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शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले उपकरण (Aids Used in the Teaching)

शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले उपकरण
शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले उपकरण

शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले उपकरण (Aids Used in the Teaching)

शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले उपकरण- शिक्षण में प्रयुक्त किए जाने वाले उपकरणों को हम निम्न रूप में देख सकते हैं

1. श्यामपट्ट (Black-board )

यह शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। दुर्भाग्यवश भारत में यह उपेक्षित विद्यालय उपकरण है। विद्यालय भवनों का निर्माण करते समय कक्षाओं में श्यामपट्ट के लिए पर्याप्त स्थान रखने की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। विद्यालयों में श्यामपट्ट न तो उपयुक्त स्थान पर रखे जाते हैं और न ही उनकी हालत ठीक रहती है। जहाँ ये उपकरण हैं भी वहाँ या तो वांछनीय ढंग के नहीं हैं या बहुत ही उपेक्षित हालत में है।

शिक्षा आयोग ने भारत में श्यामपट्ट नामक साधन की स्थिति का विवरण देते हुए लिखा है, “हमारे अधिकांश विद्यालयों में विशेषकर प्राथमिक स्तर पर आज भी एक अच्छे श्यामपट्ट्, एक छोटे पुस्तकालय, आवश्यक नक्शे और चार्ट, साधारण वैज्ञानिक उपकरण और आवश्यक प्रदर्शन सामग्री जैसे बुनियादी साज-सामान और शिक्षण-साधनों का पूर्ण अभाव-सा ही है। शिक्षण की गुणता (Quality) में सुधार लाने के लिए प्रत्येक विद्यालय को इस प्रकार के बुनियादी साज-सामान और शिक्षण-साधनों का दिया जाना आवश्यक है। हमारी सिफारिश है कि प्रत्येक श्रेणी के विद्यालयों के लिए न्यूनतम आवश्यक शिक्षण साधनों एवं साज-सामान की सूचियाँ तैयार की जाएँ। हम यह भी सिफारिश करते हैं कि प्रत्येक विद्यालय को तुरन्त एक अच्छा श्यामपट दिया जाए।”

वस्तुतः यह खेदजनक स्थिति है कि आज भारत में श्यामपट्ट का उतना प्रयोग नहीं किया जाता जितना तीस-चालीस वर्ष पूर्व अध्यापक करते थे। जब तक हमारे देश में प्रशिक्षण महाविद्यालय इस सम्बन्ध में अधिक ध्यान नहीं देते, तब तक इस महत्त्वपूर्ण साधन का ठीक-ठीक उपयोग नहीं किया जाएगा। दिल्ली स्थित दृश्य-श्रव्य शिक्षा के राष्ट्रीय संस्थान द्वारा श्यामपट्ट के उपयोग के सम्बन्ध में समय-समय पर विशिष्ट अल्पावधि पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जाये तो अच्छा होगा।

2. फेल्ट या फ्लानेल बोर्ड (Felt or Flannel Board)

इसको फ्लोनेलो ग्राफ (Flannelo graph) भी कहते हैं। यह लकड़ी का बोर्ड होता है, जिस पर फेल्ट (नम्दा) या फ्लानेल चढ़ा रहता है। इस पर चित्रों को केवल थोड़ा-सा दबाकर चिपकाया जा सकता । चित्रों को एक क्रम में प्रदर्शित करने तथा उनमें अंकित व्यक्तियों या वस्तुओं की तुलना करने के लिए यह उपकरण बहुत उपयोगी है। फ्लानेल बोर्ड का उपयोग प्रदर्शित सामग्री के विकासशील पक्षों को समझाने के लिए किया जा सकता है।

3. सूचना-पट (Bulletin Board) 

दृश्य-श्रव्य साधन के रूप में सूचना पट का शैक्षणिक महत्त्व बहुत अधिक है। दुर्भाग्यवश हमारे देश में ऐसे बहुत ही कम आधुनिक विद्यालय हैं, जिनमें कक्षा सूचना-पट उपलब्ध हों। जिन विद्यालयों में हैं भी उनमें आयोजित या व्यवस्थित ढंग से इनका उपयोग सामान्यतः नहीं किया जाता है। हमारे देश में शायद ही कोई ऐसा प्रशिक्षण महाविद्यालय हो जो इस साधन को वैसा महत्त्व देता हो जैसा वस्तुतः देना चाहिए। दिल्ली स्थित दृश्य-श्रव्य शिक्षा के राष्ट्रीय संस्थान को इस उद्देश्य से एक पृथक कक्ष तैयार करना चाहिए कि संस्थान में आने वाले प्रशिक्षार्थियों और संस्थाओं के प्रधानों तथा अध्यापकों को एक आदर्श कक्ष के रूप में उसे दिखाया जा सके। उन्हें समझाया जा सके कि प्रत्येक कक्षा में कम-से-कम तीन साधारण और कम खर्चीले साधन – श्यामपट, फ्लोनल पट और सूचना-पट होना बहुत आवश्यक है।

सूचना-पट कक्षा अथवा विद्यालय की सर्वकालीन पत्रिका के रूप में होना चाहिए, जिससे वह छात्रों को उनसे सम्बन्धित प्रत्यक्ष जानकारी प्रदान कर सकें, साथ ही ज्ञान की प्राप्ति छात्रों की जिज्ञासा एवं रूचि को जाग्रत कर सके। सूचना पट छात्रों को एक टोली के रूप में काम करने के लिए अवसर प्रदान करता है और कक्षा के वातावरण को समृद्ध करता है।

4. मॉडल (Model)

जब शिक्षक को वास्तविक पदार्थ उपलब्ध नहीं हो पाते हैं तब वह वास्तविक पदार्थों के मॉडल या नमूने में लाता है। इनके द्वारा सामाजिक अध्ययन का शिक्षक भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा नागरिकशास्त्र के तथ्यों का ज्ञान सुगमतापूर्वक करा सकता है।

5. रेखाकृति (Diagram) 

इसमें रेखाओं तथा प्रतीकों द्वारा अन्तःसम्बन्ध स्पष्ट किए जाते हैं। अध्यापक को सदैव बाह्य साधनों पर ही आश्रित नहीं रहना चाहिए। उसे साधन-सम्पन्न होना चाहिए। वास्तविक पदार्थों, कानूनों तथा चित्रों के अभाव में शिक्षक को श्यामपट पर चॉक से कुछ रेखाएँ इत्यादि बनाकर पाठ्य सामग्री के भावों, विचारों तथा सम्बन्धों को स्पष्ट करना चाहिए। इस प्रकार शिक्षक इनकी सहायता से पाठ्य-वस्तु के भागों को दृश्यनीय बना सकता है। आगे एक सरल रेखाकृति का उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है-

रेखाकृति

उपर्युक्त दोनों प्रकार के उपकरणों को त्रि-आयात्मक उपकरणों (Three Dimensional) के अन्तर्गत रखा जा सकता है।

6. मानचित्र (Map) 

सामाजिक अध्ययन में मानचित्र का भी बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसके द्वारा छात्रों के सम्मुख अमूर्त वस्तुओं का ज्ञान मूर्त कर दिया जाता है । सामाजिक अध्ययन का शिक्षक इसका उपयोग निम्नलिखित बातों का ज्ञान प्रदान करने के लिए कर सकता है-

(i) मानचित्र द्वारा शिक्षक छात्रों को राजनैतिक तथा प्राकृतिक दशा का सम्यक् ज्ञान करा सकता है।

(ii) मानचित्रों का प्रयोग स्थानों के निर्धारण (Location) के लिए किया जा सकता है। यदि सामाजिक अध्ययन का शिक्षक स्थानीय वातावरण के विषय में अध्यापन कर रहा है तो उसके स्थानों को निर्धारित करने में इसके द्वारा सफल होगा तथा उसकी भौगोलिक स्थिति को समझ सकेगा।

