शिक्षण क्या है?(What is teaching?)
‘शिक्षण’ शब्द का अर्थ एवं सम्प्रत्यय ही शिक्षण की प्रकृति व स्वरूप की ओर संकेत कर सकता है। ‘शिक्षण’ को आँग्ल भाषा’ में ‘Teaching’ कहते हैं। हिन्दी शब्द ‘शिक्षण’ वस्तुतः संस्कृत के ‘शिक्षा’ धातु से बना है जिसका अर्थ सीखने व सिखाने की क्रिया से होता है। इस ‘शिक्षा’ धातु में ण ‘प्रत्यय’ मिलाने से शिक्षण शब्द बना है, अतः शिक्षण से तात्पर्य सिखाने की क्रिया से होता है। निःसंदेश शिक्षण से तात्पर्य कक्षा में शिक्षक के द्वारा किये जाने वाले विभिन्न क्रियाकलापों की श्रृंखला से है जिन्हें वह अपने छात्रों के व्यवहार का परिमार्जन करने एवं ज्ञान, बोध, कौशल आदि अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु नियोजित ढंग से सम्पादित करते हैं । यह, शिक्षक व छात्र के बीच सम्पन्न एक अन्तर्क्रियात्मक प्रक्रिया (Interactive Process) होती है। शिक्षण को वरिष्ठ व्यक्ति (अर्थात् शिक्षक) के द्वारा कनिष्ठ व्यक्ति (अर्थात् छात्र) के साथ बनाये गये। ऐसे अंतरंग सम्पर्क (Intimate Contract) भी कहा जा सकता है जिनका उद्देश्य कनिष्ठ व्यक्ति (अर्थात् छात्र) में सुधार लाना होता है। शिक्षण उद्देश्यों के अनुरूप शिक्षण को ज्ञानात्मक शिक्षण (Cognitive Teaching), भावात्मक शिक्षण (Affective Teaching) तथा मनोचालक शिक्षण (Psy chomotor Teaching) भी कहा जा सकता है जबकि मानसिक क्रिया के अनुरूप शिक्षण को समृति शिक्षण (Memory Teaching), (Understanding Teaching) तथा चिन्तन शिक्षण (Reflective Teaching) कहा जा सकता है। शिक्षा को त्रि-ध्रुवीय प्रक्रिया मानने वाले विद्वान शिक्षण (Teaching), अधिगम (Learning) तथा छात्र (Student) को शिक्षा के तीन ध्रुव मानते हैं जबकि शिक्षा को चतु ध्रुवीय प्रक्रिया मानने वाले विद्वान शिक्षण, अधिगम, पाठ्यक्रम (Curriculum) व छात्र को शिक्षा प्रक्रिया के चार ध्रुव मानते हैं, कुछ भी क्यों न हो, शिक्षण सदैव अधिगम में फलीभूत होता है एवं सदैव ही उद्देश्य अथवा पाठ्यक्रम केन्द्रित रहता है।
शिक्षण की परिभाषा
एच०सी० मौरीसन के अनुसार- “शिक्षण अधिक परिपक्व व्यक्तित्व तथा कम परिपक्व व्यक्तित्व के बीच एक अन्तरंग सम्पर्क है जिसे बाद वाले की शिक्षा को अग्रसर करने के लिए प्रारूपित किया जाता है।”
एन० एल० गेज के अनुसार – “शिक्षण किसी अन्य व्यक्ति की व्यवहार क्षमताओं में बदलाव लाने के लिए किया गया एक प्रकार का अन्तर्वैयक्तिक प्रभाव है।”
बी० ओ० स्मिथ के अनुसार — “शिक्षण अधिगम को प्राप्त करने वाली क्रियाओं की एक प्रणाली है।”
बर्टन (Burton) ने अध्यापन की बिल्कुल सही तथा व्यापक परिभाषा दी है, “शिक्षण का अर्थ अभिप्रेरणा, पथप्रदर्शन, निर्देशन तथा जानकारी के लिए उत्साह बढ़ाना है । ऊपर निर्दिष्ट परिभाषाओं में किसी एक को लेकर यह पता लगाना कि इनमें से कौन सी अधिक सही और अनुकूल हैं, कुछ मुश्किल है। वास्तव में किसी अच्छी परिभाषा का मूल्यांकन करना कुछ मापदंडों (Criteria) के आधार पर ही हो सकता है।
शिक्षण की विशेषताएँ (Nature or characteristics of teaching)
1. शिक्षण एक तरफा नहीं होता (Teaching is not One Sided)- कोई शिक्षण जिसमें शिक्षक सक्रिय रहता है लेकिन छात्रों के प्रति लापरवाह रहता है, अध्यापक ही नहीं है चाहे अध्यापक कितना भी अच्छा क्यों न हो। अध्यापक तथा छात्र दोनों को ही पूरी तरह से सक्रिय रहना चाहिए। इसलिए यह सिर्फ एकपक्षीय क्रिया नहीं है। अध्यापक तथा छात्र आमने-सामने आकर एक दूसरे से क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं और अध्यापन-अध्ययन शुरू हो जाता है। एक सच्चा अध्यापक अपने छात्रों के साथ होने वाले औपचारिकत अनौचारिक सम्पर्क से कुछ अच्छा उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है। सर्वोपरि ह अध्यापक जो सिर्फ अध्यापक को सक्रिय रखता है और छात्र को सिर्फ निष्क्रिय सुनने वाले बनाता है, वह सही अर्थों में शिक्षण नहीं है चाहे बहुत से अध्यापक तथा प्रशासक इसे शिक्षण कहते रहें स्वाभाविक पाये जाने वाली अध्यापन परिस्थितियों में जो भी चलता है, वही सही अर्थों में शिक्षण नहीं भी हो सकता है।
2. शिक्षण एक स्वतंत्र क्रिया नहीं है (Teaching is not an Independent Activity)- शिक्षण एक स्वतंत्र क्रिया नहीं है वह शून्य में नहीं घटती । यह ऐस सामाजिक वातावरण में घटती है, जहाँ अध्यापक का उद्देश्य किसी एक व्यक्ति के य सामाजिक गुट के व्यवहार को सुधारना होता है। वह व्यक्तियों के शारीरिक, सांस्कृतिक, नैतिक तथा बौद्धिक विकास को भी बढ़ावा देती है। सामाजिक प्राणियों के सर्वांगीण विकास तथा प्रगति की इस प्रक्रिया में अध्यापक भी आधुनिकतम ज्ञान से समृद्ध काफी अच्छे व्यक्ति के रूप में निखर कर आता है।
3. शिक्षण औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों होता है (Teaching is Both Formal and Informal)– शिक्षण औपचारिक तथा अनौपचारिक भी हो सकता है। दोनों तरह से वह ठोस रूप में इच्छित उद्देश्यों को प्राप्त करता है । कक्षा में अध्यापक तथा छात्र औपचारिक ढंग से मिलते हैं और अध्यापन सम्पन्न होता है। कक्षा के बाहर भी अध्यापक तथा छात्र मिलते हैं, अध्यापन सम्पन्न होता है लेकिन वह अनौपचारिक ढंग का होता है। औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही वांछित उद्देश्य प्राप्त करने में सहायता करते हैं।
4. शिक्षण समय तथा स्थान से जुड़ा हुआ रहता है (Teaching is Related to Time and Place)- शिक्षण का सम्बन्ध हमेशा लोगों के साथ सामाजिक जीवन के वातावरण तथा उनके सांस्कृतिक वातावरण से होता है। समय के साथ-साथ समाज, उसके मूल्य तथा आदर्श आदि बदलते रहते हैं। इसलिए अध्यापक भी लगातार परिवर्तन प्रक्रिय से गुजरता रहता है। प्रजातांत्रिक ढांचे में, अध्यापक प्रजातांत्रिक सिद्धांतों पर निर्भर होता है।
अध्यापक जीवन के प्रजातांत्रिक मूल्यों पर बल देता है। अध्यापन स्थान-स्थान पर परिवर्तित होता है। भारत में अध्यापन विभिन्न तरीके से होता है। अमेरिका या रूस में अध्यापन उस स्थान के मूल्यों के अनुरूप होता है।
5. शिक्षण एक कला है (Teaching is an Art) – हर व्यक्ति शिक्षण में निपुण नहीं हो सकता। यह एक कला है जो गिने चुने थोड़े से लोगों में पाई जाती है। ऐसे लोगों में पढ़ाने की धुन सवार रहती है। ये अपने आपको अध्यापक प्रक्रिया में डूबे हुए पाते हैं। निश्चित ही ऐसे लोगों के लिए अध्यापन एक व्यवसाय न होकर पवित्र उद्देश्य बन जाता है।
6. शिक्षण एक अंतर्क्रियात्मक प्रक्रिया (Teaching-an Interactive Process)- अध्यापन एक अंतर्क्रियात्मक प्रक्रिया है जिसे कुछ विशिष्ट लक्ष्यों तथा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है । इसका उद्देश्य हो सकता है- छात्र का शैक्षणिक विकास, उसका शारीरिक सुधार, उसे आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ बनाना या उसे साहसी और धैर्यवान बनाना ताकि वह प्रतिकूल जीवन की वर्त्तमान परिस्थितियों में अच्छी तरह रह सके।
7. शिक्षण निरीक्षण तथा विश्लेषण योग्य होता है (Teaching is Worthy of Objservation and Analysis)— शिक्षण का निरीक्षण, विश्लेषण तथा मूल्यांकन किया जा सकता है। विश्लेषण और मूल्यांकन अध्यापन प्रक्रिया में वांछित सुधार करने के लिए आवश्यक पुनर्निवेशन उपलब्ध करा सकते हैं। अध्यापन में, जानकारी में तथा अध्यापन-अध्ययन परिस्थितियों में सुधार लाया जा सकता है।
8. अध्यापन पर सम्पर्क-कौशलों का प्रभुत्व रहता है (Teaching is Dominated by Communication Skills)— विभिन्न सम्पर्क कौशलों का अध्ययन प्रक्रिया पर प्रभुत्व रहता है। जितना सम्पर्क अच्छा होगा उतनी ही अध्यापन शिक्षण की प्रक्रिया बेहतर होगी। वास्तव में सम्पर्क कौशल अध्यापन – शिक्षण की प्रक्रिया बेहतर होगी। वास्तव मपर सम्पर्क कौशल अध्यापन प्रक्रिया को रोचक और अन्ततः सफल बनाते हैं।
9. शिक्षण सचेतन तथा अचेतन दोनों तरह की प्रक्रिया होती है (Teaching is Both Conscious and Unconscious Process)— उसका सबसे प्रभावशाली हिस्सा आम तौर पर वह होता है जिससे हम अनभिज्ञ रहते हैं। बहुत सी परिस्थितियों में, शिक्षण बड़े अचेतन रूप से चलता है और फिर भी अर्थपूर्ण होता है।
10. अध्यापन क्रियात्मक प्रक्रिया है (Teaching is Task Oriented) — शिक्षण एक प्रक्रिया है जहाँ पहले से ही निश्चित किये हुए उद्देश्य होते हैं। अध्यापन से उन उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है।
11. शिक्षण एक सुनियोजित क्रिया है (Teaching is a Planned Activity)— शिक्षण एक सुनियोजित क्रिया होती है। इसकी व्यवस्था बड़े सुचारू रूप से की जाती है।
12. शिक्षण उद्देश्यपूर्ण है (Teaching is International)- शिक्षण में अध्यापक का व्यवहार उद्देश्य युक्त होता है। इसका उद्देश्य दूसरों के व्यवहार में परिवर्तन लाना है।
13. अध्यापन एक व्यावसायिक क्रिया है (Teaching is a Professional Activity)— शिक्षण वह प्रक्रिया है जो व्यावसायिकों द्वारा सम्पन्न की जाती है। इस क्रिया में अध्यापक और विद्यार्थी का समावेश होता है। इसके फलस्वरूप विद्यार्थी का विकास सम्पन्न होता हैं।
14. शिक्षण अभिप्रेरणा पैदा करती है (Teaching Causes Motivation)- शिक्षण की क्रिया अभिप्रेरणा को उत्पन्न करती है जिसके परिणामस्वरूप जानकारी प्राप्त होती है।
15. शिक्षण मार्गदर्शन प्रस्तुत करता है (Teaching is Providing Guidance)- शिक्षण की क्रिया में विद्यार्थियों को मार्गदर्शन मिलता है। शिक्षण के फलस्वरूप विद्यार्थी सही बातों को सही तरीके से और सही समय पर सीखने योग्य बनते हैं।
16. शिक्षण सीखने का कारण है (Teaching is Causing to Learn) — शिक्षण विद्यार्थी को सीखने एवं वांछित ज्ञानार्जन के लिए प्रेरित करता है । विद्यार्थी कोई खाली बर्तन नहीं है जिसमें कि अध्यापन ज्ञान को भर दे। वास्तव में अध्यापक विद्यार्थी को शिक्षण प्रक्रिया में सहायता प्रदान करता है। उससे यह अपेक्षा रखी जाती है कि वह विद्यार्थी को इच्छुक विद्यार्थी बना दे। वह शिक्षण अच्छा माना जाता है जो विद्यार्थी को अच्छी तरह से सीखने योग्य बना दे।
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