अधिगम का गेस्टाल्ट सिद्धान्त (Gestalt Theory of Learning)
‘गेस्टाल्ट’ जर्मन भाषा का शब्द है और इसका कोई उचित अंग्रेजी पर्याय प्राप्त नहीं हुआ। अतः सभी भाषाएँ ‘गेस्टाल्ट’ शब्द का ही प्रयोग करती हैं। ‘गेस्टाल्ट’ शब्द से किसी वस्तु या अनुभव में निहित समग्रता का बोध होता है। गेस्टाल्टवादी कहते हैं कि विभिन्न वस्तुओं या अनुभवों की समग्रता उसके विभिन्न अंगों का योग नहीं है। यदि विभिन्न अंगों का विश्लेषण किया जाये तो समग्रता नष्ट होती है। अतः गेस्टाल्टवादी विश्लेषण का विरोध करते हैं और अनुभव एवं सन्तुलन पर विशेष ध्यान देते हैं। गेस्टाल्ट मनोविज्ञान आकार के पूर्ण रूप का ध्यान रखता है, उसके किसी अंग का नहीं।
गेस्टाल्ट- मनोविज्ञान- गेस्टाल्ट विचारधारा के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं (1) मनोवैज्ञानिक क्षेत्र, (2) भौतिक संरूप, (3) संख्याशास्त्र का विरोध, (4) संगठन के तत्त्व, (5) संरूप- गुण तथा आकार-गुण, (6) सृजनात्मक चिंतन, (7) सीखना, (8) अन्तर्दृष्टि ।
गेस्टाल्ट के अधिगम का सिद्धान्त (Learning Principle of Gestalt)
‘अधिगम के गेस्टाल्ट सिद्धान्त में अन्तर्दृष्टि का विकास प्रमुख आवश्यकता है। गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के अनुसार क्षेत्र का प्रत्यक्षीकरण होना और उस क्षेत्र का पुनः संगठन करना ही अन्तर्दृष्टि है। सूझ द्वारा अधिगम के बारे में बालकों पर भी अनेक प्रयोग किये गये हैं। इन प्रयोगों के आधार पर जो निष्कर्ष निकाले गये हैं वे अधोलिखित हैं-
(1) छोटे बालकों के समक्ष वस्तु रूप में चीजें प्रस्तुत करने पर वे आवश्यक सम्बन्धों का प्रत्यक्षीकरण शीघ्र कर लेते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि उनमें अमूर्त चिन्तन की योग्यता अधिक न होने से वे उन वस्तुओं के बारे में अधिक विचार नहीं करते हैं।
(2) विषय-वस्तु की संरचना और संगठन अधिकांश में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
बर्नर के अनुसार अध्यापक को उपयुक्त विधियों और प्रस्तुतीकरण के क्रम को निश्चित करने से पूर्व सीखने वाले की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करना चाहिए।
(3) उच्च बौद्धिक स्तर वाले बालक अमूर्त चिन्तन करने के योग्य होने के कारण ठोस पदार्थों पर अधिक निर्भर नहीं रहते हैं।
अन्तर्दृष्टि से सीखने या अधिगम की विशेषताएँ
(1) अन्तर्दृष्टि द्वारा प्रत्यक्षीकरण में सहायता मिलती है।
(2) अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखने में हाथ की कुशलता का इतना महत्त्व नहीं होता जितना सूझ शब्द का योगदान होता है। सूझ अधिक क्रियाशील रहती है।
(3) अन्तर्दृष्टि किसी समस्या का हल ढूँढते समय यकायक पैदा होती है। जैसे किसी समस्या का समाधान करने के लिए अनेक प्रयत्न करने के बाद भी उसका हल प्राप्त नहीं होता है और अधिगमक उसको छोड़कर बैठ जाता है तो यकायक उसमें समस्या के हल की सूझ पैदा होती है।
(4) प्राणियों की अपेक्षा मानव में उच्च बौद्धिक स्तर होने के कारण मानव में सूझ का विकास तेज गति से होता है।
(5) प्रत्यक्षीकरण सूझ द्वारा जो परिवर्तन होता है, उससे विचार एक गतिमान के रूप में दिखाई देने लगता है।
गेस्टाल्टवाद के सिद्धान्त की व्याख्या (Explanation of Principle of Gestaltism)
इस सिद्धान्त को समग्राकृति सिद्धान्त, अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त भी कहते हैं। इस सिद्धान्त के जन्मदाता जर्मनी के मनोवैज्ञानिक मैक्स वर्दीमर माने जाते हैं और इस सिद्धान्त को आगे बढ़ाने में योगदान काफ्का और कोहलर ने दिया है।
गेस्टाल्टवाद ने आकार की पूर्णता पर ध्यान दिया, उसके विभिन्न अंगों के ऊपर नहीं। अन्तर्दृष्टि के अनुसार किसी समस्या का समाधान करते समय प्राणी उस समस्या एवं परिस्थिति का पूर्ण अवलोकन करता है तभी यकायक हमारे मस्तिष्क में उस समस्या समाधान हेतु उपाय या तरीका आता है तो प्रत्यक्षीकरण में तीव्र गति से होने वाला परिवर्तन ही अन्तर्दृष्टि कहलाता है। इस प्रकार वह अपने उद्देश्य की पूर्ति कर लेता है।