(iii) मानचित्रों द्वारा क्षेत्रों का तुलनात्मक ज्ञान दिया जा सकता है।

(iv) मानचित्रों द्वारा किसी स्थान के भौगोलिक सम्बन्धों को प्रदर्शित करने में सहायता मिलती हैं।

(v) मानचित्रों का उपयोग सामाजिक अध्ययन का शिक्षक भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिवर्तनों को दिखाने के लिए भी कर सकता है।

(vi) अन्त में हम कह सकते हैं कि मानचित्रों का उपयोग विभिन्न प्रदेशों की जातीयों उपज तथा भाषाओं आदि का ज्ञान कराने के लिए भी किया जा सकता है।

7. चित्र (Pictures)

चित्र अध्यापन के अमूल्य साधन हैं। इनके द्वारा प्रकरण को अधिक स्पष्ट और रोचक बनाया जाता है। जिन बातों का प्रत्यक्ष अनुभव छात्रों को नहीं होता वे चित्रों की सहायता से पर्याप्त सीमा तक स्पष्ट एवं सार्थक हो जाती है। अध्ययन-अध्यापन की किसी ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की जा सकती है जिसमें चित्रों की सहायता न ली जा सके। चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने पर जीवनी एक मार्मिक जीवन्त अध्ययन बन जाती है। महापुरूषों के सम्बन्ध में छात्रों के समक्ष चित्र प्रस्तुत किए बिना कोई चर्चा नहीं करनी चाहिए। चित्र, चाहे अच्छे हों या बुरे, यथार्थ का आभास तो देते ही हैं। फिर भी यथासम्भव सर्वोत्तम उपलब्ध चित्रों को ही चुनना चाहिए।

चित्रों तथा मानचित्रों की सहायता से समझाने पर सामाजिक विषयों इतिहास, भूगोल आदि के सूक्ष्म अर्थ वाले शब्द और प्रतीक सार्थक बन जाते हैं। अभिभावकों और अध्यापकों द्वारा समाचार-पत्रों और पत्र-पत्रिकाओं में निकलने वाले चित्रों को जब उपयुक्त शीर्षक देकर सूचना-पट पर प्रदर्शित किया जाता है तो छोटे-छोटे बच्चे विश्व घटनाओं में रुचि लेने लगते हैं। दुर्भाग्य की बात है कि समाचार-पत्र एवं पत्र-पत्रिकाएँ जिनमें बहुमूल्य भरे रहते हैं । सामान्यतः पुराने रद्दी बेकार कागज समझकर बेच दिए जाते हैं शिक्षण-साधन

विश्व की विभिन्न जातियों के बीच सांस्कृतिक मानदण्डों तथा जीवन-पद्धतियों के पारस्परिक आदान-प्रदान और विवेचन को प्रोत्साहित करने में भी चित्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पूर्व और पाश्चात्य जगत् के विद्वान बहुत समय से एक-दूसरे की संस्कृतियों का अध्ययन करते आ रहे हैं, लेकिन जिस बोध और सद्भावना पर विश्वशान्ति निर्भर है उसकी उपलब्धि के लिए तब तक कोई यथार्थ प्रगति नहीं हो सकती जब तक जीवन की सर्वाधिक निर्माणात्मक अवधि में बालकों को इन सांस्कृतिक विभेदों का ज्ञान नहीं कराया जाता है। चित्रों द्वारा इस ज्ञान को सार्थकता से प्रस्तुत किया जा सकता है। साथ ही, अधिक महत्त्व की बात यह है कि सहानुभूति को जाग्रत करने के लिए भी चित्रों का उपयोग किया जा सकता है।

8. चार्ट (Chart)

सामाजिक अध्ययन के शिक्षण में चार्ट बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। चार्ट किसी घटना या क्रान्ति का क्रमिक विकास दिखाने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। वास्तव में चार्ट वह माध्यम है, जिसके द्वारा किसी वस्तु के अन्तर्सम्बन्ध तथा संगठन, भावों, विचारों तथा विशेष स्थलों को दृश्यात्मक रूप में प्रदर्शित किया जा सके। वस्तुतः चार्ट शब्द का प्रयोग विभिन्न प्रकार के लाक्षणिक प्रदर्शनों के लिए किया जाता है।

