शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में परिवार के महत्त्व
परिवार बालक के लिये प्रथम पाठशाला के रूप में माना जाता है। बालक जब पैदा होता है तब उसको पूर्ण संरक्षण देने का दायित्व परिवार के अन्य बड़े सदस्यों का होता है।
परिवार में रहकर बालक शारीरिक रूप से विकास करता है और मानवोचित गुणों को अपनाने की क्रिया को सीखता है। बालक का स्थायी विकास भी परिवार में ही रहकर होता है। परिवार में बालक को निम्नलिखित प्रकार की शिक्षा प्राप्त होती है।
1. आध्यात्मिक एवं नैतिक शिक्षा- समाज का प्रारम्भिक रूप परिवार को माना जाता है। परिवार के सदस्य जीवनोपयोगी सभी गुणों का स्वयं में समावेश करते हैं। ये सभी गुण नैतिक और आध्यात्मिक गुणों पर आधारित होते हैं। इस प्रकार परिवार के सदस्यों का सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणों का विकास परिवार में रहकर होता है।
2. जीवन को समायोजित करने की शिक्षा- डार्विन का कथन है कि “शक्तिशाली व्यक्ति ही पारिवारिक जीवन के संघर्ष में जीवित रह पाता है।” बड़ी शक्ति के पनपने से छोटी शक्ति स्वतः ही समाप्त हो जाती है। केवल जो व्यक्ति समायोजन की प्रवृत्ति रखता है, वही बच पाता है? बालक परिवार में रहकर समायोजन करना सीख पाता है।
3. जीवन व्यवहार की शिक्षा- भावी जीवन निर्धारण की शिक्षा बालक को परिवार से ही प्राप्त होती है। प्रत्येक परिवार के व्यवहार निश्चित होते हैं। प्राय: देखने को मिलता है कि जो बालक सुसंस्कृत परिवार में जन्म लेते हैं, वे आगे चलकर परिष्कृत व्यवहारों को अपनाते हैं। इसके विपरीत निर्धन परिवारों के बालक असंस्कृत व्यवहारों में पलते हैं।
4. स्थायी जीवन मूल्यों का विकास- परिवार के स्थायी जीवन मूल्य प्रेम, दया, सहयोग, ममता, सहनशीलता और सहायता पर आधारित होते हैं। परिवार के सदस्यों के व्यवहारों के प्रति होने वाली प्रक्रिया ही इन स्थायी मूल्यों के विकास में योगदान करती है। इन्हीं गुणों के आधार पर बालक के व्यक्तित्व का विकास होता है।
5. बालक की आदत एवं उत्तम चरित्र निर्माण की शिक्षा- परिवार में बालक जन्म लेता है। बड़ा होकर उसके चरित्र निर्माण की क्रियान्विति परिवार में स्थायी निवास करके होती है। बालक की आदत का निर्माण भी परिवार की परम्पराओं पर निर्भर करता है। परिवार में यदि प्रेम, सद्भावना और सहयोग का वातावरण होता है तो बालक में बड़े होने पर उत्तम गुण एवं अच्छी प्रवृत्तियों का निर्माण होता है। परिवार का कलह युक्त होना, बालक की मानसिक शा को विकृत करता है और उसमें अपराधजन्य प्रवृत्तियों का निर्माण होना स्वाभाविक है।
Important Links…
- टैगोर के दर्शन में अन्य दर्शनों के प्रभाव
- शिक्षा से सम्बन्धित महात्मा गाँधी के तात्कालिक और सर्वोच्च उद्देश्य
- डॉ. राधाकृष्णन् के विचार- हिन्दू धर्म, राजनीति, विज्ञान, स्वतन्त्रता एवं विश्वशान्ति
- गिजूभाई की बालकेन्द्रित शैक्षिक विचारधारा
- आचार्य नरेन्द्र देव समिति के कार्य क्षेत्र का वर्णन कीजिये।
- मुगल काल में प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप
- उपनयन संस्कार से क्या आशय है?
- बिस्मिल्लाह रस्म क्या है?
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 तथा विशेषताएँ
- समावर्तन संस्कार | Samavartan Sanskar in Hindi
- पबज्जा संस्कार | Pabzza Sanskar in Hindi
- लॉर्ड मैकाले का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान