अधिगम के क्षेत्र एवं व्यावहारिक परिणाम (Domain or Scope and Behavioural Outcomes of Learning)
अधिगम (सीखने) के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं (1) अभिप्रेरणा, (2) उद्देश्य, (3) बुद्धि, (4) उद्देश्य प्राप्ति के हेतु विभिन्न अनुक्रियाएँ, (5) सबलीकरण और (6) सामान्यीकरण अथवा एकीकरण अधिगम की प्रक्रिया के अन्तर्गत व्यक्ति में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के हेतु प्रेरक उत्पन्न होता है जिसका कोई प्रयोजन होता है। प्रयोजन से प्रेरित होकर वह क्रियाशील होता है। व्यक्ति के प्रत्येक कार्य अथवा व्यवहार का कोई निश्चित उद्देश्य होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है। बाधा उत्पन्न होने पर वह उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अनेक प्रकार की सम्भावित अनुक्रियाएँ अथवा व्यवहार करता है। वह प्रयत्न एवं भूल अथवा सूझ द्वारा बाधाओं को हटाने के लिए जो व्यवहार करता है उसमें अधिगम की क्रिया निहित रहती है। अनेक प्रकार की सम्भावित अनुक्रियाओं में से जिस अनुक्रिया से उद्देश्य की प्राप्ति हो जाती है वह सबलीकृत (Reinforced) हो जाती है तथा वह उसी सफल क्रिया की विशेष परिस्थिति आने पर पुनरावृत्ति करता है। इस तरह अधिगम की प्रक्रिया में सबलीकरण (Reinforcement) एक प्रमुख सोपान है जिसका उल्लेख आगे किया गया है। तत्पश्चात् वह नवीन सफल अनुक्रियाओं का पूर्व-ज्ञान अथवा क्रियाओं से समन्वय करता है। इस तरह नवीन अनुभवों का पूर्व अनुभवों से जब समन्वय अथवा सम्बन्ध हो जाता है तो वह उसके ज्ञान का एक अंग बन जाता है, जिसे हरबर्ट पूर्वानुवर्ती प्रत्यक्ष कहता है।
संसार का प्रत्येक प्राणी अपने मानसिक विकास के अनुसार ही सीखता है। मनुष्य सबसे अधिक विकसित है, अतः वह अन्य प्राणियों से अधिक सीखता है। एक बार सीखे हुए कौशल पर नई बाधायें आने से उन पर विजय प्राप्त करने के लिए नई-नई युक्तियाँ सीखता है, इस प्रकार सीखना प्राणी की वह क्रिया है, जिसके द्वारा वह अपने को वातावरण के अनुकूल बनाता है या वातावरण में अपने अनुसार परिवर्तन लाता है। व्यवहारवादियों की उपरोक्त परिभाषा अधूरी है। यह आवश्यक नहीं कि व्यवहार में परिवर्तन उन्नति की ओर उन्मुख हो जबकि सीखने की क्रिया में उन्नति का होना आवश्यक है- अर्थात् सीखना किसी उद्देश्य से होना चाहिए। सोद्देश्यवादी सीखने की क्रिया के प्रयोजन पर बल देते हैं। सीखने की आवश्यकता होने पर ही हम सीखते हैं। व्यवहारवादी अनुभव के आधार पर व्यवहार में परिवर्तन लाने को सीखना कहते हैं।
मनुष्य या प्राणी (अन्य) अपने वातावरण के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। जैसे ही बालक संसार में आता है, वैसे ही वातावरण में कुछ-न-कुछ सीखने को मिल जाता है। उदाहरणार्थ, बच्चा, यदि एक बार आग में जल जाता है, तो आगे के लिए यह अनुभव कर लेगा कि आग के पास नहीं जाना चाहिए। प्राणी की मूल प्रवृत्तियाँ बहुत बलिष्ठ होती हैं। उनमें परिवर्तन लाना भी एक प्रकार से सीखना है। गेट्स तथा अन्य विद्वानों के अनुसार, अनुभव और शिक्षा के द्वारा व्यवहार में परिवर्तन लाने को सीखना कहते हैं। अतः सीखना सार्वभौमिक प्रक्रिया है, यह एक मानसिक प्रक्रिया भी है। सीखना समायोजन करने की प्रक्रिया है, इसके अन्तर्गत पर्यावरण और परिस्थितियों में समायोजन होता है। सीखने की प्रक्रिया सभी में समान रूप से पायी जाती है। यह क्रिया जीवनपर्यन्त चलती रहती है। शिक्षा के क्षेत्र में सीखने का महत्त्व विशेष है। सीखना व्यक्ति में स्थायी परिवर्तन लाता है। सीखने में प्रबल अभिप्रेरणा आवश्यक है। मूल प्रवृत्तियों की तृप्ति सीखने पर निर्भर करती है। सीखने के तीन नियम हैं- तत्परता का नियम, अभ्यास का नियम, प्रभात का नियम, साथ ही सोचने सीखने की चार विधियाँ प्रमुख हैं। प्रथम अनुकरण द्वारा सीखना, प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखना, अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखना, सम्बद्ध क्रिया द्वारा सीखना।
शिक्षा तथा सीखने के क्षेत्र में अभिप्रेरणा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अभिप्रेरणा द्वारा बालक किसी बात को शीघ्रता से सीख जाता है, और उसमें सीखने के प्रति रुचि पैदा होती है। सीखने की क्रिया परिणाम का नियम अभिप्रेरण का कार्य करता है। अतः अभिप्रेरण की यथासम्भव सहायता लानी चाहिए। अभिप्रेरण दो प्रकार का होता है- आन्तरिक अभिप्रेरण अथवा बाह्य अभिप्रेरण। आन्तरिक प्रेरणाओं के अन्तर्गत मूल आवश्यकताओं से सम्बन्धित होती है। शारीरिक, सामाजिक आवश्यकताओं से सम्बन्धित तथा नकारात्मक प्रेरणायें तथा बाह्य प्रेरणाओं के अन्तर्गत पुरस्कार का दण्ड, प्रशंसा या आरोप, प्रतिउदिता सीखने के पठार का तात्पर्य है सीखने की प्रगति में रुकावट की वह व्यवस्था जबकि ऐसा प्रतीत होता है कि सीखने की गति रुक गयी है। सीखने के पठारों में स्थान में रखकर बालकों की शिक्षा प्रक्रिया को संचालित करना चाहिए। किसी विषय के शिक्षण का हस्तान्तरण किसी दूसरे विषय में किया जाता है। प्रायः ऐसा होता है कि हम किसी परिस्थिति में जो कुछ सीखते हैं उसका उपयोग किसी अन्य परिस्थितियों में कर सकते हैं।
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