कबड्डी (kabbadi)
परिचय :
कबड्डी भारत के अत्यधिक लोकप्रिय खेलों में से एक है। देश के कई क्षेत्र यह दावा करते हैं कि यह खेल उनके यहां से शुरू हुआ और यह लम्बे समय से देश के विभिन्न भागों में काफी लोकप्रिय है। यह खेल हर जगह पर अलग रूप से व अन्य तरीके से एक लोकप्रिय खेल के रूप में गांव व शहर दोनों में खेला जाता है। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे दक्षिण में गुडु-गुडु, बंगाल में डो–डो और महाराष्ट्र में हू-तू-तू के नाम से जाना जाता है। कबड्डी फेडरेशन ऑफ इंडिया के नियमानुसार कबड्डी का एक ही रूप मान्य है। इस खेल को हू-तू-तू नाम महाराष्ट्र ने दिया, जहां धावा बोलने वाला (रेडर) अभी भी हू-तू-तू का प्रयोग करता है।
वैसे तो कबड्डी पूरे देश में खेली जाती है और गांवों में शहरों की अपेक्षा इसे और भी ज्यादा तरजीह दी जाती है यह खेल महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात और मध्यप्रदेश विशेष तौर पर लोकप्रिय है। पाकिस्तान, श्री लंका, बर्मा, नेपाल और कुछ अन्य देशों में भी यह खेल खेला जाता है। आधुनिक तरीके से पहली बार हू-तू-तू का आयोजन 1918 में खेल प्रेमियों द्वारा सतारा में किया गया। 1921 में सतारा और परोना में कुछ नियमों को अपनाने के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। 1923 में हिंद विजय जिमखाना, बडौदा की विशेषज्ञ समिति ने खेल के कुछ नियम बनाये व उन्हें प्रकाशित कराया और उसी साल बडौदा में इन्हीं नियमों के आधार पर अखिल भारतीय प्रतियोगिता आयोजित की गई। 1931 में अखिल महाराष्ट्र शारीरिक परिषद के नाम से एक कमेटी का गठन किया गया जिसने नियमों में संशोधन कर 1934 में उन्हें प्रकाशित किया।
1936 के बर्लिन ओलम्पिक के दौरान अमरावती के हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल ने एक प्रभावी प्रदर्शन किया जिसके परिणामस्वरूप 1938 में कलकत्ता में भारतीय ओलम्पिक खेल कार्यक्रम में कबड्डी को भी शामिल कर लिया गया और तब से लेकर आज तक कबड्डी इन खेलों का अभिन्न अंग बनी हुई है, जो 1952 से राष्ट्रीय खेल कहलाने लगीं और हर वर्ष आयोजित होने लगी। कबड्डी फेडरेशन ऑफ इंडिया 1952 में अस्तित्व में आया जिसके पहले अध्यक्ष श्री एल.के. गौडबोले थे। तब से लेकर अब तक फेडरेशन ने तेजी से प्रगति की है। क्षेत्रीय एसोसिएशनें बनायीं गयी और आल इंडिया फेडरेशन से सम्बद्ध करायी गयीं, इस सब के कारण ही हर वर्ष राष्ट्रीय चैम्पियनशिप आयोजित कराना संभव हो सका है।
1955 में कलकत्ता में आयोजित राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में महिलाओं के लिए भी एक प्रतियोगिता आयोजित की गई। 1961 में अन्तर-विश्वविद्यालय खेल बोर्ड ने भी कबड्डी को अपने कार्यक्रम में शामिल कर लिया और नागपुर विश्वविद्यालय ने पहली टूनामेंट आयोजित की।
