सहयोगी अधिगम (Co-operative Learning in Hindi)
सहयोगी अधिगम का अर्थ है विद्यार्थियों का एक-दूसरे से समूह में सीखना। इस प्रकार का अधिगम बहुत जरूरी है। यहाँ विद्यार्थी एक-दूसरे के सहयोग से सीखते हैं। इसलिए इसे सहयोगी अधिगम कहते हैं। यहाँ शिक्षक और विद्यार्थी मिलकर कार्य करते हैं । शिक्षक विद्यार्थी की अधिगम में सहायता करते हैं। इस तहर का अधिगम विद्यार्थी में सामाजिक कौशल भी विकसित करता है जिससे वह मिलकर कार्य कर सकें। यहाँ सहयोग से सीखना ही एकमात्र सीखने का तकनीक है।
सहयोगी अधिगम मिलकर सीखने के सिद्धान्त पर आधारित है। यह सहयोग के सिद्धांत ‘एक सबके लिए और एक के लिए सब” का ध्यान रखता है। अधिगम समूह सब के सहयोग के बिना कार्य नहीं कर सकता है।
“सभी सहयोगी अधिगम के माध्यम से एक ही विचार प्रकट करते हैं कि विद्यार्थी मिलकर सीखते हैं और अपने सहयोगियों और अपने अधिगम के लिए जिम्मेदार होते हैं। सहयोगी कार्य के साथ विद्यार्थी समूह अधिगम के तरीके, समूह के लक्ष्य और सफलता पर बल देते हैं जो कि समूह के सभी सदस्यों द्वारा प्राप्त हो सकते हैं। इसलिए विद्यार्थी समूह अधिगम में मिलकर कार्य नहीं करते बल्कि समूह में मिलकर सीखते हैं।”
अच्छे सहयोगी अधिगम के लिए कक्षा में विद्यार्थियों को एक ही संख्या के समूहों में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक समूह को संख्या 1, 2, 3, 4, या क, ख, ग, आदि नाम दिये जाते हैं। सभी समूह अलग-अलग शिक्षक के निरीक्षण में बैठते हैं। प्रत्येक समूह में एक विद्यार्थी एक निर्देशक, एक विद्यार्थी रिकार्डर, एक समय का ध्यान रखता है और एक रिपोर्टर का कार्य करता है। सभी समूह वृत्ताकार बैठते हैं और प्रत्येक विद्यार्थी को बोलने का अवसर प्राप्त होता है । जब समूह में चर्चा होती है तो वहाँ विरोध भी होता है पर जब एकमत होता है तभी निर्णय लिया जाता है।
सहयोगी अधिगम तकनीक के चरण (Steps of Co-operative Learning Technique)
सहयोगी अधिगम में निम्नलिखित चरण हैं :
चरण 1: समूह के सदस्य शांत तरीके से कार्य करते हैं। वे ऐसा वातावरण स्थापित करते हैं जिसमें वे मिलकर शिक्षक द्वारा दिए गए कार्य की प्रतियोगिता को पूरा कर सकें।
चरण 2: समूह का प्रत्येक सदस्य पहले विषय-वस्तु को समझने का प्रयास करता है।
चरण 3: एक सदस्य याद करता है और मुख्य तथ्यों का सार प्रस्तुत करता है।
चरण 4: जब चरण-3 चल रहा है, बाकी सदस्य सार के दोष और लोप ढूँढने का प्रयास करते हैं।
चरण 5: वे मुख्य तथ्यों को विस्तार से बताते हैं और उन्हें जीवन के अनुभवों से जोड़ते हैंको
चरण 6 : समूह के सदस्य सारा पुनर्विचार करते हैं और एक अंतिम सार देकर कार्य को पूरा करते हैंको
सहयोगी अधिगम के सिद्धांत (Principles of Co-operative Learning)
सहयोगी अधिगम के निम्नलिखित सिद्धांत हैं:
1. सकारात्मक अंतर निर्भरता (Positive Inter dependence) — विद्यार्थियों की सोच प्रतियोगितावादी नहीं होती। यह किसी तरह की ईर्ष्या पर आधारित नहीं होती है। यह बिल्कुल भी व्यक्तिगत नहीं है। उनकी सारी सोच सहयोग पर आधारित होती है यह समूह के लिए सोच होती है।
2. समूह के साथ लगाव (Attachment with the group) — विद्यार्थी लंबे समय तक समूह में रहते हैं इससे उनकी एक-दूसरे के साथ समझ और लगाव बढ़ता है। वह यह सीखते हैं कि कार्य को बेहतर ढंग से कैसे करना है।
3. कार्य करने का आधार (Criteria for working) — सभी विद्यार्थियों को समूह में अपनेपन का एहसास होता है। वे समूह का हिस्सा बनकर कार्य करते हैं। अगर समूह के एक सदस्य को पुरस्कार मिलता है तो सभी खुशी का अनुभव करते हैं।
4. सामाजिक कौशल (Social skills) – सामाजिक कौशलों में सुधार एक मापदंड है जिस पर सहयोगी अधिगम आधारित है। समूह इस तरह का कार्य करता है कि सभी सदस्य अपना योगदान देते हैं।
5. उत्तरदायित्व और जवाबदेही (Responsibility and Accountability)- समूह में सभी सदस्यों को उत्तरदायित्व और जवाबदेही होती है। सभी सदस्य उत्तरदायित्व को निभाते हैं। समूह में सभी साथ कार्य करते हैं पर प्रत्येक सदस्य जवाबदेह होता है।
6. नेतृत्व के लिए प्रशिक्षण (Training for leadership) — प्रत्येक समूह में सभी सदस्य नेता बनते हैं। हर सदस्य परिस्थिति के अनुसार नेता बनता है। इसका लक्ष्य उन्हें एक सफल नेता बनाना है।
7. प्रोत्साहन का सिद्धान्त (Principles of Encouragement) — प्रत्येक को प्रोत्साहन देना ही एकमात्र आधार है जिस पर सहयोगी अधिगम का कार्य केन्द्रित है । इसमें शिक्षक की भूमिका एक सहायक और निर्देशक की है।
8. शैक्षिक एवं सामाजिक (Academic and Social purpose) — सहयोगी अधिगम शैक्षिक और सामाजिक दोनों तरह का शिक्षण होता है।
9. समूह का कार्य (Performance of the group) – समूह के सदस्य स्वयं अपना कार्य देखते हैं और वे कार्य को बिना किसी पक्षपात के करते हैं ।
सहयोगी अधिगम का संगठन (Organisation of Co-operative Learning)
सहयोगी अधिगम का संगठन करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
1. जहाँ तक हो सके समूहों को एक जैसा रखना चाहिए। विद्यार्थियों की योग्यता एक समान होनी चाहिए। यदि योग्यता के आधार पर प्रतिभाशाली कमजोर विद्यार्थियों को अलग-अलग रखा जाए तो सही नहीं होगा।
2. विद्यार्थियों का विभाजन एक ही बार करना चाहिए जो पूरे वर्ष तक रहे।
3. कई बार विद्यार्थी अपनी इच्छानुसार समूह बदलना चाहते हैं तो ऐसा नहीं होना चाहिए।
4. सभी समूहों को सही नाम दिये जाने चाहिए।
5. समूह की संख्या कम-से-कम होनी चाहिए।
6. सहयोगी अधिगम के लिए समूह के सदस्य चक्राकार में बैठे।
7. जब विद्यार्थी समूह में कार्य कर रहे हों वृत्ताकार हों तो समूहों में अंतर होना चाहिए ताकि वे एक-दूसरे से परेशान न हो।
8. कुछ अच्छे विद्यार्थियों को समूह का नेता बनाना चाहिए। हर समूह में एक नेता आवश्यक है।
9. अगर कक्षा की संख्या अधिक है तो समूह भी बड़े बनाए जाने चाहिए।
