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शिक्षण की सामान्य व विषय संबंधित विशिष्ट योग्यता

शिक्षण की सामान्य व विषय संबंधित विशिष्ट योग्यता
शिक्षण की सामान्य व विषय संबंधित विशिष्ट योग्यता

शिक्षण की सामान्य व विषय संबंधित विशिष्ट योग्यता

एक शिक्षक में सामान्य योग्यताएँ, जैसे—उसका विषय पर अधिकार, भाषा में प्रभावशीलता, प्रभावशाली व्यक्तित्व, विनम्रता, छात्राओं का बोध और कक्षागत शिक्षण कौशल व संगठन एवं प्रबन्धन की क्षमता के गुण होते हैं । परन्तु इन विशेषताओं के साथ-साथ प्रत्येक शिक्षक में अपने विषय एवं क्षेत्र के अनुसार कुछ विशिष्ट गुणों का भी होना आवश्यक है, जो निम्न प्रकार हैं

गणित शिक्षण के विशिष्ट कौशल (Specific Skills of Mathematics Teaching)

शिक्षा और राजनीति एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। राजनीतिज्ञ जो अपने देश का दिशा-निर्देशन करते हैं और जिस क्षेत्र को प्रगतिशील बनाना चाहते हैं वे राजनीतिज्ञ शिक्षा की प्रक्रिया को उसी क्षेत्र में प्रभावशाली बनाना चाहते हैं और वही शिक्षा के उद्देश्य होते हैं उन्हीं शिक्षा के उद्देश्यों को भिन्न-भिन्न विषयों के माध्यम से पूरा किया जाता है। गणित भी एक विशिष्ट विषय है जो शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने में सहयोग देता है और उसके भी अपने उद्देश्य होते हैं।

गणित के प्रत्येक उद्देश्य के अन्तर्गत कुछ प्राप्य उद्देश्य निहित होते हैं। उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जीवनभर प्रयास करने पड़ते हैं, परन्तु फिर भी पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाते और प्राप्य उद्देश्य प्रति पाठ के लिए निश्चित किये जाते हैं और उनकी प्राप्ति पाठ समापन तक काफी सीमा तक की जा सकती है।

प्राचीन काल में गणित का उद्देश्य केवल मानसिक शक्तियों का विकास एवं मानसिक प्रशिक्षण तक ही सीमित था, किन्तु आज नैतिक एवं कलात्मक मूल्यों के लिए भी गणित की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है। चूँकि आधुनिक युग में विज्ञान की शिक्षा द्वारा ही आर्थिक प्रगति सम्भव है, अतः गणित की शिक्षा नितांत आवश्यक है। अतः गणित शिक्षण के निम्न उद्देश्य होने चाहिए

(1) दैनिक जीवन में गणित की व्यावहारिक उपयोगिता का उद्देश्य।

(2) सांस्कृतिक संरक्षण का उद्देश्य।

(3) अनुशासनात्मक उद्देश्य।

(4) वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास का उद्देश्य।

(5) चारित्रिक विकास में योग का उद्देश्य।

1. दैनिक जीवन में गणित की व्यावहारिक प्रयोग का कौशल – मानव जीवन में नित्य ही प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में आदान-प्रदान करता है। क्रय-विक्रय तो जीवन का अंग बन गया है। साधारण व्यक्ति से लेकर महान व्यक्तियों तक यह प्रक्रिया स्वचालित है । यही क्रम जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जारी रहता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारी आधुनिक सभ्यता का आधार गणित ही माना जा सकता है। विज्ञान की खोजों ने हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित किया है; इन खोजों के पीछे गणित के ही सिद्धान्त सर्वोपरि हैं। बिना गणित के विज्ञान की खोजों में सफलता मिलना नितांत असम्भव है। प्रत्येक व्यावहारिक कार्य में, जैसे नापना, तौलना, गिनना आदि का बोध गणित के ज्ञान द्वारा ही सम्भव है। विज्ञान विषय में ही नहीं अपितु अन्य विषयों में भी गणित की अहम् भूमिका होती है।