9. ग्लोब (Globe) 

आधुनिक युग में हवाई यात्रा के कारण लोग अधिकाधिक अन्तर्राष्ट्रीय वृत्ति वाले होते जा रहे हैं। अतः, ग्लोब एक अपरिहार्य दृश्य-श्रव्य साधन हो गया है। ग्लोब की सहायता से हम विश्व की भौतिक एकता, उसके एक भाग का शेष भागों के साथ सम्बन्ध तथा संसार के एक भाग से दूसरे भाग की दिशा स्थिति देख और समझ सकते हैं। ग्लोब की सहायता से अक्षांश और रेखांश या देशान्तर समय-परिवर्तन और ऋतु परिवर्तन सरलता से समझे जा सकते हैं। विद्यालयों में काम आने वाले ग्लोब तीन प्रकार के होते हैं-

(i) राजनीतिक ग्लोब,

(ii) भौतिक राजनीतिक ग्लोब तथा

(iii) स्लेट – पृष्ठीय ग्लोब ।

प्राइमरी कक्षाओं में राजनीतिक ग्लोब का उपयोग किया जाता है। इनमें न्यूनतम विवरण दिए रहते हैं। ऊँची कक्षाओं में भौतिक राजनीतिक ग्लोबों का प्रयोग किया जाता है । इनमें उच्चावस्था अथवा रंग की सहायता से ऊँचे भूखण्ड दिखाये जाते हैं। स्लेट – पृष्ठीयं ग्लोब सभी कक्षाओं के लिए उपयोगी होता है, क्योंकि विशिष्ट आवश्यकता के अनुसार उस पर मानचित्र खींचा जा सकता है।

10. ग्राफ (Graph)

ग्राफ संख्यात्मक आँकड़ों को प्रस्तुत करने का एक प्रभावशाली साधन है। इसके द्वारा सम्बन्धों एवं विकास के प्रदर्शन के साथ-साथ तुलनात्मक अध्ययन को प्रस्तुत किया जा सकता है । सामाजिक अध्ययन के शिक्षण में इसका प्रयोग बहुत उपयोगी है। इस विषय का शिक्षक इनका प्रयोग विभिन्न तथ्यों को स्पष्ट करने तथा उनके तुलनात्मक अध्ययन के लिए कर सकता है, परन्तु ग्राफ का प्रयोग तभी करना चाहिए जब किसी अन्य उपकरण से किसी बात को स्पष्ट न किया जा सके। इसका कारण यह है कि ग्राफ बनाने में काफी समय और सावधानी की आवश्यकता होती है। फिर भी शिक्षक को कुछ ग्राफ स्वयं बनाने के बजाय छात्रों से बनवाने चाहिए जिससे उनकी रेखाचित्र बनाने की कुशलता का विकास हो सकें।

11. चलचित्र तथा फिल्म खण्ड (Cinema and Film Strips )

विभिन्न विषयों के शिक्षण में चलचित्रों का प्रयोग प्रथम महायुद्ध के पश्चात् से होने लगा था, परन्तु इनका पर्याप्त मात्रा में उपयोग 1931 ई० के बाद से हुआ। पश्चिमी देशों में इनका उपयोग प्रत्येक विषय के शिक्षण के लिए होने लगा है। मनोवैज्ञानिकों के परीक्षण ने इनके उपयोग को और भी प्रोत्साहन दिया है । इनके उपयोग से शिक्षण तथा सीखने की प्रक्रिया को बहुत योगदान दिया गया। सामाजिक अध्ययन के शिक्षण में चलचित्रों तथा फिल्म- खण्डों की बहुत उपादेयता है । सामाजिक अध्ययन का शिक्षक इनकी सहायता से मानवीय सम्बन्धों को स्पष्ट करने में सफल होगा वह इनके माध्यम से छात्रों को विभिन्न देशों के लोगों के रीति-रिवाजों, परम्पराओं, पोशाकों, रहन-सहन के ढंगों, त्योहारों, उत्सवों आदि से अवगत करा सकता है। तथा उनकी समानताओं एवं असमानताओं को स्पष्ट करा सकता है। इसके अतिरिक्त वह अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में सहायता प्रदान कर सकता है। इनके माध्यम से वास्तविक परिस्थितियों तथा वर्तमान घटनाओं को स्पष्ट कर सकता है।

