शिक्षा के माध्यम
शिक्षा के माध्यमों का वर्गीकरण- शिक्षा के माध्यम वे कारक हैं जो बालक पर शैक्षिक प्रभाव का प्रयोग करते हैं। सामाजिक समूहों की उन सामाजिक संस्थाओं के रूप में वर्णित किया जा सकता है जिन्हें समाज शिक्षा के कार्य करने या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों के समाजीकरण के लिए विशिष्ट रूप से विकसित करता है। इन संस्थाओं को ‘शिक्षा का माध्यम’ भी कहा जाता है। समस्त वातावरण ही मानव की शिक्षा का एक साधन है। शिक्षा एक प्रमुख बल है जो भावी पीढ़ी के लिए अतीत के अनुभवों को पुनर्गठित और पुनः निर्मित करता है।
शिक्षा के माध्यमों का वर्गीकरण (Classification of Modes of education)
शिक्षा के माध्यमों का वर्गीकरण उनमें से प्रत्येक माध्यम द्वारा प्रदान की गई शिक्षा के आधार पर किया जा सकता है। शिक्षा देने और ग्रहण करने की विधियों तथा स्रोतों के आधार पर इसे तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है-
1. औपचारिक शिक्षा (Formal Education)
2. अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education)
3. निरौपचारिक शिक्षा (Non-formal Education)
1. औपचारिक शिक्षा (Formal Education)
औपचारिक विधियों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा औपचारिक होती है। इसमें अनेक प्रकार की औपचारिकताओं का पालन करना जरूरी होता है। यह एक पूर्व नियोजित प्रकार की शिक्षा होती है जिसके लक्ष्य, शिक्षण-पद्धति, पाठ्यक्रम, विद्यार्थी, अध्यापक, विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ, कार्य-दिवस, छुट्टियाँ आदि सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है। आजकल सभी स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में प्रायः इसी प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती है जहाँ शिक्षार्थी को अपने शैक्षिक संस्थान के निर्धारित कायदे-कानूनों का पालन करते हुए शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती है। स्कूल इस प्रकार की शिक्षा के सबसे बड़े केन्द्र कहे जा सकते हैं। इनके अतिरिक्त आजकल पुस्तकालय भी औपचारिक शिक्षा के केन्द्र बन गए हैं।
इस प्रकार की शिक्षा के लिए शिक्षार्थी, शिक्षक, प्रशासक, आदि को बहुत ही सतर्क एवं सजग होकर कार्य करना पड़ता है । यह बहुत ज्यादा सुगठित होती है, इसलिए यह कक्षा के कमरे के भीतर चले या उसके बाहर, उससे कोई अन्तर नहीं पड़ता है। इस प्रकार की शिक्षा आजकल व्यावसायिक और सामान्य दोनों प्रकार के पाठ्यक्रमों को लेकर दी जा रही है। संक्षेप में, आदेश, निर्देश, नियम, निरीक्षण, निश्चित कार्य-प्रणाली, निश्चित उद्देश्यों वाली शिक्षा औपचारिक शिक्षा कहलाती हैं।
औपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Formal Education)
औपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. यह एक सहज प्रकार की शिक्षा है।
2. इसमें शिक्षक एवं शिक्षार्थी को अनेक प्रकार की औपचारिकताओं का पालन करना होता है
3. इसमें एक निर्धारित पाठ्यक्रम होता है जिसे समय-समय पर संशोधित किया जाता है।
4. इसमें शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के सामने कुछ लक्ष्य स्पष्ट रहते हैं और उनको पाने के लिए हमेशा प्रयत्न भी किये जाते हैं।
5. यह एक सुगठित प्रकार की शिक्षा होती है जिसमें यथासम्भव सार्वजनिक प्रदर्शन तथा उसे प्रभावित करने की भावना कार्य करती है ताकि अधिकाधिक विद्यार्थी संस्था की ओर आकर्षित हो सकें।
6. इसके अन्तर्गत शिक्षक एवं शिक्षार्थियों की सारी गतिविधियाँ पूर्व नियोजित होती हैं, यहाँ तक कि उनकी समय-सारणी भी निश्चित होती है।
7. इसके अन्तर्गत शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों निश्चित रह कर प्रयत्न करते हैं। 8. इस प्रकार की शिक्षा में ‘आदि’ और ‘अन्त’ की स्पष्ट स्थितियाँ होती हैं ।
9. निर्धारित पाठ्यक्रम को प्रायः निश्चित समयावधि में ही पूरा करने का प्रयत्न किया जाता है।
10. परीक्षाएँ बड़े ही औपचारिक ढंग से आयोजित की जाती हैं और उनके परिणामों की घोषणा भी समयबद्ध तरीके से की जाती है।
11. शिक्षार्थी अपनी ही आयु के दूसरे बालकों के साथ उठता बैठता है, जिससे उसमें मैत्री एवं भाईचारे की भावना का विकास होता है।
12. शिक्षार्थियों को कितने ही अवसरों पर पर्याप्त समय तक दूसरी कक्षाओं के विद्यार्थियों के साथ ही रहना पड़ता है, जिससे उनके साथ भी उनकी बेहतर समझ विकसित हो जाती है।
13. शिक्षार्थी अनुशासित ढंग से बहुत-सी चीजों को करने करवाने की विधि सीख जाते हैं जिससे उनमें आत्म-विश्वास एवं आत्मानुशासन की भावना का विकास होता है।
14. चूँकि यह शिक्षा लगातार कई वर्षों तक चलती रहती है, इससे बालकों में लगातार पढ़ते रहने की आदत बन जाती है।
15. यह शिक्षार्थियों के शरीर तथा उनकी अन्य शक्तियों के विकास एवं आवश्यकताओं का ध्यान रखती है।
औपचारिक शिक्षा की सीमाएँ (Limitations)
औपचारिक शिक्षा की कुछ सीमाएँ भी हैं जो इस प्रकार हैं-
1. अच्छे-बुरे, प्रतिभाशाली और धीमे सीखने वाले सभी प्रकार के विद्यार्थी एक ही समय, एक ही कक्षा में, एक ही शिक्षक से पढ़ते हैं। इससे तेज बच्चों की बुद्धि का विकास उनकी शक्तियों के अनुसार नहीं हो पाता है ।
2. सभी प्रकार के शिक्षार्थियों को समान पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए एक जैसा समय दिया जाता है, फिर एक जैसी परीक्षा के द्वारा उनकी सफलता को आँका जाता है जबकि कुछेक बच्चे अपना पाठ्यक्रम जल्दी पूरा करके अगली कक्षा में पढ़ने की क्षमता रखते हैं, इसलिए इस प्रकार की शिक्षा ऐसे बच्चों की प्रगति में बाधक है।
3. इस प्रकार की शिक्षा के अन्तर्गत विद्यार्थी के मन पर पढ़ाई सदा एक बोझ बनी रहती है।
4. यह पढ़ने-पढ़ाने का एक अप्राकृतिक ढंग है जिसके अन्तर्गत शिक्षार्थी को उनके शिक्षक सदा कृत्रिम स्थितियों में रखकर पढ़ाते हैं ।
2. अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education)
जिस शिक्षा प्रणाली में किसी प्रकार की औपचारिकताएँ न हों, वह अनौपचारिक (सहज) शिक्षा कहलाती है । इस प्रकार की शिक्षा से भी शिक्षार्थी के आचरण एवं समझ-बूझ में परिवर्तन आता है लेकिन उसके लिए उसको कोई जानबूझ कर चेष्टा या प्रयत्न नहीं करना पड़ता। जो कुछ वह सीखता है वह भी पूर्व नियोजित नहीं होता। उदाहरणस्वरूप अगर एक व्यक्ति खेल के मैदान में खेलने के लिए जाता और वहाँ उसे कोई दूसरा व्यक्ति खाली समय के उपयोग के लिए कुछ दूसरी बेहतर बातें बताता है तो इस स्थिति में बताने वाला व्यक्ति एक शिक्षक का कार्य करता है और सुनने वाला शिक्षार्थी का। लेकिन उस समय उन दोनों में से कोई भी इस तथ्य से अवगत नहीं होता कि वहाँ शिक्षा जैसी कोई बात नहीं है। इस प्रकार से हमारी दैनिक – चर्चा में, अनेक बार ऐसी सहज शिक्षा के अवसर आते रहते हैं जिनसे हम अनजाने ही शिक्षित होते रहते हैं। इस प्रकार से अर्जित शिक्षा सहज या अनौपचारिक शिक्षा कहलाती है ।
