शिक्षण प्रतिमान से आप क्या समझते हैं? (What do you mean understand the model of teaching?)
ब्रूस आर. जॉयस के अनुसार, “शिक्षण प्रतिमान उचित अनुदेशन प्रारूप है । इसके अन्तर्गत विशेष उद्देश्य प्राप्ति के लिए विशिष्ट परिस्थिति का उल्लेख किया जाता है जिसमें छात्र व शिक्षक की अन्तःप्रक्रिया इस प्रकार की हो कि उनके व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सके।”
शिक्षा शब्दकोश के अनुसार, “प्रतिमान एक वस्तु अथवा सिद्धान्त अथवा विचार का आलेखनीय अथवा त्रिविमीय पैमाने पर प्रदर्शन है।”
हीमेन के अनुसार, “शिक्षण प्रतिमान शिक्षण के सम्बन्ध में सोचने-विचारने की एक रीति है । इन्हीं के अनुसार, “प्रतिमान किसी वस्तु को विभाजित तथा व्यवस्थित करके तर्कसंगत ढंग से प्रस्तुत करने की विधि है।”
शिक्षण प्रतिमानों की विशेषताएँ (Characteristics of Model of Teaching)
शिक्षण प्रतिमानों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं :
(i) शिक्षण प्रतिमान शैक्षिक वातावरण के निर्माण का प्रारूप होता है।
(ii) शिक्षण प्रतिमान शिक्षक के व्यक्तित्व की गुणात्मक उन्नति का पथ प्रदर्शन करते
(iii) शिक्षण प्रतिमान शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों को अनुभव प्रदान करता है अर्थात् दोनों के मध्य अन्तःक्रिया को निर्धारित करता है।
(iv) इसमें विद्यार्थियों की रुचि का समुचित उपयोग किया जाता है। इसमें शिक्षक और छात्र दोनों को व्यवहार सम्बन्धी वांछित अनुभव प्राप्त होते हैं।
(v) शिक्षण प्रतिमान वैयक्तिक विभिन्नता से प्रभावित होते हैं।
(vi) शिक्षण सूत्र प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान में आधार का कार्य करते हैं और छात्रों की उन शक्तियों को बल देते हैं जो उनके व्यक्तित्व संगठन में सहायक हैं।
(vii) ये छात्र के व्यवहार को परिवर्तित करने में सहायता करते हैं।
शिक्षण प्रतिमान के तत्त्व (Factors of Teaching Model)
शिक्षण प्रतिमान के विभिन्न तत्व निम्नलिखित हैं :
(1) लक्ष्य या उद्देश्य- उद्देश्य से तात्पर्य उस बिन्दु से है, जिनके लिए प्रतिमान विकसित किया जाता है। शिक्षण के लक्ष्य तथा उद्देश्य ही शिक्षण प्रतिमान के उद्देश्य को निर्धारित करते हैं। शिक्षण प्रतिमान का उद्देश्य ही केन्द्र बिन्दु माना जाता है ।
(2) संरचना या अवस्था— शिक्षण प्रतिमान की संरचना में शिक्षण सोपानों की व्याख्या की जाती है। इसके अन्तर्गत शिक्षण क्रियाओं तथा युक्तियों की व्यवस्था का क्रम निर्धारित किया जाता है शिक्षण की क्रियाओं की व्यवस्था इस प्रकार की जाती है, जिससे सीखने की ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जा सकें जिससे शिक्षण लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके।
जॉयस एवं वील्ड के अनुसार, “प्रतिमान की संरचना / अवस्था प्रतिमान की सक्रियता का वर्णन करता है।”
(3) सामाजिक प्रणाली – शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है। इसलिए छात्र और शिक्षक की क्रियाओं और उनके आपसी सम्बन्धों का निर्धारण इस सोपान में किया जाता है। छात्रों को अभिप्रेरणा देने की प्रविधियों पर भी विचार किया जाता है। शिक्षण को प्रभावशाली बनाने में सामाजिक प्रणाली का विशेष महत्त्व होता है ।
(4) प्रतिक्रिया सिद्धान्त – इसके अन्तर्गत शिक्षक समस्या समाधान हेतु छात्रों को पर्याप्त स्वतन्त्रता देता है। इस पद को शिक्षक की क्रिया प्रति उत्तर में छात्र प्रतिक्रिया का अवलोकन करता है अर्थात् छात्र क्या प्रतिक्रिया करते हैं और उनका स्वरूप क्या है । इस बारे में जॉयस और वील्ड ने लिखा है, “प्रतिक्रिया का सिद्धान्त यह अवगत कराता है कि सीखने वाले (छात्र) पर कैसे ध्यान रखा जाए, कैसे उत्तर प्राप्त किए जाएँ और सीखने वाला क्या कर रहा है। “
(5) सहायक सामग्री – शिक्षण प्रतिमान का यह सोपान अधिक महत्त्वपूर्ण है । इसके शिक्षण की सफलता के सन्दर्भ में निर्णय लिया जाता है कि उद्देश्यों की प्राप्ति हो सकती है। अथवा नहीं। लक्ष्यों की प्राप्ति को लेकर भी प्रतिमानों में विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। इसलिए मूल्यांकन विधि में भी भिन्नता होती है।
(6) उपयोग – शिक्षण प्रतिमान भिन्न-भिन्न परिस्थितियों तथा प्रकरणों हेतु उपयोगी होते हैं । प्रतिमान किस स्थिति एवं किस रूप में प्रयोग हो सकता है, इस तथ्य का ज्ञान इस सोपान में होता है क्योंकि कुछ प्रतिमान ज्ञानात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति पर तथा कुछ भावात्मक लक्ष्यों की ओर बल देते हैं। इस प्रकार यह सोपान शिक्षण प्रतिमान की उपयोगिता सिद्ध करता है।
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