सामाजिक स्तरीकरण (SOCIAL STRATIFICATION)
समाजशास्त्र में सामाजिक स्तरीकरण का अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है। जब हम समाज के विभिन्न रूपों का विस्तृत अध्ययन करते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि समाज में प्रायः सभी व्यक्ति एक दूसरे से परस्पर सम्बन्धित होते हैं किन्तु उनकी सामाजिक स्थिति अलग एवं विशिष्ट रूप में होती है। जैसे- डॉक्टर, इंजीनियर, मैकेनिक, शिक्षक, व्यापारी, मजदूर, पुलिस, नर्स, ड्राइवर, आदि। उन सभी का विभिन्न आधारों पर समाज में उनकी स्थिति एवं उनके व्यवसायों का निर्धारण होता है। सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में एंथोनी गिडिंस ने सन् 1998 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘Sociology’ में उल्लेख किया है। इसमें इन्होंने स्तरीकरण को संरचित असमानता के आधार पर व्याख्यित किया है तथा व्यक्तियों के विभिन्न समूहों के बीच संरचित असमानता के रूप में स्तरीकरण को परिभाषित किया है।
According to Anthony Giddens, “Stratification can be defined as structured inequalities between different grouping of people.”
सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Social Stratification)
अंग्रेजी का Stratification शब्द भू-गर्भशास्त्र के हिन्दी शब्द के अर्थ से लिया गया है। Stratification को मूल शब्द Stratum से लिया गया है जिसका अर्थ ‘भूमि की परतों’ से है। भूमि की विभिन्न परतों का अध्ययन भू-गर्भशास्त्री करतें हैं, ठीक इसी प्रकार समाज की विभिन्न परतों का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता है। सामाजिक स्तरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें सामाजिक व्यक्ति को उसकी सम्पत्ति, प्रतिष्ठा और शक्ति पद आदि के आधार पर उच्च एवं निम्न श्रेणियों में स्तरीकृत किया जाता है। सामाजिक स्तरीकरण का अभिप्राय किसी सामाजिक व्यवस्था में व्यक्तियों के उच्च एवं क्रम – विन्यास में विभाजन से सम्बन्धित है। सामाजिक व्यवस्था के क्रम-विन्यास के प्रमुख आधारों को पारसन्स ने विभिन्न सामाजिक आधारों पर विभाजित किया है। सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पारसन्स एवं जॉनसन ने अपने विचार इस प्रकार प्रस्तुत किए हैं, “किसी सामाजिक व्यवस्था के लोगों का विभेदक श्रेणीकरण और एक दूसरे की तुलना में श्रेष्ठता एवं निम्न विचारना सामाजिक स्तरीकरण है।”
पी. जिस्बर्ट के अनुसार, “सामाजिक स्तरीकरण स्थायी समूहों अथवा श्रेणियों में विभाजन से सम्बन्धित है। समाज में स्थायी समूहों तथा श्रेणियों का विभाजन होता है। इन समूहों के बीच उच्चता एवं अधीनता के आधार पर परस्पर सम्बन्ध जुड़े होते हैं।”
According to Gisbert, “Social stratification, therefore, is the division of society in permanental group or categories linked with each other by the relationships of superiority and subordination.”
प्रख्यात समाजशास्त्री पी. ए. सोरोकिन ने सामाजिक स्तरीकरण की परिभाषा में निम्नलिखित बिन्दुओं को स्पष्ट किया है-
(1) सामाजिक स्तरीकरण जनसमूहों से सम्बन्धित है अर्थात् यह जनसमूहों के बीच में होता है।
(2) वर्गों में विभेदीकरण के आधार पर एक आकार बनता है। यह आकार श्रेणीक्रम से बना होता है अतः यह एक सोपान की तरह दिखाई पड़ता है।
(3) सामाजिक स्तरीकरण का आधार समाज के सदस्यों में अधिकारों और सुविधाओं, कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों, सामाजिक मूल्यों और अभावों, सामाजिक शक्ति और प्रभावों के असमान वितरण में पाया जाता है।
(4) सामाजिक स्तरीकरण उच्च एवं निम्न सामाजिक स्तर के अस्तित्व में अभिव्यक्त होता है।
According to P.A. Sarokin, “Social stratification means the differentiation of a given population into hierarchically superposed classes. It is manifested in the existence of upper and lower social layer. Its basis and very essence consists in an unequal distribution of rights and privileges, duties and responsibilities, social values and privations, social power and influences among the members of a society.”
