शिक्षा की माँग व्यक्ति एवं समाज दोनों के लिए है।
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य (Individual Objects of Education)- व्यक्ति एवं समाज दोनों के लिए ही शिक्षा की माँग (आवश्यक) है क्योंकि शिक्षा से ही उनके उद्देश्यों की पूर्ति होती है। अतः उनके उद्देश्य ही शिक्षा की माँग के सशक्त कारण हैं। प्राचीनकाल एवं मध्यकाल में शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य की तत्कालीन विद्वानों का काफी अधिक समर्थन मिला। आधुनिक काल में भी शिक्षा मनोविज्ञान की प्रगति के कारण इस उद्देश्य पर विशेष जोर दिया जाने लगा है। इस उद्देश्य को मानने वाले समाज की अपेक्षा व्यक्ति को बड़ा मानते हैं। उनके अनुसार व्यक्तियों ने ही संगठित होकर अपने हितों की रक्षा के लिए समाज का निर्माण किया है। विभिन्न क्षेत्रों में समाज में जो भी उन्नति दृष्टिगोचर होती है उस उन्नति के मूल में किसी न किसी व्यक्ति का हाथ अवश्य ही है । व्यक्ति के विकास को किए बिना हम समाज के विकास की कल्पना भी नहीं कर सकते । अतः शिक्षा को व्यक्ति की अभिक्षमताओं, योग्यताओं, रुचियों एवं विशेषताओं के विकास का पूर्ण प्रयत्न करना चाहिए।
रूसो, फ्राबेल, पैस्टालॉजी, नन आदि आधुनिक युग के विद्वानों ने वैयक्तिक उद्देश्य पर जोर दिया है। नन (Nunn) ने वैयक्तिक महत्व पर जोर देते हुए कहा है, “शिक्षा की ऐसी दशाएँ उत्पन्न की जानी चाहिए जिनमें वैयक्तिक का पूर्ण विकास हो सके और व्यक्ति मानव जीवन को अपना मौलिक योग दे सकें।”
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के संबंध में नन (Nunn) ने लिखा है, “मानव जगत में प्रत्येक अच्छाई व्यक्तिगत पुरुषों और स्त्रियों के स्वतंत्र कार्यों द्वारा आती है, इसलिए शिक्षा पद्धति को इस सत्य के अनुरूप बनाया जाना चाहिए ।”
नन (Nunn) के अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु स्वतंत्रता से कार्य करने वाले नागरिक ही लाते रहे हैं। शिक्षा भी इसका अपवाद नहीं है । व्यक्ति की स्वतंत्रता व उसके व्यक्तिकता को निखारने की शिक्षा दोनों ही प्रगति के मुख्य तत्त्व है। एक ही ढाँचे में ढालकर सभी नागरिकों को एक-सा बनाना किसी दशा में उचित तथा आवश्यक नहीं है। प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तियों के लिए आवश्यक है कि उनकी शिक्षा उनकी रुचि, योग्यता तथा झुकाव के आधार पर अलग-अलग है।
यूकेन (Eucken) के अनुसार, “वैयक्तिकता का अर्थ है-आध्यात्मिक वैयक्तिकता ।” आध्यात्मिक वैयक्तिकता एवं व्यक्तित्व जन्मजात नहीं होते, बल्कि उन्हें प्राप्त किया जाता है। इस तरह शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य का अभिप्राय है—उत्तम व्यक्तित्व और आध्यात्मिक वैयक्तिकता का विकास।
रॉस के शब्दों में, “शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य का अर्थ जो हमारे स्वीकार करने योग्य है, वह केवल यह है— महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व और आध्यात्मिक वैयक्तिकता का विकास। “
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के समर्थकों के अनुसार इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु राज्य, समाज एवं शिक्षा संस्थाओं आदि सभी को प्रयत्न करना चाहिए। उपर्युक्त सभी संस्थानों को व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के प्रयास करने चाहिए। सभी का प्रयास यह होना चाहिए कि शिक्षा द्वारा बालकों का अधिकतम वैयक्तिक विकास हो ।
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के रूप (Forms of Individual Objects of Education)
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के दो रूप निम्नलिखित हैं-
(1) आत्माभिव्यक्ति (Self Expression) तथा
(2) आत्मानुभूति (Self-Realisation)
