खो-खो
खो-खो खेल के नियम (Kho-Kho)- भारतवर्ष में प्राचीनकाल से ही बहुत से खेल प्रचलित हैं जैसे रस्साकशी, कबड्डी, कुश्ती, खो-खो आदि। खो-खो पूर्ण रूप से भारतीय खेल है। यह खेल महाराष्ट्र की देन है। प्रारम्भ में इस खेल के निम्न नियम थे- 1. पीछे से खो देना. 2. खिलाड़ी का मुंह विपरीत दिशा में रहना, 3. पीछा करने वाला क्रॉस लाईन के बीच में नहीं जा सकता था, 4. पोस्ट व खिलाड़ी की संख्या और मैदान के बारे में कोई माप नहीं था।
1955 में भारतीय खो-खो संघ का गठन हुआ। 1960 में प्रथम राष्ट्रीय खो-खो पुरुष प्रतियोगिता आयोजित की गई। 1961 में कोल्हापुर में राष्ट्रीय खो-खो खेल प्रतियोगिता में महिलाओं को भी सम्मिलित किया गया।
इस खेल के प्रसार के लिए 1982 में दिल्ली में आयोजित नवें एशियाई खेलों के दौरान खो-खो को प्रदर्शन मैच के रूप में प्रदर्शित किया गया। 1985 में राष्ट्रीय खेल भारतीय ओलम्पिक संघ द्वारा दिल्ली में आयोजित किये गये थे, उसमें खो-खो को भी सम्मिलित किया गया। 1987 में सोवियत संघ के लेनिनग्राद शहर में भारतीय महिला खो-खो टीम का प्रदर्शन किया गया। इसके अतिरिक्त बंगला देश, पाकिस्तान, श्रीलंका, सिंगापुर व नेपाल आदि देशों से भारत के मैत्रीपूर्ण मैच खेले गए।
मैदान (Ground) :
खो-खो के खेल का मैदान समतल भूमि पर आयताकार बनाया जाता है। सीनियर्स के लिए मैदान 29 x 16 मीटर तथा जूनियर्स के लिए 25 x 14 मीटर होता है।
पोल (Pole) :
मजबूती प्रदान करने वाली लकड़ी के दो पोल मध्य लाइन के अन्त में पोस्ट लाइन के मध्य गाड़े जाते हैं। मैदान में इनकी ऊंचाई 120 सेमी से 125 सेमी तथा मोटाई 9 सेमी से 10 सेमी होती।
मध्य रेखा (Centre Line):
मध्य लाइन की लम्बाई 23.50 मीटर तथा चौड़ाई 30 सेमी. होती है, जो एक पोस्ट से दूसरे पोस्ट तक होती है। यह मैदान को दो बराबर भागों में बांटती है।
क्रॉस लाइन (Square) :
मैदान में क्रॉस लाइन 16 मीटर लम्बी तथा 30 सेमी चौड़ी होती है। यह मध्य रेखा से विभाजित होने के बाद दूसरी लम्बाई 7.85 मीटर रहती है तथा जूनियर में यह लम्बाई 6.85 मीटर होती है। मैदान में 7 क्रॉस लाइन होती हैं। जहां पर क्रॉस लाइन मध्य रेखा को काटती है. वहीं पर 30x 30 सेमी का वर्ग बनता है, जिसके ऊपर अनुधावक (Chaser) बैठता है।
वर्ग (Square):
सैन्टर लाइन तथा क्रॉस लाइन द्वारा आपस में कटा हुआ भाग (30 x 30 रोगी का क्षेत्रफल वाला भाग) वर्गाकार कहलाता है। प्रत्येक वर्ग या क्रॉस लाइन के मध्य की दूरी 2.30 मीटर सीनियर के लिए तथा जूनियर के लिए 2.10 मीटर होती है। स्तम्भ रेखा पोस्ट लाइन से पहली क्रॉस लाइन की दूरी 2.50 मीटर होती है।
फ्री जोन (Free Zone):
आयताकार भाग कोर्ट में दोनों किनारों पर बचे हुए भाग को फ्री जोन क्षेत्र कहते हैं। इसका माप 2.75×16 मीटर होता है। जहां चेजर व रनर के लिए कोई दिशा नियम लागू नहीं है।