कबड्डी खेल
कबड्डी का खेल अपने विपक्षी पर उसके मैदान में नियम अवधि के लिए जा-जाकर सतर्कता से धावा बोलने वाला खेल है और धावा बोलने वाले खिलाड़ी को बिना सांस लिये लगातार कबड्डी-कबड्डी बोलते रहना होता है। प्रतिरक्षण वाले खिलाड़ियों को विपदी कहा जाता है। एक आक्रांता खिलाड़ी अपने धावे की प्रक्रिया में बचाव टीम के कितने ही खिलाड़ियों को छू सकता है इसलिए उसे ‘सुरक्षित’ वापस पहुंचने के लिए बिना सांस लिये और लगातार कबड्डी बोलते अपने मैदान में वापस आना होता है।
आक्रांताओं से भिड़ने के लिए विपक्षियों को सदा धावा बोलने वाले को पकड़ लेना चाहिए और उरो तब तक अपने मैदान में पकड़े रहना चाहिए जब तक कि उराका सांरा न टूट जाये। यदि पकड़ा गया आकांता शरीर के किसी भी भाग द्वारा मिड लाइन को छू सकाने में कामयाब हो जाता है, तब उन समी विपक्षियों जिन्होंने उसे पकड़ रखा है, या जिनको आक्रांता ने छूआ था, को बाहर करार दिया जाता है।
एक आक्रांता यदि किसी कारण से विपक्षी टीम के मैदान में सांस तोड़ दे या कबड्डी कबड्डी लगातार न बोल पाये तो उसे बाहर कर दिया जाता है। हमले में जब एक विपक्षी ‘बाहर हो जाता है तब आक्रांता को एक अंक गिल जाता है और जब एक ओर की पूरी टीम ‘आउट’ करार की जाये तो उनकी विपक्षी टीम को अतिरिक्त अंक, लोना मिल जाता है। ‘लोना हारी हुई टीम को खेल जारी रखने के लिए पुर्नजीवित करता है बशर्ते कि खेल के लिए निर्धारित समयावधि पूरी न हुई हो अर्थात् दोनों हाफ के लिए 20-20 मिनट । ज्यादा अंक जीतने वाली टीम को विजेता घोषित कर दिया जाता है।
जो खिलाड़ी आउट करार दिये जाते हैं वे अपने अपने मैदान की सीध में बाहर की ओर बने बैठने के स्थल पर बैठ जाते हैं और उन्हें पुनः बुलाया जा सकता हे जब विपक्षी टीम का कोई सदस्य ‘आउट’ हो जाता है। एक विपक्षी के पकड़े जाने पर एक खिलाड़ी पुनः जीवित हो जाता है।
पुरुषों व महिलाओं के लिए कबड्डी के मैदान का माप
मैदान की लम्बाई | 13.50 मीटर | 12 मीटर |
मैदान की चौड़ाई | 10 मीटर | 8 मीटर |
प्रकोष्ठ की चौड़ाई | 1 मीटर | 1 मीटर |
बाधा रेखा से मध्य रेखा की दूरी | 3.75 मीटर | 3 मीटर |
बोनस रेखा | 4.75 मीटर | 4 मीटर |
सीटिंग ब्लॉक की लम्बाई | 8 मीटर | 8 मीटर |
सीटिंग ब्लॉक की चौड़ाई | 1 मीटर | 1 मीटर |
अंतिम छोर से सीटिंग ब्लॉक की दूरी | 2 मीटर | 2 मीटर |
मैच की अवधि (दो अवधियां) | 20 मीटर प्रत्येक | 15 मीटर प्रत्येक |
अन्तराल समय | 5 मीटर | 5 मीटर |
खिलाड़ियों की संख्या :
एक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं। एक समय में 7 खिलाड़ी ही खेल सकते हैं। पांच खिलाड़ी प्रतिस्थापन्न होते हैं, इनका तभी प्रतिस्थापन्न किया जाता है जब कोई खिलाड़ी अच्छा नहीं खेल पा रहा हो या घायल हो जाये।