(1) आत्माभिव्यक्ति (Self-expression)- आत्माभिव्यक्ति का उद्देश्य वस्तुतः वैयक्तिक विकास का अतिवादी (Extreme) रूप है। इस तरह के उद्देश्य के समर्थक विद्वान आत्म प्रकाशन पर जोर देते हैं जिससे अभिप्राय है कि व्यक्ति को अपने कार्य या व्यवहार करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए, भले ही उससे अन्य को हानि पहुँचे । मनोविश्लेषणवादियों के अनुसार पूर्ण आत्म प्रकाशन का अवसर मिलने से व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से विकसित होने का अवसर मिलता है तथा इससे व्यक्ति का दिमाग भी रोगमुक्त हो जाता है। लेकिन सत्य तो यह है कि यदि हम व्यक्ति को जैसा वह चाहे वैसा करने की आजादी या छूट दें देंगे तो इसका परिणाम सामाजिक विकास की दृष्टि से काफी घातक होगा। इस दृष्टिकोण को मान लेने का अभिप्राय होगा व्यक्ति को आदिम अवस्था में पहुँचा देना या व्यक्ति को पशु के समान बना देना। उपरोक्त स्थिति में न तो व्यक्ति की उन्नति होगी और न ही समाज की।
(2) आत्मानुभूति (Self-realisation) — आत्मानुभूति आत्माभिव्यक्ति से अलग है। आत्मभिव्यक्ति में ‘स्व’ (Self) से अभिप्राय होता है, “जैसा मैं उसे जानता हूँ।” लेकिन आत्मानुभूति में ‘स्व’ का अभिप्राय है, “जैसा मैं उसका होना चाहता हूँ।” आत्माभिव्यक्ति में ‘स्व’ व्यक्ति का ‘मूर्त स्व’ है जबकि आत्मानुभूति में ‘स्व’ एक ‘आदर्श स्व’ (Ideal self) होता है जिसके संबंध में हम कल्पना करते हैं। आत्माभिव्यक्ति में समाज के लाभ या हानि के संबंध में कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
एडम्स के अनुसार, “आत्मानुभूति के आदर्श में ‘स्व’ समाज-विरोधी व्यवहार करके अपनी अनुभूति नहीं कर सकता है।”
स्पष्ट है कि आत्मानुभूति के उद्देश्य में समाज एवं सामाजिक वातावरण के महत्त्व को स्वीकार कर लिया जाता है।
वैयक्तिक उद्देश्य के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Individual Objects)
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के पक्ष में प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं-
(1) नन के अनुसार, “वैयक्तिकता जीवन का आदर्श है। शिक्षा की किसी भी योजना का महत्त्व उसकी उच्चतम वैयक्तिक श्रेष्ठता का विकास करने की सफलता से आंका जाना चाहिए।”
(2) संसार में समस्त अच्छी बातों की उत्पत्ति मनुष्य के स्वतंत्र प्रयत्नों द्वारा होती है । अतः शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य का हित और विकास होना चाहिए।
(3) लोकतंत्र व्यक्ति की स्वतंत्रता पर बल देता है, अतः शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का विकास होना चाहिए।
(4) समाज का निर्माण व्यक्ति अपने हित के लिए करता है, अतः शिक्षा का उद्देश्य भी वैयक्तिक विकास होना चाहिए।
(5) व्यक्ति समाज की एक इकाई है, यदि व्यक्ति को अपने पूर्ण उत्कर्ष के लिए अवसर प्रदान किए गए तो इससे अन्ततोगत्वा समाज की भी उन्नति होगी। इस दृष्टि से भी वैयक्तिक उद्देश्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
(6) व्यक्ति को जब उसकी मूल प्रवृत्तियों के अनुसार कार्य करने से रोका जाएगा तथा उस पर सामाजिक आदर्श जबरदस्ती थोपे जाएँगे तो इससे उसमें मानसिक रोग उत्पन्न हो जाएँगे। इसलिए आवश्यक है कि व्यक्तियों की मूल प्रवृत्तियों को ध्यान में रखकर ऐसी दशाओं का निर्माण किया जाए जिससे उसका स्वतंत्र विकास संभव हो सके।
(7) समाज की संस्कृति एवं सभ्यता व्यक्तियों के द्वारा ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक परिमार्जित रूप से अग्रसर होती है। इस कारण वैयक्तिक विकास शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
(8) ऐतिहासिक अवलोकन भी यही सिद्ध करता है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता का जब दमन किया जाता है, तभी उसके दुष्परिणाम सामने आते हैं। प्रथम व द्वितीय महायुद्ध इसी स्वतंत्रता का दमन करने वाले दर्शन के कुफल थे ।
(9) जीव विज्ञान के अनुसार संसार का प्रत्येक सजीव अपने पूर्ण विकास हेतु स्वतंत्र एवं प्रयत्नशील है, अतः व्यक्ति को अपने विकास का अवसर मिलना चाहिए।
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