सेमांग जनजाति – निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक संगठन की प्रकृति Semang JanJati in hindi
निवास प्रदेश (Habitat)-
विषुवत रेखीय पेटी में, दक्षिणी थाईलैंड और मलाया की पहाड़ियों में सेमांग जाति के लोग रहते हैं। ये लोग नैगरिटों के समान देखने में नाटे लगते हैं। पुरुषों की ऊँचाई 1.5 मीटर के लगभग तथा स्त्रियों की ऊँचाई 1.5 मीटर से कम होती है। इनका रंग गहरा भूरा (dark brown) तथा नाक चौड़ी होती है। इनके होंठ मोटे तथा बाल धुंघराले एवं काले रंग के
अर्थव्यवस्था (Economy)-
अधिकतर सेमांग जाति के लोग खेती नहीं करते और पशु भी नहीं पालते। ये वनों से प्राप्त पदार्थों पर निर्भर रहते हैं। यहाँ पर प्राकृतिक वनस्पति की अधिकता है, क्योंकि तेज गर्मी, भारी वर्षा तथा उपजाऊ मिट्टी होने के कारण एक ही स्थान पर विभिन्न प्रकार के वृक्ष उग जाते हैं। इसी कारण सेमांगलोग लगातार स्थान परिवर्तन करते हैं तथा एक स्थान पर केवल ये लोग छोटे-छोटे दलों में भ्रमण करते हैं। इनका बढ़े से बड़ा दल 25 कुछ दिनों तक ठहर पातें
या 30 मनुष्यों का होता है, जिसमें बच्चे भी सम्मिलित होते हैं। उष्ण-आर्द्र वनों (hot wet forests) की उपज तथा आखेट (Hunting) पर इनका जीवन-निर्वाह होता है।
बस्तियाँ (Settlements)-
ये लोग झोपड़ियों में निवास करते हैं या तो जंगल के बीच में, कहीं साफ किये गये स्थान पर या किन्हीं झुकी हुई शैलों. की ओट में ये अपनी अस्थाई बस्तियाँ बनाते हैं। इनकी झोपड़ियाँ खजूर (Plam) की पत्तियों से बनाई जाती हैं। एक स्थान पर आधी दर्जन से लेकर 1 दर्जन तक झोपड़ियाँ वृत्ताकार या अण्डाकार प्रतिरूप में बनाई जाती हैं।
झोपड़ियाँ बनाने का काम अधिकतर स्त्रियाँ करती हैं। अपने पति तथा बच्चों के लिए प्रत्येक झोपड़ी को स्त्रियाँ ही बनाती हैं। झोपड़ियों को बनाने में रतन (Rattan) की पतियों का भी प्रयोग होता है, जो बीच में मोड़कर मोटी कर दी जाती हैं। ऋतु के अनुसार, छतों के ढालों (slopes) को कम या अधिक करने के लिए उनके नीचे लकड़ी के डण्डे लगे होते हैं। झोपड़ियों के अन्दर बाँस तथा घास के द्वारा गद्दे बना लिये जाते हैं। अग्नि का उत्पादन बेत की लकड़ियों को आपस में रगड़कर अथवा रत्तन की पत्तियों को बेंत पर रगड़ कर किया जाता है। वर्षा ऋतु में आग जलाने में कठिनाई होती है। अतः इन लोगों में आग को सदा प्रज्ज्वलित रखने तथा अपने साथ ले जाने की प्रथा प्रचलित है।
भोजन (Food)-
सेमांग लोग मुख्यतः शाकाहारी होते हैं। शाकाहारी भोजन में कमी आने पर उन्हें मछली पकड़ने पर बाध्य होना पड़ता है। जंगलों के विभिन्न कन्द-मूल, फलों और वृक्षों की कोपलों को इकट्ठा करके ये अपनी उदरपूर्ति करते हैं। भोजन एकत्र करने का कार्य मुख्यतः औरतें करती हैं, परन्तु पुरुष उनकी सहायता करते हैं। ये औरतें एकत्र किये गये पदार्थ को बाँस या रत्तन से बनी टोकरी में रखकर लाती हैं। खाना बचाकर न रखने के कारण इनको रोजाना भोजन एकत्र करना पड़ता है। इनके भोजन में जंगली रतालू (Yam) का प्रयोग मुख्य रूप से होता है। जहरीले फलों को विभिन्न तरीकों से खाने योग्य बना लिया जाता है। जो भोजन कच्चा नहीं खाया जात, उसे हरे बाँस की नली में रखकर उबाल लिया जाता है। कुछ ऋतुओं में दूरियन (durian) तथा मेगोस्टीन (Mengosteen) आदि फल काफी मात्रा में उपलब्ध होते हैं, जिसके कारण उन्हें भोजन प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती, दूरियन की फसल का इनके जीवन में बड़ा महत्त्व है। यह फल काफी बड़ा होता है और इनमें काफी गूदा होता है। इस फल का वजन कई किलोग्राम होता है। प्रत्येक परिवार के अलग-अलग दूरियन के वृक्ष होते हैं। किसी दूसरे दल के अधिकार क्षेत्र से दूरियन फल तोड़ने पर भीषण लड़ाई होती है। सेमांग लोगों का शिकार छोटे-छोटे पशुओं तक ही सीमित रहता है। बाघ, चीता, हाथी, आदि का ये लोग शिकार नहीं कर पाते। ये चूहों, गिलहरी, पक्षी, छिपकलियाँ और अधिकतर बन्दर तथा जंगली सुअर का शिकार करते हैं।