इस प्रकार की शिक्षा में कोई भी पूर्व निर्धारित या पूर्व नियोजित लक्ष्य या पाठ्यक्रम या शिक्षा विधि अथवा शिक्षक की योग्यता का स्थान नहीं होता। इस प्रकार की शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति अपने दैनिक जीवन-अनुभवों एवं गतिविधियों से निरन्तर ग्रहण करता रहता है। ऐसी शिक्षा प्रदान करने वालों में हमारे मित्र, सगे-सम्बन्धी तथा समाज में से कोई भी हो सकता । इस प्रकार से प्राप्त शिक्षा का भी हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्त्व होता है। यद्यपि ऐसी शिक्षा से व्यक्ति कई बार कुछ गलत बातें भी सीख सकता है, जो बाद में चलकर उसके लिए कुछ समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Informal Education)
अनौपचारिक शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. इस प्रकार की शिक्षा में कोई औपचारिकता या विधि-विधान नहीं होता।
2. इसमें शिक्षक या शिक्षार्थी ज्ञात रूप से कुछ नहीं करता।
3. इसमें कोई भी काम पूर्व नियोजित नहीं होता।
4. यह सब संयोग से घटित होता है।
5. इसके लिए पहले से निर्धारित कोई लक्ष्य नहीं होते।
6. लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कोई औपचारिक साधन नहीं अपनाए जाते।
7. इसमें कोई पहले से निर्धारित या नियुक्त शिक्षक भी नहीं होते ।
8. कभी भी, कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की शिक्षा में सीखने-सिखाने वाला हो सकता है।
9. ऐसी स्थिति में कभी कोई विद्यार्थी भी अपने किसी अध्यापक को कोई शिक्षा दे सकता है।
10. इस प्रकार की शिक्षा में न तो कोई पूर्व निर्धारित शिक्षा आयोजक होता है और न कोई शिक्षा-स्थल ।
11. इस प्रकार की शिक्षा कभी पूर्ण नहीं होती ।
12. इस प्रकार की शिक्षा में किसी परीक्षा का कोई स्थान नहीं होता।
13. इस प्रकार की शिक्षा के लिए, किसी को भी किसी प्रकार के प्रोत्साहन की आवश्यकता नहीं होती।
14. यह सीखने-सीखाने का एक अत्यन्त सहज तरीका होता है।
15. शिक्षार्थी के दिमाग पर कभी कोई दबाव नहीं पड़ता।
16. शिक्षार्थी एक स्वतः प्रोत्साहित व्यक्ति की भाँति नई-नई बातें सीखता हुआ चलता है।
17. सीखी हुई अधिकांश बातें परिस्थितियों का परिणाम होती हैं, व्यक्ति के प्रयत्नों का नहीं ।
18. इसके अन्तर्गत किसी शिक्षार्थी को कभी ‘नोट्स’ पर निर्भर नहीं रहना पड़ता ।
अनौपचारिक शिक्षा की सीमाएँ (Limitations)
इस प्रकार की शिक्षा की कुछ सीमाएँ भी हैं जो निम्न हैं-
1. इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त व्यक्ति अपनी सारी जानकारियों के बावजूद औपचारिक रूप से शिक्षित व्यक्तियों के बीच अपने को हीन समझता है।
2. इस प्रकार की शिक्षा के अन्तर्गत व्यक्ति कई बार कुछ गलत बातें भी सीख सकता है।
3. अपने समान आयु वालों के बीच व्यक्ति जो कुछ सीखता है, इस प्रकार की शिक्षा में वह उससे वंचित रह जाता है।
3. निरौपचारिक शिक्षा (Non-formal Education)
