इतिहास / History

सल्तनत काल की प्रमुख प्रशासनिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और आर्थिक उपलब्धियां

सल्तनत काल की प्रमुख प्रशासनिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और आर्थिक उपलब्धियां
सल्तनत काल की प्रमुख प्रशासनिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और आर्थिक उपलब्धियां

सल्तनत काल की प्रमुख प्रशासनिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और आर्थिक उपलब्धियां

सल्तनत काल की प्रमुख प्रशासनिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं आर्थिक उपलब्धियों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार है –

1. नयी संस्कृति का जन्म (Origin of New Culture)- जब कोई दो अलग-अलग विचार आपस में मिलते हैं तो पारस्परिक आदान-प्रदान को जन्म देते हैं। इसी प्रकार तुर्क एवं भारतीय संस्कृति के आपसी आदान-प्रदान से एक नयी संस्कृति का विकास हुआ।

2. साहित्य (Literature) – सल्तनतकाल में दिल्ली, अरबी एवं फारसी साहित्य के विद्वानों का केन्द्र बन गयी थीं। महमूद गजनवी के समय अलबरूनी और फिरदौसी नामक प्रसिद्ध विद्वान् तथा कवि थे। मंगोलों के डर से मध्य एशिया के अनेक विद्वानों और साहित्यकारों ने भागकर दिल्ली के सुल्तानों के दरबार में शरण ली थी। भारत में फारसी साहित्य का महान विद्वान् अमीर खुसरो था। उसने भारत के बारे में बहुत लिखा जिससे उसका भारत के प्रति प्रेम झलकता है। इस समय साहित्य के नाम पर यशोगान और धार्मिक पुस्तकों की ही रचना हुई। इस श्रेणी में नरपति नाल्ह का बीसलदेव रासो तथा खुमानरासो उल्लेखनीय हैं। अत: अमीर खुसरो ने हिन्दी में पद रचना की थी। भक्ति आन्दोलनों के सन्तों; जैसे- गोरखनाथ, कबीर आदि ने ईश्वर स्तुति में गीतों की रचना की थी। इस काल में सुप्रसिद्ध प्रेमाख्यान तथा ऐतिहासिक महाकाव्य पद्मावत की रचना महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी ने की।

3. व्यापार एवं उद्योग (Business and Industry)- मुस्लिम विजय ने देश के उद्योग तथा वाणिज्य व्यापार में वाधा नहीं डाली। गाँव तथा शहरों में कारीगरों एवं शिल्पियों ने अपने पुराने पेशे को बरकरार रखा था, उनके औजार भी वही थे। कुछ विशेष प्रकार के नये काम करने वाले कारीगर वर्ग भी उत्पन्न हुए; जैसे-बर्तन पर कलई करने वाले, घोड़े की नाल एवं रकाब बनाने वाले, कागज बनाने वाले आदि। कारखानों में शाही तथा दरबारी लोगों की आवश्यकाताओं की वस्तुएँ बनायी जाती थीं। दिल्ली में सल्तनत के सुदृढ़ होने से संचार की बेहतर सुविधाएँ प्रारम्भ हुईं। सुल्तानों ने चाँदी के टके और ताँबे की दरहम नामक मुद्राएँ चलायीं। बंगाल और गुजरात के शहर अपने उत्तम कपड़ों और सोने तथा चाँदी के काम के लिये प्रसिद्ध थे। बंगाल को सोनार गाँव और ढाका कच्चे रेशम और मलमल के लिये विख्यात थे। चरखे का चलन आरम्भ होने से कपड़े के उत्पादन में बहुत सुधार हुआ। पेड़-पौधों और खनिज स्रोतों से प्राप्त विभिन्न रंगों का कार्य किया जाता था। उस काल में भारतीय कपड़े चीन को भी निर्यात किये जाते थे। भारत अनेक वस्तुओं का निर्यात करता था। इनमें चर्मकारों, धातु कर्म, फारसी डिजाइन आधारित गलीचों की बुनाई आदि मुख्य थे। भारत पश्चिमी एशिया से उच्च कोटि के कुछ कपड़े (साटन आदि), काँच के बर्तन, बहुमूल्य धातुएँ तथा घोड़ों का आयात करता था।

4. प्रशासन (Administration)- 300 वर्षों के सल्तनत काल में सुल्तान का स्थान – सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। समस्त राजनैतिक, कानूनी और सैनिक सत्ता उसी में निहित थी। वह न्यायाधीशों की नियुक्ति करता था। उसके किसी भी पदाधिकारी के अन्याय के विरुद्ध उससे सीधे अपील की जा सकती थी। न्याय करना शासक का महत्त्वपूर्ण दायित्व था ।

5. केन्द्रीय प्रशासन (Central Ruling)- केन्द्रीय शासन में सुल्तान का पद महत्त्वपूर्ण होता था। सुल्तान ही सेना का सबसे बड़ा अधिकारी होता था। युद्ध और सन्धि के सम्बन्ध में दही निर्णय लेता था। न्याय में भी उसी का निर्णय अन्तिम होता था। सुल्तान अपनी सहायता के लिये मन्त्रियों की नियुक्ति करते थे।

6. प्रान्तीय शासन (State Ruling)– समस्त सल्तनत अनेक प्रान्तों में बँटी थी। प्रत्येक प्रान्त का अधिकारी गवर्नर होता था। यह सुल्तान के द्वारा नियुक्त किया जाता था तथा सुल्तान के प्रति उत्तरदायी होता था। उसे कर संग्रह तथा न्यायिक कार्य भी करने होते थे। वह फौजी दस्ते, पैदल सैनिक तथा घुड़सवार रखता था और उन्हें अपने प्रान्तीय राजस्व से वेतन देता था। प्रान्तों में काजी एवं सद्र नियुक्त किये जाते थे। वे न्यायाधीश एवं धार्मिक अनुदानों के अधीक्षक कार्य करते थे। सैन्याधिकारी’ शिकदार’ एवं एक न्यायाधीश ‘मुंशिफ’ होता था। ‘आमिल’ भू-राजस्व का अधिकारी था। ‘फौजदार’ संभाग में कोषाध्यक्ष का कार्य करता था ।

7. स्थानीय शासन (Local Ruling)— जिले को परगनों में बाँटा गया था। एक शहर या सौ गाँवों के समूह का शासक अमीर-ए-सदा होता था, उसकी सहायता के लिये छोटे-छोटे अधिकारी और कर्मचारी होते थे। गाँव के सबसे महत्त्वपूर्ण लोग रबूत (भूस्वामी) और मुकद्दम होते थे। मुकद्दम गाँव का वंशानुगत मुखिया होता था। पटवारी स्थानीय कागजात रखता था। गाँव में ग्राम पंचायतें थीं। उन पर शासन का सीधा हस्तक्षेप नहीं था।

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