12. समाचार सम्बन्धी फिल्म (Documentary Films)

विभिन्न विषयों के शिक्षण में इन फिल्मों का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत सरकार इस क्षेत्र में पर्याप्त कार्य कर रही है। अर्थशास्त्र-शिक्षण में इन फिल्मों का उपयोग बहुत लाभप्रद । इनके प्रयोग से छात्रों का राष्ट्र की आर्थिक प्रगति एवं परिस्थितियों से अवगत कराया जा सकता है। इनके प्रयोग से पूर्व शिक्षक को चाहिए कि वह उस समाचार फिल्म के बारे में उन्हें परिचय प्रदान कर दे, जिससे उनको समझने में कठिनाई नहीं उठानी पड़े, तभी इनके प्रयोग के लाभों को प्राप्त किया जा सकता है। फिल्म तथा उसमें प्रयुक्त की गई भाषा छात्रों के स्तर के ‘अनुकूल होनी आवश्यक है, क्योंकि यदि इसके विपरीत भाषा प्रयुक्त की गई तो छात्र इनको समझने में असमर्थ रहेंगे और फिल्मों का भी उद्देश्य पूर्ण न हो सकेगा।

13. टेलीविजन (Television)

टेलीविजन नवीनतम श्रव्य-दृश्य उपकरण है। शिक्षा देने के लिए इसका प्रयोग प्रारम्भ हो गया है, पर इसके ऊँचे मूल्य से इसका प्रयोग अभी तक सीमित है । टेलीविजन में बालक अपनी देखने तथा सुनने की दोनों इन्द्रियों का प्रयोग करने के कारण किसी भी तथ्य को शीघ्रता से सीख जाता है। टेलीविजन का सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि वह ‘जीवन्त’ होता है अर्थात् वह किसी भी बात को सदैव विकारमुक्त रूप से उसी क्षण पर्दे पर प्रस्तुत कर देता है, जीवन्त होने के कारण यह अत्यधिक वास्तविक होता है। छात्रों को इसके प्रतिबिम्बों की यथार्थता पर सहज विश्वास हो जाता है और यह विश्वास शिक्षण को प्रभावित करता । इसके अतिरिक्त यह उपकरण योग्यतम शिक्षकों को देश की शिखा संस्थाओं तक पहुँचा देता है और शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होता है, इसका सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि इसमें मानचित्र, मॉडल, फोटोचित्र, फिल्म आदि विविध प्रकार की श्रव्य दृश्य सामग्री का उपकरण किया जा सकता है ताकि शिक्षण प्रभावशाली बन सकें। इस उपकरण के महत्त्व का उल्लेख करते हुए थट व गेरबेरिच (Thut and Gereberich) ने कहा है, “यह सबसे अधिक आशापूर्ण श्रव्य-दृश्य है, क्योंकि सन्देशवाहन के इस एक यन्त्र में रेडियो तथा चलचित्र के गुणों का सम्मिश्रण हैं।”

शिक्षा में श्रव्य सामग्री (Audio Aids in Social Studies)

रेडियो (Radio) 

रेडियो शिक्षा और मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण उपकरण है। आधुनिक शिक्षा मनोविज्ञान में खेल द्वारा शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसीलिए रेडियो की ओर शिक्षा-विशारदों तथा मनोवैज्ञानिकों का ध्यान गया और उन्होंने इस उपकरण की शैक्षिक महत्ता पर विचार किया। आजकल अखिल भारतीय रेडियो द्वारा भी छात्रों तथा बच्चों की शिक्षा और मनोरंजन के लिए कार्यक्रम प्रसारित किए जाने लगे हैं ।