जूता बनाने के नाप, कपड़ा सिलवाने की माप, दवाई लेने की खुराक की मात्रा, इन सभी कार्यों में गणित के ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। एक अनपढ़ किसान भी गणित के ज्ञान से परिचित है कि एक एकड़ खेत में कितना बीज व खाद डाला जायेगा । इस सम्बन्ध में उसे उपज का भी अनुमान होता है। किसी भी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति जैसे किसान, मजदूर, व्यापारी, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, शिक्षक, पुजारी आदि सभी गणित के अंकों व सिद्धान्तों का प्रयोग करता है। मजदूर अपनी मजदूरी गिनना जानता है और रसोइया सब्जी में पड़ने वाले मसाले, नमक, मिर्च आदि का अनुपात जानता है। व्यापारी लाभ, हानि, घाटा, बट्टा, ब्याज तथा लाखों रुपये की हेरा-फेरी बड़ी चतुराई से करता है, ये सब देन गणित के ज्ञान का ही परिणाम हैं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति जीवन में किसी न किसी रूप में गणित का प्रयोग अवश्य करता है ।

इसके लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय में गणित शिक्षक छात्रों की भावनाओं को इस प्रकार जाग्रत करे कि वे अपने समय का सदुपयोग गणित की भिन्न-भिन्न समस्याओं को खेल ही खेल में बनाकर व उनका समाधान सीखकर करे तथा अवकाश के समय का भी वे उचित उपयोग कर सकते हैं। उच्च प्राथमिक स्तर पर अधिक प्रभावशाली ढंग से किया । जा सकता है। छात्रों में खेल की भावना अधिक होती है। गणित दौड़ छोटे-छोटे छात्रों में कराई जा सकती है ।

2. सांस्कृतिक संरक्षण का कौशल गणित हमारी संस्कृति के संरक्षण में अहम् भूमिका निभाता है । गणित के नियम, उपनियम, सिद्धान्त एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते रहते हैं और नई-नई खोजें होती रहती हैं, उनका ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहता है। प्रत्येक विषय में जो अनुसन्धान होते हैं उन सभी अनुसन्धानों में गणित की सहायता ली जाती है और यह क्रम निरन्तर जारी रहता है। इसलिए गणित हमारी संस्कृति की रक्षा ही नहीं बल्कि उसे उन्नत बनाने में सहायता करता है जिससे समाज का विकास होता है। यह कहावत सत्य है कि गणित हमारी संस्कृति का दर्पण है।

वर्तमान सभ्यता उन विभिन्न व्यापारों पर निर्भर है, जो हमारी उन्नतिशील संस्कृति के परिचायक हैं। जैसे—उन्नतिशील कृषि, इंजीनियरिंग, मानचित्रांकन, मेडीकल, औद्योगीकरण, बिल्डिंग तथा यातायात के साधन शिक्षा प्रक्रिया और वैज्ञानिक अनुसन्धान। ये हमारी रीढ़ हैं और ये सभी व्यापार उन्नतिशील गणित की देन हैं । अतः यह तथ्य स्पष्ट है कि गणित हमारी संस्कृति का संरक्षण करता है। गणित हमारी कक्षाओं (संगीत और कला, ज्यामिति, चित्रकला और कविता) की धुरी है। रेखागणित हमारी संस्कृति का मूल है । वास्तव में गणित हमारी सभ्यता की नींव है जो अडिग और अमिट है। इसकी अनुपस्थिति में समाज बालू की दीवार की तरह ढह सकता है।

3. अनुशासनात्मक उद्देश्य – अनुशासन से हमारा अभिप्राय मानसिक अनुशासन से है। गणित के पढ़ाने में छात्रों में अनुशासन की भावना उत्पन्न हो सके ऐसा प्रयास करना चाहिए। बहुत से मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि गणित से छात्रों में तर्क ही सीमित नहीं रहता, बल्कि अन्य विषयों में से स्थानान्तरण के आधार पर प्रयोग होता रहता है। जो छात्र साधारण कोटि के थे वे गणित की अभ्यास से बुद्धिमान और चतुर छात्र बन गए । यह अनुशासन का ही परिचायक है।

गणित सीखने वाले छात्रों में मौलिकता के गुण उत्पन्न होते हैं। प्रत्येक बात को तर्क के आधार पर स्वीकार करेगा। समय का पालक होगा। प्रत्येक कार्य को समय पर पूरा करने की कोशिश करेगा। उस कार्य को पूरा करने में भी शुद्धता का ध्यान रखेगा।