अधिकारियों की संख्या :
- रैफरी – एक
- अम्पायर- दो
- कैमरामैन – दो
- स्कोरर – एक
मौलिक आक्रामक दक्षता :
कबड्डी का खेल तात्विक रूप से छूने का खेल है और इसलिए इसमें बड़ी ही चुस्ती-फुर्ती से दांव पेंच चलये जाते हैं जिनमें चकमा देना, तेजी से मछुड़ना, आगे बढ़ना और मुड़ना आदि शामिल है। कबड्डी खिलाड़ी को हष्ट-पुष्ट एवं ताकतवर होना चाहिए चाहे वह विपक्षी को पकड़ रहा हो अथवा विपक्षी द्वारा पकड़ा गया हो तो छूटने के लिए पर्याप्त विरोध कर सके आक्रामक दक्षता वहा होती हे जो एक सफल धावक के लिए आवश्यक है।
हाथ से छूना :
विपक्षी को छूने के कई तरीके हैं, लम्बित, अधोगामी, उर्ध्वगामी और समानान्तर। हाथ या बाजू से अपने विपक्षी को छूने का मामला अलग-अलग स्थितियों पर निर्भर करता है जैसे विपक्षी की ऊँचाई क्या है वह खड़ा किस ढंग से है आदि आदि।
टांग बढ़ाना:
टांग बढ़ाने में आमतौर पर पसरने वाली मुद्रा अपनाई जाती है। इस क्रिया में बड़ी तेजी की आवश्यकता होती है, दोनों ही स्थिति में आगे बढ़ने व पीछे लौटने में। टांग को अधिकतम पसारा जाता है और इसे शीघता से वापस लोकर संतुलन बनाये रखा जाता है। आक्रांता अपनी टांग बड़ी ही चतुराई से अपने विपक्षी को छूता है और द्रुत गति से इसे वापस ले आता है ताकि उसके विरोधी उसे पकड़ न सके।
अग्र पाद प्रहार एवं पार्य पाद प्रहार :
अग्र एवं पार्श्व पाद प्रहार एक जैसे ही हैं। दोनों ही अग्र और पार्श्व ढंग से निष्पादित होते हैं। पार्श्व प्रहार आमतौर पर अचानक प्रयोग किया जाता है जब आक्रांता अपने विपक्षियों पर निगाह रखने के लिए एक कोने पर विपरीत पार्श्व पंक्ति के सम्मुख खड़ा होता है, जो उसे घेरने के प्रयास में रहते हैं। यह इस तरीके से प्रयोग में लाया जाना चाहिए कि विपक्षी को चकित कर दे जो कि आक्रांता के निकट आता है।
दुलत्ती प्रहार या पश्च प्रहार :
दुलत्ती पीछे की तरफ गधे या खच्चर की तरह लात मारने की तरह होती है, और प्रहार तब प्रयोग में लाया जाता है जब विपक्षी आकांता के पीछे आ रहा हो। कुछ मामलों में विपक्षी आक्रांता का पीछे से पीछा करता है और तब आक्रांता अचानक धीरे होता है या रूक जाता है और पीछे की ओर प्रहार करता है। जब एक आक्रांता को यह आभास हो जाता है कि विपक्षी उसका पीछा कर रहा है और उसके बिल्कुल निकट आ गया है, दुलत्ती प्रहार विरोधी पर अचानक और तेजी से किया जाता है।
कूदना और झपट मारना :
इसमें विपक्षी के मैदान में अचानक छलांग लगाना शामिल होता है। बिना किसी को नुकसान पहुंचाये झपट मारने की योग्यता या बिना संतुलन खोये अपने विपक्षी को छूने का प्रयास करना, जो कि उसका पीछा कर रहा है, व्यक्तिगत क्षमता के अनुरूप विकसित कर लेनी चाहिए। छूना केवल तभी प्रभावी होगा जब पीछा करने वाला विपक्षी मैदान में ही हो, उसके शरीर का कोई अंग या अवयव अपने कोर्ट में नहीं होना चाहिए। पीछा करने वाले को तेजी से धावा बोलने वाला और तेजी से मुड़ने वाला होना चाहिए।