लॉबी (Lobby) :
क्षेत्र के चारों और 1.50 मीटर से घिरा हुआ क्षेत्र लॉबी कहलाता है।
समय (Time) :
खेल का समय 9-8-9, 9-6-9 मिनट होता है। मध्यान्तर 9 मिनट का होता है। जूनियर के लिए यह खेल 7-3-7, 7-3-7 मिनट होता है। विश्राम 7 मिनट का होता है।
टर्न (Turn):
9 मिनट के खेल को एक टीम खेलती है। उस अवधि को टर्न कहते हैं। दो टर्न मिलाकर एक पारी कहलाती है। यह खेल दो पारियों का होता है।
खिलाडी (Players) :
टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं। मैदान में सिर्फ 9 खिलाड़ी ही भाग लेते हैं तथा तीन अतिरिक्त खिलाड़ी होते हैं।
मैच-निर्णायक (officials for Match) :
- अम्पायर दो
- रेफ्री – एक
- टाईम कीपर – एक
- स्कोरर – एक
अम्पायर (Umpire) :
अम्पायर लॉबी के बाहर खड़े होंगे एवं केन्द्रिय रेखा गली के द्वारा विभाजित अपने स्थान से खेल की देख-रेख करेगें। वह अर्द्धक से सभी निर्णय देगा एवं एक-दूसरे को निर्णय में सहायता करेगा। साथ ही साथ फाउल की घोषणा करेगा।
रेफ्री (Referee) :
रेफ्री एक होता है। स्कोरशीट, मैदान की जांच मैच शुरू होने से पहले टॉस करना, प्रत्येक पारी के अन्त में टीमों के अंक तथा परिणाम की घोषणा करेगा।
समयपाल (Timekeeper) :
समय को रिकॉर्ड करना, सीटी बजाकर पारी आरम्भ करना, प्रत्येक मिनट के पश्चात ऊंची आवाज में बाजू खड़ी करके समय बताना, पारी समाप्ति पर लम्बी सीटी बजाना एवं रेफ्री को घड़ी चैक करवाना।
स्कोरर (Scorer) :
स्कोरर खेल के आरम्भ होने से पहले दोनों टीमों के कप्तानों से खिलाड़ियों के नाम व नम्बर नोट करता है, धावकों को अपने ब्लॉकों में बैठाना, खिलाड़ी आउट होने पर उसके विपरीत टीम के अंक का हिसाब-किताब रखना, खेल समाप्ति पर स्कोरशीट तैयार कर रेफ्री को देना। इसके बाद रेफ्री परिणाम सुनाता है।
खो-खो खेल के नियम (Kho-Kho)- मैच सम्बन्धी नियम (Rules of the Match) :
1. प्रत्येक टीम में खिलाड़ियों की संख्या 12 होती है। 9 खिलाड़ी मैदान में तथा 3 खिलाड़ी स्थानापन्न होते हैं।
2. अनुधावक (चेजर) समय से पहले ही अपनी पारी समाप्त कर सकते हैं। यह कप्तान के अनुरोध पर ही सम्भव है तथा जितनी देर एम्पायर मैच को समाप्त नहीं करता है तब तक मैच जारी रहेगा।
3. अनुधावक पक्ष को प्रत्येक धावक के आउट होने पर एक अंक दिया जाता है। सभी धावकों के समय से पहले आउट हो जाने पर दुबारा धावक तीन के समूह में आते रहते हैं, जब तक पारी की समापित न हो जाए।
यदि किसी टीम के अंक दूसरी टीम से पहली पारी के पश्चात् 12 अंक अधिक होंगे तो वह फॉलोऑन दूसरी टीम को दे सकता है।
खो-खो खेल के नियम (Rules of the Game)
1. अनुधावक के शरीर का कोई भी भाग केन्द्रिय गली रो स्पर्श नहीं करेगा न ही रोन्टर लाइन को क्रॉस करेगा।
