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सहयोग का अर्थ | सह-सहयोग के प्रकार | सहयोग के लाभ | सहयोग की सीमाएँ

सहयोग का अर्थ
सहयोग का अर्थ

सहयोग का अर्थ (Collaboration in Hindi)

सहयोग कुछ संदर्भों में प्रतिस्पर्द्धा से अच्छा है। प्रतिस्पर्द्धा में व्यक्ति दूसरों के प्रति ईर्ष्या भाव रखता है परन्तु सहयोग में ऐसा नहीं है, इसमें कल्याण भाव होता है और अंतिम रूप से यह भाव अच्छे सम्बन्ध बनाता है। जब एक समूह दूसरे को सहयोग देता है तो दोनों में एक-दूसरे के प्रति आदर और सम्मान का भाव रहता है। आरम्भ से ही यह एक-दूसरे को समझते हैं। यद्यपि मस्तिष्क में जटिलताएँ हो सकती हैं और एक-दूसरे के प्रति पसन्द और नापसन्द का भाव हो सकता है लेकिन फिर भी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए मिलकर कार्य करते हैं-

सह-सहयोग के प्रकार (Types of Collaboration)

सह-सहयोग दो प्रकार का होता है :

1. प्रत्यक्ष सह- सहयोग (Direct Collaboration)

2. अप्रत्यक्ष सह- सहयोग (Indirect Collaboration)

1. प्रत्यक्ष सह-सहयोग (Direct Collaboration) — प्रत्यक्ष सह-सहयोग में सभी साधन, योजना, शिक्षण आदि का पूर्ण उपयोग किया जाता है और यह अधिगम उपयोग इसलिए किया जाता है ताकि इच्छित लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। इसके लिए उद्देश्य की समीक्षा की जाती है और पुनः निर्धारित किया जाता हैं। सभी के संयुक्त प्रयासों से उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। उदाहरणत: सहयोग शिक्षण, टीम शिक्षण, सह-शिक्षण ।

2. अप्रत्यक्ष सह-सहयोग (Indirect Collaboration) — अप्रत्यक्ष सह-सहयोग दूसरे संगठनों के शिक्षकों को कक्षा-कक्ष में कार्य करने की अनुमति नहीं देता । उन्हें केवल बाहरी सहायता और निर्देशन के लिए रखा जाता है। जैसे सहयोगात्मक परामर्श, समूह सह- सहयोग और शिक्षक की सहायता आदि।

सह-सहयोग स्वतः नहीं होता। यह केवल तभी सम्भव है जब कुछ संगठन इसके बारे में सोचते हैं, इसके लिए प्रयास करते हैं। उदाहरणतः यदि कोई संस्था अच्छी है और वह अपने क्षेत्र की अन्य संस्थाओं से आगे बढ़ना चाहती है तो इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए दूसरी संस्थाओं के सहयोग की आवश्यकता है। नियम और शर्तें निर्धारित की जाती है कि इसलिए वह समझौता करते हैं यदि पूर्ण रूप से सहमत हो तो वह इकट्ठे मिलकर कार्य करते हैं।

सह- सहयोग प्रयास के विभिन्न पहलू (Various Aspects of Collaboration Efforts)

सहयोग के विभिन्न पहलू हैं-

1. सहयोगी शिक्षण (Co-operative Teaching) – सहयोगी शिक्षण में दूसरी संस्थाओं व दूसरी संस्थाओं के शिक्षक आपस में एक-दूसरे के विद्यालय में आते हैं और उन्हें देखते हैं कि किस प्रकार प्रभावशाली ढंग से पढ़ाया जा रहा है। वे शिक्षण का प्रशिक्षण प्राप्त करते के स्टाफ के साथ बैठकर आसानी से विचार-विमर्श करते हैं। यह प्रत्यक्ष सहयोग है। सहयोगी शिक्षण एक ही स्कूल के शिक्षकों में भी हो सकता है।

2. सह-शिक्षण या टीम शिक्षण (Co- Teaching or Team Teaching) — इस शिक्षण में किसी आदर्श संस्था के शिक्षक दूसरे स्कूल के विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं। दो या तीन शिक्षकों की टीम बनाई जाती है। यह कक्षा-कक्ष के शिक्षण उप-विषयों पर निर्भर करता है। यह भी प्रत्यक्ष सहयोग है।

3. शिक्षक सहायता टीम (Teaching Assistance Team)- इसमें दूसरी संस्था के एक अध्यापक या अध्यापकों की टीम स्कूल में शिक्षक की कक्षा-कक्ष सम्बन्धित समस्याओं के समाधान में सहायता करती है। कभी-कभी यह देखा जाता है कि शिक्षक स्वयं पाठ्य-वस्तु के किसी विषय में स्वयं को कमजोर पाता है। इस कमी को पूरा करने के लिए दूसरी संस्थाओं के शिक्षकों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। इस तरह से पूर्ण पाठ्य-वस्तु प्रभावशाली ढंग से पूरी हो जाती है। यह दो संस्थाओं के मध्य अप्रत्यक्ष सहयोग है।

4. सहयोगी परामर्श (Collaborative Consulation) — इसमें संस्था द्वारा किसी कमी को पूरा करने के लिए योग्य शिक्षकों से परामर्श लिया जाता है। परामर्श शिक्षक, विद्यार्थियों या किसी के लिए भी हो सकता है ताकि उन कमियों को दूर किया जा सके जिनका वे सामना करते हैं।