उपर्युक्त विवरणों एवं विश्लेषणों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि जब समूहों में असमानताओं के कुछ विशेष प्रकारों का केन्द्रीयकरण हो जाता है तो समूह की एक विशिष्ट पहचान बन जाती है तथा दूसरे समूहों से अलग होकर उनका विखण्डन हो जाता है। फलतः असमानताओं के स्तरों में वितरण को सामाजिक स्तरीकरण का विभाजन कहा जाता है। अतः स्पष्ट है कि असमानता सामाजिक व्यवस्था को विभिन्न स्तरों में विभाजित करती है। समाज के इसी विभाजन को सामाजिक स्तरीकरण के रूप में परिभाषित किया जाता है।
सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएँ (Characteristics of Social Stratification)
सामाजिक स्तरीकरण शक्ति संरचना, सत्ता, प्रतिष्ठा, निर्णय की प्रक्रिया एवं सामाजिक असमानता के जटिल तत्वों के विश्लेषण के बिना सम्भव नहीं है। डेविस तथा मूरे ने प्रकार्यवादी विचारधारा के आधार पर, कार्ल मार्क्स ने संघर्ष पर आधारित विचारधारा के आधार पर, मैक्स वेबर ने संकलनवादी विचारधारा के आधार पर तथा पैरेटो ने अभिजनों के चक्रवर्तन के सिद्धान्त के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं, आधारों तथा अन्य पक्षों का विश्लेषण किया है। निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है-
(1) सार्वभौमिकता (Universality)- सामाजिक स्तरीकरण का स्वरूप सार्वभौमिक होता है। सार्वभौमिकता से अभिप्राय सामाजिक स्तरीकरण आदिम जनजातियों, ग्रामीण परिवेश तथा समाज, समूह आदि को प्रभावित करती है। इस प्रकार यह दुनिया के कोने-कोने में सामाजिक स्तरीकरण विभिन्न रूपों में मौजूद है।
किंग्सले डेविस तथा डब्ल्यू. ई. मूरे ने अपनी प्रक्रियावादी विचारधारा के सम्बन्ध में स्पष्ट किया है कि दुनिया में ऐसा समाज नहीं है जहाँ स्तरीकरण नहीं है।
(2) सामाजिक दूरी (Social Distance)- सामाजिक स्तरीकरण तथा सामाजिक दूरी एक दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित अवधारणाएँ हैं। सामाजिक स्तरीकरण के कारण ही सामाजिक दूरी की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रो. आंद्रे बेतेई ने जाति, वर्ग तथा शक्ति संरचना के अपने अध्ययन में स्पष्ट किया कि खान-पान, वैवाहिक सम्बन्ध तथा निवास-स्थल के आधार पर भारतीय ग्रामीण परिवेश में जाति व्यवस्था के कारण सामाजिक असमानता एवं दूरी की स्थिति उत्पन्न होती है।
(3) विभिन्न स्तरों में विभाजन (Division at Various Steps) – सामाजिक स्तरीकरण विभिन्न स्तरों पर विभाजन के स्वरूपों को स्पष्ट करता है। उदाहरण के लिए एक उद्योग में मुख्य कार्याधिकारी, प्रबन्धक, कर्मचारी, सहायक इत्यादि स्तरों का विभाजन होता है। बाजार में उद्योगपति, थोक व्यापारी, खुदरा व्यापारी आदि के रूप में स्तरों का विभाजन होता है।
(4) सामाजिक प्रतिष्ठा (Social Prestige)- सामाजिक स्तरीकरण का सम्बन्ध सामाजिक प्रतिष्ठा से विशेष रूप से जुड़ा है। परिस्थिति, पारिश्रमिक, पारितोषिक, सत्ता तथा कार्य-संस्कृति के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा का निर्धारण होता है।
(5) गतिशीलता (Mobility) – वर्ग संरचना के अर्न्तगत् व्यक्ति अथवा समूह अपनी क्षमता और परिश्रम के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण की गतिशीलता प्राप्त करने का प्रयास करता है। गतिशीलता के लिए मुक्त सामाजिक स्तरीकरण का होना आवश्यक है क्योंकि बन्द सामाजिक स्तरीकरण में गतिशीलता सम्भव नहीं है।