इस सिद्धान्त को सूझ का सिद्धान्त भी कहते हैं। हम कुछ कार्यों को करके सीखते हैं, कुछ कार्यों को दूसरों को करते हुए देखकर सीखते हैं, कुछ कार्य ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम बिना बताए अपने आप सीख लेते हैं, इस सीखने को हम सुझ द्वारा सीखना कहते हैं। सूझ में बालक की कल्पना-शक्ति, तर्कशक्ति एवं बुद्धि का विशेष महत्त्व होता है। जिस व्यक्ति में कल्पना शक्ति जितनी अधिक होगी, उसमें सूझ भी उतनी ही अधिक होगी। अतः उन्हें सफलता भी अधिक मिलती है। बड़े-बड़े दार्शनिकों, राजनीतिज्ञों एवं इंजीनियरों की सफलता का रहस्य उनकी सूझ ही है।
समग्रता या संरूपता पर बल देना ही गेस्टाल्ट मनोविज्ञान की सबसे बड़ी देन है। अब तक मनोविज्ञान में विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण प्रच् लत था। गेस्टाल्ट मनोविज्ञान ने इस दृष्टिकोण को त्याग कर अपना जीवन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। वस्तु या क्रिया की समग्रता एवं उसकी पृष्टभूमि को महत्त्व देने में गेस्टाल्ट मनोविज्ञान ही सर्वप्रथम है।
दूसरे गेस्टाल्ट मनोविज्ञान ने मनोविज्ञान के क्षेत्र को अत्यन्त विकसित किया। गेस्टाल्ट विचारधाराओं के अध्ययन में पाया गया कि गेस्टाल्ट ‘घटना क्रिया’ पर अत्यधिक बल देते हैं। इसी विचारधारा से प्रभावित होकर कुछ मनोवैज्ञानिकों ने एक विचारधारा को जन्म दिया। इसे ‘घटना क्रिया मनोविज्ञान’ के नाम से पुकारते हैं। ‘घटना- क्रिया- मनोविज्ञान’ के जन्म का श्रेय वास्तविक रूप से गेस्टाल्ट मनोविज्ञान को ही है।
कोपका ने बाल मनोविज्ञान के स्वरूप पर प्रकाश डालकर बाल मनोविज्ञान के क्षेत्र में अत्यन्त सराहनीय कार्य किया। इसी प्रकार गेस्टाल्ट मनोविज्ञान ने ‘सामाजिक मनोविज्ञान’ की उन्नति के लिए भी पर्याप्त कार्य किया।
गेस्टाल्ट मनोविज्ञान ने ही सर्वप्रथम गत्यात्मक शक्ति का उल्लेख किया। घटना क्रिया में गति होती है। अतः मानव व्यवहार भी गत्यात्मक होता है। मानव व्यवहार की पृष्ठभूमि में कोई न कोई गत्यात्मक शक्ति होती है तथा व्यक्ति के व्यवहार एवं अवरोध जैसे नवीन तथ्यों का उल्लेख किया।
अन्त में यह कहना उचित है कि अब तक संरचनावाद कार्यात्मक तथा साहचर्यवाद किसी ने भी प्रत्यक्ष ज्ञान से सम्बन्धित अध्ययन नहीं किया। गेस्टाल्ट मनोविज्ञान ने ही सर्वप्रथम प्रत्यक्ष ज्ञान का विस्तृत रूप से अध्ययन किया।
गेस्टाल्टवाद का शिक्षा में योगदान (Contribution of Gestaltism in Education)
शिक्षा के क्षेत्र में गेस्टाल्टवाद निम्नलिखित प्रकार से उपयोगी है-
(1) यह सिद्धान्त गणित जैसे कठिन विषयों के लिए उपयोगी है।
(2) बालकों को समझने में बाल मनोविज्ञान की सटीक व्याख्या की है।
(3) यह रचनात्मक कार्यों के लिए उपयोगी है।
(4) पूर्णाकारवाद अनुभवों की पूर्णता पर बल देता है।
(5) बालकों में बुद्धि, कल्पना शक्ति एवं तर्क शक्ति के विकास में सहायक है।
(6) बुद्धि की व्यापक स्तर पर व्याख्या की है।
(7) चेतना के विकास में सहायक है
(8) सृजनात्मकता को बढ़ावा देता है।
(9) छोटे-छोटे बच्चे अधिकतर सूझ द्वारा ही सीखते हैं।
(10) परिस्थिति को समझने की क्षमता का विकास।
(11) सीखने के यांत्रिक स्वरूप को कम करता है।
(12) ज्ञानात्मक पक्ष का अध्ययन सूझ द्वारा ही होता है।
(13) सम्पूर्णता के अध्ययन के बाद अंगों का स्वयं ही अध्ययन करता है।
(14) समस्या समाधान विधि का जन्म इसी सिद्धान्त से है।
(15) यह सिद्धान्त बालकों को खोज करके ज्ञान का अर्जन पर बल देता है।
(16) यह सिद्धान्त उच्च बुद्धि वाले बालकों के लिए विशेष सहायता प्रदान करता है
(17) ज्ञान के पूर्ण रूप को सीखना।
(18) समस्या का समाधान खण्डों में नहीं बल्कि पूर्ण समग्र रूप में करते हैं।
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