इस प्रकार हम देखते हैं कि गणित व्यक्ति को आत्म अनुशासन की ओर प्रभावित करता है और दैनिक क्रियाओं तथा व्यवहार में अनुशासन परिलक्षित होता है। इसी अनुशासन के परिणामस्वरूप साधारण व्यक्ति गणित के प्रभाव से चतुर और बुद्धिमान व्यक्तित्व में परिणित हो जाता है।

4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास का कौशल – गणित शिक्षण से छात्रों में तर्क-वितर्क करने की आदतों का निर्माण होता है। ढोंग आडम्बर का ह्रास होता है। छात्रों में क्या-क्या, क्यों-क्यों तथा कैसे-कैसे के प्रश्नों का समाधान होने लगता है। किसी व्यक्ति की बातों पर सामान्य रूप में विश्वास नहीं किया जाता है, बल्कि प्रयोगों के आधार पर तथा तथ्यों व सिद्धान्तों के आधार पर खरा उतरे, तभी विश्वास किया जाता है और यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहलाता है जो गणित के द्वारा पैदा किया जाता है।

5. चारित्रिक विकास में योग का कौशल – गणित शुद्ध को शुद्ध, अशुद्ध अशुद्ध, सत्य को असत्य आदि को कह डालता है। इसके अन्तिम निर्णय शुद्ध होते हैं अतः को मानव जीवन में चारित्रिक श्रेष्ठता लाने के लिए गणित पर्याप्त सहायक होता है। एक गणितज्ञ की शिक्षा चरित्र के दृष्टिकोण से मानव को ऊँचा उठाती है तथा गणित शुद्ध सत्य कहने की आदत डालता है। अतः चरित्र निर्माण में गणित सहायक होता है। व्यक्तित्व के हर पहलू में गणित अपना अस्तित्व छोड़कर मानव को समाज का एक आदर्श बनाने में सहायक होता है।

सामाजिक अध्ययन शिक्षण के विशिष्ट कौशल (Specific Skills of Social Studies Teaching)

सामाजिक विषय सम्बन्धी शिक्षण के विशिष्ट कौशल निम्नलिखित हैं-

1. छात्रों को जीविकोपार्जन हेतु तैयार करने का कौशल – समाज में मानव की पहली आवश्यकता है— रोटी, कपड़ा और मकान । वास्तविकता में हम ये जानते हैं कि “गरीबी स्वयं में एक अभिशाप है”, और पाप है जो अन्य बुरे कर्मों को जन्म देता है । इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए सामाजिक अध्ययन विषय के द्वारा बालक के आर्थिक, भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं ऐतिहासिक क्षेत्रों के उच्चतम ज्ञान के द्वारा हम जीविकोपार्जन कर उपयुक्त उद्देश्य की पूर्ति करते हैं।

2. छात्रों को अवकाश के सदुपयोग के प्रति प्रशिक्षित करने का कौशल- अवकाश का अर्थ होता है-“अवकाश का वह समय जब मानव किसी भी कार्य को करने के लिए मजबूर नहीं होता है वह अपनी इच्छानुसार स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने के लिए सक्षम होता है ।” अवकाश के समय उसे मनन और चिन्तन करने का भी अवसर प्राप्त होता है। वर्तमान समय में छात्रों को भ्रमण हेतु भी प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे वह विभिन्न दृश्यों, तथ्यों, घटनाओं का वास्तविक ( यथार्थ) ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

3. छात्रों में सामाजिक चेतना का विकास करने का कौशल – जब बालक की सोच समाज के प्रति सकारात्मक होगी तभी समाज में समुचित समायोजन हो सकता है। इस सकारात्मक सोच को सामाजिक अध्ययन विज्ञान विषय में बालक के अन्दर अन्तर्निहित विचारों व सामाजिक क्रियाकलापों को स्वीकारने के गुणों का विकास हो सकता है। तभी बालक के अन्दर समाज के प्रति जागरूकता उत्पन्न कराके उचित और अनुचित (सत्य और असत्य) का भेद करने की शक्ति का विकास किया जा सकता है।