(6) परस्पर सम्बद्धता (Mutually Connected) – सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न स्तरों में परस्पर क्रमबद्धता की अनुभूति होती है। सामाजिक स्तर, पहचान, पृष्ठभूमि तथा सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर अलग-अलग होने के बाद भी विभिन्न समूहों में परस्पर सम्बद्धता होती है। उदाहरण के लिए उद्योग में विभिन्न कर्मचारियों का स्तर अलग-अलग होने के बाद भी उनमें परस्पर सम्बन्ध होता है
सामाजिक स्तरीकरण के आधार (Bases of Social Stratification)
सामाजिक स्तरीकरण, समाज में व्याप्त दास प्रथा, जाति एवं वर्ग की अवधारणाओं के आधार पर स्पष्ट है। समाजशास्त्रियों ने इसकी अवधारणा इनके विश्लेषण के आधार पर दिया है। टी.बी. बोटोमोर ने सामाजिक स्तरीकरण की व्याख्या दास प्रथा, जागीरों, जाति तथा वर्ग के आधार पर किया है। आर्थिक आधारों पर कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त में सामाजिक स्तरीकरण को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। मैक्स वेबर ने भी सत्ता तथा अधिकारी – तन्त्र के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण ही व्याख्या की है। सामाजिक स्तरीकरण के निम्नलिखित आधार स्पष्ट किये गए हैं-
(1) प्राणिशास्त्रीय आधार- समाज अपनी जैविक विशेषताओं जैसे आयु, प्रजाति तथा लिंग के आधार पर स्तरीकरण होता है। भारत में आयु सामाजिक स्तरीकरण का प्रमुख आधार है। ग्रामीण भारतीय परिवेश में अधिक उम्र के व्यक्तियों को परिवार तथा समूह में विशेष प्रतिष्ठा होती है। आर. फिर्थ ने अपनी पुस्तक ‘Human Sypes’ में स्पष्ट किया है कि प्रजाति जन्म के आधार पर सामाजिक लक्षणों पर आधारित मनुष्यों का एक समूह है। इसी प्रकार लिंग के आधार पर पितृ सत्तात्मक तथ मातृ सत्तात्मक समाज के आधार पर स्तरीकरण की एक व्यापक संरचना मौजूद है।
(2) सामाजिक आधार- सामाजिक संरचना, सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है। इसके अन्तर्गत जाति व्यवस्था जो कि जन्म पर आधारित है। अनेक जातियों के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण का एक स्पष्ट ढाँचा इसके अन्तर्गत मौजूद है। यह एक निश्चित रूप से असमानता के सिद्धान्त पर आधारित है।
(3) आर्थिक आधार- सामाजिक स्तरीकरण को आर्थिक आधार प्रभावित करता है। समाज आर्थिक स्थिति के अनुसार विभिन्न स्तरों में विभाजित है। कार्ल मार्क्स ने भी सामाजिक स्तरीकरण की व्याख्या में आर्थिक कारक को बुनियादी आधार के रूप में प्रस्तुत किया है। इनके अनुसार स्वतंत्र व्यक्ति तथा दास, कुलीन वर्ग तथा साधारण व्यक्ति, सामंत, किसान इत्यादि के आर्थिक स्तरों में विभिन्नता होती है तथा इन्हीं के आधार पर समाज का स्तरीकरण होता है।
(4) राजनीतिक आधार- सामाजिक स्तरीकरण को राजनीतिक आधार भी प्रभावित करता है। शक्ति संरचना, सत्ता, निर्णय की प्रक्रिया तथा राजनीतिक अधिकारों के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण का स्वरूप बनता है। लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक आधारों का विशेष महत्व है। शक्ति संरचना में प्रवेश राजनीतिक आधारों पर ही संभव है।