आजकल इस प्रकार की शिक्षा अधिक लोकप्रिय होती जा रही है। यह एक प्रकार से औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा के बीच की शिक्षा है क्योंकि यह अंशतः औपचारिक और अंशत: अनौपचारिक होती है। यह ज्ञात-अज्ञात दोनों विधियों से चलती है। इस तरह की शिक्षा प्रदान करने के लिए बहुत ज्यादा बाधाएँ नहीं रखी जातीं। किसी भी आयु, किसी भी स्थान का व्यक्ति घर बैठे इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर सकता । इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली के कुछ उदाहरण हैं, मुक्त स्कूल, मुक्त विश्वविद्यालय, पत्राचार पाठ्यक्रम, या “दूर-शिक्षा” । यह शिक्षा प्रणाली अपने स्तर और तौर-तरीकों में औपचारिक शिक्षा के समानान्तर ही होती है, अन्तर केवल इतना होता है कि इस प्रणाली में हर पग पर एक लोच रखी जाती है। उदाहरण के लिए प्रश्न चाहे दाखिले का हो या शिक्षण विधि का, पाठ्यक्रम का हो या परीक्षा का, सब जगह हरेक के कुछ कायदे-कानून तो हैं, लेकिन उनमें विरोधाभास नहीं है, लोगों को शिक्षित करने के लिए यहाँ विभिन्न भाषा-माध्यमों का प्रयोग किया जाता है। निश्चय ही ऐसी प्रणाली, शिक्षा को उन सभी शिक्षार्थियों के घर ले जाती है जो किसी भी कारण से औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रहते हैं।
निरौपचारिक शिक्षा की परिभाषाएँ (Definitions)
कुछ विद्वानों ने निरौपचारिक शिक्षा को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है—
कुम्ब के अनुसार, “निरौपचारिक शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है, जो औपचारिक शिक्षा संस्थानों के नियमन के बाहर निकले संगठनों एवं संस्थानों द्वारा प्रदान की जाती है।”
हैण्डरसन के अनुसार, “निरौपचारिक शिक्षा सामान्य स्कूली शिक्षा से कहीं अधिक व्यापक ओर समावेशी है। यह विद्यालय से बाहर बहुत ही व्यापक अनुभव प्रदान करती है।”
मैक्काल के अनुसार, “नियमित श्रेणीबद्ध स्कूल प्रणाली से बाहर निरौपचारिक शिक्षा सीखने के अनुभवों की एक पूरी श्रृंखला है।”
ब्रेमवर्क के अनुसार, ,“प्राप्त शिक्षा को उपयोग में लाने के लिए तत्काल कार्रवाई, कार्य एवं अवसर की निकटता के कारण निरौपचारिक शिक्षा, औपचारिक शिक्षा से भिन्न है।”
अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के अनुसार, “निरौपचारिक शिक्षा एक आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है और यह विशेषतः उन व्यक्तियों के लिए है जो अपने जीवन की किसी विशेष स्थिति में पहले शिक्षा छोड़ बैठे थे, लेकिन अब वे उसकी आवश्यकता महसूस करते हैं। “
हरबुइज्म के अनुसार, “निरौपचारिक शिक्षा स्कूल और स्कूल न गए व्यक्तियों के बीच की खाई पाटने वाली एकमात्र विधि है।”
निरौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Non-formal Education)
निरौपचारिक शिक्षा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं—
1. यह पूर्णतः शिक्षार्थी-उन्मुख प्रणाली है क्योंकि इसमें सुविधा तथा आवश्यकताओं को पूरी तरह स्वीकार किया गया है|
2. यह जीवन-उन्मुख और पर्यावरण आधारित है, यह जीवन को नए अनुभवों से ‘समृद्ध करती है।
3. यह समस्त विद्यार्थियों की जरूरतों को पूरा करती है। किसी भी आयु तथा किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाला व्यक्ति इस शिक्षा को प्राप्त कर सकता
