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कार्ल रोजर्स का मानवतावादी परिप्रेक्ष्य | Humanistic Perfective of Carl Roger’s in Hindi

कार्ल रोजर्स का मानवतावादी परिप्रेक्ष्य
कार्ल रोजर्स का मानवतावादी परिप्रेक्ष्य

कार्ल रोजर्स का मानवतावादी परिप्रेक्ष्य (Humanistic Perfective of Carl Roger’s)

कार्ल रोजर्स का जन्म 8 जनवरी, 1902 के ओकपार्क (अमेरिका) में हुआ। उन्होंने एक मनोचिकित्सक का कार्य करते हुए व्यक्तियों की समस्या का निराकरण वास्तविक तरीके से खोज निकाला और स्पष्ट किया कि व्यक्ति का स्व ही केन्द्रीय तत्व है। इसके द्वारा ही व्यक्ति अपने वातावरण से अवगत होता है तथा इसी के माध्यम से वह अपने विचारों, संवेगों को आत्मसात् करता है। यह विश्वास किया जाता है कि मानव मूल से विवेकशील, सामाजिक, गतिशील, अग्रणी तथा यथार्थवादी है। ये सकारात्मक प्रवृत्तियाँ आत्मसिद्धि की मूल प्रेरणाएँ समझी जा सकती हैं। कार्ल रोजर्स ने व्यक्तित्व के जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है वह घटना विज्ञान पर आधारित है। यह वह विज्ञान है जिसमें व्यक्ति की अनुभूतियों, भावों मनोवृत्तियों का स्वयं अपने बारे में या दूसरे के बारे में व्यक्तित्व विचारों का अध्ययन विशेष रूप से किया जाता है। रोजर्स के इस सिद्धान्त को आत्मन या व्यक्ति केन्द्रित सिद्धांत भी कहा जाता है।

व्यक्तित्व की व्याख्या के लिए मानवतावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन कार्ल रोजर्स 1970 एवं अब्राहम मैस्लो, 1970 की विचारधाराओं से हुआ है। यह सिद्धान्त व्यक्तित्व के विकास में स्व की अवधारणा एवं व्यक्ति की वैयक्तिक अनुभूतियों को ही सर्वाधिक महत्त्व देता है। इस सिद्धान्त के समर्थकों ने मनोविश्लेषण तथा व्यवहारवादियों पर यह आरोप लगाया है कि इन लोगों ने व्यक्ति के विकास को पूर्णतया यांत्रिक प्रतिक्रिया बना दिया है। रोजर्स एवं मैस्लो का विचार है कि व्यक्ति एक असहाय प्राणी नहीं है कि आन्तरिक प्रवृत्तियाँ और बाह्य पर्यावरण जैसा चाहें वैसा उन्हें बनाते हैं इनके अनुसार, व्यक्तित्व का व्याख्या में आत्मा स्व को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। आत्म से तात्पर्य उन सभी विशेषताओं से है जो किसी व्यक्ति में पाई जाती है। इसपर व्यक्तित्व के प्रत्यक्षीकरण तथा व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। यही व्यवहार का निर्धारण है। व्यक्ति उसी रूप में व्यवहार करना चाहते हैं जो उनके आत्म से मेल खाते हैं और वांछित कार्यों को चेतना में नहीं आने देते हैं। इस वास्तविक आत्म के अतिरिक्त रोजर्स ने आदर्श आत्म की भी कल्पना की है। दोनों में जितना ही मेल होगा, व्यक्तित्व उतना ही संगठित होगा। आत्म के विकास का सामाजिक मूल्यांकन पर भी प्रभाव पड़ता है।

कार्ल रोजर्स का मानवतावादी परिप्रेक्ष्य की विशेषताएँ

इस सिद्धान्त की अपनी कुछ विशेषताएँ एवं परिसीमाएँ हैं, जो इस प्रकार हैं:

(i) इस सिद्धान्त का कक्षागत शिक्षण में विशेष महत्त्व है।

(ii) यह सिद्धान्त मनोचिकित्सा के क्षेत्र में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है।

(iii) इस सिद्धान्त की प्रमुख विशेषता आत्मन् पर बल दिया जाता है जिसके दर्शन हमें व्यक्तित्व के किसी अन्य सिद्धान्त में नहीं होते है।

(iv) इस सिद्धान्त में आन्तरिक संगति पर विशेष बल दिया गया है तथा प्रत्येक संप्रत्यय को ठीक से परिभाषित करने का प्रयास किया गया है।

(v) यह सिद्धान्त मानवतावादी आंदोलन के रूप में हमारे सामने उभरकर आया है जो अपने आप में अनूठा है।

(vi) यह सिद्धान्त भविष्य के व्यक्तित्व सिद्धांतवादियों के लिए एक पथ-प्रदर्शन के रूप में कार्य करेगा जो निःसन्देह इस सिद्धांत के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।

(vii) यह सिद्धान्त फ्रॉयड तथा एरिक्शन के सिद्धान्त से बिल्कुल भिन्न है।

कार्ल रोजर्स का मानवतावादी परिप्रेक्ष्य की परिसीमाएँ

उपरोक्त विशेषताओं के अतिरिक्त इस सिद्धान्त की अपनी कुछ परिसीमाएँ भी हैं, जो इस प्रकार हैं-

(i) इस सिद्धान्त के संवृद्धि तथा वस्तुवादिता के दो प्रमुख आधार हैं लेकिन रोजर्स इन दोनों की कोई संतोषजनक व्याख्या नहीं कर पाये।

(ii) रोजर्स ने व्यक्तित्व के अध्ययन का सबसे उत्तम तरीका व्यक्ति की अनुभूतियों की परख को माना है। आलोचक उनके इन तरीकों को सही नहीं मानते।

(iii) इस सिद्धांत की उपचारात्मक कार्यों में उपयोगिता अवश्य प्रमाणित होती हैं लेकिन इसका आत्मसिद्धि का संप्रत्यय अस्पष्ट है तथा इससे व्यवहार की सूक्ष्म व्याख्या करने में सहायता की सम्भावना कम ही रहती है।

(iv) इस सिद्धान्त ने व्यवहारवादियों की कुछ ज्यादा ही उपेक्षा की है जो उचित प्रतीत नहीं होता।

(v) इस सिद्धान्त की वैज्ञानिक वैधता भी प्रमाणित नहीं हो पायी है। इन आलोचनाओं के बावजूद रोजर्स का व्यक्तित्व – सिद्धान्त व्यक्तित्व के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है तथा व्यक्तित्व विकास को एक नये आयाम पर प्रतिष्ठित करने का भरपूर प्रयास करती है जो अपने आप में सराहनीय है।

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