मैक्स वैबर ने स्पष्ट किया है कि शक्ति के अधिकारों में राजनीतिक दल बनते हैं। वैबर ने वर्ग, परिस्थिति, समूह एवं दल के आधार पर स्तरीकरण की व्याख्या की है।
(5) सामाजिक वर्ग- सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार सामाजिक वर्ग है। टी. वी. बोटोमोर एवं एंथोनी गिडिण्स ने दुनिया में चार प्रमुख वर्गों उच्च मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग के अनुसार सामाजिक स्तरीकरण को – उच्च वर्ग, बताया है। विभिन्न सामाजिक वर्गों के अनुसार समाज का स्तरीकरण होता है। इन्ही चारों वर्गों के आधार पर समाज विभाजित होकर अपने-अपने स्तरों के आधार पर समाज का स्तरीकरण होता है।
शिक्षा एवं सामाजिक स्तरीकरण में सम्बन्ध (Relationship between Education and Social Stratification)
सामाजिक स्तरीकरण एवं शिक्षा के मध्य सम्बन्ध को निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) भारतीय समाज यद्यपि परम्परावादी है परन्तु अब शिक्षा व्यवस्था ने उनकी सोच एवं ष्टिकोण में परिवर्तन लाना प्रारम्भ कर दिया है। अब लोग अपने परम्परागत व्यवसाय को करने के साथ ही नवीन क्षेत्रों में भी सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।
(2) उच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग अपनी आजीविका एवं पसन्द के कार्य के लिए देश के किसी भी प्रान्त तक जाने में संकोच नहीं करता है। ये परिवर्तन शिक्षा के कारण ही सम्भव हुआ है।
(3) भारत में आज बहुत सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने एवं कार्यालय स्थापित किए हैं और इन कम्पनियों में लोगों को रोजगार उनकी योग्यता के आधार पर प्रदान किया जाता है न कि सामाजिक या आर्थिक स्थिति के आधार पर।
(4) भारत में केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्गों के छात्रों को शिक्षण संस्थानों में आरक्षण प्रदान किया है। इस प्रावधान से समाज के वंचित वर्ग के छात्र उच्च शिक्षा सरलतापूर्वक प्राप्त करने में सक्षम हो गए हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त छात्र अच्छी नौकरी या अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर समाज में उच्च स्थान प्राप्त करते हैं।
(5) समाज में प्रत्येक व्यक्ति का स्थान शिक्षा एवं उसकी योग्यता से निर्धारित होता है। यदि व्यक्ति शिक्षित नहीं होता है तो उसे समाज में उचित स्थान प्राप्त नहीं होता है। इसके साथ ही प्रत्येक व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति का शोषण कर सकता है। शिक्षा से सामाजिक स्तरीकरण में व्यक्ति को उच्च स्थान प्राप्त होता । इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि शिक्षा एवं सामाजिक स्तरीकरण में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। शिक्षित व्यक्ति जहाँ समाज में अपना उचित स्थान सुनिश्चित करता है वही दूसरी ओर वह सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई विभिन्न योजनाओं का लाभ भी उठा लेता है। इससे उसकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में भी परिवर्तन होता है।
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