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सामाजिक गतिशीलता का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करने वाले कारक

सामाजिक गतिशीलता का अर्थ
सामाजिक गतिशीलता का अर्थ

सामाजिक गतिशीलता (SOCIAL MOBILITY)

जैसा कि सर्वज्ञात है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है क्योंकि वह इसी समाज में जन्म लेकर अपना जीवन यापन करता है। मनुष्य जिस समाज में रहता है उसके (समाज) समाजशास्त्रियों ने दो सामान्य भेद बताए हैं। प्रथम प्रकार के समाज जातियों के आधार पर संगठित होते हैं तथा पूर्णतः वंशानुगत असमानता पर आधारित होते हैं। ऐसे समाज में सामाजिक गतिशीलता का बहुत कम प्रभाव होता है।

द्वितीय प्रकार के समाज अवसरों की समानता पर आधारित होने के कारण ऐसे समाज में सामाजिक गतिशीलता सम्भव होती हैं क्योंकि इसमें (समाज) व्यक्ति की स्थिति स्वयं उसके प्रयासों का परिणाम होती है और इस प्रकार के समाज में सामाजिक स्थिति में परिवर्तन हेतु पर्याप्त मात्रा में अवसर उपलब्ध होते रहते हैं।

सामाजिक गतिशीलता का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Social Mobility)

सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है – मनुष्य के सामाजिक ढाँचे में गति। इस दृष्टिकोण से सामाजिक गतिशीलता का आशय किसी सामाजिक ढाँचे में किसी व्यक्ति के सामाजिक स्तर या सामाजिक स्थान में होने वाले परिवर्तन से लगाया जाता है। अर्थात् मानव की सामाजिक स्थिति (पद) का उच्च या निम्न हो जाना ही सामाजिक गतिशीलता है। चूँकि हर समाज का अपना एक निश्चित स्वरूप एवं संगठन होता है तथा इसमें रहने वाले विभिन्न व्यक्तियों एवं समूहों के स्तरों में भी बहुत भिन्नता होती है। इसी कारण सभी समाजों में परिवर्तन होता ही रहता है। यद्यपि यह परिवर्तन कम या अधिक अवश्य हो सकता है। अतैव व्यक्ति या समूहों के सामाजिक स्तर में होने वाले इसी परिवर्तन को समाजशास्त्रीय भाषा में सामाजिक गतिशीलता कहा जाता है। अतः सामाजिक गतिशीलता के अर्थ को अधिक स्पष्ट करने के लिए निम्न परिभाषाएँ दी जा रही हैं-

सोरोकिन के अनुसार, “सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है सामाजिक समूह या स्तर – के पुंज में किसी व्यक्ति का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में पहुँच जाना।”

According to P. Sorokin, “By social mobility is meant any transition of an individual from one position to another in a constellation of social group and strata.”

मिलर व कुक के अनुसार, “सामाजिक गतिशीलता, व्यक्तियों या समूहों का एक सामाजिक संस्तरण से दूसरे संस्तरण में संचलन है।”

According to H.L. Miller and R.K. Woock, “Social mobility is a movement of individuals or group from one social class stratum to another.”

यंग एवं मेक के अनुसार, सामाजिक गतिशीलता का अर्थ ‘सामाजिक व्यवस्था के भीतर गति मानते हैं।”

इस प्रकार सामाजिक गतिशीलता एक विशिष्ट प्रकार का सामाजिक परिवर्तन है। अतः सोरोकिन के अनुसार, “सामाजिक गतिशीलता से तात्पर्य व्यक्तियों और समूहों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन सामाजिक स्थान में परिवर्तन होने से है।”

सामाजिक गतिशीलता के प्रकार (Types of Social Mobility)

सामाजिक गतिशीलता के प्रकार निम्नलिखित हैं-

(1) लम्बवत् / शीर्षात्मक सामाजिक गतिशीलता (Vertical Social Mobility)

(2) समतल / क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता (Horizontal Social Mobility)

(1) लम्बवत् / शीर्षात्मक सामाजिक गतिशीलता (Vertical Social Mobility)

लम्बवत् सामाजिक गतिशीलता के अर्थ को स्पष्ट करते हुए सोरोकिन महोदय ने लिखा है कि “शीर्षात्मक (लम्बवत्) गतिशीलता से मेरा अभिप्राय उन सम्बन्धों से हैं, जो किसी व्यक्ति (या सामाजिक वस्तु) के एक सामाजिक स्तर से दूसरे सामाजिक स्तर में जाने के कारण उत्पन्न होते हैं।”

According to P. Sorokin, “By vertical mobility I mean the relations involved in a transition of an individual (or social object) from one social stratum to another.”