4. शिक्षार्थियों के लिए इस व्यवस्था को काफी लचीला बनाया गया है।
5. यह शिक्षार्थियों में एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करती है और उन्हें आत्म-निर्भर बनाने में सहायता करती है।
6. इसके पाठ्यक्रम एवं शिक्षा विधि को बहुत ज्यादा लचीला रखा गया है ताकि हर सामर्थ्य का विद्यार्थी इससे लाभ उठा सके ।
7. यह बिना किसी कठोर बाधाओं वाली मुक्त शिक्षा प्रणाली है।
8. इसमें पाठ्यक्रम की विविधता सबसे अधिक रखी गई है।
9. यह निरौपचारिक विधियों से प्राप्त की जाने वाली स्वैच्छिक प्रकार की शिक्षा होती है।
10. यह सतत् चलने वाली शिक्षा है।
11. इस प्रकार की शिक्षा के दौरान विद्यार्थी अपनी आजीविका जारी रख सकता है। इससे उसमें आत्म-निर्भरता एवं आत्म-विश्वास बढ़ता है ।
12. कड़ी मेहनत की आदत विकसित होती है
13. खाली समय का सर्वोत्तम उपयोग होता है ।
14. यह शिक्षार्थियों को अपने जीवन की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने की सुविधा- सामर्थ्य प्रदान करती है।
निरौपचारिक शिक्षा की सीमाएँ (Limitations)
इस प्रकार की शिक्षा की कुछ सीमाएँ भी हैं जो इस प्रकार हैं-
1. इसके द्वारा शिक्षार्थी वांछित डिग्री, डिप्लोमा या सर्टीफिकेट तो प्राप्त कर लेता है, लेकिन उसके अन्दर वह आत्म विश्वास नहीं होता जो औपचारिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों में होता है।
2. इसमें विद्यार्थी नियमित रूप से नहीं पढ़ पाते, प्रायः वे परीक्षा के समीप आने पर ही पढ़ते हैं और इसलिए उनकी सफलता में संयोग या सौभाग्य की बात ही अधिक काम करती है।
औपचारिक, अनौपचारिक और निरौपचारिक शिक्षा का एकीकरण (Integration of Formal, Informal and Non-Formal Education)
शिक्षण की आधुनिक व्यवस्था में शिक्षा के तीनों प्रकारों अर्थात् औपचारिक, अनौपचारिक और निरौपचारिक प्रकारों का अपना-अपना उचित स्थान व महत्त्व है। वे एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। इन प्रकारों में से प्रत्येक के गुण व दोष हैं। इन तीनों को एक व्यापक सम्पूर्णता में एकीकृत करने की आवश्यकता है। अपनी औपचारिक और व्यावसायिकता के कारण औपचारिक शिक्षा व्यक्ति के जीवन और उसकी आवश्कताओं के काम नहीं आती। अनौपचारिक शिक्षा अकेले मानव के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर सकती। अनौपचारिक शिक्षा औपचारिक और निरौपचारिक शिक्षा का एक भाग है । इसी प्रकार शिक्षा की निरौपचारिक प्रणाली, शिक्षा की औपचारिक प्रणाली का स्थान नहीं ले सकती। यह अवश्य है कि यह शिक्षा की औपचारिक प्रणाली के एक उपयोगी संपूरक का कार्य कर सकती है। औपचारिक शिक्षा के दोषों को शिक्षा के अनौपचारिक और निरौपचारिक प्रकारों द्वारा दूर किया जा सकता हैं।
एक व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास को सुनिश्चित बनाने के लिए शिक्षा के सभी तीन प्रकारों को एकीकृत करना चाहिए। शिक्षा के ये प्रकार एक दूसरे से अलग नहीं हैं । वास्तव में ये शिक्षा की एक एकीकृत प्रणाली के भाग हैं । इसलिए प्रयत्न किए जाने चाहिए कि शिक्षा के औपचारिक, अनौपचारिक और निरौपचारिक प्रकारों को शिक्षा की एक व्यापक प्रणाली में एकीकृत किया जाए।
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