2. अटैकर खो देने के बाद तुरन्त खो पाने वाले चेजर का स्थानग्रहण करेगा। खो देना और साथ बैठना एक साथ होना चाहिए।
3. अनुधावक वही दिशा ग्रहण करेगा जिस ओर उसका मुंह होगा अर्थात् जिस ओर उसने अपने कंधे को मोड़ा था, उसी ओर दिशा ग्रहण करेगा।
4. चेजर इस प्रकार वर्ग में बैठेगा कि धावकों के मार्ग में रुकावट न पहुंचाये।
5. कोई भी रनर बैठे हुए चेजर को छू नहीं सकता। इस संदर्भ में उसे चतावनी दी जायेगी। इसके बाद भी वह यह गलती करता है, तो उसे आउट करार दिया जाता है।
6. यदि रनर के दोनों पैर सीमा रेखा के बाहर हों, तो वह आउट माना जायेगा।
7. यदि कोई चेजर क्रॉस लाइन को पार करता है, तो वह पार की गई क्रॉस लाइन पर खो नहीं दे सकता है अर्थात् उसे खो देने के लिए अगली क्रॉस लाइन पर जाना होगा।
8. आउट हुआ रनर लॉबी से होता हुआ अपने बैठने के स्थान पर जायेगा।
9. धावक क्रमानुसार स्कोरर के पास नाम व नम्बर दर्ज करवाते हैं। शुरू में 3 रनर मैदान में रहते हैं। इन तीनों के आउट होने पर दूसरे तीन खिलाड़ी खेलने के लिए मैदान में आते हैं।
10. चेजर के शरीर का कोई भी भाग सेन्टर लाइन को टच नहीं करेगा और न ही क्रॉस लाइन से बाहर रहेगा। उसे 30×30 सेमी वर्ग में ही बैठना होगा।
दोष (Faults):
1. एक साथ खो नहीं देना :
जब चेजर एक साथ खो नहीं देता है, तो वह दोष है अर्थात् मुंह से खो की आवाज और हाथ से छूना दोनों माना जाता है।
2. केन्द्रिय गली को छूना :
जब चेजर उठते समय या खो देते समय क्रॉस लाइन को छू ले, तो वह दोष माना जाता है।
3. खो देने से पहले खड़े होना :
जब बैठा हुआ अनुधावक खो देने से पहले ही उठ जाता है, तो वह फाउल माना जाता है।
4. क्रॉस लाइन से सम्बन्ध टूटना :
जब अनुधावक को आउट करने के लिए खो मिलते ही खड़ा होता है, तो उसको अपने कंधों की दिशा के साथ ही क्रॉस लाइन डाइरेक्शन रखना भी अनिवार्य होता है। जब वह एक बार बांयी ओर निकलता है, फिर दांयी तरफ जाता है, तो दोष है।
5. खो देने से पहले हिलना
जब सक्रिय चेजर रनर को आउट करने हेतु उसका पीछा करता है, तो बैठे अनुधावक भी मन में यह रखते हैं, कि उनको खो आने वाली है, मगर सक्रिय चेजर खो नहीं दे कर आगे चला जाता है, परन्तु जब बैते हुए चेजर हिल जाते हैं, तो यह दोष माना जाता है।
6. दिशा परिवर्तन :
जब सक्रिय अनुधावक धावक का पीछा करता है, वह उस पर ड्राइव लगाता है तब उसकी दिशा परिवर्तन हो जाती है तो वह दोष माना जाता है।
कौशल (Skills):
1. सिम्पल खो
इसमें सक्रिय अनुधावक बैठे हुए अनुधावक को साधारण विधि से खो देता है।
2. लेट खो