अतः स्पष्ट है कि लम्बवत् गतिशीलता, समतल सामाजिक गतिशीलता से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें व्यक्ति एक सामाजिक पद (स्थिति) से दूसरे सामाजिक पद (स्थिति) पर जाता है। इसमें स्थिति का परिवर्तन होता है तथा यह परिवर्तन उच्च या निम्न किसी भी प्रकार का हो सकता है। अतैव उच्च से निम्न या निम्न से उच्च सामाजिक स्थिति (प्रतिष्ठा) वाले सामाजिक स्तरों में व्यक्तियों के आने-जाने को लम्बवत् सामाजिक गतिशीलता के रूप में जाना जाता है।

(2) समतल सामाजिक गतिशीलता (Horizontal Social Mobility)

  हॉडकिन्सन के अनुसार, “सामाजिक गतिशीलता में भौगोलिक गति होती है। इस गतिशीलता में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है।” उदाहरण के लिए – किसी छोटे शहर के बैंक का मैनेजर जब बड़े शहर के बैंक का बाबू हो जाता है, तब उसके व्यवसाय में परिवर्तन न होकर केवल भौगालिक स्थिति में परिवर्तन होता है। अर्थात् उसी व्यवसाय में कार्यरत् रहते हुए मात्र स्थान में परिवर्तन के कारण उसकी स्थिति में उतार-चढ़ाव आ जाता है। सोरोकिन ने समतल सामाजिक गतिशीलता के भी कुछ प्रकार बताए हैं-

(i) धार्मिक गतिशीलता (Religious Mobility)- व्यक्ति या समूह जब एक धर्म ( धार्मिक विश्वास) को छोड़कर किसी दूसरे धर्म को स्वीकार कर लेता है तो इसे धार्मिक गतिशीलता की संज्ञा दी जाती है। जैसे- किसी हिन्दू का ईसाई धर्म को स्वीकार करना।

(ii) व्यावसायिक गतिशीलता (Commercial Mobility)- यदि दो अलग-अलग व्यवसाय हैं लेकिन उनकी स्थिति समान है तो व्यक्ति का एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में प्रवेश करना ही व्यावसायिक गतिशीलता कहलाता है। जैसे- जब कोई ग्रामीण व्यक्ति शहर में रहने के लिए जाता है तो वहाँ अपने ग्रामीण व्यवसाय के समान स्थिति वाले (पान या चाय की दुकान) व्यवसाय को करने लगता है तो इसे व्यावसायिक गतिशीलता कहते हैं।

(iii) क्षेत्रीय गतिशीलता (Territorial Mobility) – किसी क्षेत्र या समुदाय विशेष से किसी अन्य क्षेत्र या समुदाय में व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का जाना (प्रवेश) क्षेत्रीय गतिशीलता कहलाता है। अकाल, युद्ध, क्रान्ति एवं संकट के समय यह गति अति तीव्र हो जाती है।

(iv) दलगत गतिशीलता (Party Related Mobility)- जब कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह किसी राजनैतिक दल की अस्थिरता, अन्य दलों के सिद्धान्तों में विश्वास, स्वार्थवश या अन्य किसी कारण से एक राजनैतिक दल को छोड़कर दूसरे दल में सम्मिलित हो जाता है तो इसे दलगत गतिशीलता कहते हैं। वर्तमान भारतीय राजनीति इसका ज्वलन्त उदाहरण है।

(v) परिवार की गतिशीलता (Mobility of Family) – विवाह या पुनर्विवाह करना, किसी बालक को गोद लेना या तलाक आदि देना पारिवारिक एवं रिश्तेदारी गतिशीलता के अन्तर्गत् आता है।

(vi) अन्तर्राष्ट्रीय गतिशीलता (International Mobility)- जब एक देश के लोग दूसरे देश में बस जाते हैं तो इसे अन्तर्राष्ट्रीय गतिशीलता कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय गतिशीलता कई कारणों से हो सकती है। जैसे- शिक्षा प्राप्त करने, रोजगार प्राप्त करने या आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति का दूसरे देश में चले जाना अन्तर्राष्ट्रीय गतिशीलता है।

(3) स्पर्धात्मक गतिशीलता (Competitive Mobility)