10. शिक्षक को समूहों के लिए भिन्न-भिन्न कार्य तैयार करने चाहिए।
11. समूह का नेता प्रत्येक कार्य को निर्देश देता है।
12. समूह इस तरह बैठे कि शिक्षक आसानी से निर्देश दे सके।
13. शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक समूह के सदस्य को सही समझ हो कि उन्हें क्या करना है।
14. जब सहयोगी अधिगम का कार्य चल रहा है तो शिक्षक को उसका निरीक्षण करना बहुत जरूरी है।
सहयोगी अधिगम के लाभ (Advantages)
सहयोगी अधिगम के निम्नलिखित लाभ हैं :
1. इससे सभी का विकास होता है।
2. सभी विद्यार्थी इससे प्रोत्साहित होते हैं।
3. विद्यार्थियों के सामाजिक कौशल विकसित होते हैं।
4. सहयोगी अधिगम में बहुत बात-चीत होती है जिससे की विद्यार्थियों की शर्म और हिचक कम होती है।
5. प्रत्येक विद्यार्थी अपने कार्य के लिए जवाबदेह होता है और इससे उनमें आत्म-विश्वास बढ़ता है।
6. यह प्रत्येक को नेतृत्व का प्रशिक्षण प्रदान करता है।
7. इस तरह के अधिगम में वातावरण अच्छा होता है।
8. इससे भाषा के अधिगम में सहायता मिलती है।
9. भाषा का अधिगम और भी अर्थपूर्ण बनता है।
10. इसमें अभ्यास ज्यादा होता है जिससे अधिगम में सहायता होती है।
11. इससे समूह के सदस्य में बातचीत के अवसर बढ़ते हैं।
12. इसमें अच्छे सम्बन्ध बनते हैं।
13. सभी सदस्य समूह में मनोवैज्ञानिक समायोजन करते हैं जिससे उन्हें भविष्य में लाभ होता है।
14. सबकी सामाजिक निपुणता बढ़ती है।
15. सहयोगी अधिगम में विद्यार्थियों की आपस की वार्तालाप को महत्त्व मिलता है जो कि साधारण कक्षा अधिगम में नहीं मिलता है।
सहयोगी अधिगम की सीमाएँ (Limitations)
सहयोगी अधिगम के निम्नलिखित सीमाएँ हैं :
1. सभी विद्यार्थी से बहुत ज्यादा आकांक्षा रखी जाती है।
2. इसमें ज्यादा बल सामाजिक कौशलों पर होता है न की भाषा शिक्षण पर ।
शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher)
सहयोगी अधिगम हम देखते हैं कि पूरी अधिगम प्रक्रिया विद्यार्थियों पर केन्द्रित है जो कि समूहों में कार्य करते हैं। शिक्षक उनका अवलोकन करता है। शिक्षक यह जानकारी रखता है कि विद्यार्थी क्या समझते हैं और क्या नहीं समझते हैं। इस तरह वह उनका निर्देशन करता है। शिक्षक की भूमिका एक दोस्त और सहायक की है।
शिक्षक एक सुविधा देने वाले के रूप में, एक दोस्त के रूप में जो कि लोकतांत्रिक रूप से निर्देश देता है और समूह का नेता बनकर मार्गदर्शन करता है। शिक्षक सभी विद्यार्थियों का सहयोग निश्चित करता है। वह एक केन्द्र की तरह रहता है जिस पर सारी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया चलती है।
शिक्षक मानवीय दृष्टिकोण रखकर यह निश्चित करता है कि विद्यार्थी स्वयं प्रोत्साहित हो।
सभी में वार्तालाप होता है। समूह के लक्ष्य और समूह की सफलता को ध्यान में रखा जाता है। यह सब इसलिए किया जाता है कि विद्यार्थियों में नेतृत्व कौशल विकसित हो।
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