रक्षात्मक दक्षता :
रक्षात्मक दक्षता जैसी किसी चीज का कबड्डी में अस्तित्व नहीं है। अधिकतर दक्षता एक आक्रांता के हमले से बचाने का कौशल ही दक्षता है। जैसा कि पकड़ने व पकड़े रहने में बाजुओं की ही अधिक भूमिका होती है, कबड्डी खिलाड़ी को अपनी पकड़ व बाजुएं मजबूत बना लेनी चाहिए। बाजू, हाथ और उंगलियों का प्रयोग खिलाड़ी की योग्यता पर निर्भर करता है। आक्रांता या रेडर के शरीर के असुरक्षित
अंग जिन पर हमला किया जा सकता है :
अंगुलियां, कलाई, कंधे, टखने, पुटने, जांघ और कमर हैं जिन्हें आमतौर पर आक्रांता के पकड़े जाने वाला हिस्सा माना जाता है। आक्रांता के इन्हीं हिस्सों को आमतौर पर पकड़ा जाता है। रक्षात्मक दक्षता की प्रक्रिया में बाहर होने का खतरा हमेशा बना रहता है। कप्तान भी रक्षात्मक दक्षता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह हर कार्रवाई का मूक निर्देश देता है और यह निर्देश क्षमता टीम की प्रकृति और उसकी समझ पर निर्भर करती है।
कलाई पकड़ :
कलाई या बाजू के अग्र भाग की पकड़ आक्रांता के प्रबाहु के किसी भी अंग पर की जा सकती है, लेकिन कलाई के निकट की पकड़ को ज्यादा अधिमान दिया जाना चाहिए। यह पकड़ तब की जाती है जब रेडर विपक्षी खिलाड़ी को सामने या पार्श्व से छूने के लिए हाथ फैलाता है। विपक्षी को इस कार्रवाई को चकमा देना अत्यंत आवश्यक है। विपक्षी को पहले एक हाथ पकड़कर रेडर की मुस्तैदी को जांच लेना चाहिए। एक हाथ को पकड़ना तब सुरक्षित रहता है जब रेडर का ध्यान किसी अन्य विपक्षी की और बंटा हुआ हो।
सामान्य पकड़ :
यह पकड़ लाठी पकड़ की तरह है- यह आमतौर पर घुटनों की पकड़ में काम आती है।
टखना पकड़:
टखना पकड़ को प्रायः तब प्रयोग में लाया जाता है जब रेडर विपक्षी को टांग से छूने का प्रयास करता है या जब रेडर विपक्षी की तरफ पीठ करके खड़ा हो। टखना सामान्य पकड़ के रूप में पकड़ना चाहिए या अंगुलियों से कसकर पकड़ लें। स्वाभाविक रूप से विपक्षी को इस तरह से कसकर पकड़ा जाना चाहिए जैसे हम लाठी को पकड़े रहते हैं- एक के ऊपर दूसरा हाथ ।
घुटना पकड़ :
जब रेडर अपनी टांगों सहित आगे की ओर झुकता है तब यह पकड़ की जानी चाहिए. घुटनें को या तो सामान्य पकड़ के रूप में या फिर दोनों हाथों की अंगुलियों के बीच जकड़ कर रखा जाना चाहिए। यदि घुटनें को थोड़ा ऊपर उठा लिया जाये तो पकड़ और भी अधिक प्रभावी होगी क्योंकि इससे रेडर का संतुलन बिगड़ जायेगा।
लोना:
यदि एक टीम दूसरी पूरी टीम को ‘आउट’ कर है तब उन्हें लोना स्कोर मिल जाता है। लोना से हमें दो अतिरिक्त अंक मिल जाते हैं और तब इसके बाद फिर खेल शुरू हो जाता है।
खास बोली:
आक्रांता या रेडर के लिए शब्दाडम्बर या एक खास बोली का अत्यधिक महत्व है। रेडर को एक ही सांस की अवधि में अपना धावा शुरू और खत्म करना होता है जिससे अम्पायर भी संतुष्ट हो। रेड की अवधि के दौरान यह आवाज स्पष्ट तौर पर व लगातार सुनाई देती रहनी चाहिए। यह खास बोली (कबड्डी कबड्डी) तभी शुरू हो जाती है जब रेडर विपक्षी टीम के मैदान में प्रवेश करता है और नियमानुसार खास बोली के लिए कबड्डी कबड्डी शब्द इस्तेमाल में लाया जाता है। यह शब्द रेडर लगातार उसी गति से दोहराता रहता है जो उसके लिए अधिक सुविधाजनक हो। यदि रेडर विपक्षी टीम के मैदान में ही सांस तोड़ देता है, तब अम्पायर उसे वापस उसके मैदान में बुला लेता है और तब विरोधी टीम को रेड की बारी दी जाती है। आमतौर पर रेडर 25 से 30 सैकण्ड से अधिक समय तक कबड्डी-कबड्डी शब्द नहीं बोल सकता। ‘कबड्डी’ शब्द का दोहराना और साष्ट एवं ऊंची आवाज को एक ही सांस में चलती है को ‘कॅट’ कहा जाता है
सांस तोड़ना :
‘कबड्डी’ शब्द बोलना बंद करना, स्पष्ट आवाज न आने अथवा सांरा ले लेने को सांरा तोड़ना कहा जाता है। एक कैंट को एक ही सांस से शुरू और उसी सांस में खत्म होगा चाहिए।
रेडर या आक्रांता:
एक खिलाड़ी जो विपक्षी टीम के मैदान में ‘कैंट’ के साथ जाता है उसे रेडर के रूप में जाना जाता है। रेडर को मध्य रेखा पार करने से पूर्व कैट शुरू कर देना चाहिए।
विपक्षी या विरोधी:
उस टीम का प्रत्येक सदस्य जिसके मैदान में रेड डाली जाती है, को विपक्षी या एंटी रेडर कह जाता है।
दाव पेंच:
(क) बोनस प्वाइंट लेना :
- रेडर के बोनस लाइन को पूरी तरह पार कर लेने पर एक अंक दिया जाता है। यदि रेडर को पकड़ लिया जाता है तो उसे आउट करार दिया जाता है और विरोधी टीम को एक अंक मिल जाता है। रेडर को एक अंक पहले बोनस लाइन पार करने पर भी दिया जाता है।
- बोनस पांइट के लिए किसी को पुनः जीवित नहीं किया जा सकता।
- यदि रेडर बोनस लाइन को पार कर एक या अधिक विपक्षी को छूकर अपने मैदान में सुरक्षित पहुंच जाता है तब उसे उन अंकों के अलावा एक अंक बोनस का भी दिया जाता है।
(ख) बोनस लाइन पार करना :
तभी लागू होगा जब मैदान में कम से कम 6 खिलाड़ी हो। बोनस प्वांइट रेड के पूरा होने पर
ही मिलेगा। यदि विपक्षी कोर्ट में 6 से कम खिलाड़ी हैं तब बोनस अंक नहीं मिलेगा।
(ग) लोना टालने के दाव पेंच :
- जब खेल में बढ़त हासिल हो।
- जब केवल तीन ही विपक्षी खिलाड़ी हों।
- जब केवल दो ही विपक्षी हों।
- रेडर को प्रति-प्रहार से बचने के लिए सुरक्षित खेल खेलना चाहिए।
खेल के नियम :
1. टौस जीतने वाली साइड ही यह निर्णय करती है कि वह रेड करेगी या पसन्द किये कोर्ट में रहेगी। दूसरे हाफ में मैदान बदला जाना चाहिए। दूसरे हाफ के बाद खेल उन्हीं अंकों से आगे शुरू होगा जितना पहले हाफ की समाप्ति पर था।
