरबर्ट स्पेंसर की पुस्तक ‘समाजशास्त्र के सिद्धान्त’ प्रकाशित हुई। इस पुस्तक को समाजशास्त्र के रूप में मान्यता दी गई।
समाजशास्त्र शब्द ‘Sociology’ का हिन्दी रूपान्तरण है। समाजशास्त्र को सामाजिक अन्तर्सम्बन्धों का विज्ञान माना जाता है। यह समूह का अध्ययन कर मानव व्यवहार को प्रभावित करता है। समाजशास्त्र को स्पष्ट करने के लिए समाजशास्त्र की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
मैकाइवर व पेज के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में अध्ययन करता है, यह मानवीय सम्बन्धों का एक संजाल है जिसे समाज कहा जाता है।”
According to Maciver and Page, “Sociology is about social relationship the network of human relationship we call society.”
गिलिन और गिलिन के अनुसार, “व्यापक अर्थों में समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो मानव समूहों के संयोग से उत्पन्न होने वाली अन्तः क्रियाओं का अध्ययन करता है।”
According to Gillin and Gillin, “Sociology in its broadest sense may be said to be of interaction arising from the association of living beings.”
रोसेक व अन्य के अनुसार, “एक विज्ञान के रूप में इसका लक्ष्य मनुष्य के सामाजिक जीवन और उसके सांस्कृतिक तत्व, प्राकृतिक परिवेश, सामूहिक कार्यों, संस्कृति तथा व्यक्तित्व पर भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के प्रतिमानों के प्रभाव व परिवर्तनों के सम्बन्धों के बारे में प्रयोगसिद्ध शोध के आधार पर ज्ञान की खोज करना है।”
According to Roucek and Others, “As a Science it aims to discover through empirical research knowledge about the social life of man and its relations to the factors of culture, natural environment, the functioning of groups, culture, changes and the effect of different patterns of without on personality.”
समाजशास्त्र की प्रकृति (Nature of Sociology)
समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् हम उसकी प्रकृति पर प्रकाश डालना चाहेंगे-
(1) समाजशास्त्र एक विशुद्ध विज्ञान है- समाजशास्त्र की प्रकृति व्यावहारिक विज्ञान की न होकर एक विशुद्ध विज्ञान की है। इसका तात्पर्य यह है कि समाजशास्त्र कार्य के तथ्यों का शुद्ध विश्लेषण करना है। समाजशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति करना है। हम ज्ञान को समाज कल्याण की दृष्टि से प्राप्त नहीं करते हैं। हाँ यह बात अलग है कि हम उस प्राप्त ज्ञान का समाज कल्याण करने में उपयोग कर सकते हैं तथा करते भी हैं।
(2) समाजशास्त्र एक अमूर्त विज्ञान है- चूँकि सामाजिक सम्बन्ध स्वयं में अमूर्त है। अतः उसके अध्ययन की विधि भी अमूर्त सिद्धान्त पर ही आधारित होती है। अन्य शब्दों में, प्रतिदिन घटित होने वाली घटनाओं के मूल में जो प्रक्रियाएँ कार्य करती हैं उन्हीं पर समाजशास्त्र भी अपना ध्यान केन्द्रित करता है। इतिहासकार घटनाओं के मूर्त रूप का अध्ययन करते हैं किन्तु समाजशास्त्री तथ्यों का विश्लेषण करते हैं। समाजशास्त्र अमूर्त सामाजिक घटनाओं में रुचि लेता है।
(3) समाजशास्त्र में सामान्यीकरण पर बल दिया जाता है- समाजशास्त्र में किसी घटना के विशिष्टीकरण या विस्तृत विवरण पर जोर न देकर उस घटना के सामान्यीकरण पर जोर देता है। समाजशास्त्र की रुचि विशिष्ट घटनाओं या व्यक्तियों में नहीं होती है। समाजशास्त्र में घटना का अध्ययन उस घटना की समग्रता को केन्द्र बिन्दु मानकर किया जाता है।
(4) समाजशास्त्र एक तर्कसंगत एवं अनुभवाश्रित विज्ञान है- समाजशास्त्र एक तर्क संगत एवं अनुभवाश्रित विज्ञान है। इस कथन से तात्पर्य है कि समाजशास्त्र की खोज एवं ठोस तथ्यों पर आधारित होती है। ये वह तत्व होते हैं जिनका निर्माण मात्र कल्पना एवं अनुमानों पर नहीं किया जाता है। इन तत्वों का विश्लेषण तर्कपूर्ण ढंग से किया जाता है एवं इन तत्वों के सत्यता की जाँच की जाती है।
(5) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है, विशिष्ट समाज विज्ञान नहीं – समाजशास्त्र जीवन के सामान्य पक्षों का अध्ययन करता है न कि जीवन के किसी विशिष्ट पक्ष का। इसी कारण पी. ए. सोरोकिन (P.A. Sorokin) ने समाजशास्त्र को N+1 विज्ञान कहा है। समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो विशिष्ट विज्ञानों के अन्तर्गत आने वाले सामान्य तथ्यों का अध्ययन करता है।