विभिन्न विषयों के शिक्षण में रेडियों की बहुत उपादेयता है। जैसे कि हम देख चुके हैं, सामाजिक अध्ययन के शिक्षण का एक उद्देश्य छात्रों को तत्कालीन घटनाओं से अवगत कराना है इसके अतिरिक्त उसका उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करना भी है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयासों में रेडियो बहुत ही सहायक है। रेडियो की सहायता से विश्व तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में छात्रों के दृष्टिकोण को व्यापक बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसके माध्यम से विद्यालय तथा समाज को एक-दूसरे के निकट लाया जा सकता है। साथ ही सामाजिक अध्ययन के विभिन्न प्रमुख प्रकरणों पर विभिन्न विद्वानों के विचारों को प्रस्तुत करवाया जा सकता है। उदाहरणार्थ, ‘आदर्श नागरिक के गुण’ हम कैसे शासित होते है, ‘नागरिक के अधिकार एवं कर्त्तव्य’, ‘राष्ट्रीय एकता किस प्रकार स्थापित की जा सकती है आदि ।

रेडियो की उपादेयता के विषय में उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व वित्तमंत्री श्री सैयद अली जहीर का कथन है कि “रेडियो ने शिक्षण तथा सीखने की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की है और जैसे-तैसे हमारे साधन बढ़ते जाएँगे वैसे ही हम प्रत्येक स्तर पर शिक्षक के लिए इस सहायक सामग्री को उपलब्ध बना देंगे।” इस उत्पादन के प्रयोग में शिक्षक का महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसका लाभ तभी उठाया जा सकता है जब शिक्षक प्रोग्राम के पश्चात् छात्रों के अर्जित ज्ञान को प्रश्नों द्वारा जाँचे तथा उसके पश्चात् उनके ज्ञान को अपने कथन द्वारा समृद्ध बनाए । इसके पश्चात् उनसे उन विषय पर वाद-विवाद कराए तथा लेखाबद्ध करने के लिए आदेश दे। ऐसा करने से छात्रों में तर्कसम्मत चिन्तन करने की वृत्ति का विकास होगा तथा इस प्रकार का ज्ञान स्थायी होगा। इससे छात्रों को बोलने की कला तथा अपने विचारों का क्रमबद्ध करना आ जाएगा।

टेप-रिकॉर्डर (Tape recorder) 

विभिन्न विषयों के शिक्षण में टेप रिकॉर्डर की बहुत उपादेयता है इसका प्रयोग से रेडियो की सीमाओं को दूर किया जा सकता है। रेडियो के कार्यक्रम निश्चित समय पर आते हैं। यदि रात्रि के साढ़े आठ बजे प्रधानमंत्री या अन्य किसी विद्वान् या राजनीतिज्ञ का भाषण प्रसारित होने वाला हो तो हम उसका उपयोग नहीं कर सकते। इसके लिए विशिष्ट भावों तथा विचारों को टेप रिकॉर्डर में भर लिया जाए तो हम उसका उपयोग विभिन्न तथा मनचाहे अवसरों पर कर सकते हैं। इसके द्वारा हम तत्कालीन घटनाओं से छात्रों को अवगत करा सकते हैं जो छात्रों को योग्य नागरिक बनने में सहायक सिद्ध हो सकती हैं।

कम्प्यूटर (Computer) 

कम्प्यूटर को शैक्षिक तकनीकी प्रथम या कठोर उपागम (हार्डवेयर आयाम) के अन्तर्गत रखा जाता है। यह स्वतः अनुदेशन पद्धति का एक उपकरण है जिसका प्रयोग व्यक्तिगत-अनुदेशन (Individualized Instruction) के लिए किया जाता है। शिक्षण में कम्प्यूटर के उपयोग के लिए कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन (Computer Assisted Instruction—CAI) प्रणाली का विकास किया। शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर का प्रयोग विशेषतः शिक्षण तथा मूल्यांकन कार्यों के लिए किया जाता है। शिक्षण के क्षेत्र में अनुदेशन पद्धति, शोध कार्यों तथा परीक्षा प्रणाली को कम्प्यूटर ने बहुत अधिक प्रभावित किया है।