2. यदि कोई खिलाड़ी खेल के दौरान सीमा से बाहर चला जाता है तो उसे ‘आउट’ करार दे दिया जाता है।
3. यदि एक विपक्षी सीमा से बाहर चला जाता है और रेडर को पकड़ लेता है, तब रेडर को ‘आउट’ करार दिया जाता है।
4. सम्पर्क में आने वाला भाग अवश्यमेव अन्दर होना चाहिए।
5. जब खेल शुरू हो जाता है तब खेल के मैदान में लॉबी भी शामिल हो जाती है। अतः खेल रहा खिलाड़ी अपने कोर्ट में जाने के लिए लॉबी का भी इस्तेमाल कर सकता है।
6. रेडर को ‘कबड्डी कबड्डी’ शब्द लगातार बोलते रहना होता है। यदि वह कबड्डी शब्द नहीं बोलता तो उसे अम्पायर द्वारा वापस बुला लिया जायेगा और विरोधियों को रेड का मौका दिया जायेगा।
7. जब रेडर विपक्षी मैदान या पाले में प्रविष्ट होता है तभी से उसे कबड्डी-कबड्डी बोलना शुरू हो जाना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता तो अम्पायर उसे वापस बुला लेगा और वह रेड डालने की अपनी बारी गंवा देगा और ऐसी स्थिति में विरोधी टीम को रेड का मौका दिया जाता है। यदि वह नियमों का उल्लंघन करता है तो विपक्षी को एक अंक दिया जाता है और रेडर सुरक्षित रहता है।
8. रेड के बाद जगर रेडर अपने मैदान लौट आता है या विपक्षी उसे निकाल देते हैं तब विरोधियों को रेडर को तुरंत मेजना होता हैं
9. यदि रेडर जो कि विपक्षियों द्वारा पकड़ लिया जाता है, उनकी पकड़ से बचकर निकल कर अपने मैदान में सुरक्षित लौट आता है तब उसे अंक दिया जाता है।
10. एक समय में केवल एक आक्रांता या रेडर ही विपक्षी मैदान में जा सकता है।
11. यदि एक रेडर विपक्षी पाले में रेड के दौरान सांस तोड़ देता है तब उसे आउट करार दे दिया जाता है।
12. कोई रेडर या विपक्षी अपने विरोधी को मैदान से बाहर नहीं धकेल सकता। यदि कोई खिलाड़ी ऐसा करता है तब उसे ‘आउट ‘ करार दे दिया जाता है।
13. यदि एक टीम अपनी विरोधी पूरी टीम को ‘आउट’ कर देती है तब उसे ‘लोना’ मिलता है ‘लोना’ के लिए दो अतिरिक्त अंक मिलते हैं और इसके बाद खेल जारी रहता हैं
14. ‘आउट’ खिलाड़ी को उसी क्रम में पुनः ‘जीवित किया जा सकता है जिस क्रम में वह आउट हुआ था।
15. दोनों ओर के किसी भी खिलाड़ी के आउट होने पर एक अंक मिलता है। जिस टीम को लोना दिया जाता है उसे दो अतिरिक्त अंक दिये जाते हैं।
फाउल्स:
- कोई खिलाड़ी रेडर की कैंट को दबा नहीं सकता चाहे वह गुंह दबाने से हो या किसी अन्य तरीके से हो।
- हिंसात्मक तरीके से खिलाड़ी के शरीर को घायल कर देना।
- रेडर को टांगों की फैबी मारकर पकड़ना।
- एक टीम यदि रेडर भेजने में पांच सैकण्ड से अधिक समय लेती है।
- खिलाड़ियों को बाहर से प्रशिक्षकों या खिलाड़ियों द्वारा कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाना
भारत में सबसे अच्छा कबड्डी कोच कौन है?
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