5. सम-स्तर सहयोग (Peer Collaboration) – इसके अन्तर्गत समान संस्था का सम-स्तर सीनियर का हो सकता है जो अध्यापक के निर्देशन में विद्यार्थियों की सहायता करता है । यह उद्देश्य केन्द्रित है और वांछित परिणाम लाता है। यह भी अप्रत्यक्ष सहयोग है। Friend & Cook ने सहयोग के लिए जरूरी बातों को निर्धारित किया है उनमें से कुछ मुख्य हैं :

(i) सहयोग एक मनोदशा है इसलिए प्रतिभागियों में समानता चाहता है जिसमें प्रत्येक का बराबर हिस्सा है। इसलिए सबको समान समझना चाहिए इसलिए यह टीम के सभी सदस्यों को स्वतंत्रता प्रदान करता है कि वह विचारों एवं सूचना का मूल्यांकन करें। यह विभिन्न क्षेत्रों में टीम के सदस्यों को नेतृत्व भूमिका से नहीं रोकता।

(ii) लोगो को जबरदस्ती नहीं मिलाया जा सकता और सही मायनों में उनसे सहयोग भी नहीं लिया जा सकता। इसलिए सहयोग स्वैच्छिक होना चाहिए। यह किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए इच्छुक पार्टियों के इकट्ठे मिलकर कार्य करने की आवश्यकता को मानता है।

(ii) सहयोग सामान्य उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक समान और सामान्य बोध पर निर्भर है क्योंकि यह उद्देश्य के प्रति आपसी सहमति को मानता है। सहयोग में सभी सदस्य समान उद्देश्य के लिए मिलकर और समान रूप से कार्य करते हैं।

(iv) सहयोग किसी उद्देश्य को लेकर विभिन्न विभागों और मानसिकताओं का मिश्रण है। इसलिए यह उत्तरदायित्वों और साधनों के हिस्सों की आवश्यकता को मानता है । प्रत्येक सदस्य को निर्णय और कोई समझौता करने का अधिकार होना चाहिए। सभी क्रियाएँ, सभी सदस्यों की पहुँच तक होनी चाहिए और साधन भी उपलब्ध होने चाहिए।

(v) सफलतापूर्वक सहयोग के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक सदस्य को असफलता व सफलता दोनों का आनन्द लेना चाहिए। वह सब परिणाम के लिए उत्तरदायी है चाहे यह सकारात्मक हो या नकारात्मक । मात्र एक सदस्य को न तो श्रेय दिया जा सकता है और नाही दोषारोपण किया जा सकता है। यदि ऐसा घटित होता है तो यह सफलतापूर्वक सहयोग का सूचक है।

सहयोग के लाभ (Advantages of Collaboration)

सहयोग के निम्नलिखित लाभ हैं:

1. विभिन्न संस्थाओं के शिक्षक आते हैं जहाँ वे सीखते हैं कि अपनी उन्नति के लिए किस तरह एक-दूसरे की सहायता करें, विद्यार्थियों के लिए क्या करें, संस्था की भलाई के लिए क्या करें ताकि समाज की भलाई हो सके।

2. संस्था के विद्यार्थी स्वयं को सुरक्षित एवं आत्म-विश्वासी महसूस करते हैं क्योंकि उनकी समस्याओं का समाधान हो जाता है।

3. सहयोग बहुविध रूप से एक-दूसरे को सहायता करने का संयुक्त प्रयास है। इसका कारण इसके पीछे दो समूहों में संपन्नता और संपन्नता के आधार पर सहयोग होता है।

4. इस प्रतिस्पर्द्धात्मक युग में संस्था की स्थिति ऐसी होती है कि वह वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करें और समाज और समुदाय की उम्मीदों पर खरा उतरे।

5. सहयोग दो विभिन्न संस्थाओं या व्यक्तियों को एक-दूसरे के समीप लाता है जो उन्हें समस्याओं का सामना करने का अनुभव प्रदान करता है और संयुक्त प्रयास द्वारा समस्याओं का समाधान भी करता

6. यह सम-स्तर सहयोग द्वारा शिक्षकों और विद्यार्थियों में पारस्परिक सहयोग एवं समझ में सुधार करता है।

7. यह अच्छा वातावरण प्रदान करता है क्योंकि आधुनिक बनने के साधन अच्छे हैं।

8. जब सीनियर समूह व जूनियर समूह का आपस में सहयोग हो तो परिणाम अच्छे होते हैं।

9. इसमें मानक निष्पादन होता है जिससे मूल्यांकन व्यवस्था में सुधार होता है।

10. यह प्रगतिवादी प्रकार है। यह सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायता करता है।

सहयोग की सीमाएँ (Limitations of Collaboration)

सहयोग की निम्नलिखित सीमाएँ हैं:

1. दो समूहों के बीच आपसी समझ नहीं हो सकती।

2. एक में उच्च भावना और दूसरे में हीन भावना बनी रहती है।

3. इसमें व्यापक दृष्टिकोण हो भी सकता है और नहीं भी। कुछ सीमा तक इसमें संकीर्ण दृष्टिकोण हो सकता है।

4. यह पूर्णतः तर्कसंगत भी हो सकता है व नहीं भी हो सकता है।

5. इससे ईर्ष्या भाव उत्पन्न हो सकता है और व्यक्ति पूरी ईमानदारी से काम नहीं करेगा।

6. ईर्ष्या और प्रतिस्पर्द्धा के कारण वांछित उद्देश्य से वंचित रह जाएँगे।

प्रत्येक वस्तु के गुण-दोष होते हैं परन्तु इससे लाभदायक प्रयास को रोकना नहीं चाहिए। आपसी समझ और आदर से नियोजित सहयोग से भविष्य में अच्छे परिणाम हो सकते हैं।

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