भूमण्डलीय ताप वृद्धि का अर्थ (Meaning of global warming )
सामान्यतः भूमण्डलीय ताप वृद्धि का आशय तापक्रम में होने वाली अधिकता से है। पर्यावरणीय सन्तुलन के लिये विश्व में प्रत्येक स्थान पर तापक्रम की विविधता पायी जाती है। जैसे विषवत् रेखा पर अधिक गर्मी होती है वहीं इंग्लैण्ड, अमेरिका के कुछ भागों में सर्दी अधिक होती है। यदि इसमें विषुवत् रेखा एवं यूरोपीय देशों में तापक्रम में वृद्धि होती चली जाय तो इसे ग्लोबल वार्मिंग अर्थात् भूमण्डलीय ताप वृद्धि कहा जायेगा । तापक्रम में होने वाली यह वृद्धि पृथ्वी एवं अन्तरिक्ष में होने वाली घटनाओं से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होती है । भूमण्डलीय ताप वृद्धि के आशय को विद्वानों द्वारा निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया गया है-
(1) श्रीमती आर. के. शर्मा के अनुसार, “भूमण्डलीय ताप वृद्धि का आशय उस वैश्विक तापक्रम की ओर संकेत करता है जो कि सम्पूर्ण सृष्टि को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुँचाता है या सम्भावना व्यक्त करता है ।”
(2) प्रो. एस. के. दुबे के शब्दों में, “प्रकृति द्वारा पर्यावरणीय सन्तुलन के लिये निर्धारित वैश्विक तापक्रम में वृद्धि ही भूमण्डलीय ताप वृद्धि कहलाती है जो कि पर्यावरणीय एवं प्राकृतिक असन्तुलन की ओर संकेत करती है । “
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि पर्यावरण की दृष्टि से भूमण्डलीय ताप वृद्धि को किसी रूप में उचित नहीं माना जा सकता। भूमण्डलीय ताप वृद्धि पर्यावरणीय असन्तुलन की ओर संकेत करती है । इसमें पृथ्वी के ताप में वृद्धि होने के कारण अनेक प्रकार की मानवीय आपदाओं की सम्भावना रहती है ।
भूमण्डलीय ताप वृद्धि के कारण (Meaning of global warming)
भूमण्डलीय ताप वृद्धि के लिये मानव स्वयं उत्तरदायी है। मानव द्वारा अपने सुख एवं स्वार्थ के लिये प्राकृतिक पर्यावरणीय व्यवस्था को बाधित कर अपने अनुकूल बनाने के अनधिकृत प्रयत्न किये गये हैं, जो कि भूमण्डलीय ताप वृद्धि को जन्म देती है । भूमण्डलीय ताप वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) तापीय विद्युत गृह के माध्यम से भी पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई है, जिससे पर्यावरणीय असन्तुलन उत्पन्न होता है।
(2) रेडियोधर्मी पदार्थों के उपभोग करने से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई है, जिससे पर्यावरणीय असन्तुलन उत्पन्न होता है।
(3) ओजोन परत के क्षरण के कारण सूर्य की किरणें सीधी पृथ्वी पर आती हैं, जिससे ताप में वृद्धि होती है।
(4) वाहनों से निकलने वाले धुएँ अनेक प्रकार की औद्योगिक इकाइयों के द्वारा पृथ्वी के ताप में वृद्धि होती है।
(5) विभिन्न देशों द्वारा किये जाने वाले परमाणु परीक्षणों के द्वारा भी ताप में वृद्धि होती है।
(6) मानव द्वारा अपने उपभोग के लिये वनों की कटाई अधिक मात्रा में की गयी है, जिससे वर्षा कम मात्रा में होती है और पृथ्वी के ताप में वृद्धि होती है।
(7) वनों में लगने वाली आग द्वारा पृथ्वी के ताप में वृद्धि होती है तथा वन सम्पदा नष्ट होती है।
(8) युद्ध में अणु बमों एवं परमाणु बमों के प्रयोग से भी पृथ्वी के तापक्रम में वृद्धि की सम्भावना होती है।
(9) तेल के भण्डारों में आग लगने से भी पृथ्वी के तापक्रम में वृद्धि होती है क्योंकि इस आग पर नियन्त्रण अधिक देर में हो पाता है।
(10) फ्रिज एवं एअर कण्डीशनर आदि के अधिकाधिक प्रयोग से भी वायुमण्डल के ताप में वृद्धि होती है।
(11) हरित गृह प्रभाव के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो जाती है।
सूर्य से आने वाली किरणों के ताप को हरित गृह के माध्यम से पृथ्वी पर रोक लिया जाता है, जिससे पृथ्वी के तापक्रम में अधिक वृद्धि होती हैं ।
भूमण्डलीय ताप वृद्धि नियन्त्रण के उपाय (Measures of global warming increment controlling)
भूमण्डलीय ताप वृद्धि पर नियन्त्रण करना एवं रोकना प्रत्येक मानव का कर्त्तव्य है । मानव को अपने सुख एवं स्वार्थी से ऊपर उठकर सार्वजनिक हित की प्रक्रिया को स्वीकार करना पड़ेगा। व्यक्तिगत हित के स्थान पर सार्वजनिक हित महत्त्वपूर्ण होता है। भूमण्डलीय ताप वृद्धि नियन्त्रण के निम्नलिखित उपाय करने चाहिये-
(1) सर्वप्रथम हमें हरित गृह प्रभाव को रोकने के लिये सार्थक उपाय करने चाहिये जिससे कि सूर्य की अवशोषित किरणों की ऊष्मा पुनः वायुमण्डल में वापस जा सके।
(2) औद्योगिक इकाइयों में ताप उत्पन्न होने के कारणों पर विचार करना चाहिये तथा उनका समाधान कराना चाहिये।
(3) विश्व स्तर पर रेडियोधर्मी पदार्थों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये। विशेष परिस्थितियों में ही रेडियोधर्मी पदार्थों के प्रयोग की अनुमति प्रदान करनी चाहिये।
(4) भूमण्डलीय स्तर पर परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये, जिससे कि वायुमण्डल में ताप वृद्धि न हो।
(5) विश्व स्तर पर युद्धों को रोकने का प्रयास करना चाहिये जिससे कि वायुमण्डल में ताप वृद्धि न हो।
(6) औद्योगिक विकास को आवश्यकतानुसार नियन्त्रित करना चाहिये, जिससे कि वायुमण्डल में ताप वृद्धि न हो।
(7) तापीय विद्युत गृहों का उपयोग इस प्रकार किया जाय, जिससे भूमण्डलीय ताप वृद्धि न हो।
(8) तेल के कुओं में आग लगने से रोकी जाय तथा उन्हें शीघ्र बुझाने के साधनों का आविष्कार किया जाय।
(9) वनों में आग लगने पर नियन्त्रण किया जाय तथा अधिक से अधिक वन क्षेत्र विकसित किये जायें।
इस प्रकार मानव अपने विवेक एवं बुद्धि का प्रयोग करके ही इस समस्या का समाधान कर सकता है । जब तक हम भौतिक विकास की प्रतिस्पर्धा एवं व्यक्तिगत स्वार्थों का त्याग नहीं ‘करेंगे तब तक हमें भूमण्डलीय ताप वृद्धि को नहीं रोक पायेंगे। इसलिये मानव को भौतिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण सन्तुलन को भी महत्त्व प्रदान करना चाहिये । पर्यावरणीय सन्तुलन के लिये भूमण्डलीय ताप वृद्धि पर नियन्त्रण परमावश्यक है।
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