वीडियो गेम (Video Tape)

इसे वीडियो टेप तथा ऑडियो-वीडियो कैमरा भी कहते क्षेत्र में तीव्र गति से बढ़ रहा है। इसी का दूसरा नाम दृश्य-श्रव्य कैसेट है। शिक्षा के क्षेत्र हैं आजकल दूरदर्शन के विस्तार के फलस्वरूप वीडियो का प्रचलन शिक्षा तथा मनोरंजन के में यह तकनीक एक आन्दोलन के रूप में उभरकर आई है। साथ ही यह नई खोज का प्रतीक भी है। आज छात्र इन कैसेटों के माध्यम से घर पर शिक्षा ग्रहण कर सकता है। इसमें किसी घटना, भाषण या पाठों को बार-बार रोककर चलाया जा सकता है। शिक्षक को बार-बार दोहराना बुरा लग सकता है, परन्तु इसे नहीं । शिक्षण के विभिन्न विषयों तथा पाठों पर वीडियो कैसेट अर्थात् फिल्मों के वीडियो टेप उपलब्ध हैं जो राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) तथा केन्द्रीय शैक्षिक तकनीकी संस्थान (Central Institute of Educational Technology) तथा इन्दिरा गाँधी खुला या मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) ने विभिन्न पाठ्यक्रमों पर तैयार किए हैं और जिनका विभिन्न अध्ययन केन्द्रों (Study Centres) पर प्रयोग हो रहा है।

सामाजिक अध्ययन के शिक्षण में समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं की उपादेयता सामाजिक अध्ययन के शिक्षण में समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये शिक्षण के प्रभावशाली उपकरण हैं। समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ लोगों की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दशाओं के विषय में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान करती हैं। इनका अध्ययन शिक्षक एवं बालक, दोनों के लिए लाभप्रद है, क्योंकि इनके द्वारा उनके ज्ञान को पूर्ण एवं आधुनिक बनाया जाता है। भारत में इनके अध्ययन पर पर्याप्त रूप से बल दिया जाना आवश्यक है, क्योंकि आज भारत में औद्योगीकरण, समाजीकरण एवं नगरीकरण होने से समाज में महान् परिवर्तन हो रहे हैं। जब तक शिक्षक एवं बालक इन तत्कालीन परिवर्तनों से स्वयं को अवगत नहीं करायेंगे तब तक सामाजिक अध्ययन के लक्ष्य की प्राप्ति करने में असमर्थ रहेंगे। इसके अतिरिक्त वे इस परिवर्तित समाज में अपने को व्यवस्थित करने में असफल पायेंगे।

इनके माध्यम से बालक विभिन्न प्रकार के ग्राफों, चित्रात्मक रेखाओं आदि को सीखने तथा उनकी व्याख्या करने में समर्थ होते हैं। शिक्षक इन विभिन्न प्रकार के ग्राफों को जिनमें तापक्रम, वर्षा, जनसंख्या, शिक्षा की प्रगति, व्यावसायिक उन्नति, उत्पादन आदि को प्रदर्शित करवाकर बनवा सकता है। इससे सामाजिक अध्ययन की प्रयोगशाला भी सुसज्जित हो जाएगी तथा बालकों को इन विभिन्न वस्तुओं की सरलता से ज्ञान भी हो जाएगा। शिक्षक बालकों को समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे तथा उन्हें उन विशेष लेखों पर संक्षिप्त नोट बनाने के लिए कहे जो महत्त्वपूर्ण हैं । इसके साथ ही उसको इन महत्त्वपूर्ण लेखों को काटकर अपने एलबम में चिपकाने के लिए कहे, जिससे उनका आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सके।

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