भूमिका निर्वाह का वर्णन करें। (Describe the role playing)
सामाजिक मनोविज्ञान ने ‘भूमिका’ शब्द का प्रयोग एक व्यक्ति को किसी विशेष अवस्था में धारण किए गए व्यवहार को विवेचित करने के लिए किया जाता है। जैसे कि एक अभिनेता मंच पर अपनी भूमिका का अभिनय करता है। भूमिका निर्वाह एक बहुत ही सामान्य प्रशिक्षण तकनीक है और इस आशा (पूर्वकल्पना) पर आधारित होती है कि भूमिका अभिनय की प्रक्रिया एक व्यक्ति को दूसरे के अन्तर्मन से सम्बन्धित व्यवहार करने के योग्य बनाएगी, जो कि एक पुस्तक पढ़ने या एक भाषण सुनने से अनुभव नहीं किया जा सकता।
भूमिका निर्वाह की आवश्यकता और महत्त्व (Need and Importance)
यह सराहनीय नहीं होगा कि किसी अप्रशिक्षित अध्यापक को कक्षा-शिक्षण का कार्यभार दे दिया जाए। यह अधिक उचित होगा, यदि उसे कृत्रिम परिस्थितियाँ पैदा करके प्रशिक्षण दिया जाए। अनुरूपित शिक्षण उसे कई प्रकार से सहायक होगा। प्रशिक्षण हेतु आए चिकित्सकों को प्रशिक्षित करते समय पहले चिकित्सक का अभिनय करने को कहा जाता है और मेढ़क, चूहों जैसे जानवरों पर प्रयोग करवाए जाते हैं। धीरे-धीरे वास्तविक जीवन स्थितियों में काम करने तथा मनुष्यों का इलाज करने को कहा जाता है।
निम्नलिखित बातें भूमिका निर्वाह की आवश्यकता एवं महत्त्व को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं :
(i) भूमिका निर्वाह व्यक्ति में पर्याप्त आत्म-विश्वास पैदा करता है जिससे बाद में वास्तविक स्थितियों में वैसी ही भूमिका निभाने की आशा की जाती है।
(ii) यह उस कार्य को करने की क्षमता बढ़ाता है।
(iii) कुछ व्यक्ति कार्य के आरम्भ में काफी संकोच या शर्म अनुभव करते हैं। उस शर्म को भूमिका निर्वाह द्वारा दूर किया जाता है।
(iv) व्यक्ति जो किसी दूसरे की भूमिका निभाता है, यह उसकी कल्पना-शक्ति में सुधार का अवसर प्रदान करता है। व्यक्ति जितना अधिक कल्पनाशील होता है उतना ही अधिक वह सृजनात्मक कार्य करने में सक्षम होता है।
(v) भूमिका निर्वाह में व्यक्ति के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आता है, अधिकतर यह उसके लिए उपयोगी होता है।
(vi) छात्र जो अध्यापन प्रशिक्षण लेते हैं उन्हें भूमिका निर्वाह विभिन्न परिस्थितियों में विषय-वस्तु पर धारा-प्रवाह रूप में बोलना सिखाता है।
(vii) यह व्यक्ति को विचारशील और सृजनशील बनाता है, ये भावी अध्यापक के अच्छे गुण हैं।
भूमिका निर्वाह की प्रक्रिया (Procedure for Role Playing)
(i) विषय / परिस्थितियों का चुनाव (Selection of Topic / Situation)— भूमिका निर्वाह के लिए सही स्थिति सोची जानी चाहिये। स्थिति सीखने वाले के लिए महत्त्वपूर्ण होनी चाहिए। यह सीखने वाले को कुछ सिखाने के उद्देश्य पर आधारित होनी चाहिए। यह हर प्रकार से प्रोत्साहित करने वाली हो और इसे अधिगमकर्त्ता को प्रोत्साहन करना चाहिए और भी अच्छा हो यदि यह छात्रों की रुचियों के अनुकूल हो। यह उनकी उत्सुकताओं को बढ़ाए। समस्या या स्थिति यदि ऐसी हो जिससे अधिगमकर्त्ता का निकट भविष्य में कुछ सम्बन्ध होने की आशा हो तो यह और भी अच्छा होगा।
(ii) प्रेरणा (Motivation) — जिन सीखने वालों को विभिन्न भूमिकाएँ निभानी हैं उन्हें यथासम्भव ढंग से प्रेरित किया जाना चाहिए। निरीक्षक को उन विभिन्न स्थितियों की व्याख्या करनी चाहिए जिनमें अभिनय किया जाना है। उनके विचार और सोच विकसित की जानी चाहए। इस प्रकार, वे विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न भूमिका निर्वाह के लिए मानसिक तौर पर तैयार होने चाहिए ।
(iii) प्रदर्शन (Demonstration) — निरीक्षक किसी भूमिका या भूमिकाओं का स्वयं अभिनय करके, अभिनय-प्रदर्शन करता है। वह इसमें किसी दूसरे को भी सम्मिलित कर सकता है जो इसके लिए तैयार हो। प्रदर्शन दो या तीन स्थितियों को लेकर किया जाना चाहिए। इस प्रदर्शन से सभी दर्शक प्रेरित होने चाहिए ।
(iv) भूमिकाओं का नियत कार्य (Assignment of Roles) – विभिन्न छात्रों को उनकी रुचि के अनुरूप कार्य दिया जाना चाहिए। ऐसे में, एक व्यक्ति मुख्याध्यापक की भूमिका निभा सकता है भूमिका निर्वाह की तो दूसरा कक्षा प्रबोधक की। निरीक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को यथासम्भव अधिक-से-अधिक भूमिकाएँ निभाने के लिए प्रोत्साहित करें। किसी को ऐसी भूमिका निर्वाह के लिए मजबूर न किया जाए जिसे वह निभाना पसन्द नहीं करता।
(v) विभिन्न भूमिकाएँ निभाना (Playing the Different Roles) — भूमिका निर्धारित करने के बाद दो व्यक्तियों को उनकी भूमिका निभाने के लिए कहा जाना चाहिए। उन्हें अपनी भूमिका निभाने की पूरी स्वतंत्रता देनी चाहिए। निरीक्षक को वहाँ उपस्थित रहना चाहिए। उसे किसी को, किसी प्रकार से हतोत्साहित नहीं करना चाहिए। उसे यह देखना चाहिए कि अभिनय में स्वाभाविक भूमिका निभा रही है। प्रत्येक भूमिका निर्वाह की अवधि-सीमा अभिनेताओं की रुचि जब कम होनी आरम्भ हो जाए, तो निश्चय ही, भूमिका- अभिनय रोक देना चाहिए।
(vi) अनुसरण कार्य और विश्लेषण (Follow-upand Discussion) — भूमिका निर्वाह के बाद उस पर पूरा विश्लेषण होना चाहिए। अभिनेता और दर्शकों को अपने स्वतंत्र विचार व्यक्त करने का समय देना चाहिए। यदि भूमिका निर्वाह की पुनरावृत्ति आवश्यक हो तो निरीक्षक को ऐसा करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। निरीक्षक की अभिवृत्ति प्रोत्साहित करने वाली होनी चाहिए।
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