वस्त्र (Clothing)-
इनके वस्त्र भी वृक्षों की छालों, पत्तियों, बेंत आदि से बनाये जाते हैं। बिना सिले हुए वस्त्रों का प्रयोग किया जाता है। स्त्रियों की वेश-भूषा में बाँस के लम्बे दाँतों वाले कंधे का विशेष महत्त्व होता है। इन कंघों पर चित्रकारी की जाती है। इन लोगों का विश्वास है कि इन कंधों को पहनने वाला बीमारी आदि से बचा रहता है।
औजार (Tools)-
सेमांग लोग धनुष-बाण का प्रयोग करते हैं। बाण या तीर के अग्रभाग को नुकीला किया जाता है तथा उसे एक प्रकार के जहर से विषाक्त कर दिया जाता है। यह विष उपास वृक्ष की गोंद से प्राप्त होता है। ये शिकार को फंसाते भी हैं। पक्षी पकड़ने का काम अंजीर के चिपकने वाले लस (sap) से किया जाता है। नदियों को पार करने में ये कभी नावों का प्रयोग करते नहीं देखे गये। इसके लिए ये बाँस के बेड़े (rafts) तैयार कर लेते हैं। इस प्रकार सेमांग के हथियारों में बाँस का बड़ा महत्त्व है। इसी द्वारा ये शिकार भी करते हैं तथा भोजन भी उबालते हैं। इसक अन्य हथियार, रत्तन, बेंत, गड्ढा खोदने के लिए लकड़ी के डण्डे, तीर-धनुष और बर्छियाँ होती हैं। लकड़ी आदि छीलने के लिए घिसे हुए धार वाले तेज हथियारों का प्रयोग किया जाता है।
क्षेत्र और समाज-व्यवस्था (Terriotyr and organisation)-
प्रत्येक दल का छोटा सा परम्परागत अधिकार क्षेत्र (territory) होता है, जिसका क्षेत्र लगभग 20 वर्ग किमी. होता है| इस क्षेत्र के कुछ विशेष वृक्षों के फलों पर उस दल का अधिकार माना जामा है। सेमांग लोगों को अपना भोजन रोजाना इकट्ठा करना पड़ता है, जिसके लिए पाँच-छह किमी. रोजाना घूमना होता है। किसी एक स्थान के कई दलों में आपसी सम्बन्ध अच्छे होते हैं, परन्तु 20 या 30 किमी. से अधिक दूरी पर स्थित दलों का मिलन बहुत कम होता है। इस प्रकार दलों के छोटे-छोटे समूह बन जाते हैं। इन दलों में कछ सहयोग की भावना हो जाती है।
प्रत्येक दल एक स्वतन्त्र इकाई होता है। डेरा लगाने के स्थान को सबसे वृद्ध मनुष्य इच्छानुसार छाँटा जाता है। प्रत्येक मनुष्य के अपने अलग-अलग औजार तथा हथियार होते हैं। इकट्ठा किया हुआ भोजन साधारणतया दलों में बाँट लिया जाता है। जब कोई आदमी लगभग 18 वर्ष की अवस्था में विवाह करता है तब वह साधारणतया किसी पड़ोसी दल में से कन्या चुनता तथा उसे पत्नी के दल के लोगों के साथ एक या दो वर्ष रहना पड़ता है। इनकी एक प्रथा विशेष रूप से रोचक प्रतीत होती है। युवकों और युवतियों को बारी-बारी से ‘भोजन-निषेध’ व्रत का पालन करना पड़ता है। प्रिय और प्रमुख भोज्य पदार्थ को बारी-बारी से कई बार बहुत दिनों को छोड़ देना पड़ता है। जब तक इनमें पूर्ण युवावस्था न आ जाये, इस व्रत का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता। उल्लंघन करने वाले को घोर दण्ड दिया जाता है। इस व्रत के पीछे एक लक्ष्य छिपा रहता है। इससे प्रौढ़, बूढ़े तथा निर्बल लोगों को भोजन का अधिक अंश मिलता है, जिससे उनमें अधिक काल तक स्फूर्ति बनी रहती है।
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