4. छात्रों में नैतिक एवं चारित्रिक विकास करने का कौशल – सामाजिक अध्ययन / विज्ञान विषय का सबसे प्रमुख उद्देश्य है नैतिक एवं चारित्रिक विशेषताओं से युक्त व्यक्ति (मानव) अपने विभिन्न गुणों द्वारा समाज को भी लाभ प्रदान करता है। इसके अभाव में न कोई व्यक्ति अपना भला कर सकता है, और न समाज का । एक उच्च चरित्र से परिपूर्ण व्यक्ति ही अपने विचारों एवं कार्यों द्वारा समाज को प्रभावित कर वांछित परिवर्तन ला सकता है। राष्ट्र के भावी नागरिकों के सामने उच्च आदर्श प्रस्तुत कर सकता है।

5. आदर्श नागरिकों का निर्माण करने का कौशल – सामाजिक विज्ञान / अध्ययन विषय का एक प्रमुख उद्देश्य छात्रों को राष्ट्र का श्रेष्ठ नागरिक बनाना है प्रत्येक देश में उसमें रहने वाले नागरिकों के कुछ अधिकार एवं कर्तव्य होते हैं और प्रत्येक देश आदर्श नागरिकों का निर्माण करना चाहता है । नागरिकों में उच्चतम गुण का विकास और उन्हें अपने कर्त्तव्यों का ज्ञान कराकर ही उन्हें राष्ट्र का आदर्श नागरिक बनाया जा सकता है।

6. राष्ट्रीय एकता का विकास का कौशल – सामाजिक अध्ययन विषय का एक प्रमुख उद्देश्य है कि व्यक्ति अपने व्यक्तिगत एवं सामूहिक में अहं को दूर कर सच्चाई को स्वीकार कर एक-दूसरे के अस्तित्व को महत्त्व देकर राष्ट्रीय एकता का निर्माण कर सकते हैं। छात्रों में सामाजिक अध्ययन के द्वारा हानिकारक तत्त्वों की सम्पूर्ण जानकारी देकर भी राष्ट्रीय एकता का विकास कर सकते हैं।

7. अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास का कौशल – आज हम वर्तमान समय में रूढ़िवादिताओं, संकीर्णताओं से निकलकर व्यापकताओं में प्रवेश कर चुके हैं। हमारा जीवन वैयक्तिक एवं स्थानीय नहीं रहा है। आज हम वैश्विक जीवन में जी रहे हैं। सामाजिक अध्ययन विषय के द्वारा छात्रों को शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के वास्तविक अर्थ को छात्रों को समझाना होगा एवं विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के शान्तिपूर्ण हल हेतु उनके अन्दर उदारशीलता का भाव, राष्ट्रीयता के भाव उत्पन्न करना होगा ।

हिन्दी शिक्षण के विशिष्ट कौशल (Specific Skills of Hindi Teaching)

हिन्दी शिक्षण के विशिष्ट कौशल निम्नलिखित हैं-

1. क्रमबद्ध विचार प्रणाली व भावाभिव्यंजना का कौशल ।

2. शब्दों, वाक्यांशों तथा लोकोक्तियों आदि के प्रयोग का कौशल ।

3. साहित्य द्वारा छात्रों के चरित्र निर्माण का कौशल ।

4. साहित्य सृजन का कौशल ।

5. छात्रों को भावानुकूल भाषा प्रयोग, वाक्य निर्माण तथा अंग संचालन की कला में निपुण कराने का कौशल ।

6. रसात्मक तथा समीक्षात्मक कौशल ।

विज्ञान शिक्षण के विशिष्ट कौशल (Specific Skills of Science Teaching)

विज्ञान शिक्षण के विशिष्ट कौशल निम्नलिखित हैं-

1. वैज्ञानिक अभिवृत्ति का कौशल,

2. यंत्रीय कौशल,

3. समस्या समाधान कौशल,

4. विज्ञान के विभिन्न तथ्यों का ज्ञान तथा उनकी सामान्यीकरण योग्यता का विकास,

5. अनुसंधान कौशल,

6. खोज प्रवृत्ति तथा छात्रों में जिज्ञासा प्रवृत्ति के विकास का कौशल।

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