जब कोई व्यक्ति अथवा समूह, खुली प्रतिस्पर्द्धा में अपनी कुशलता एवं योग्यता को प्रदर्शित करके अपनी पदस्थिति में परिवर्तन लाता है तो इसे स्पर्द्धात्मक गतिशीलता कहा जाता है।

रेल्फ एच. टर्नर के अनुसार, प्रतिस्पर्धात्मक गतिशीलता एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें उच्च स्थिति एक खुली प्रतिस्पर्धा के पुरस्कार के रूप में होती है और प्रतिस्पर्धी अपने प्रयासों से ही उसे प्राप्त करता है।”

(4) व्यक्तिगत गतिशीलता (Individual Mobility)

कोई भी व्यक्ति जब अपने जीवन मे समतल रूप में गतिशीलता को प्राप्त करता है तब यह गतिशीलता व्यक्तिगत गतिशीलता कहलाती है।

(5) संरक्षित गतिशीलता (Protected Mobility) 

इस गतिशीलता को कोई भी व्यक्ति अथवा समूह किसी के संरक्षण में रहकर प्राप्त करता है। टर्नर के अनुसार, संरक्षित गतिशीलता में नये अभिजन समाज के पूर्व स्थापित अभिजनों या उनके एजेण्टों द्वारा चुने जाते हैं और उनकों उच्च पद (स्थितियाँ) स्वेच्छानुसार प्रदान किए जाते है जिनको वे किसी भी प्रयास या रणनीति से प्राप्त नहीं कर सकते हैं।”

(6) सामूहिक गतिशीलता (Group Mobility)

कोई भी एक समूह अथवा समुदाय जब समग्र रूप में गतिशीलता को प्राप्त करता है तब वह सामूहिक गतिशीलता कहलाती है।

उपर्युक्त प्रकारों का अध्ययन कर हम यह कह सकतें है कि किसी भी गतिशीलता को प्राप्त करने में शिक्षा अहम् भूमिका का निर्वहन करती है। शिक्षा के द्वारा ही यह आशा की जा सकती है कि शिक्षित व्यक्ति अपने आरोपित स्तर से ऊपर उठकर अपनी स्वयं की उपलब्धि के अनुसार स्तर प्राप्त करने में समर्थ होंगे।

सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Social Mobility)

सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

(1) किसी सामाजिक वर्ग में उपलब्ध सामाजिक पदों की संख्या में परिवर्तन (Changes in the Number of Positions Available within a given Social Class) – वर्तमान सदी के गत दो दशकों में ओद्यौगिकी के क्षेत्र में कुछ परिवर्तनों ने हमारे समाज में इन्जीनियर की संख्या में अत्यधिक परिवर्तन कर दिया है। इस वृद्धि के कारण अन्य सामाजिक वर्गों के व्यक्तियों को इन्जीनियर की स्थिति में परिवर्तन होने के कारण बहुत से अवसर उपलब्ध कराए गए हैं। इस कारण आधुनिक औद्योगिक समाज में सामाजिक गतिशीलता को बहुत प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है।

(2) पदों की स्थिति में परिवर्तन (Change in Status of Positions)- वर्तमान आधुनिक समय में होने वाले परिवर्तनों एवं वैज्ञानिक खोजों में एक नई सामाजिक गतिशीलता का उद्भव हुआ है जो कुछ व्यवसायों की सापेक्षिक स्थिति में हुए परिवर्तनों से सम्बन्धित होती है। जैसे- वर्तमान समाज में वैज्ञानिकों की स्थिति अन्य व्यवसायों की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है जबकि राजनीतिज्ञों (केन्द्र या राज्य) की स्थिति सापेक्षिक दृष्टि से निम्न हो गई हैं।

(3) प्रसवन दर की विविधता (Different Rates of Fertility)- वर्तमान समय में परिवार के आकारों एवं सामाजिक वर्ग- स्थिति में विलोम अनुपात दिखाई देता है।

वर्तमान में निम्न वर्ग के परिवार बड़े तथा मध्यम एवं उच्च वर्ग के परिवार छोटे होते जा रहे हैं। फलस्वरूप मध्यम वर्ग के व्यक्तियों के अभाव में मध्य वर्गीय पद रिक्त होते जा रहे हैं जिनकी (पदों की) पूर्ति निम्न वर्ग के लोगों को अवसर प्रदान करके की जा रही है। अतः निम्न वर्ग के लोगों द्वारा मध्य वर्गीय पदों को ग्रहण करने पर सामाजिक गतिशीलता को स्थान मिलता है।