(6) समाजशास्त्र सिद्धान्तों पर आधारित विज्ञान है – समाजशास्त्र हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष को एक सैद्धान्तिक आधार प्रदान करता है। सामाजिक जीवन में होने वाली प्रक्रियाएँ एवं मूल्य विद्यमान हैं इन सभी की सैद्धान्तिक विवेचना समाजशास्त्र करता है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत् पुराने सिद्धान्तों को नवीन परिवेश एवं तथ्यों की जाँच एवं उनमें हेर-फेर भी कर सकता है। अतः इसमें कोई सन्देह नहीं है कि समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है तथा समाजशास्त्रीय अध्ययनों से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि इसकी प्रकृति ही नहीं इसका दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक है परन्तु इसमें भी कोई सन्देह की बात नहीं है कि अभी भी यह विषय उतना वैज्ञानिक नही हो पाया है जितना प्राकृतिक या चिकित्सा विज्ञान अध्ययन की विषय-वस्तु और उसकी प्रविधियों की कुछ सीमाएँ हैं जिनके कारण समाजशास्त्र प्राकृतिक विज्ञानों की बराबरी में कभी भी खड़ा नहीं हो सकता है।
समाजशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Sociology)
समाजशास्त्र का क्षेत्र व्यापक है। इसके अन्तर्गत सभी सामाजिक सम्बन्धों, क्रियाओं, अन्तःक्रियाओं और इनके परिणामों का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत समस्त सामाजिक सम्बन्धों के परिणामों के सामान्य रूप का ही अध्ययन किया जाता है, विशिष्ट रूप का नहीं। उदाहरण के लिए- राज्य अपने नागरिकों के सम्बन्धों, क्रियाओं तथा परिणामों का अध्ययन करता है न कि उसमें राजनैतिक विचारधाराओं और सिद्धान्तों का। इसलिए समाजशास्त्र को सामान्य सामाजिक विज्ञान भी कहा जाता है और इसी सम्बन्ध में मैकाइवर ने स्पष्ट किया है कि, समाजशास्त्री होने के कारण हमारी रुचि सामाजिक सम्बन्धों में है, इस कारण नहीं कि वे सम्बन्ध आर्थिक, राजनैतिक अथवा धार्मिक हैं, अपितु इस कारण कि वे साथ ही सामाजिक भी हैं।”
समाजशास्त्र की विशेषताएं (Characteristics of Sociology)
समाजशास्त्र की परिभाषा और प्रकृति से हमें इसकी विशेषताओं के बारे में पता चलता है। समाजशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान है जिसकी प्रकृति विज्ञान की तरह पूर्णतः वैज्ञानिक है। समाजशास्त्र की निम्नलिखित विशेषताएँ है –
- समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, प्राकृतिक विज्ञान नहीं।
- समाजशास्त्र एक वास्तविक (निश्चयात्मक) विज्ञान है, आदर्शात्मक विज्ञान नहीं।
- समाजशास्त्र एक विशुद्ध विज्ञान है, व्यावहारिक विज्ञान नहीं।
समाजशास्त्र का शिक्षा से सम्बन्ध (Relation between Sociology and Education)
ज्ञातव्य है कि समाजशास्त्र में समाज और सामाजिक समूहों का अध्ययन और उसके जीवित घटक के मध्य चलने वाली अन्तः क्रिया और इसके परिणामों का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत् व्यक्ति समूहों का व्यक्ति विशेष पर किस प्रकार प्रभाव पड़ता है। को स्पष्ट किया जाता है। इसमें व्यक्ति के व्यवहार निर्धारक अन्य सामाजिक तत्वों उसके समाज, सभ्यता एवं संस्कृति आदि का भी अध्ययन किया जाता है। शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन होता है। अतः यह समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में आती है और दोनों का सम्बन्ध मानव व्यवहार से होने के कारण इनका आपस में गहरा सम्बन्ध है।
समाजशास्त्र में मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन, समाज का जीवन-दर्शन, संरचना, सभ्यता एवं संस्कृति तथा धार्मिक, राजनैतिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन किया जाता है अर्थात् समाजशास्त्र शिक्षा के स्वरूप को निश्चित करने का मूल आधार होता है। शिक्षा मनुष्य के विकास का आधार होती है तथा इसी के द्वारा समाज विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञानार्जन कर विकास करता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि शिक्षा के बिना समाज का वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव नहीं है तथा शिक्षा और समाजशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है।
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