अनुसूचित जातियों की शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिये?
अनुसूचित जनजातियों को अन्य लोगों की बराबरी पर लाने के लिए निम्नलिखित कदम तत्काल उठाये जाने चाहिये-
(1) आदिवासी इलाकों में प्राथमिक शालाएँ खोलने के काम को प्राथमिकता देना। इन क्षेत्रों में स्कूल भवनों के निर्माण का कार्य शिक्षा के बजट, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम, जनजातीय कल्याण योजनाओं आदि के अन्तर्गत प्राथमिकता के आधार पर हाथ में लेना।
(2) आदिवासियों की अपनी सांस्कृतिक एवं सामाजिक विशिष्टता होती है और बहुधा उनकी अपनी बोलचाल की भाषाएँ होती हैं। पाठ्यक्रम निर्माण में तथा शिक्षण सामग्री तैयार करने में यह आवश्यक है कि प्रारम्भिक अवस्था में आदिवासी भाषाओं का उपयोग किया जाये तथा ऐसी व्यवस्था की जाय कि आदिवासी बच्चे शुरू के कुछ वर्षों के बाद क्षेत्रीय भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर सकें।
(3) पढ़े-लिखे प्रतिभाशाली आदिवासी युवकों को प्रशिक्षण देकर अपने क्षेत्र में ही शिक्षक बनने के लिए प्रोत्साहन देना।
(4) बड़ी तादाद में आश्रमशालाएँ और आवासीय विद्यालय खोलना।
(5) अनुसूचित जनजातियों के लिए उनके जीवन के तौर-तरीकों और उनकी विशेष आवश्यकताओं की ध्यान में रखते हुए ऐसी प्रोत्साहन योजनाएँ तैयार करना जिनसे शिक्षा प्राप्ति में आने वाली बाधाएँ दूर हों। उच्च शिक्षा के लिए दी जाने वाली छात्रवृत्तियों में तकनीकी और व्यावसायिक पढ़ाई को अधिक महत्त्व देना। सामाजिक तथा मानसिक अवरोधों को दूर करने के लिए विशेष उपचारात्मक पाठ्यचर्या और अन्य कार्यक्रम चलाना, ताकि आदिवासी शिक्षार्थी सफलता से अपनी पढ़ायी पूरी कर सकें।
(6) आँगनवाड़ियाँ, अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र और प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र आदिवासी बहुत इलाकों में प्राथमिकता के आधार पर खोलना
(7) आदिवासियों की समृद्ध सांस्कृतिक अस्मितता और विशाल सृजनात्मक प्रतिभा के बारे में चेतना सभी स्तरों के पाठ्यक्रमों का आवश्यक भाग होना।
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