(4) सामाजिक ढाँचा (Structure of Society) – सामाजिक ढाँचा, सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करता है। वंशानुगत असमानता पर आधारित समाज में सामूहिक गतिशीलता को स्थान नहीं मिलता है जबकि जो समाज अवसरों की समानता पर आधारित होता है उसमें इसे (सामाजिक गतिशीलता) बल (प्रोत्साहन) मिलता है।

(5) आर्थिक समृद्धि (Economic Prosperity) – आर्थिक समृद्धि ( सम्पन्नता) एक वर्ग से दूसरे वर्ग में सामाजिक गतिशीलता को अत्यधिक प्रभावित करती है। चूँकि हमारा समाज आर्थिक दृष्टि से तीन वर्गों (धनी, मध्यम तथा गरीब) में विभाजित है एवं तीनों वर्गों के रहन-सहन, खान-पान एवं सामाजिक स्तर आदि में अन्तर पाया जाता है। धनी वर्ग के लोगों को समाज में अत्यधिक सम्मान दिया जाता है। इसलिए प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति अधिकाधिक धन अर्जित करता है ताकि समाज में उसकी भी स्थिति उच्च हो जाए तथा उसे भी धनिकों के समान प्रतिष्ठा प्राप्त हो सके।

(6) शिक्षा (Education) – सामाजिक गतिशीलता को शिक्षा भी प्रभावित करती है। आज प्रत्येक व्यक्ति यह मानता है कि उसकी सामाजिक स्थिति में उन्नति एवं सुधार शिक्षा के द्वारा ही सम्भव है। अतः शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति की अपनी सामाजिक स्थिति में उन्नति एवं सुधार हेतु पूर्णतया संलग्न है। इस संलग्नता से सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा मिलता है।

(7) महत्वाकांक्षा का स्तर (Aspirational Level)- मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा एवं दृढ़ता उच्च सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है। किसी भी समाज में जितने अधिक महत्वाकांक्षी व्यक्ति होंगे, समाज की गतिशीलता उतनी अधिक होगी।

(8) व्यावसायिक प्रतिष्ठा (Occupational Prestige) – व्यवसायों की असमानता भी सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है। जिन व्यवसायों को समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं होती है। उन व्यवसायों को त्यागकर व्यक्ति दूसरे व्यवसाय को ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार व्यावसायिक प्रतिष्ठा सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती हैं।

(9) शासन व्यवस्था (Administrative Set-Up)- चूँकि लोकतन्त्र में अवसरों की समानता को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है इसलिए लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में सामाजिक गतिशीलता को अत्यधिक बल (प्रोत्साहन ) मिलता है। अतः देश की शासन व्यवस्था भी सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सामाजिक गतिशीलता को बहुत से कारण प्रभावित करते हैं।

शिक्षा व सामाजिक गतिशीलता (Education and Social Mobility)

आधुनिक समाज में पुरातन सामाजिक स्तरों को समाप्त कर खुली गतिशीलता को स्थान दिया गया है। इस बात को ध्यान में रखते हुए आधुनिक समाज द्वारा विद्यालय के परम्परागत कार्यों में परिवर्तन कर दिया गया जिससे वह समाज की गतिशीलता के साथ कदम मिला कर आगे बढ़ सके तथा उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सके।

कार्ल वीन बर्ग के अनुसार, “विद्यालय का प्रमुख कार्य, नवीन मार्ग प्रशस्त करना तथा उनको सभी के लिए खोले रखना है जिससे वह सामाजिक गतिशीलता के बदलते हुए ढाँचे के साथ कदम मिला सके। विद्यालय इस कार्य को तभी पूर्ण कर सकता है जब वह सभी प्रकार के आर्थिक स्तरों के बालकों को अपनी उन्नति करने के लिए व्यापक अवसर प्रदान करेगा।”

शिक्षा व सामाजिक गतिशीलता का सम्बन्ध (Relation between Education and Social Mobility)

शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता का प्रगाढ़ सम्बन्ध है। दोनों ही प्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में शिक्षा ही प्रमुख तत्व है जो समाज को गतिशील बनाए रखता है। शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति सामाजिक रीति-रिवाजों, आदर्शों एवं मूल्यों का ज्ञान प्राप्त कर सामाजिक गतिशीलता प्राप्त करता है। अन्ततः यह कहा जा सकता है कि शिक्षा ही वह साधन हैं जिसके द्वारा समाज गतिशील रहता है। शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता का सम्बन्ध मिलर व वूक ने स्पष्ट करते हुए लिखा है, “औपचारिक शिक्षा, सामाजिक गतिशीलता से प्रत्यक्ष तथा कारणतः सम्बन्धित है। इस सम्बन्ध को सामान्यतः इस रूप में समझा जाता है कि शिक्षा स्वयं शीर्षात्मक सामाजिक गतिशीलता का प्रमुख कारण है।”

शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता को चिकित्सा, वकालत, शिक्षण, इन्जीनियरिंग आदि की शिक्षा द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। इन्हें कुछ वर्षों की औपचारिक शिक्षा की ही आवश्यकता होती है। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति वकील, डाक्टर और इन्जीनियर नहीं बन सकता और समाज का विकास बाधित हो जाता है जिससे सामाजिक गतिशीलता प्रभावित होती है। उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि शिक्षा ही व्यक्ति में क्षमता एवं कुशलता का विकास कर उन्हें समाज में गतिशील बनाता हैं जिसके द्वारा सामाजिक गतिशीलता बनी रहती है। शिक्षा सामाजिक गतिशीलता तो प्रदान करती है परन्तु शिक्षक एवं छात्रों की गतिशीलता में अन्तर होता है जिसे निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट किया जा रहा है-

छात्रों की सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility of Students)

छात्रों की सामाजिक गतिशीलता को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता हैं-

(1) शिक्षा की मात्रा ( Amount of Education)- भारतीय शिक्षा को विभिन्न स्तरों पर विभाजित किया गया है, जैसे प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक इत्यादि शिक्षा के इन स्तरों में छात्र जिस स्तर पर शिक्षा ग्रहण करता है वह उसी स्तर के सामाजिक स्तर को प्राप्त करने में सक्षम होगा। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त की तो वह क्लर्क, आपरेटर आदि पद प्राप्त करेगा । अतः शिक्षा की मात्रा का सामाजिक गतिशीलता में महत्वपूर्ण योगदान है।

(2) शिक्षा की पाठ्यवस्तु (Content of Education)- पाठ्यवस्तु के तत्व के अनुसार ही छात्र में विभिन्न आदर्शों का निर्माण होता है। पाठ्यक्रम के अनुसार व्यक्ति विभिन्न माध्यमों एवं क्षेत्रों को चुनता है जिसके द्वारा वह चुने हुए क्षेत्रों में जाकर अपना सामाजिक योगदान करता है और सामाजिक गतिशीलता बनाए रखता है।

(3) विशिष्ट क्षेत्रों की उच्च शिक्षा (Higher Education in Specialised Areas)- सामाजिक गतिशीलता में विशिष्ट क्षेत्रों की उच्च शिक्षा का भी पूर्णतया योगदान है। विशिष्ट क्षेत्रों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर छात्र उन विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान करता है। वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद प्राप्त करता है और विशिष्ट क्षेत्रों की सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करता है।

(4) विशिष्ट महाविद्यालय व विश्वविद्यालय का महत्व (Importance of Particular College or University)- महाविद्यालय और विश्वविद्यालय भी सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करते हैं। कुछ महाविद्यालय या विश्वविद्यालय अन्य की तुलना में विशिष्ट होते हैं। उसी के अनुसार वहाँ शिक्षा प्राप्त कर रहें छात्रों की योग्यताएं एवं कुशलता भी विशिष्ट होती है। वह शिक्षा प्राप्त कर उच्च एवं विशिष्ट पद प्राप्त करते हैं। इस प्रकार महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय सामाजिक गतिशीलता को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(5) शिक्षकों की सामाजिक गतिशीलता (Teacher’s Social Mobility)- शिक्षक अपने स्तर के अनुसार सामाजिक पदों को प्राप्त करते हैं। शिक्षक स्तर के अन्तर्गत विद्यालय शिक्षक, प्रवक्ता, वरिष्ठ प्रवक्ता, प्रोफेसर, प्रिंसिपल, उपकुलपति आदि आते हैं। इन्हीं पदानुक्रम के अनुसार वह अपने सामाजिक पदों एवं प्रतिष्ठा को प्राप्त हैं। इन्हीं पदों को प्राप्त कर वह अपनी प्रतिष्ठा को उच्च कर सकता है परन्तु व्यावसायिक पदों को अन्य शिक्षक पदों से उच्च माना जाता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

(i) विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या

(ii) शिक्षा में उत्तरोत्तर विस्तार

(iii) छात्रों में अनुशासनहीनता की वृद्धि

(iv) अन्य पदों की तुलना में न्यून वेतन

(v) सामाजिक प्रतिष्ठा एवं सम्मान का अभाव

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