यह खो रनर को चकराकर आउट करने के प्रयास में रनर को देखते हुए पीछे-पीछे खो देता है। जब भी कोई रगर चेन खेलता है तो उस समय सक्रिय चेजर, रनर के मूवमेंट को देखते हुए थोड़ीसी देरी से खो देता है, क्योंकि रनर अपनी गति खो की आवाज सुनकर अपना मूवमेंट रखता है तथा उसकी गति को तोड़ने के लिए लेट खो देता है।
3. एडवांस खो
जब कोई रनर डबल चैन खेलता है तो उस समय सक्रिय चेजर, रनर से आगे निकलकर खो देता है।
4. पोल खो
यह एक एडवांस गैथड़ है जिसमें सक्रिय चेजर द्वारा पोल पर इसका प्रयोग होता है। इस विधि को दो तरीकों से प्रयोग में लेते हैं।
(अ) स्टैंडिंग पोल डाइव (Standing Pole Dive) :
जब पोल सक्रिय चेजर के बांये हाथ में हो तो उस समय नं. 8 पर बैठा हुआ अनुधावक अपनी दायी टांग Leg Cross Step वर्ग में पहले बाहर निकालेगा, फिर बांयी टांग पोल के लगभग समीप सेन्टर लाइन से बाहर रखता हुआ पोल के ऊपर से डाइव मारेगा। सक्रिय चेजर का वजन बांयी टांग पर दूसरी टांग, पीछे को हवा में और दांयी बाजू कोहनी जोड़ द्वारा पोल को पकड़ता हुआ बांयी बाजू सीधी रनर की ओर बढ़ायेगा। सक्रिय चेजर पोल पर स्थिति और चोट से बचने के लिए पेट का नरम भाग पोल के साथ लगायेगा। पोल डाइव के पश्चात् चेजर पोल लाइन क्रॉस करके वापिस जायेगा।
(ब) रनिंग पोल डाइव (Ruming Pole Dive) :
रनिंग पोल डाइव से पहले सभी सिद्धान्त Standing Pole Dive वाले ही होंगे। इसमें पीछे की ओर से भागता हुआ खिलाड़ी बिना किसी रुकावट के स्तम्भ मारता है। इसमें शरीर की स्थिरता और चोट से बचने के लिए अधिक ध्यान देना पड़ता है।
5. रिंग गेम
यह रनर द्वारा खेली जाने वाली पद्धति है। इसमें रनर चेजर को छकाते हुए रिंग खेलता है तथा इसमें रनर को थकान कम होती है। यह दो स्थानों पर खेली जाती है। पहली मैदान के मध्य में तथा दूसरी दोनों पोल में से किसी एक पोल पर खेली जाती है।
स्थानापन्न खिलाड़ी (Substitute Player) :
धावक खिलाड़ियों में स्थानापन्न नहीं हो सकता है। अनुधावक खिलाड़ियों में यदि किसी को चोट लग जाए और रेफ्री को ऐसा लगे कि वह नहीं खेल सकता है, तो उसकी जगह दूसरा खिलाड़ी खेल सकता है। जो खिलाड़ी एक बार बाहर जो जाए. दोबारा मैदान में नहीं आ सकता है।
देर से प्रवेश (Late Entry) :
धावक खिलाड़ी 3-3 के बैच में मैदान में उतरते हैं। जब अनुधावक उस बैच के आखिरी धावक को आउट करता है, तो दूसरे अनुधावक को खो देता है। खो देने से पहले 3 का बैच मैदान के भीतर आ जाना चाहिए। यदि नहीं आए तो लेट एन्ट्री मानी जाती है। यदि खिलाड़ी खो देने के बाद मैदान में उतरता है, तो वह आउट माना जायेगा। इसी तरह 3-3 का बैच समय समाप्त होने तक खेलता रहता है।
अर्जुन अवार्ड प्राप्त खो-खो खिलाड़ी :
1. नीलिमा. 2. श्रीरंग जनार्दन, 3. डी.एस. रामचन्द्रन, 4. सुषमा सारोलकर, 5. उषा वसन्त, 6. शान्ता राम यादव, 7. एस. प्रकाश, 8. सुरेश भार्गव
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