भूगोल / Geography

पिग्मी जनजाति निवास स्थान Pigmi Janjaati in Hindi

पिग्मी जनजाति
पिग्मी जनजाति

पिग्मी जनजाति निवास स्थान Pigmi Janjaati in Hindi

पिग्मी जनजाति

ये विभिन्न समूहों में बिखरे हैं। ये स्थायी नहीं रहते हैं। ये शिकार की सुविधा से अस्थायी बस जाते हैं। ये सामूहिक रूप से अचुआ कहे जाते हैं।

ये समूहों में भाषा के आधार पर बँटे हैं। इस प्रकार लुंगलुलू (Lungulu) बेसिन में इन्हें ‘वातवा’ (Watwa), वैबोड (Wabode) में ‘बलिया’ (Balia), मध्य कांगो के जिले में ‘बतवा’ (Batwa) कहा जाता है। पिग्मी लोग जहाँ रहते हैं, सामान्यतया धरातल बहुत ऊशा नहीं हैं वहाँ भूमध्यरेखीय  जलवायु मिलती है, जिसमें तापक्रम वर्षभर समान रूप से ऊँचा रहता है। यद्यपि यह ताप 35°CA ऊपर कभी नहीं होता, किन्तु फिर भी 30°C से नीचे भी कभी नहीं जाता। इस प्रकार वार्षिक तापान्तर 5°C से अधिक नहीं होता है आर गर्मी अत्यधिक पड़ती है। रातें भी गर्म होती हैं। आर्दता भी लगातार रहती है जिसका प्रमुख कारण वर्ष भार वर्षा का होना है। वार्षिक वर्षा का औसत 150 सेमी. के लगभग है। ये वन क्षेत्रों में आखेटी जीवन-यापन करने वाले हैं।

शरण (Shelter)-

पिग्मी एक स्थान पर स्थायी रूप से निवास नहीं करते; क्योंकि इनके जीवन का आधार जंगली पौधे, मछलियाँ एवं वन्य पशुओं का शिकार है। इनकी झोपड़ियाँ मधुमक्खियों के छत्ते की भाँति गोलाकार होती है जो कि लगभग 21, मीटर ऊँची एवं जिनका व्यास लगभग 2 मीटर होता है। झोपड़ियों में घुसने का दरवाजा धरातल से 1/2 मीटर ऊँचा एवं सँकरा होता है। इन्हें बनाने में वृक्षों की पत्तियों का उपयोग किया जाता है। एक गाँव में लगभग 20 या 22 झोपड़ियाँ होती हैं। कभी-कभी 30 झोपड़ियों तक के गाँव भी देखे जाते हैं।

वस्त्र एवं औजार (Clothing and Tools)-

यहाँ की उष्ण जलवायु में अधिक कपड़ों की आवश्यकता नहीं होती है। पुरुष वृक्षों की छालों को कमर के चारों ओर लपेटते हैं जबकि स्त्रियाँ पत्तियों के गुच्छों को इसी प्रकार प्रयोग करती हैं। आभूषण का उपयोग बहुत कम होता है। झोपड़ियों में उठने-बैठने के सामान भी बहुत कम होते हैं। लकड़ी के चार डंडे (जो धरातल कुछ सेण्टीमीटर ऊँचे होते हैं) गाड़कर उन्हें चार डंडों से बाँधकर पत्तियों एवं डालियों से ढककर चारपाई का काम लेते हैं। बर्तनों में कुछ मिट्टी के बर्तन जिसमें भोजन पकाते हैं एवं कद्रू अथवा लौकी की सूखी तूंबी (सामान रखने के लिए) प्रमुख हैं।

धनुष-तीर एवं हल्के भाले इनके प्रमुख हथियार हैं। धनुष-तीर का उपयोग प्रमुख रूप से हाथी के शिकार में होता है जिसे मारने के लिए सर्वप्रथम उसे तीर द्वारा अन्धा बना देते हैं। तीरों की नोक विष से बुझाये रहते हैं।

भोजन (Food)-

ये लोग न तो जानवर पालते हैं और न कृषि ही करते हैं। उनके भोजन का मुख्य आधार शिकार, मछली एवं जंगली कन्दमूल या फल है। पिग्मी बहुत ही चतुर शिकारी होता है। यहाँ तक कि बड़े-बड़े, हाथियों का शिकार बहुत आसानी से की लेते हैं। इनकी एक प्रमुख विशेषता यह है कि यद्यपि ये कद में छोटे होते हैं तथापि भोजन बहुत अधिक करते हैं। यहाँ तक कि एक पिग्मी 60 केले अपने सामान्य भोजन के अतिरिक्त खा सकता है। हाथियों के अतिरिक्त ये लोग सफेद चींटी, मधुमक्खियों, झींगुर के अण्डे एवं मधु को भी खाद्य के रूप में सेवन करते हैं। ये मछली मारने में भी बड़े तेज होते हैं। बड़ी मदलियों को पकड़ने के लिए धागे में मांस बाँधकर पानी में लटका देते हैं। उसमें काँटे भी नहीं होते तथा मछली के आने पर उसे डंडे अथवा तीर से मार डालते हैं। जंगलों से ये लोग जंगली कन्द, बीन एवं खाने योग्य पौधे प्राप्त करते हैं। ये लोग केले के बहुत शौकीन होते हैं जिसे ये पास के किसानों से लकड़ी या अन्य सामान के बदले में अथवा चोरी करके प्राप्त करते हैं। सब्जियाँ कच्ची ही खायी जाती हैं, जबकि मांस को आग में भूनकर खाते हैं।

शारीरिक बनावट एवं अन्य विशेषताएँ-

पिग्मी बहुत छोटे कद होते हैं। इनकी औसत ऊँचाई 135 सेमी. होती है। अधिकांश नौजवान 120 सेमी. से अधिक ऊँचे नहीं होते हैं। इनका औसत वजन 55 किग्रा. होता है। कभी-कभी कुछ प्रौढ़ व्यक्ति 60-70 किग्रा. तक के भी होते हैं। छोटे कद एवं कम वजन के आद भी पिग्मी शक्तिशाली, निर्भय एवं उत्साही होते हैं। किन्त ये पानी से बहुत डरते हैं और तैर नहीं सकते हैं। ये पेड़ों पर चढ़ने में बड़े कुशल होते हैं। इनकी निरीक्षण-शक्ति एवं स्मरण-शक्ति तेज होती है। इनकी न तो कोई परम्परा होती है और न कोई धर्म। ये लोग भूत-प्रेत में विश्वास करते हैं। इनका कोई कानून नहीं है और न इनका कोई परिस्परिक प्रधान ही होता है। ये लोग नाचना बहुत पसन्द करते हैं।

वर्तमान समय में यदि इन्हें सुरक्षा न प्रदान की गयी तो पिग्मी जाति जल्दी ही समाप्त हो जायेगी क्योंकि ये लोग परिस्थितियों के अनुकूल अपने को नहीं बना सकते हैं। विशेषकर श्वेत लोगों के आने के कारण जो परिस्थितियों पैदा हो रही है उसने इनकी रक्षा आवश्यक है।

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